अख़लाक़, नेकी करना और रहमदिली
1579. “ दीन का ज्ञान और अच्छा अख़लाक़ किन लोगों में होते हैं ”
1580. “ इस्लाम में दीन के ज्ञान का दर्जा ”
1581. “ सहाबा के बीच भाईचारे का रिश्ता ”
1582. “ रस्ते को उसका हक़ दिया करो ”
1583. “ रसूल अल्लाह ﷺ का सहाबा को कुन्नियत से पुकारना ”
1584. “ शर्म की कमी का नतीजा ”
1585. “ शर्म की फ़ज़ीलत ”
1586. “ अल्लाह तआला से कैसे शर्म की जाए ”
1587. “ बेकार बातों और कंजूसी का नतीजा ”
1588. “ झगड़ालू व्यक्ति को अल्लाह तआला पसंद नहीं करता है ”
1589. “ चुग़ली का क्या मतलब है ”
1590. “ ग़ीबत का क्या मतलब है ”
1591. “ ग़ीबत की मिसालें ”
1592. “ अज़ाब से बचाने वाले और जन्नत में लेजाने वाले कर्म ”
1593. “ रहमदिली यानि सहानुभूति ”
1594. “ रहमदिली यानि सहानुभूति से काम लेते रहने का ढंग ”
1595. “ रहमदिली यानि सहानुभूति से काम न लेने की बुराइयां ”
1596. “ संबंध तोड़ने की गंभीरता ”
1597. “ अच्छा अख़लाक़ और उसकी फ़ज़ीलत ”
1598. “ नबियों के अच्छे अख़लाक़ की मिसालें ”
1599. “ रिश्तेदारों के साथ अच्छा व्यवहार करने का हुक्म ”
1600. “ तक़वा और अच्छे अख़लाक़ का लाभ ، ज़बान और गुप्तअंगों का बोझ ”
1601. “ बुरा अख़लाक़ अल्लाह तआला को पसंद नहीं ”
1602. “ ग़ुस्सा करने से बचने की नसीहत ”
1603. “ बुरे ग़ुस्से का इलाज ”
1604. “ पहलवान कौन है ”
1605. “ किसी का किसी के द्वारा हक़ मारा जाए तो फिर दोनों क्या करें ”
1606. “ चुप रहना सबसे अच्छा कर्म है ”
1607. “ ज़बान की सुरक्षा की नसीहत और उसका बोझ ”
1608. “ ग़ुलामों और सेवकों के अधिकार ”
1609. “ जिस से प्यार हो तो उसको अपने प्यार के बारे में बताना ”
1610. इन्सान उसके साथ होगा जिस से प्यार करता है
1611. अल्लाह तआला के लिए प्यार करने का बदला
1612. अल्लाह तआला के लिए किसी से मिलने का बदला
1613. नरमी की फ़ज़ीलत
1614. क़ैदियों से नरम व्यवहार करना
1615. औरतों से नरम व्यवहार करना
1616. वादा पूरा करना और नरम व्यवहार की फ़ज़ीलत
1617. नरम दिल की फ़ज़ीलत
1618. रहमदिली और क्षमा करने की फ़ज़ीलत
1619. “ अपने परिवार के साथ नबी ﷺ की रहमदिली ”
1620. “ मुसलमान का सपना और सपनों के प्रकार ”
1621. “ झूठा सपना बताना भी झूठ है ”
1622. “ मुसलमान पर हथियार उठाना अपराध है ”
1623. “ बुरे गुमान को देर तक रखना ”
1624. “ हाथ मिलाने की फ़ज़ीलत ”
1625. “ मरे हुए माता-पिता की ओर से हज्ज करना ”
1626. “ छह कर्मों की ज़मानत पर जन्नत की ज़मानत ”
1627. “ माता-पिता की महानता ”
1628. “ माता-पिता के कहने पर पत्नी को तलाक ”
1629. “ माता-पिता को ख़ुश रकना यानि अल्लाह को ख़ुश करना ”
1630. “ माता-पिता की अवज्ञाकारी न करने वाले ، शराबी ، एहसान जतलाने वाले और बेशर्म की निंदा ”
1631. “ बुराई के प्रभाव को मिटाना ”
1632. “ सलाम को फैलाना ، खाना खिलाना ओर अल्लाह से शर्माना ”
1633. “ पहले सलाम करने वाला अफ़ज़ल है ”
1634. सलाम न करने वाला बहुत कंजूस होता है ”
1635. “ बच्चों को सलाम करना ”
