विभिन्न
1. ज़िक्र की फ़ज़ीलत ( पुण्य )
2. नींद से जागने के बाद की दुआएं
3. कपड़ा पहनने की दुआ
4. नया वस्त्र पहनने की दुआ
5. नया वस्त्र पहनने वाले को किया दुआ दी जाए
6. वस्त्र उतारे तो किया दुआ पढ़े
7. शौचालय में जाने की दुआ
8. शौचालय से निकलने की दुआ
9. वुज़ू शुरू करते समय किया पढ़े
10. वुज़ू समाप्त करने के बाद किया पढ़े
11. घर से निकलते समय किया पढ़ना चाहिए
12. घर में प्रवेश करते समय की दुआ
13. मस्जिद की तरफ़ जाने की दुआ
14. मस्जिद में प्रवेश करते समय की दुआ
15. मस्जिद से निकलने की दुआ
16. अज़ान के अज़्कार
17. दुआए इस्तफ़्ताह
18. सूरत अल्फ़ातिहा
19. रुकू की दुआएं
20. रुकू से उठने की दुआएं
21. सज्दे की दुआएं
22. जलसा इस्तराहत ( दो सजदों के बीच ) की दुआएं
23. सज्दा तिलावत की दुआएं
24. तशाहहुद
25. नबी करीम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्ल्म पर दरूद पढ़ना
26. सलाम फेरने से पहले आख़री तशाहहुद में दुआएं
27. सलाम फेरने के बाद के अज़कार
28. फ़जर की नमाज़ के बाद ये दुआ पढ़े
29. नमाज़ इस्तेख़ारा की दुआ
30. सुबह और शाम के अज़कार
31. शाम के समय ये दुआ पढ़े
32. सोते समय की दुआएं
33. रात करवट बदलते समय की दुआएं
34. नींद में घबराहट और डरजाने के समय की दुआ
35. बुरा सपना देखने वाला किया करे
36. क़ुनूत और वित्र की दुआएं
37. नमाज़ वित्र से सलाम फेरने के बाद का ज़क्र
38. शोक और फ़िक्र की दुआ
39. बेचैनी की दुआ
40. दुश्मन और शासक से मिलते समय की दुआ
41. जिसे शासक के अत्याचार का डर हो उस के लिए दुआ
42. दुश्मन के लिए बद दुआ
43. जब किसी से ख़तरा हो तो किया कहे
44. जिसे ईमान में शक होने लगे उस की दुआ
45. क़र्ज़ चुकाने की दुआ
46. नमाज़ या क़ुरान पढ़ते समय वहम आने की दुआ
47. जिस पर कोई मुश्किल आन पड़े उस के लिए दुआ
48. जिस से कोई पाप हो जाये वो किय कहे और किया करे
49. शैतान और अस का वहम दूर करने की दुआएं
50. बुरी घटना या बेबसी की दुआ
51. बच्चे के जन्म पर बधाई की दुआ
52. बच्चों को किन शब्दों के साथ शरण दी जाए
53. रोगी से मिलते समय की दुआ
54. रोगी की सेवा करने का पुण्य
55. जीवन से निराश रोगी के लिए दुआ
56. रोगी को कलमा «ला इलाहा इल्लल्लाह» पढ़ने को कहना
57. जिस को मुसीबत पहुँचे उस की दुआ
58. मृतक की ऑंखें बंद करते समय की दुआ
59. नमाज़ जनाज़ा की दुआएं
60. नमाज़ जनाज़ा में बच्चे के लिए दुआ
61. मृत्यु पर शोक व्यक्त करने की दुआ
62. मृतक को क़ब्र में रखते समय की दुआ
63. मृतक को दफ़्न करने के बाद की दुआ
64. क़ब्रस्तान में प्रवेश करते समय की दुआ
65. हवा चलते समय की दुआएं
66. बदल गरजने की दुआ
67. बारिश की दुआएं
68. बारिश बरसते समय की दुआ
69. बारिश बरसने के बाद का ज़िक्र
70. आकाश पर घटा छाजाने की दुआ
71. चाँद देखने की दुआ
72. रोज़ा खोलते समय की दुआ
73. खाने से पहले की दुआ
74. खाना ख़त्म करने के बाद की दुआ
75. खाना खिलाने वाले के लिए दुआ
76. जो वेक्ति कुछ खिलाए पिलाये उस के लिए दुआ
77. इफ़्तार कराने वाले के लिए दुआ
