फ़ज़िलतें, विशेषताएं, कमियां और बुराइयाँ
2134. “ रसूल अल्लाह ﷺ की फ़ज़ीलतें और तारीफ़ और आप ﷺ जन्नत के दरवाज़े पर सबसे पहले दस्तक देंगे ”
2135. “ रसूल अल्लाह ﷺ को पूरे पूरे और मुहर बंद शब्द दिए गए ”
2136. “ रसूल अल्लाह ﷺ की बद दुआ भी रहमत और पवित्रता का कारण बनजाती थी ”
2137. “ रसूल अल्लाह ﷺ ने अपने ऊपर लगे आरोपों का कैसे जवाब दिया ? ”
2138. “ रसूल अल्लाह ﷺ की रहमदिली ”
2139. “ रसूल अल्लाह ﷺ को नबी बनाने का फ़ैसला कब किया गया ”
2140. “ रसूल अल्लाह ﷺ का मज़ाक़ भी सच्चाई से भरा होता था ”
2141. “ रसूल अल्लाह ﷺ रहमत थे ”
2142. “ रसूल अल्लाह ﷺ दुश्मनों के लिए भी रहमत थे ”
2143. “ ऊंट अपने मालिक के बारे में रसूल अल्लाह ﷺ से शिकायत करता है ”
2144. “ दुनिया और आसमान की हर चीज़ जानती है कि रसूल अल्लाह ﷺ अल्लाह के रसूल हैं सिवाए ... ”
2145. “ रसूल अल्लाह ﷺ की अंगूठी की छवि ”
2146. “ रसूल अल्लाह ﷺ एक प्रचारक और बांटने वाले थे ”
2147. “ रसूल अल्लाह ﷺ बनि किनानह से थे ”
2148. “ रसूल अल्लाह ﷺ की उम्मत सबसे बड़ी है ”
2149. “ रसूल अल्लाह ﷺ की उम्मत का हिसाब किताब सबसे पहले होगा ”
2150. “ रसूल अल्लाह ﷺ सबसे अधिक तक़वा वाले थे ”
2151. “ रसूल अल्लाह ﷺ आदम की औलाद के सरदार हैं ”
2152. “ पेड़ और पत्थर भी रसूल अल्लाह ﷺ को सलाम करते थे ”
2153. “ रसूल अल्लाह ﷺ की शान में झूठ से काम नहीं लेना चाहिए ”
2154. “ रसूल अल्लाह ﷺ का “ आतिकह ” के बारे में बताना ”
2155. “ फ़रिश्ते रसूल अल्लाह ﷺ को उम्मत का दुरुद पहुँचाते हैं ”
2156. “ फ़रिश्ते रसूल अल्लाह ﷺ के ख़िलाफ़ कुरैश सरदारों की योजना ، लेकिन असफल रहे ”
2157. “ यदि अबू जहल रसूल अल्लाह ﷺ की गर्दन रौंदता तो ”
2158. “ रसूल अल्लाह ﷺ की उम्मत सबसे बड़ी होगी ”
2159. “ रसूल अल्लाह ﷺ एक प्रचार करने वाले थे ، तकलीफ़ देने वाले नहीं ”
2160. “ प्रचार के लिए रसूल अल्लाह ﷺ का उत्साह ”
2161. “ अच्छे कामों के लिए रसूल अल्लाह ﷺ का उत्साह, मज़लूमों की सहायता करने की उनकी इच्छा ”
2162. “ रसूल अल्लाह ﷺ अपने मक़सद पर डटे रहे ”
2164. “ रसूल अल्लाह ﷺ सच ही बोला करते थे ”
2165. “ रसूल अल्लाह ﷺ ने कसरा को इस्लाम की ओर बुलाया ”
2166. “ रसूल अल्लाह ﷺ का रूप-रंग ”
2167. “ रसूल अल्लाह ﷺ की नींद का बयान ”
2168. “ रसूल अल्लाह ﷺ ने भूख से अपने पेट पर पत्थर बांधा ”
2169. “ हज़रत इब्राहिम ، हज़रत मूसा ، हज़रत ईसा अलैहिमुस्सलाम और रसूल अल्लाह ﷺ की ख़ूबियाँ ”
2170. “ रसूल अल्लाह ﷺ की ख़ास ख़ूबियाँ ”
2171. “ क़ुरआन मजीद के लिए रसूल अल्लाह ﷺ का भेद-भाव ”
2172. “ रसूल अल्लाह ﷺ के सामने इबलीस की हार ”
2173. “ रसूल अल्लाह ﷺ को सपने में देखना ”
2174. “ उम्महातुल मोमिनीन यानि रसूल अल्लाह ﷺ की पत्नियों की फ़ज़ीलत ”
2175. “ रसूल अल्लाह ﷺ के परिवार के पक्ष में एक अच्छे आदमी की फ़ज़ीलत ”
2176. “ जन्नत की चार अफ़ज़ल औरतें ”
2177. “ हज़रत आयशा रज़ि अल्लाहु अन्हा के लिए क्षमा की दुआ ”
2178. “ हज़रत अबू बक्र रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2179. “ हज़रत अबू बक्र रज़ि अल्लाहु अन्ह को सिद्दीक़ क्यूँ कहा जाता है ”
2180. “ हज़रत अबू बक्र रज़ि अल्लाहु अन्ह अफ़ज़ल ख़लीफ़ा थे ”
2181. “ हज़रत उमर बिन ख़त्ताब रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2182. “ रसूल अल्लाह ﷺ के वैवाहिक और पारिवारिक रिश्तों का बयान ”
2183. “ हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2184. “ हज़रत अली रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2185. “ हज़रत फ़ातिमा रज़ि अल्लाहु अन्हा की फ़ज़ीलत ”
2186. “ हज़रत ज़ैनब रज़ि अल्लाहु अन्हा की फ़ज़ीलत ”
2187. “ हज़रत हसन और हुसैन रज़ि अल्लाहु अन्हुमा की फ़ज़ीलत ”
2188. “ हज़रत हसन और हुसैन रज़ि अल्लाहु अन्हुमा और उनके माता पिता का सम्मान ”
2189. “ हज़रत हुसैन की शहादत की भविष्यवाणी ، हज़रत हसन रज़ी अल्लाह अन्हुमा के क़त्ल का बयान ”
2190. “ अहल-ए-बेत यानि रसूल अल्लाह ﷺ के परिवार की फ़ज़ीलत ”
2191. “ अल्लाह की किताब और अहल-ए-बेत यानि रसूल अल्लाह ﷺ के परिवार की एहमियत ”
2192. “ हज़रत आसियह और हज़रत मरयम अलैहिमुस्सलाम की फ़ज़ीलत ”
2193. “ हज़रत जआफ़र अबू तालिब रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2194. “ सहाबा की फ़ज़ीलत ”
2195. “ साहब को बुरा कहने वाले पर लाअनत ”
2196. “ रसूल अल्लाह ﷺ के साथ रहने की फ़ज़ीलत ”