1636. “ मोमिन को ख़ुश करना एक महान कर्म है ”
1637. “ मेल-मिलाप करवाना भी एक सदक़ह है ”
1638. “ नरम स्वभाव और लोकप्रिय लोगों की फ़ज़ीलत ”
1639. “ अच्छे लोगों का अपनी पत्नियों के साथ व्यवहार ”
1640. “ रसूल अल्लाह ﷺ की नबवत का कारण ”
1641. “ पति-पत्नी एक दुसरे का राज़ रखने वाले होते हैं ”
1642. “ रसूल अल्लाह ﷺ का अन्सारी साहबा से प्यार ”
1643. “ झूठ बोलना एक गंभीर अपराध है ”
1644. “ मज़ाक़ के तौर पर भी झूठ बोलना मना है ”
1645. “ इस्लाम में लोगों के प्रकार ”
1646. “ रसूल अल्लाह ﷺ उम्मत के पिता और उनकी पत्नियां उम्मत की मां हैं ”
1647. “ नबी अंदर से और बाहर से भी एक जैसा होता है ”
1648. “ नबी की और से सात मामलों का हुक्म ”
1649. “ नबियों की नरम दिली ”
1650. “ रसूल अल्लाह की नरम दिली ”
1651. “ नरम दिली की फ़ज़ीलत ”
1652. “ नरम दिली को अपनाना ”
1653. “ नरम दिली की निशानियां ”
1654. “ कालिमा तय्यबा से पापों के प्रभाव मिट जाते हैं ”
1655. “ ईमान अल्लाह तआला से प्यार का सबूत है ”
1656. “ अल्लाह तआला की ओर से दी गई आसानी का नतीजा ”
1657. “ मुंह बनाकर बातचीत करना ”
1658. “ जहन्नमी ओर जन्नती लोगों की विशेषताएं ”
1659. “ हर उठान में गिरावट है ”
1660. “ मोमिन की अच्छाइयां और मुनाफ़िक़ की बुराइयां ”
1661. “ माता-पिता के लिए बच्चों की दुआ की बरकत ”
1662. “ दिल से दिल तक रस्ता होता है ”
1663. “ ज़िम्मेदारी और सरदारी ”
1664. “ अल्लाह के बंदों का सब्र ، सहनशीलता और रहम दिली ”
1665. “ अल्लाह और उसके रसूल का प्रिय होना कैसे संभव है ? ”
1666. “ अल्लाह के दोस्तों की निशानियां ”
1667. “ बनावट से बात चीत करना पसंद नहीं किया गया ”
1668. “ वे लोग जो सबसे अधिक आज़माइश में हैं ”
1669. “ बड़ी बुराई से बचने के लिए छोटी बुराई कर लेना ठीक है ”
1670. “ नबी ﷺ सभी की मांग पूरी करते थे ”
1671. “ दर्द के अचानक शुरू होने पर “ बिस्मिल्लाह ” « بِسْمِ اللَّـه » पढ़ना चाहिए ”
1672. “ शासकों के हक़ का भुगतान करना ”
1673. “ अच्छे और बुरे साथियों की मिसाल ”
1674. “ खाना खिलाना जन्नत का कारण है ”
1675. “ घरों की आबादी और आयु में वृद्धि ”
1676. “ ग़ुलाम से पर्दा ज़रूरी नहीं है ”
1677. “ रसूल ﷺ की अच्छी नीति ”
1678. “ आप ﷺ का हज़रत आयशा की ख़ुशी या नाराज़गी को पहचान जाना ”
1679. “ आम आदमी की तअरीफ़ और निंदा की एहमियत ”
1680. “ छह अपराधी ”
1681. “ बुरी भाषा का नतीजा ”
1682. “ क़यामत के दिन जीवों के अधिकारों में कमियों का निपटान ”
1683. “ घाटे में रहने वाले कठोर लोग ”
1684. “ दुनिया में जिन पर ज़ुल्म किया उन लोगों से माफ़ी मांगना ”
1685. “ पवित्र ، सीधा रस्ता पाने वाले ، शासक, विद्वान ، सम्माननीय ، धनी और नीच लोगों की निशानियां ”
1686. “ एक मुसलमान से लड़ना कुफ्ऱ है और उसे गाली देना दुर्व्यवहार है ”
1687. “ हर इंसान की नियति उसकी गर्दन में है ”
1688. “ सफ़ेद बालों का रंगना ”
1689. “ बच्चों के साथ एक जैसा व्यवहार करना ”
1690. “ मुनाफ़िक़ की निशानियां ”