78. रोज़ेदार की दुआ जब खाना सामने हो और वो रोज़ा न खोले
79. रोज़ेदार को जब कोई गली दे तो वो किया कहे
80. पहला फल देखने की दुआ
81. छींक की दुआ
82. शादी करने वाले के लिए दुआ
83. शादी करने और सवारी ख़रीदने वाले केलिए दुआ
84. पत्नि के साथ संभोग करने से पहले की दुआ
85. क्रोध के समय की दुआ
86. पीड़ित को देखते समय की दुआ
87. सभा में किया कहा जाये
88. सभा के कफ़्फ़ारे की दुआ
89. जो तुम्हारे साथ अच्छा करे उस के लिए दुआ
90. दज्जाल से सुरक्षित रहने की दुआ
91. जो व्येक्ति कहे कि में तुम से अल्लाह के वास्ते प्यार करता हूँ
92. जो व्येक्ति तुम को अपना माल दे उस के लिए दुआ
93. उधार चुकाते समय की दुआ
94. किसी को अल्लाह का साझी बनाने ( शिर्क ) के डर की दुआ
95. जो व्येक्ति तुम्हें « बारक अल्लाह » कहे उस के लिए दुआ
96. बद शगुनी से घिन आने की दुआ
97. सवार होते समय की दुआ
98. यात्रा की दुआ
99. बस्ती में प्रवेश करते समय की दुआ
100. बाज़ार में प्रवेश करते समय की दुआ
101. सवारी से गिरते समय की दुआ
102. यात्री की बस्ती में रहने वाले के लिए दुआ
103. बस्ती में रहने वाले की यात्री के लिए दुआ
104. यात्रा में तस्बीह और तक्बीर करना
105. सुबह के समय यात्री की दुआ
106. यात्रा में या यात्रा के सिवा किसी भी पड़ाव पे दुआ
107. यात्रा से लोट आने की दुआ
108. ख़ुश करने वाला या अच्छा न लगने वाला मामला हो तो किया कहे
109. नबी करीम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्ल्म पर दरूद पढ़ने की फ़ज़ीलत ( पुण्य )
110. जाने और अनजाने को सलाम करना
111. जो वेक्ति मुसल्मान न हो वो सलाम करे तो किया कहे
112. मुर्ग़े की आवाज़ और गधे की आवाज़ सुनने पर दुआ
113. रात को कुत्ते के भोंकने पर दुआ
114. जिस को तुम ने बुरा भला कहा उस के लिए दुआ
115. जब एक मुसल्मान दुसरे मुसल्मान की ताअरीफ़ करे तो किया कहे
116. अपनी ताअरीफ़ सुने तो किया कहे
117. हज या उम्रा का अहराम बांधने वाला तलबिया कैसे कहे
118. जब हज्र अस्वद के पास आए तो तक्बीर कहे
119. रुकुन यमानी और हज्र अस्वद जे बीच की दुआ
120. सफ़ा और मरवाह पे ठहरने की दुआ
121. अराफ़ात के दिन की दुआ
122. मशअर हराम के पास की दुआ
123. शैतान को कंकरी मारते समय हर कंकरी पे तक्बीर पढ़ना
124. आश्चर्य और ख़ुश करने वाले काम के समय की दुआ
125. अच्छी सुचना मिले तो किया करे
126. शरीर में दर्द महसूस करने वाला किया करे और किया कहे
127. अपनी नज़र लगने का डर हो तो किया करे
128. घबराहट के समय किया कहे
129. क़ुरबानी करते समय किया कहे
130. शैतान के धोके और बहकावे से बचने की दुआ
131. इस्तग़फ़ार और तोबा का बयान
132. तक्बीर और तस्बीह और प्रशंसा आदि की फ़ज़ीलत ( पुण्य )
133. नबी सल्लल्लाहो अलैहि वसल्ल्म तस्बीह कैसे करते थे
134. और दूसरे अच्छे काम

مختصر حصن المسلم کل احادیث 276 :حدیث نمبر
مختصر حصن المسلم
मुख़्तसर हिसनुल मुस्लिम
متفرق
متفرق
विभिन्न
ذکر کی فضیلت
ज़िक्र की फ़ज़ीलत ( पुण्य )
حدیث نمبر: Q1