2197. “ सहाबा रज़ि अल्लाह अन्हुम की विशेषताएं ”
2198. “ कुछ क़बीलों की विशेषताएं ”
2199. “ रसूल अल्लाह ﷺ के बाद सहाबा का समय सबसे अच्छा था ”
2200. “ महाजिरों की फ़ज़ीलत ”
2201. “ रसूल अल्लाह ﷺ की अन्सारी सहाबा से मुहब्बत ”
2202. “ अन्सारियों की फ़ज़ीलत ”
2203. “ अन्सारियों का घर यानि माता पिता का घर ”
2204. “ एक अन्सारी की मेज़बानी ”
2205. “ सहाबा ، ताबईन और उनके बाद वालों की फ़ज़ीलत ”
2206. “ बिन देखे रसूल अल्लाह ﷺ पर ईमान लाने वालों की फ़ज़ीलत ”
2207. “ हिन्द की जंग के साथियों और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का साथ देने वालों की फ़ज़ीलत ”
2208. “ हज़रत उसामा रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2209. “ हज़रत बिलाल रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2210. “ रसूल अल्लाह ﷺ के सेवक के पक्ष में रसूल अल्लाह ﷺ की दुआएं और उनका फल ”
2211. “ हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2212. “ हज़रत अब्दुल्लाह रज़ि अल्लाहु अन्ह को अनुमति देने का एक विशेष ढंग ”
2213. “ अब्दुल्ला बिन मसऊद सुन्नत के पाबंद थे और अल्लाह को याद करने वाली सभा को बुरा कहने का कारण ”
2214. “ हज़रत हिशाम और हज़रत अमरो रज़ि अल्लाहु अन्हुमा की फ़ज़ीलत ”
2215. “ हज़रत अबू सुफ़ियान रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2216. “ बदर वालों की फ़ज़ीलत ”
2217. “ कौन कौन और क्या क्या अफ़ज़ल है ”
2218. “ क़िब्तियों के साथ अच्छा व्यवहार करने की नसिहत ”
2219. “ उम्मत की परीक्षा और रसूल अल्लाह ﷺ की सिफ़ारिश ”
2220. “ हज़रत उसामा की फ़ज़ीलत ”
2221. “ हज़रत सव्वाद से रसूल अल्लाह ﷺ की मुहब्बत का बयान ”
2222. “ क़ुरैशियों की फ़ज़ीलत ”
2223. “ एक क़ुरैशी दो ग़ैर क़ुरैशियों के बराबर क्यूँ ”
2224. “ क़ुरैशी औरतों की विशेषता और फ़ज़ीलत ”
2225. “ रसूल अल्लाह ﷺ ने क़ुरैश साथियों को तरजीह दी ”
2226. “ रसूल अल्लाह ﷺ के बाद सबसे पहले क़बीला क़ुरेशा ख़तम होगा ”
2227. “ असलम और ग़िफ़ार क़बीले के लिए दुआ ”
2228. “ कुछ और अरबी क़बीलों की फ़ज़ीलत ”
2229. “ नख़अ क़बीले की फ़ज़ीलत ”
2230. “ हज़रमोत क़बीले की फ़ज़ीलत ”
2231. “ अब्दुलक़ैस क़बीले की फ़ज़ीलत ”
2232. “ अज़दी लोगों की फ़ज़ीलत ”
2233. “ दहिया कल्बी और जिब्रईल अलैहिस्सलाम के रूप बहुत मिलते जुलते हैं ”
2234. “ बाद में आने वाले उम्मतियों से रसूल अल्लाह ﷺ की मुहब्बत ”
2235. “ हज़रत अरक़म रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2236. “ हज़रत अबु दहदाह रज़ि अल्लाहु अन्ह का लाभदायक व्यापार ”
2237. “ बिना हिसाब किताब के जन्नत में जाने वाले उम्मती ”
2238. “ जुमा के दिन की फ़ज़ीलत ”
2239. “ हज़रत मुआवियह रज़ि अल्लाहु अन्ह के पक्ष में रसूल अल्लाह ﷺ की दुआ ”
2240. “ रसूल अल्लाह ﷺ की हज़रत मुआवियह रज़ि अल्लाहु अन्ह के पक्ष में डांट डपट या उनकी फ़ज़ीलत ”
2241. “ हज़रत हुज़ैफ़ा और उनकी मां रज़ि अल्लाहु अन्हुम के पक्ष में दुआ ”
2242. “ मुसलामनों के पक्ष में क्षमा की दुआ ”
2243. “ हज़रत सअद बिन अबि वक़ास रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2244. “ हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ि अल्लाहु अन्ह के पक्ष में रसूल अल्लाह ﷺ की दुआ ”
2245. “ हज़रत जअफ़र और हज़रत ज़ैद रज़ि अल्लाहु अन्हुमा की फ़ज़ीलत ”
2246. “ हज़रत ख़ालिद बिन वलीद रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2247. “ मुस्लिम उम्मत गुमराह करने पर सहमत नहीं हो सकती ”
2248. “ पंद्रह शअबान की रात की फ़ज़ीलत ”
2249. “ अल्लाह के दोस्तों की विशेषताएं ”
2250. “ कवि के रूप में हज़रत हस्सान रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2251. “ हज़रत हन्ज़लह रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2252. “ हज़रत मआज़ बिन जबल रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2253. “ बुराई का इन्कार करने वाले मुसलमानों की फ़ज़ीलत ”
2254. “ मोमिन की मिसाल खजूर जैसी क्यूँ है ? ”
2255. “ क़बीला मुज़िर की फ़ज़ीलत ”
2256. “ हज़रत सफ़ीना रज़ि अल्लाहु अन्ह की पहचान ”
2257. “ हज़रत अब्बास रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2258. “ हज़रत जरीर रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2259. “ हज़रत तल्हा रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2260. “ चोट लगे तो बिस्मिल्लाह कहना चाहिए ”