1691. “ क़ेलुला करने ( यानि दोपहर खाने के बाद सोने ) का हुक्म और कारण ”
1692. “ अनाथ के पालन पोषण का सवाब और बदला ”
1693. “ क्या कविता कहना नफ़रत वाली बात है ”
1694. “ परिवार से अनुमति कैसे लें ”
1695. “ दस्तक कैसे दें ”
1696. “ बिना अनुमति किसी के घर में झांकना मना है ”
1697. “ आप ﷺ के पीछे फ़रिश्तों का चलना ”
1698. “ झूठे लोगों के बयानों की जाँच करें ”
1699. “ रसूल अल्लाह ﷺ अपने साथियों का सहयोग करते थे ”
1700. “ रसूल अल्लाह ﷺ की हिमायत कैसे संभव है ”
1701. “ रसूल अल्लाह ﷺ के दरबार में लोगों का सम्मान ”
1702. “ रसूल अल्लाह ﷺ कमज़ोर सहाबा का ध्यान रखते थे ”
1703. “ रसूल अल्लाह ﷺ का अपनी ज़रूरतें ख़ुद पूरी करना ”
1704. “ रसूल अल्लाह ﷺ ने खाई खोदने में ख़ुद भाग लिया ”
1705. “ बच्चों को रात के पहले समय में सुरक्षा देना ”
1706. “ रसूल अल्लाह ﷺ का हज़रत हसन और हुसैन रज़ि अल्लाहु अन्हुमा का ध्यान रखना ”
1707. अफ़ज़ल लोगों की विशेषताएँ ”
1708. पड़ोसियों के अधिकार ”
1709. “ किसी पर लाअनत भेजना बड़ा पाप है ”
1710. “ वे लोग जिन पर अल्लाह तआला की लाअनत ”
1711. “ अन्सारियों का मेज़बानी करने का अच्छा तरीक़ा ”
1712. “ आप ﷺ पर शैतान का हमला और असफलता ”
1713. “ छोटों से प्यार करो और बड़े लोगों का सम्मान करो ”
1714. “ मस्जिद में क़िब्ले की दिशा में थूकना ”
1715. “ मुसलमानो के लिए हानिकारक मामले ”
1716. “ नबी ﷺ को कुछ लोगों पर शक था ”
1717. “ अच्छी संगत ”
1718. “ असल में बिना औलाद कौन है ”
1719. “ विद्रोह और बेरहमी गंभीर अपराध हैं ”
1720. “ घमंड और अहंकार अल्लाह तआला को पसंद नहीं ”
1721. “ घमंड और अहंकार का बोझ ”
1722. “ स्वार्थ का बोझ ”
1723. “ आग से बचाने वाले कर्म ”
1724. “ मुसलमान का क़र्ज़ चुकाना अच्छा कर्म है ”
1725. “ मुसलमानों के माल पर नाजाइज़ क़ब्ज़ा करने का नतीजा ”
1726. “ मुसलमान के सफ़ेद बालों की फ़ज़ीलत ”
1727. “ मदीने में रहने की फ़ज़ीलत ”
1728. “ रसूल ًअल्लाह ﷺ के साथ झूठी बातों को जोड़ना ”
1729. “ मोमिन भोला भाला होता है ”
1730. “ धोखे का अंत जहन्नम है ”
1731. “ मोमिन की विशेषताएँ ”
1732. “ अन्सारियों की फ़ज़ीलत ”
1733. “ क़यामत से पहले होने वाली बुराइयां ”
1734. “ अल्लाह तआला के लिए करने वाले कर्म ”
1735. “ बदला कब मिलता है ”
1736. “ मेहमान की मेज़बानी न करने का मतलब भलाई न पाना
1737. “ बंदा अनाथ कब तक रहता है ”
1738. “ हसद ( यानि जलन ) भलाई की दुश्मन है ”
1739. “ दिलों को सच्चे रस्ते पर लाने के लिए भाषा की एहमियत ”
1740. “ मोमिनों की माताओं के लिए दयालु लोग सच्चे और सब्र करने वाले थे ”
1741. “ दो मुंह वाला ( यानि दोग़ला ) आदमी भरोसेमंद नहीं होता ”
1742. “ मोमिन लाअनत करने वाला नहीं होता ”
1743. “ पति का पत्नी की इच्छाओं को पूरा करना ، गीतों और संगीत की हक़ीक़त और हुक्म ”
1744. “ जन्नती और जहन्नमी लोगों के प्रकार ”
1745. “ दुनिया की नेमतें रब्ब की ख़ुशी का सबूत नहीं हैं ”

