अख़लाक़ के बारे में
1. “ अच्छे अख़लाक़ के बारे में ”
2. “ सभा में बैठने के नियम ”
3. “ मेहमान के और मेज़बानी के नियम ”
4. “ ज़बान की सुरक्षा ”
5. “ बद गुमानी, जासूसी और चुग़ली की निंदा ”
6. “ पड़ोसी के हक़ ( अधिकार ) ”
7. “ तीन लोगों के होते हुए दो लोगों की आपस में कानाफूसी करना मना है ”
8. “ दूसरों का ध्यान रखने की फ़ज़ीलत ”
9. “ तीन दिन से ज़्याद नाराज़ रहना जाइज़ नहीं ”
10. “ ग़ुस्से पर क़ाबू पाने की एहमियत ”
11. “ किसी भी चीज़ को बाँटते समय दाएं तऱफ से शुरू करे ”
12. “ ग़रीब या कंगाल कौन हे ”
13. “ रस्ते में से चोट पहुंचाने वाली चीज़ हटाने की फ़ज़ीलत ”
14. “ औलाद के साथ बराबर का व्यवहार करना चाहिए ”
15. “ सोने से पहले करने वाले काम ”
16. “ मांगने वाले को देना चाहिए ”
17. “ वह ग़ुलाम जिन को दुगना सवाब मिलता है ”
18. “ जो मुसलमान न हो तो उस के सलाम का जवाब ”
19. “ अपने मुसलमान भाई को काफ़िर कहना ”
20. “ किसी के घर जाने के नियम ”
21. “ जानवरों से अच्छा व्यवहार करने की फ़ज़ीलत ”
22. “ अपने भाई से बातचीत बंद करने की निंदा ”
23. “ ग़लत अफ़वाहों की निंदा ”

موطا امام مالك رواية ابن القاسم کل احادیث 657 :حدیث نمبر
موطا امام مالك رواية ابن القاسم
मुवत्ता इमाम मलिक रवायात इब्न अल-क़ासिम
اخلاق و آداب سے متعلق مسائل
अख़लाक़ के बारे में
دوسرے کا خیال رکھنے کی فضیلت
“ दूसरों का ध्यान रखने की फ़ज़ीलत ”
حدیث نمبر: 467
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101- مالك عن محمد بن عمرو بن حلحلة عن معبد بن كعب بن مالك عن ابى قتادة بن ربعي انه كان يحدث ان رسول الله صلى الله عليه وسلم مر عليه بجنازة فقال: ”مستريح ومستراح منه.“ فقالوا: يا رسول الله، ما المستريح والمستراح منه؟ قال: ”العبد المؤمن يستريح من نصب الدنيا واذاها إلى رحمة الله، والعبد الفاجر يستريح منه العباد والبلاد والشجر والدواب.“101- مالك عن محمد بن عمرو بن حلحلة عن معبد بن كعب بن مالك عن أبى قتادة بن ربعي أنه كان يحدث أن رسول الله صلى الله عليه وسلم مر عليه بجنازة فقال: ”مستريح ومستراح منه.“ فقالوا: يا رسول الله، ما المستريح والمستراح منه؟ قال: ”العبد المؤمن يستريح من نصب الدنيا وأذاها إلى رحمة الله، والعبد الفاجر يستريح منه العباد والبلاد والشجر والدواب.“
سیدنا ابوقتادہ بن ربعی رضی اللہ عنہ سے روایت ہے کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس سے ایک جنازہ گزرا تو آ پ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: «مستريح»  (پرسکون و پُرآرام) یا «مسترح منه»  (لوگ جس سے سکون و آرام میں ہوں) ہے۔ صحابہ نے پوچھا: یا رسول اللہ! «مستريح» اور «مستراح منه» کسے کہتے ہیں؟ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: مومن بندہ دنیا کی مصیبتوں اور تکلیفوں سے اللہ کی رحمت کی طرف سکون و آرام حا صل کرتا ہے اور فاطر (گناہ گار) بندے سے بندوں، شہروں درختوں اور جانوروں کو آ رام و سکون حاصل ہو تا ہے۔

تخریج الحدیث: «101- متفق عليه، الموطأ (رواية يحييٰ بن يحييٰ 241، 242/1 ح 574، ك 16 ب 16 ح 54) التمهيد 61/13، الاستذكار: 528، و أخرجه البخاري (6512) ومسلم (950) من حديث مالك به.»

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