2261. “ चार बहने सहाबियात हैं ”
2262. “ हज़रत अबु उमामह रज़ि अल्लाहु अन्ह का चमत्कार ”
2263. “ रसूल अल्लाह ﷺ के सामने अतीत को याद करना ”
2264. “ क़ुरआन के चार शिक्षक ”
2265. “ हज़रत सालिम रज़ि अल्लाहु अन्ह एक अच्छे क़ारी ”
2266. “ दहयह कल्बी और जिब्रईल अलैहिस्सलाम की एकरूपता और उरवह बिन मसऊद सक़फ़ी और ईसा अलैहिस्सलाम की एकरूपता है ”
2267. “ हज़रत ज़ैद बिन हारिसा रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2268. “ हज़रत हारिसा बिन नअमान रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2269. वरक़ा की फ़ज़ीलत ”
2270. “ हातिम इसाई ”
2271. “ हिजरत के बाद किस चीज़ पर बैअत होगी ”
2272. “ हज़रत अमरो बिन हरिस रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2273. “ हज़रत सलमान फ़ारसी रज़ि अल्लाहु अन्ह के परिवार की फ़ज़ीलत ”
2274. “ हज़रत सलमान फ़ारसी रज़ि अल्लाहु अन्ह की इमान लाने की कहानी ، सच्चाई की तलाश में हज़रत सलमान फ़ारसी रज़ि अल्लाहु अन्ह की यात्रा ”
2275. “ रसूल अल्लाह ﷺ ने जंग के मामलों में अपने सहाबा से सलाह ली ”
2276. “ हज़रत ज़ुबैर रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2277. “ हज़रत हम्ज़ा रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2278. “ हर ज़माने में आगे बढ़जाने वाले पाए जाएंगे ”
2279. “ हज़रत अम्मार रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2281. “ हज़रत हातिब रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2282. “ हज़रत अबू तल्हा रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2283. “ अबू तालिब के पक्ष में रसूल अल्लाह ﷺ की सिफ़ारिश ”
2284. “ हज़रत अबू मूसा रज़ि अल्लाहु अन्ह की क़ौम की फ़ज़ीलत ”
2285. “ बदर और हुदैबियाह में भाग लेने वालों की फ़ज़ीलत ”
2286. “ मुसलमान की फ़ज़ीलत ”
2287. “ मोमिन की पवित्रता कअबे से अधिक है ”
2288. “ मतलब ”
2289. “ सूरत फ़ातेहा की अंतिम आयत की तफ़्सीर ”
2290. “ हज़रत अबू उबेदा रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2291. “ एक समूह सच्चाई पर सदा खड़ा रहेगा ”
2292. “ सहाबा की बरकतें ”
2293. “ मुस्लिम उम्मत की आयु ، रसूल अल्लाह ﷺ के समय के लोगों का एक सदी में ख़त्म होना ”
2294. “ हज़रत अबू हुरैरा की खजूरों में बरकत के लिए रसूल अल्लाह ﷺ की दुआ ”
2295. “ हज़रत अबू हिन्द रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2296. “ रसूल अल्लाह ﷺ ने हज़रत सफ़ियह को कैसे राज़ी किया ? ”
2297. “ एक सदी के लिए अब्दुल्ला बिन बसर रज़ि अल्लाहु अन्ह का जीवन ”
2298. “ हज़रत अबू ज़र हज़रत उनेस रज़ि अल्लाहु अन्हुमा और उनकी क़ौम ग़िफ़ार के ईमान लाने की घटना ”
2299. “ हज़रत ज़ैद बिन अमरो रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2300. “ हज़रत हारिसा बिन सराक़ा रज़ि अल्लाहु अन्ह की फ़ज़ीलत ”
2301. “ मदीना मुनव्वरा की फ़ज़ीलत ”
2302. “ मदीना मुनव्वरा के लिए बरकत की दुआ ”
2303. “ मदीने में बसने वालों के अधिकार ”
2304. “ मक्का मुकर्रमा और मदिना मुनव्वरा की पवित्रता का बयान ”
2305. “ हिजाज़ वालों की फ़ज़ीलत और पूरब के लोगों की निंदा ”
2306. “ शाम यानि सीरिया और वहां बसने वालों की फ़ज़ीलत ”
2307. “ हज़रत सअद बिन मआज़ रज़ि अल्लाहु अन्ह के चमत्कार और शहादत ”
2308. “ यमन में बसने वालों की फ़ज़ीलत ”
2309. “ ओवेस रहमहुल्लाह की फ़ज़ीलत ”
2310. “ अदन अबयन के बारह हज़ार लोगों के द्वारा रसूल अल्लाह ﷺ की सहायता ”
2311. “ ओमान में बसने वालों की फ़ज़ीलत ”
2312. “ अजमी लोगों की फ़ज़ीलत ”
2313. “ बनी अबू अलआस की निंदा ”
2314. “ हकम बिन अबू अलआस पर लअनत ”
2315. “ सबसे बड़े दो बदनसीब ”

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سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر
سلسله احاديث صحيحه
सिलसिला अहादीस सहीहा
المناقب والمثالب
فضائل و مناقب اور معائب و نقائص
फ़ज़िलतें, विशेषताएं, कमियां और बुराइयाँ
سیدنا سلمان فارسی کا ایمان لانے کا واقعہ، تلاش حق کے لیے سیدنا سلمان فارسی رضی اللہ عنہ کا سفر نامہ
“ हज़रत सलमान फ़ारसी रज़ि अल्लाहु अन्ह की इमान लाने की कहानी ، सच्चाई की तलाश में हज़रत सलमान फ़ारसी रज़ि अल्लाहु अन्ह की यात्रा ”
حدیث نمبر: 3454
Save to word مکررات اعراب Hindi
-" اعينوا اخاكم. يعني سلمان في مكاتبته".-" أعينوا أخاكم. يعني سلمان في مكاتبته".