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سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر
سلسله احاديث صحيحه
सिलसिला अहादीस सहीहा
الاخلاق والبروالصلة
اخلاق، نیکی کرنا، صلہ رحمی
अख़लाक़, नेकी करना और रहमदिली
صلہ رحمی
“ रहमदिली यानि सहानुभूति ”
حدیث نمبر: 2366
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-" اتقوا الله وصلوا ارحامكم".-" اتقوا الله وصلوا أرحامكم".
سیدنا عبداللہ بن مسعود رضی اللہ عنہ سے روایت ہے کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: تم اللہ تعالیٰ سے ڈرو اور صلہ رحمی کرو۔
حدیث نمبر: 2367
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-" ارحامكم ارحامكم".-" أرحامكم أرحامكم".
سیدنا انس بن مالک رضی اﷲ عنہ سے روایت ہے، بیشک نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم نے اپنی بیماری کے ایام میں فرمایا: قرابتوں (‏‏‏‏کا خیال رکھو)، رشتہ داریوں (‏‏‏‏کا خیال رکھو)۔
حدیث نمبر: 2368
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-" اعرفوا انسابكم، تصلوا ارحامكم، فإنه لا قرب بالرحم إذا قطعت، وإن كانت قريبة، ولا بعد بها إذا وصلت، وإن كانت بعيدة".-" اعرفوا أنسابكم، تصلوا أرحامكم، فإنه لا قرب بالرحم إذا قطعت، وإن كانت قريبة، ولا بعد بها إذا وصلت، وإن كانت بعيدة".
اسحاق بن سعید سے روایت ہے، وہ کہتے ہیں: مجھ کو میرے باپ نے بیان کیا کہ وہ سیدنا عبداللہ بن عباس رضی اللہ عنہما کے پاس تها، ان کے پاس ایک آدمی آیا، انہوں نے اس سے پوچھا تو کون ہے؟ اس نے دور کی رشتے داری کا تعلق بیان کیا۔ ابن عباس رضی اللہ عنہما نے اس سے نرمی سے بات کی اور کہا کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: تم اپنے نسب کی معرفت حاصل کرو، تاکہ صلہ رحمی کر سکو۔ کیونکہ رشتوں کے قریبی ہونے کا (‏‏‏‏کوئی مقصد نہیں) جب سرے سے قطع رحمی کر دی جائے اگرچہ وہ رشتے بہت ہی قریبی ہوں۔ اور رشتوں کے بعید ہونے (‏‏‏‏کا کوئی معنی نہیں) جب صلہ رحمی کی جائے، اگرچہ وہ بہت دور کی قرابتیں ہوں۔
حدیث نمبر: 2369
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-" امرني خليلي صلى الله عليه وسلم بسبع: امرني بحب المساكين والدنو منهم، وامرني ان انظر إلى من هو دوني ولا انظر إلى من هو فوقي، وامرني ان اصل الرحم وإن ادبرت، وامرني ان لا اسال احدا شيئا، وامرني ان اقول بالحق وإن كان مرا، وامرني ان لا اخاف في الله لومة لائم، وامرني ان اكثر من قول:" لا حول ولا قوة إلا بالله"، فإنهن من كنز تحت العرش، (وفي رواية: فإنها كنز من كنوز الجنة)".-" أمرني خليلي صلى الله عليه وسلم بسبع: أمرني بحب المساكين والدنو منهم، وأمرني أن أنظر إلى من هو دوني ولا أنظر إلى من هو فوقي، وأمرني أن أصل الرحم وإن أدبرت، وأمرني أن لا أسأل أحدا شيئا، وأمرني أن أقول بالحق وإن كان مرا، وأمرني أن لا أخاف في الله لومة لائم، وأمرني أن أكثر من قول:" لا حول ولا قوة إلا بالله"، فإنهن من كنز تحت العرش، (وفي رواية: فإنها كنز من كنوز الجنة)".
سیدنا ابوذر رضی اللہ عنہ کہتے ہیں: میرے خلیل صلی اللہ علیہ وسلم نے مجھے سات امور کا حکم دیا: (‏‏‏‏۱) مسکینوں سے محبت کرنے اور ان کے قریب رہنے کا حکم دیا (‏‏‏‏۲) اپنے سے کم تر شخص کو دیکھنے اور اپنے سے برتر شخص کی طرف توجہ نہ کرنے کا حکم دیا (‏‏‏‏٣) مجھے صلہ رحمی کرنے کا حکم دیا اگرچہ وہ رخ پھیرنے لگے (‏‏‏‏٤) مجھے حکم دیا کہ میں کسی سے کوئی سوال نہ کروں (‏‏‏‏٥) مجھے حکم دیا کہ میں حق بات کہوں، اگرچہ وہ کڑوی ہو۔ (‏‏‏‏ ‏‏‏‏۶) مجھے حکم دیا کہ میں اللہ کے معاملہ میں کسی ملامت کرنے والے کی ملامت سے نہ ڈروں اور (‏‏‏‏ ‏‏‏‏۷) مجھے حکم دیا کہ میں کثرت سے «لاحول ولا قوة الا بالله» پڑھوں، کیونکہ یہ کلمات عرش سے نیچے والے خزانوں میں سے ہیں۔ اور ایک روایت میں ہے: ‏‏‏‏ یہ کلمات جنت کے خزانوں میں سے ایک خزانہ ہے۔
حدیث نمبر: 2370
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-" إن الله عز وجل لما خلق الخلق قامت الرحم فاخذت بحقو الرحمن، [فقال: مه]، قالت: هذا مقام العائذ [بك] من القطيعة، قال: [نعم]، اما ترضين ان اصل من وصلك واقطع من قطعك؟ [قالت: بلى يا رب!] قال: فذاك [لك]. قال ابو هريرة: [ثم قال رسول الله صلى الله عليه وسلم:] اقرءوا إن شئتم * (فهل عسيتم إن توليتم ان تفسدوا في الارض وتقطعوا ارحامكم. اولئك الذين لعنهم الله فاصمهم واعمى ابصارهم. افلا يتدبرون القرآن ام على قلوب اقفالها) *".-" إن الله عز وجل لما خلق الخلق قامت الرحم فأخذت بحقو الرحمن، [فقال: مه]، قالت: هذا مقام العائذ [بك] من القطيعة، قال: [نعم]، أما ترضين أن أصل من وصلك وأقطع من قطعك؟ [قالت: بلى يا رب!] قال: فذاك [لك]. قال أبو هريرة: [ثم قال رسول الله صلى الله عليه وسلم:] اقرءوا إن شئتم * (فهل عسيتم إن توليتم أن تفسدوا في الأرض وتقطعوا أرحامكم. أولئك الذين لعنهم الله فأصمهم وأعمى أبصارهم. أفلا يتدبرون القرآن أم على قلوب أقفالها) *".