سیدنا عبداللہ بن عباس رضی اللہ عنہ سے روایت ہے، وہ کہتے ہیں: سیدنا سلمان فارسی رضی اللہ عنہ نے مجھے اپنا واقعہ اپنی زبانی یوں بیان کیا، وہ کہتے ہیں: میں اصبہان کا ایک فارسی باشندہ تھا، میرا تعلق ان کی ایک جیی نامی بستی سے تھا، میرے باپ اپنی بستی کے بہت بڑے کسان تھے اور میں اپنے باپ کے ہاں اللہ کی مخلوق میں سے سب سے زیادہ محبوب تھا۔ میرے ساتھ ان کی محبت قائم رہی حتیٰ کہ انہوں نے مجھے گھر میں آگ کے پاس ہمیشہ رہنے والے کی حیثیت سے پابند کر دیا، جیسے لڑکی کو پابند کر دیا جاتا ہے۔ میں نے مجوسیت میں بڑی جدوجہد سے کام لیا، حتیٰ کہ میں آگ کا ایسا خادم و مصاحب بنا کہ ہر وقت اس کو جلاتا رہتا تھا اور ایک لمحہ کے لیے بھی اسے بجھنے نہ دیتا تھا۔ میرے باپ کی ایک بڑی عظیم جائیداد تھی، انہوں نے ایک دن ایک عمارت (‏‏‏‏کے سلسلہ میں) مصروف ہونے کی وجہ سے مجھے کہا: بیٹا! میں تو آج اس عمارت میں مشغول ہو گیا ہوں اور اپنی جائیداد (‏‏‏‏تک نہیں پہنچ پاؤں گا)، اس لیے تم چلے جاؤ اور ذرا دیکھ کر آؤ۔ انہوں نے اس کے بارے میں مزید چند (‏‏‏‏ احکام بھی) صادر کئے تھے۔ پس میں اس جاگیر کے لیے نکل پڑا، میرا گزر عیسائیوں کے ایک گرجا گھر کے پاس سے ہوا، میں نے ان کی آوازیں سنیں وہ نماز ادا کر رہے تھے۔ مجھے یہ علم نہ ہو سکا کہ عوام الناس کا کیا معاملہ ہے کہ میرے باپ نے مجھے اپنے گھر میں پابند کر رکھا ہے۔ (‏‏‏‏بہرحال) جب میں ان کے پاس سے گزرا اور ان کی آوازیں سنیں تو میں ان کے پاس چلا گیا اور ان کی نقل و حرکت دیکھنے لگ گیا۔ جب میں نے ان کو دیکھا تو مجھے ان کی نماز پسند آئی اور میں ان کے دین کی طرف راغب ہوا اور میں نے کہا: بخدا! یہ دین اس (‏‏‏‏مجوسیت) سے بہتر ہے جس پر ہم کاربند ہیں۔ میں نے ان سے پوچھا: اس دین کی بنیاد کہاں ہے؟ انہوں نے کہا: شام میں۔ پھر میں اپنے باپ کی طرف واپس آ گیا، (‏‏‏‏چونکہ مجھے تاخیر ہو گئی تھی اس لیے) انہوں نے مجھے بلانے کے لیے کچھ لوگوں کو بھی میرے پیچھے بھیج دیا تھا۔ میں اس مصروفیت کی وجہ سے ان کے مکمل کام کی (‏‏‏‏طرف کوئی توجہ نہ دھر سکا)۔ جب میں ان کے پاس آیا تو انہوں نے پوچھا: بیٹا! آپ کہاں تھے؟ کیا میں نے ایک ذمہ داری آپ کے سپرد نہیں کی تھی؟ میں نے کہا: ابا جان! میں کچھ لوگوں کے پاس سے گزرا، وہ گرجا گھر میں نماز پڑھ رہے تھے، مجھے ان کی کاروائی بڑی پسند آئی۔ اللہ کی قسم! میں ان کے پاس ہی رہا، حتیٰ کہ سورج غروب ہو گیا۔ میرے باپ نے کہا: بیٹا! اس دین میں کوئی خیر نہیں ہے، تمہارا اور تمہارے آبا کا دین اس سے بہتر ہے۔ میں نے کہا: بخدا! ہرگز نہیں، وہ دین ہمارے دین سے بہتر ہے۔ (‏‏‏‏میرے ان جذبات کی وجہ سے) میرے باپ کو میرے بارے میں خطرہ لاحق ہوا اور انہوں نے میرے پاؤں میں بیڑیاں ڈال کر مجھے گھر میں پابند کر دیا۔ میں نے عیسائیوں کی طرف پیغام بھیجا کہ جب شام سے تاجروں کا عیسائی قافلہ آئے تو مجھے خبر دینا۔ (‏‏‏‏کچھ ایام کے بعد) جب شام سے عیسائیوں کا تجارتی قافلہ پہنچا تو انہوں نے مجھے اس (‏‏‏‏کی آمد) کی اطلاع دی۔ میں نے ان سے کہا: جب (‏‏‏‏اس قافلے کے) لوگ اپنی ضروریات پوری کر کے اپنے ملک کی طرف واپس لوٹنا چاہیں تو مجھے بتلا دینا۔ سو جب انھوں نے واپس جانا چاہا تو انہوں نے مجھے اطلاع دے دی۔ میں نے اپنے پاؤں سے بیڑیاں اتار پهینکیں اور ان کے ساتھ نکل پڑا اور شام پہنچ گیا۔ جب میں شام پہنچا تو پوچھا: وہ کون سے شخصیت ہے جو اس دین والوں میں افضل ہے؟ انہوں نے کہا: فلاں گرجا گھر میں ایک پادری ہے۔ میں اس کے پاس گیا اور میں نے کہا: میں اس دین (‏‏‏‏نصرانیت) کی طرف راغب ہوا ہوں، اب میں چاہتا ہوں کہ آپ کے پاس رہوں اور گرجا گھر میں آپ کی خدمت کروں اور آپ سے تعلیم حاصل کروں اور آپ کے ساتھ نماز پڑھوں۔ اس نے کہا: (‏‏‏‏ٹھیک ہے) آ جاؤ۔ پس میں اس میں داخل ہو گیا۔ لیکن وه بڑا برا آدمی تھا۔ وه لوگوں کو صدقہ کرنے کا حكم دیتا تها اور ان کو ترغیب دلاتا تها۔ جب وه کئی اشیاء لے کر آتے تھے، تو وه اپنے لیے جمع کر لیتا تھا اور مساکین کو کچھ بھی نہیں دیتا تھا، حتیٰ کہ اس کے پاس سونے اور چاندی کے سات مٹکے جمع ہو گئے۔ میں اس کے کرتوتوں کی بناء پر اس سے نفرت کرتا تھا۔ بالآخر وہ مر گیا، اسے دفن کرنے کے لیے عیسائی لوگ پہنچ گئے۔ میں نے ان سے کہا: یہ تو برا آدمی تھا، یہ تم لوگوں کو تو صدقہ کرنے کا حکم دیتا اور اس کی ترغیب دلاتا تھا، لیکن جب تم لوگ اس کے پاس صدقہ جمع کرواتے تھے تو یہ اسے اپنے لیے ذخیرہ کر لیتا تھا اور مساکین کو بلکل نہیں دیتا تھا۔ انہوں نے مجھ سے پوچھا: تجھے کیسے علم ہوا؟ میں نے کہا: میں تمہیں اس کے خزانے کی خبر دے سکتا ہوں۔ انہوں نے کہا: تو پھر ہمیں بتاؤ۔ پس میں نے ان کو (‏‏‏‏اس خزانے کا) مقام دکھایا انہوں نے وہاں سے سونے اور چاندی کے بھرے ہوئے سات مٹکے نکالے۔ جب ا‏‏‏‏نہوں نے صدقے (‏‏‏‏کا یہ حشر) دیکھا تو کہنے لگے: بخدا! ہم اس کو کبھی بھی دفن نہیں کریں گے۔ سو انہوں نے اس کو سولی پر لٹکایا اور پھر پتھروں سے اس کو سنگسار کیا۔ بعد ازاں وہ اس کی جگہ ایک اور آدمی لے آئے۔ سلمان کہتے ہیں: جو لوگ پانچ نمازیں ادا کرتے تھے، میں نے اس کو ان میں افضل پایا۔ میں نے اسے دنیا سے سب سے زیادہ بے رغبت، آخرت کے معاملے میں سب سے زیادہ رغبت والا اور دن ہو یا رات (‏‏‏‏عبادت کے معاملات کو) تندہی سے ادا کرنے والا پایا۔ میں نے اس سے ایسی محبت کی کہ اس سے پہلے اس قسم کی محبت کسی سے نہیں کی تھی۔ میں اسی کے ساتھ کچھ زمانہ تک مقیم رہا۔ بالآخر اس کی وفات کا وقت قریب آ پہنچا۔ میں نے اسے کہا: اے فلان! میں تیرے ساتھ رہا اور میں نے تجھ سے ایسی محبت کی کہ اس سے قبل اس قسم کی محبت کسی سے نہیں کی تھی۔ اب تیرے پاس اللہ تعالیٰ کا حکم (‏‏‏‏ موت) آپہنچا ہے، تو خود بھی محسوس کر رہا ہے۔ اب تو مجھے کسی بندہ (‏‏‏‏ خدا) کے پاس جانے کی نصیحت کرے گا؟ اور مجھے کیا حکم دے گا؟ اس نے کہا: میرے بیٹے! اللہ کی قسم! میں جس دین پر پابند تھا، میرے علم کے مطابق کوئی بھی اس دین کا پیروکار نہیں ہے۔ لوگ ہلاک ہو گئے ہیں اور تبدیل ہو گئے ہیں اور جس شریعت کو اپنا رکھا تھا اس کے اکثر امور کو ترک کر دیا ہے۔ ہاں ایک آدمی موصل میں ہے۔ وہ بھی اسی دین پر کاربند ہے، پس تو اس کے پاس چلے جانا۔ جب وہ فوت ہو گیا اور اسے دفن کر دیا گیا تو میں موصل والے آدمی کے پاس پہنچ گیا۔ میں نے اسے کہا: اے فلاں! فلاں آدمی نے موت کے وقت مجھے وصیت کی تھی کہ میں تجھ سے آ ملوں۔ اس نے مجھے بتلایا تھا کہ تم بھی اس کے دین پر کاربند ہو۔ اس نے مجھے کہا: (‏‏‏‏ٹھیک ہے) تم میرے پاس ٹھہر سکتے ہو۔ پس میں نے اس کے پاس اقامت اختیار کی، میں نے اسے بہترین آدمی پایا جو اپنے ساتھی کے دین پر برقرار تھا۔ (‏‏‏‏کچھ عرصے کے بعد اس پر بھی) فوت ہونے کے آثار (‏‏‏‏دکھائی دینے لگے)۔ جب اس پر وفات کی گھڑی آ پہنچی تو میں نے کہا: اے فلاں! فلاں نے تو مجھے تیرے بارے میں وصیت کی تھی اور مجھے حکم دیا تھا کہ تیری صحبت میں رہوں۔ اب اللہ تعالیٰ کی طرف سے جو کچھ تجھ پر نازل ہونے والا ہے وہ تو دیکھ رہا ہے۔ لہٰذا مجھے کیا وصیت کرے گا اور کیا حکم دے گا کہ میں کس کے پاس جاؤں؟ اس نے کہا: بیٹا! اللہ کی قسم! میرے علم کے مطابق تو ہمارے دین پر قائم صرف ایک آدمی ہے، جو نصیبین میں ہے۔ (‏‏‏‏میری وفات کے بعد) اس کے پاس چلے جانا۔ پس جب وه فوت ہوا اور اسے دفن کر دیا گیا تو میں نصیبین والے صاحب کے پاس پہنچ گیا۔ میں اس کے پاس آیا اور اسے اپنے بارے میں اور اپنے (‏‏‏‏رہنما) کے حکم کے بارے میں مطلع کیا۔ اس نے کہا: میر ے پاس ٹھہرئیے۔ سو میں اس کے پاس ٹھہر گیا۔ میں نے اس کو اس کے سابقہ دونوں صاحبوں کے دین پر پایا۔ وہ بہترین آدمی تھا جس کے پاس میں نے اقامت اختیار کی۔ لیکن اللہ کی قسم! وہ جلد ہی مرنے کے لیے تیار ہو گیا۔ جب اس کی موت کا وقت آیا تو میں نے اسے کہا: اے فلاں! فلاں (‏‏‏‏اللہ کے بندے) نے مجھے فلاں کی (‏‏‏‏صحبت میں رہنے کی) نصیحت کی تھی، پھر اس نے تیرے پاس آنے کی نصیحت کی۔ اب تو مجھے کس کے پاس جانے کی وصیت کرے گا یا کیا حکم دے گا؟ اس نے کہا: میرے بیٹے! ہم تو ایسے آدمی کے بارے میں کوئی معلومات نہیں رکھتے، جو ہمارے دین پر قائم ہو، کہ تو اس کے پاس جا سکے۔ البتہ ایک آدمی عموریہ میں ہے۔ وہ دین کے معاملے میں ہماری طرح کا ہے۔ اگر تو چاہتا ہے تو اس کے پاس چلے جانا، کیونکہ وہ ہمارے دین پر برقرار ہے۔ پس جب وہ بھی مر گیا اور اسے دفن کر دیا گیا، تو میں عموریہ والے (‏‏‏‏بندہ خدا) پاس پہنچ گیا اور اسے اپنا سارا ماجرا سنایا۔ اس نے کہا: تم میرے پاس ٹھہرو۔ میں نے اس کی صحبت اختیا کر لی اور اسے اس کے اصحاب کی سیرت اور دین پر پایا۔ سیدنا سلمان رضی اللہ عنہ کہتے ہیں: میں نے اس کے پاس رہ کر کمائی بھی کی، حتیٰ کہ میں کچھ گائیوں اور بکریوں کا مالک بن گیا۔ لیکن اس پر بھی اللہ تعالیٰ کا حکم نازل ہونے لگا (‏‏‏‏ کی علامات دکھائی دینے لگیں)۔ جب اس کی موت کا وقت قریب آپہنچا تو میں نے اسے کہا: اے فلاں! میں فلاں (‏‏‏‏بندہ خدا) کے پاس تھا، فلاں نے مجھے فلاں کے بارے میں، فلاں نے فلاں کے بارے میں اور اس نے تیرے پاس آنے کی وصیت کی تھی۔ اب تو مجھے کس (‏‏‏‏کی صحبت میں رہنے) کی وصیت کرے گا؟ اور مجھے کیا حکم دے گا؟ اس نے کہا: میرے بیٹا! میں تو کسی ایسے شخص کو نہیں جانتا جو ہمارے دین پر کاربند ہو اور جس کے بارے میں میں تجھے حکم دے سکوں۔ لیکن اب ایک نبی کی آمد کا وقت قریب آ چکا ہے، اسے دین ابراہیمی کے ساتھ مبعوث کیا جائے گا، وہ عربوں کی سرزمین سے ظاہر ہو گا اور ایسے (‏‏‏‏شہر) کی طرف ہجرت کرے گا جو دو حروں (‏‏‏‏یعنی کالے پتھر والی زمینوں) کے درمیان میں ہو گا اور ان کے درمیان کھجوروں کے درخت ہوں گے۔ اس کی اور علامات بھی ہوں گی، جو مخفی نہیں ہوں گی۔ وہ ہدیہ (‏‏‏‏یعنی بطور تحفہ دی گئی چیز) کھائے گا، صدقہ نہیں کھائے گا اور اس کے کندھوں کے درمیان مہر ختم نبوت ہو گی۔ اگر تجھے استطاعت ہے تو (‏‏‏‏عرب کے) ان علاقوں تک پہنچ جا۔ سیدنا سلمان رضی اللہ عنہ کہتے ہیں: پھر وہ فوت ہو گیا اور اسے دفن کر دیا گیا۔ جب تک اللہ تعالیٰ کو منظور تھا، میں عموریہ میں سکونت پذیر رہا۔ پھر میرے پاس سے بنوکلب قبیلے کا ایک تجارتی قافلہ گزرا۔ میں نے ان سے کہا: اگر تم مجھے سرزمین عرب کی طرف لے جاؤ تو میں تم کو اپنی گائیں اور بکریاں دے دوں گا؟ انہوں نے کہا: ٹھیک ہے۔ پس میں نے اپنی گائیں اور بکریاں ان کو دے دیں اور انہوں نے مجھے اپنے ساتھ ملا لیا۔ جب وہ مجھے وادئ قری تک لے کر پہنچے تو انہوں نے مجھ پر ظلم کیا اور بطور غلام ایک یہودی کے ہاتھ فروخت کر دیا۔ پس میں اس کے پاس ٹھہر گیا۔ جب میں نے کھجوروں کے درخت دیکھے تو مجھے امید ہونے لگی کہ یہ وہی شہر ہے جو میرے ساتھی نے بیان کیا تھا، لیکن یقین نہیں آ رہا تھا۔ ایک دن اس یہودی کا چچا زاد بھائی، جس کا تعلق بنو قریظہ سے تھا، مدینہ سے اس کے پاس آیا اور مجھے خرید کر اپنے پاس مدینہ میں لے گیا۔ اللہ کی قسم! جب میں نے مدینہ کو دیکھا تو اپنے ساتھی کی بیان کردہ علامات کی روشنی میں اس کو پہچان گیا (‏‏‏‏کہ یہی خاتم النبیین کا مسکن ہو گا)۔ میں وہاں فروکش ہو گیا۔ ا‏‏‏‏دھر اللہ تعالیٰ نے اپنے رسول کو مکہ مکرمہ میں مبعوث کر دیا، جتنے دن انہوں نے وہاں ٹہرنا تھا، وہ ٹہرے۔ لیکن میں نے ان (‏‏‏‏کی آمد) کا کوئی تذکرہ نہیں سنا، دوسری بات یہ بھی ہے کہ میں غلامی والے شغل میں مصروف رہتا تھا بلآخر نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم ہجرت کر کے مدینہ تشریف لے آئے۔ اللہ کی قسم! (‏‏‏‏ایک دن) میں اپنے آقا کے پھل دار کھجور کے درخت کی چوٹی پر کوئی کام کر رہا تھا، میرا مالک بیٹھا ہوا تھا اس کا چچا زاد بھائی اچانک اس کے پاس آیا اور کہنے لگا: اللہ تعالیٰ بنو قیلہ کو ہلاک کرے، وہ قباء میں مکہ سے آنے والے ایک آدمی کے پاس جمع ہیں اور ان کا خیال ہے کہ وہ نبی ہو۔ جب میں نے اس کی یہ بات سنی تو مجھ پر اس قدر کپکپی طاری ہو گئی کہ مجھے یہ گمان ہونے لگا کہ اپنے مالک پر گر جاؤں گا۔ میں کھجور کے درخت سے اترا اور اس کے چچا زاد بھائی سے کہنے لگا: تم کیا کہہ رہے ہو؟ تم کیا کہہ رہے ہو؟ اس بات سے میرے آقا کو غصہ آیا اور اس نے مجھے زور سے مکا مارا اور کہا: تیرا اس بات سے کیا تعلق ہے۔ جا، اپنا کام کر۔ میں نے کہا: کوئی تعلق نہیں، بس ذرا بات کی چھان بین کرنا چاہتا تھا۔ سیدنا سلمان رضی اللہ عنہ کہتے ہیں: میرے پاس میرا جمع کیا ہوا کچھ مال تھا۔ جب شام ہوئی تو میں نے وہ مال لیا اور قباء میں رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس پہنچ گیا۔ میں آپ صلی اللہ علیہ وسلم پر داخل ہوا اور کہا: مجھے یہ بات موصول ہوئی ہے کہ آپ کوئی صالح آدمی ہیں اور آپ کے اصحاب غریب اور حاجتمند لوگ ہیں۔ یہ میرے پاس کچھ صدقے کا مال ہے، میں نے آپ لوگوں کو ہی اس کا زیادہ مستحق سمجھا ہے۔ پھر میں نے وہ مال آپ صلی اللہ علیہ وسلم کے قریب کیا۔ لیکن آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے اپنے صحابہ سے فرمایا: تم لوگ کھا لو۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے خود اپنا ہاتھ روک لیا اور نہ کھایا۔ میں نے دل میں کہا کہ (‏‏‏‏اس بندہ خدا کے نبی ہونے کی) ایک نشانی تو (‏‏‏‏پوری ہو گئی ہے)۔ پھر میں چلا گیا اور مزید کچھ مال جمع کیا۔ اب رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم مدینہ میں منتقل ہو چکے تھے۔ پھر (‏‏‏‏وہ مال لے کر) میں آپ صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس آیا اور کہا: میرا آپ کے بارے میں خیال ہے کہ آپ صدقے کا مال نہیں کھاتے، اس لیے یہ ہدیہ (‏‏‏‏یعنی تحفہ) ہے، میں اس کے ذریعے آپ کی عزت کرنا چاہتا ہوں۔ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے وہ چیز خود بھی کھائی اور اپنے صحابہ کو بھی کھانے کا حکم دیا، سو انہوں نے بھی کھائی۔ (‏‏‏‏یہ منظر دیکھ کر) میں نے دل میں کہا: دو علامتیں (‏‏‏‏پوری ہو گئیں ہیں)۔ (‏‏‏‏ سیدنا سلمان رضی اللہ عنہ کہتے ہیں) میں (‏‏‏‏تیسر ی دفعہ) جب رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس آیا تو وہ ‏‏‏‏بقیع الغرقد‏‏‏‏ میں تھے۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم کسی صحابی کے جنازے کی خاطر وہاں آئے ہوئے تھے، آپ صلی اللہ علیہ وسلم پر دو چادریں تھیں۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم اپنے اصحاب میں تشریف فرما تھے۔ میں نے آپ صلی اللہ علیہ وسلم کو سلام کہا، پھر آپ کی پیٹھ پر نظر ڈالنے کے لیے گھوما، تاکہ (‏‏‏‏دیکھ سکوں کہ) آیا وہ (‏‏‏‏ختم نبوت والی) مہر بھی ہے، جس کی پیشن گوئی میرے ساتھی نے کی تھی۔ جب رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم ‏‏‏‏ نے مجھے گھومتے ہوئے دیکھا تو آپ پہچان گئے کہ میں آپ صلی اللہ علیہ وسلم کے کسی وصف کی جستجو میں ہوں، پس آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے اپنی چادر اپنی پیٹھ سے ہٹا دی، میں نے مہر نبوت دیکھی اور اسے پہچان گیا۔ پھر میں آپ صلی اللہ علیہ وسلم پر ٹوٹ پڑا اور آپ کے بوسے لینے اور رونے لگا۔ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے مجھے فرمایا: پیچھے ہٹو۔ پس میں پیچھے ہٹ گیا۔ اے ابن عباس! پھر میں نے آپ صلی اللہ علیہ وسلم کو اپنا سارا ماجرا اسی طرح سنایا، جسے تجھے سنایا ہے اور رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کو یہ بات اچھی لگی کہ یہ واقعہ آپ کے صحابہ بھی سنیں۔ پھر سیدنا سلمان رضی اللہ عنہ غلامی کی وجہ سے مشغول رہے اور غزوہ بدر اور غزوہ احد میں رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے ساتھ شریک نہ ہو سکے۔ (‏‏‏‏ سیدنا سلمان رضی اللہ عنہ کہتے ہیں:) ایک دن رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے مجھے فرمایا: سلمان! (‏‏‏‏اپنے مالک سے) مکاتبت کر لو۔ پس میں نے اپنے آقا سے اس بات پر مکاتبت کر لی کہ میں اس کے لیے تین سو کھجور کے چھوٹے درخت زمین سے اکھاڑ کر اس کی جگہ پر لگاؤں گا اور (‏‏‏‏مزید اسے) چالیس اوقیے دوں گا۔ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: اپنے بھائی (‏‏‏‏ ‏‏‏‏‏‏‏‏‏‏‏‏سلمان) کی مدد کرو۔ لوگوں نے مدد کرتے ہوئے مجھے کھجوروں کے درخت دیے۔ کسی نے تیس کسی نے بیس کسی پندرہ کسی نے اپنی استطاعت کے بقدر مجھے کھجوروں کے چھوٹے درخت دیے، حتیٰ کہ میر ے پاس تین سو کھجور کے در خت جمع ہو گئے۔ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے مجھے فرمایا: ‏‏‏‏ سلمان! جاؤ اور گڑ ھے کھودو۔ جب فارغ ہو جاؤ تو میر ے پاس آ جانا، (‏‏‏‏ یہ پو دے) میں خود لگاؤں گا۔ ‏‏‏‏ (‏‏‏‏ سیدنا سلمان رضی اللہ عنہ کہتے ہیں:) میں نے گڑھے کھودے، میرے ساتھیوں نے میری معاونت کی۔ جب میں فارغ ہوا تو آپ صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس آیا اور آپ کو اطلاع دی۔ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم میرے ساتھ نکلے ہم (‏‏‏‏کھجوروں کے وہ) پودے آپ صلی اللہ علیہ وسلم کے قریب کرتے تھے اور آپ اپنے ہاتھ سے ان کو لگا دیتے تھے۔ اس ذات کی قسم جس کے ہاتھ میں سلمان کی جان ہے! ان میں سے کھجور کا ایک پودا بھی نہ مرا۔ اب میں کھجور کے چھوٹے درخت تو لگا چکا تھا اور (‏‏‏‏چالیس اوقیوں والا) مال باقی تھا۔ کسی غزوے سے رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس مرغی کے انڈے کے بقدر سونا لایا گیا۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے پوچھا: مکاتبت کرنے والا (‏‏‏‏سلمان) فارسی کیا کر رہا ہے؟ مجھے بلایا گیا، آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: سلمان! یہ لو اور اس کے ساتھ اپنی ذمہ داری ادا کرو۔ میں نے کہا: اے اللہ کے رسول! مجھ پر جتنا (‏‏‏‏قرضہ) ہے، اس سے کیا اثر ہو گا؟ (‏‏‏‏یعنی قرضہ بہت زیادہ ہے)۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: یہ تو لو، عنقریب اللہ تعالیٰ تمہارا (‏‏‏‏قرضہ) بھی ادا کر دے گا۔ اس ذات کی قسم جس کے ہاتھ میں سلمان کی جان ہے! میں نے وہ لے لیا اور اس میں سے ان آقاؤں کو چالیس اوقیے تول کر دے دیئے، ان كا پورا حق ادا کر دیا اور آزاد ہو گیا۔ پهر میں رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے ساتھ غزوہ خندق میں حاضر ہوا اور اس كے بعد کوئی غزوه مجھ سے نہ ره سکا۔

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