سیدنا ابوہریرہ رضی اللہ عنہ بیان کرتے ہیں کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: جب اللہ تعالیٰ نے مخلوق کو پیدا فرمایا تو صلہ رحمی اللہ کی کمر پکڑ کر کھڑی ہو گئی۔ اللہ نے فرمایا: رک جا، صلہ رحمی نے کہا: قطع رحمی سے پناہ طلب کرنے والے کا یہ مقام ہے۔ اللہ نے فرمایا: ہاں۔ کیا تو (‏‏‏‏اس منقبت پر) راضی نہیں ہو گی کہ جس نے تجھے ملایا میں بھی اس کو ملاوں گا اور جس نے تجھے کاٹا میں بھی اسے کاٹ دوں گا؟ اس نے کہا: کیوں نہیں، اے میرے رب! اللہ تعالیٰ نے فرمایا: سو یہی (مقام) تیرا ہے۔ سیدنا ابوہریرہ رضی اللہ عنہ نے کہا: پھر رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: اگر تم چاہتے ہو تو قرآن کی یہ آیت پڑھ لو: «فَهَلْ عَسَيْتُمْ إِن تَوَلَّيْتُمْ أَن تُفْسِدُوا فِي الْأَرْضِ وَتُقَطِّعُوا أَرْحَامَكُمْ (۲۲) أُولَٰئِكَ الَّذِينَ لَعَنَهُمُ اللَّهُ فَأَصَمَّهُمْ وَأَعْمَىٰ أَبْصَارَهُمْ (۲۳) أَفَلَا يَتَدَبَّرُونَ الْقُرْآنَ أَمْ عَلَىٰ قُلُوبٍ أَقْفَالُهَا (۲۴)» اور تم سے یہ بھی بعید نہیں کہ اگر تم کو حکومت مل جائے تو تم زمین میں فساد برپا کر دو اور رشتے ناطے توڑ ڈالو۔ یہ وہی لوگ ہیں جن پر اللہ تعالیٰ کی پھٹکار ہے اور جن کی سماعت اور آنکھوں کی بصارت اللہ تعالیٰ نے چھین لی ہے۔ کیا یہ قرآن میں غور و فکر نہیں کرتے یا ان کے دلوں پر تالے لگ گئے ہیں۔
حدیث نمبر: 2371
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-" إن الرحم شجنة آخذة بحجزة الرحمن، يصل من وصلها ويقطع من قطعها".-" إن الرحم شجنة آخذة بحجزة الرحمن، يصل من وصلها ويقطع من قطعها".
سیدنا عبداللہ بن عباس رضی اللہ عنہما سے روایت ہے کہ نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ‏‏‏‏ بلاشبہ صلہ رحمی رحمٰن کی کمر کو پکڑنے والی شاخ ہے۔ وہ (‏‏‏‏اللہ) اس کو ملانے والے کو ملا لیتا ہے اور اس کو کاٹنے والے کو کاٹ دیتا ہے۔ ‏‏‏‏
حدیث نمبر: 2372
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-" إن الرحم شجنة من الرحمن عز وجل واصلة، لها لسان ذلق تتكلم بما شاءت، فمن وصلها وصله الله ومن قطعها قطعه الله".-" إن الرحم شجنة من الرحمن عز وجل واصلة، لها لسان ذلق تتكلم بما شاءت، فمن وصلها وصله الله ومن قطعها قطعه الله".
سیدنا عبداللہ بن عمرو رضی اللہ عنہما کہتے ہیں: رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے ہمارے لیے اپنی انگلی کو مروڑا اور فرمایا: صلہ رحمی رحمٰن سے ملی ہوئی شاخ ہے۔ ا‏‏‏‏س کی ایک فصیح و بلیغ زبان ہے، جیسے چاہتی ہے کلام کرتی ہے۔ جس نے اس (‏‏‏‏صلہ رحمی) کو ملایا اللہ اس کو ملائے گا اور جس نے اس کو کاٹ دیا اللہ تعالیٰ اس کو کاٹ دے گا۔
حدیث نمبر: 2373
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-" إن كان كما تقول فكانما تسفهم المل، ولا يزال معك من الله ظهير [ما دمت على ذلك]".-" إن كان كما تقول فكأنما تسفهم المل، ولا يزال معك من الله ظهير [ما دمت على ذلك]".
سیدنا ابوہریرہ رضی اللہ عنہ بیان کرتے ہیں کہ ایک آدمی نے کہا: اے اللہ کے رسول! میرے کچھ رشتہ دار ہیں، (‏‏‏‏صورتحال یہ ہے کہ) میں ان سے صلہ رحمی کرتا ہوں، لیکن وہ قطع رحمی کرتے ہیں۔ میں ا‏‏‏‏ن کے ساتھ حسن سلوک کرتا ہوں جبکہ وہ میرے ساتھ بدسلوکی کرتے ہیں اور میں (‏‏‏‏ان کے بارے میں) حکمت و دانائی سے کام لیتا ہوں جبکہ وہ جہالت سے پیش آتے ہیں۔ آپ صلی الله علیہ وسلم نے فرمایا: اگر بات ایسے ہی ہے جیسا کہ تو کہہ رہا ہے تو، تو ان کے منہ میں گرم راکھ ڈال رہا ہے۔ جب تک تیری یہ کیفیت رہے گی، الله کی طرف سے ہمیشہ تیرے ساتھ ایک مددگار رہے گا۔
حدیث نمبر: 2374
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-" إنه من اعطي حظه من الرفق، فقد اعطي حظه من خير الدنيا والآخرة وصلة الرحم وحسن الخلق وحسن الجوار يعمران الديار ويزيدان في الاعمار".-" إنه من أعطي حظه من الرفق، فقد أعطي حظه من خير الدنيا والآخرة وصلة الرحم وحسن الخلق وحسن الجوار يعمران الديار ويزيدان في الأعمار".
سیدہ عائشہ رضی اللہ عنہا سے روایت ہے کہ نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم نے ان کو فرمایا: جس کو نرمی عطا کی گئی، اس کو دنیا و آخرت کی خیر و بھلائی سے نواز دیا گیا اور صلہ رحمی، حسن اخلاق اور پڑوسی سے اچھا سلوک کرنے (‏‏‏‏جیسے امور خیر) گھروں (‏‏‏‏اور قبیلوں) کو آباد کرتے ہیں اور عمروں میں اضافہ کرتے ہیں۔
حدیث نمبر: 2375
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-" بلوا ارحامكم ولو بالسلام".-" بلوا أرحامكم ولو بالسلام".
سیدنا سوید بن عامر انصاری رضی اللہ عنہ سے روایت ہے، رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: صلہ رحمی کو تروتازہ رکھو، اگرچہ سلام کے ذریعہ ہی ہو۔
حدیث نمبر: 2376
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-" الراحمون يرحمهم الرحمن تبارك وتعالى، ارحموا من في الارض يرحمكم من في السماء (والرحم شجنة من الرحمن، فمن وصلها وصله الله ومن قطعها قطعه الله)".-" الراحمون يرحمهم الرحمن تبارك وتعالى، ارحموا من في الأرض يرحمكم من في السماء (والرحم شجنة من الرحمن، فمن وصلها وصله الله ومن قطعها قطعه الله)".
سیدنا عبداللہ بن عمرو رضی اللہ عنہما سے روایت ہے، رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: اللہ تعالیٰ رحم کرنے والوں پر رحم کرے گا، لہٰذا تم زمین والوں پر رحم کرو تاکہ آسمان والا تم پر رحم کرے۔ (‏‏‏‏دراصل) رحم (‏‏‏‏یعنی صلہ رحمی) رحمٰن کی شاخ ہے۔ جس نے ا‏‏‏‏س کو ملایا، اللہ ا‏‏‏‏س کو ملائے گا اور جس نے ا‏‏‏‏س کو کاٹا، اللہ ا‏‏‏‏س کو کاٹ دے گا۔
حدیث نمبر: 2377
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-" صل من قطعك واحسن إلى من اساء إليك وقل الحق ولو على نفسك".-" صل من قطعك وأحسن إلى من أساء إليك وقل الحق ولو على نفسك".
سیدنا علی رضی اللہ عنہ سے روایت ہے، وہ کہتے ہیں: جب میں نے رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے ہتھیار اپنے قبضہ میں لیے تو رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کی تلوار میں، میں نے ایک رقعہ پایا اس میں یہ تھا: جو تیرے ساتھ قطع رحمی کرے تو اس کے ساتھ صلح رحمی کر، جو تیرے ساتھ برا معاملہ کرے تو اس کے ساتھ اچھا سلوک کر اور حق بات کہہ اگرچہ وہ تیری ذات کے خلاف ہی ہو۔
حدیث نمبر: 2378
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-" قال الله: انا الله وانا الرحمن خلقت الرحم وشققت لها من اسمي، فمن وصلها وصلته ومن قطعها بتته".-" قال الله: أنا الله وأنا الرحمن خلقت الرحم وشققت لها من اسمي، فمن وصلها وصلته ومن قطعها بتته".
سیدنا ابوسلمہ رضی اللہ عنہ سے روایت ہے، وہ کہتے ہیں: سیدنا ابورداد لیثی رضی اللہ عنہ بیمار ہو گئے، سیدنا عبدالرحمٰن بن عوف رضی اللہ عنہ ان کی تیمارداری کرنے کے لیے آئے۔ ابورداد نے کہا: (‏‏‏‏یہ عبدالرحمٰن) سب سے بہتر اور سب سے بڑھ کر تعلق قائم کرنے والے ہیں۔ اے ابو محمد! تو نے کیا جانا ہے؟ عبدالرحمٰن نے کہا: میں نے سول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کو یہ فرماتے ہوئے سنا: اللہ تعالیٰ نے فرمایا: میں اللہ بھی ہوں اور میں رحمٰن بھی ہوں۔ میں نے رحم (‏‏‏‏یعنی قرابتداری) کو پیدا کیا اور اپنے نام سے اس کا اشتقاق کیا۔ جس نے اس کو ملایا میں اس کو ملاؤں گا اور جس نے اس کو کاٹا میں اس کو کاٹ دوں گا۔
حدیث نمبر: 2379
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-" ليس شيء اطيع الله فيه اعجل ثوابا من صلة الرحم وليس شيء اعجل عقابا من البغي وقطيعة الرحم واليمين الفاجرة تدع الديار بلاقع".-" ليس شيء أطيع الله فيه أعجل ثوابا من صلة الرحم وليس شيء أعجل عقابا من البغي وقطيعة الرحم واليمين الفاجرة تدع الديار بلاقع".
سیدنا ابوہریرہ رضی اللہ عنہ سے روایت ہے، وہ بیان کرتے ہیں کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: اللہ تعالیٰ کے (جن احکام کی) پیروی کی جاتی ہے ان میں صلہ رحمی سے جلدی کسی چیز کا ثواب نہیں ملتا اور ظلم اور قطع رحمی کہ بہ نسبت کوئی (‏‏‏‏جرم ایسا نہیں کہ) جس کی سزا جلدی دی جاتی ہو اور جھوٹی قسم تو علاقوں کو ویران کر دیتی ہے۔
حدیث نمبر: 2380
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-" ما من ذي رحم ياتي رحمه فيساله فضلا اعطاه الله إياه فيبخل عليه إلا اخرج له يوم القيامة من جهنم حية يقال لها: شجاع، يتلمظ، فيطوق به".-" ما من ذي رحم يأتي رحمه فيسأله فضلا أعطاه الله إياه فيبخل عليه إلا أخرج له يوم القيامة من جهنم حية يقال لها: شجاع، يتلمظ، فيطوق به".
سیدنا جریر بن عبداللہ رضی اللہ عنہ سے روایت ہے، نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ‏‏‏‏جب کوئی ‏‏‏‏رشتہ دار اپنے کسی قرابتدار کے پاس جا کر ایسی زائد چیز کا سوال کرتا ہے جو اللہ تعالیٰ نے اسے عطا کی ہوتی ہے، لیکن وہ کنجوسی کرتا ہے (‏‏‏‏اور نہیں دیتا) تو ایسے آدمی کے لیے روز قیامت جہنم سے سانپ نکالا جائے گا، جو اپنی زبان نکالے ہوئے ہو گا اور جسے «شجاع» کہتے ہوں گے، اسے ایسے آدمی کا طوق قرار دیا جائے گا۔

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