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فاذكروني اذكركم واشكروا لي ولا تكفرون [ سورة البقرة:152]فَاذْكُرُونِي أَذْكُرْكُمْ وَاشْكُرُوا لِي وَلَا تَكْفُرُونِ [ سورة البقرة:152]
اس لئے تم میرا ذکر کرو میں بھی تمہیں یاد کروں گا، میری شکر گزاری کرو اور ناشکری سے بچو۔ [سورة البقرة:152]
حدیث نمبر: Q1
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يا ايها الذين آمنوا اذكروا الله ذكرا كثيرا [ سورة الاحزاب:41]يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اذْكُرُوا اللهَ ذِكْرًا كَثِيرًا [ سورة الأحزاب:41]
مومنو! اللہ تعالیٰ کا بہت زیادہ ذکر کرو۔ [سورة الأحزاب:41]
حدیث نمبر: Q1
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والذٰاكرين اللٰه كثيرا والذٰاكرات اعد الله لهم مغفرة واجرا عظيما [ سورة الاحزاب:35]وَالذّٰاكِرِينَ اللّٰهَ كَثِيرًا وَالذّٰاكِرَاتِ أَعَدَّ اللهُ لَهُم مَّغْفِرَةً وَأَجْرًا عَظِيمًا [ سورة الأحزاب:35]
اور اللہ تعالیٰ کو بکثرت یاد کرنے والے مرد اور بکثرت یاد کرنے والی عورتیں، اللہ تعالیٰ نے ان کے لئے مغفرت اور اجر عظیم تیار کر رکھا ہے۔ [سورة الأحزاب:35]
حدیث نمبر: Q1
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واذكر ربك في نفسك تضرعا وخيفة ودون الجهر من القول بالغدو والآصال ولا تكن من الغافلين [ سورة الاعراف:205]وَاذْكُر رَّبَّكَ فِي نَفْسِكَ تَضَرُّعًا وَخِيفَةً وَدُونَ الْجَهْرِ مِنَ الْقَوْلِ بِالْغُدُوِّ وَالْآصَالِ وَلَا تَكُن مِّنَ الْغَافِلِينَ [ سورة الأعراف:205]
اے انسان! اپنے رب کو اپنے دل میں عاجزی اور خوف کے ساتھ اور بلند آواز کی نسبت پست آواز کے ساتھ صبح و شام یاد کر، اور غافلوں میں سے نہ ہو جانا۔ [سورة الأعراف:205]
حدیث نمبر: 1
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مثل الذي يذكر ربه والذي لا يذكر ربه، مثل الحي والميتمَثَلُ الَّذِي يَذْكُرُ رَبَّهُ وَالَّذِي لاَ يَذْكُرُ رَبَّهُ، مَثَلُ الحَيِّ وَالمَيِّتِ
آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: اس شخص کی مثال جو اپنے رب کو یاد کرتا ہے اور اس شخص (کی مثال) جو اپنے رب کو یاد نہیں کرتا، زندہ اور مردہ کی طرح ہے۔ [صحیح بخاری:6407]
اور مسلم میں یہ الفاظ ہیں:
«مَثَلُ الْبَيْتِ الَّذِي يُذْكَرُ اللهُ فِيهِ، وَالْبَيْتِ الَّذِي لَا يُذْكَرُ اللهُ فِيهِ، مَثَلُ الْحَيِّ وَالْمَيِّتِ»
اس گھر کی مثال جس میں اللہ کو یاد کیا جاتا ہے اور اس گھر (کی مثال) جس میں اللہ کا ذکر نہیں کیا جاتا، زندہ اور مردہ کی مانند ہے۔ [صحیح مسلم:779]
حدیث نمبر: 2
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الا انبئكم بخير اعمالكم، وازكاها عند مليككم، وارفعها في درجاتكم وخير لكم من إنفاق الذهب والورق، وخير لكم من ان تلقوا عدوكم فتضربوا اعناقهم ويضربوا اعناقكم؟ قالوا: بلى. قال: ”ذكر اللٰه تعالىٰ“أَلَا أُنَبِّئُكُمْ بِخَيْرِ أَعْمَالِكُمْ، وَأَزْكَاهَا عِنْدَ مَلِيكِكُمْ، وَأَرْفَعِهَا فِي دَرَجَاتِكُمْ وَخَيْرٌ لَكُمْ مِنْ إِنْفَاقِ الذَّهَبِ وَالوَرِقِ، وَخَيْرٌ لَكُمْ مِنْ أَنْ تَلْقَوْا عَدُوَّكُمْ فَتَضْرِبُوا أَعْنَاقَهُمْ وَيَضْرِبُوا أَعْنَاقَكُمْ؟ قَالُوا: بَلَى. قَالَ: ”ذِكْرُ اللَٰهِ تَعَالىٰ“
آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: کیا میں تمہیں تمہارے اعمال میں سے بہترین (عمل) کے بارے میں نہ بتاؤں، جو تمہارے مالک کے نزدیک پاکیزہ ترین، تمہارے درجات میں بلند ترین، تمہارے لئے سونا چاندی خرچ کرنے سے اچھا اور تمہارے لئے اس بات سے بھی بہتر کہ تم اپنے دشمن سے آمنا سامنا کرو تو تم ان کی گردنیں مارو اور وہ تمہاری گردنیں ماریں۔ صحابہ رضی اللہ عنہم نے کہا: کیوں نہیں! آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: اللہ تعالیٰ کا ذکر۔ [اسناده حسن، ترمذي:3377، ابن ماجه:3790]
حدیث نمبر: 3
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يقول اللٰه تعالىٰ: «انا عند ظن عبدي بي، وانا معه إذا ذكرني، فإن ذكرني في نفسه ذكرته في نفسي، وإن ذكرني في ملإ ذكرته في ملإ خير منهم، وإن تقرب إلي بشبر تقربت إليه ذراعا، وإن تقرب إلي ذراعا تقربت إليه باعا، وإن اتاني يمشي اتيته هرولةيَقُولُ اللَٰهُ تَعَالىٰ: «أَنَا عِنْدَ ظَنِّ عَبْدِي بِي، وَأَنَا مَعَهُ إِذَا ذَكَرَنِي، فَإِنْ ذَكَرَنِي فِي نَفْسِهِ ذَكَرْتُهُ فِي نَفْسِي، وَإِنْ ذَكَرَنِي فِي مَلَإٍ ذَكَرْتُهُ فِي مَلَإٍ خَيْرٍ مِنْهُمْ، وَإِنْ تَقَرَّبَ إِلَيَّ بِشِبْرٍ تَقَرَّبْتُ إِلَيْهِ ذِرَاعًا، وَإِنْ تَقَرَّبَ إِلَيَّ ذِرَاعًا تَقَرَّبْتُ إِلَيْهِ بَاعًا، وَإِنْ أَتَانِي يَمْشِي أَتَيْتُهُ هَرْوَلَةً
آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: اللہ تعالیٰ فرماتے ہیں: میں اپنے بارے میں اپنے بندے کے گمان کے مطابق ہوں، جب وہ مجھے یاد کرتا ہے تو میں اس کے ساتھ ہوتا ہوں۔ اگر وہ مجھے اپنے دل میں یاد کرتا ہے تو میں اسے اپنے دل میں یاد کرتا ہوں، اگر وہ مجھے کسی جماعت میں یاد کرتا ہے تو میں اسے اس سے بہترین جماعت میں یاد کرتا ہوں، اگر وہ بالشت بھر میرے قریب آئے تو میں ایک ہاتھ اس کے قریب آتا ہوں اگر وہ ایک ہاتھ (کے فاصلے برابر) میرے قریب آئے تو میں دو ہاتھ (پھیلانے کے فاصلے کے برابر) اس کے قریب آتا ہوں، اگر وہ چلتا ہوا میرے پاس آئے تو میں دوڑتا ہوا اس کے پاس آتا ہوں۔ [صحيح بخاري:7405، واللفظ لهو عنده شبرًا إلي صحيح مسلم:2675]
حدیث نمبر: 4
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وعن عبد اللٰه بن بسر رضى الله عنه، ان رجلا قال: يا رسول اللٰه إن شرائع الإسلام قد كثرت علي، فاخبرني بشيء اتشبث به، قال: «لا يزال لسانك رطبا من ذكر اللٰهوَعَنْ عَبْدِ اللَٰهِ بْنِ بُسْرٍ رَضِىَ اللهُ عَنْهُ، أَنَّ رَجُلًا قَالَ: يَا رَسُولَ اللَٰهِ إِنَّ شَرَائِعَ الإِسْلَامِ قَدْ كَثُرَتْ عَلَيَّ، فَأَخْبِرْنِي بِشَيْءٍ أَتَشَبَّثُ بِهِ، قَالَ: «لَا يَزَالُ لِسَانُكَ رَطْبًا مِنْ ذِكْرِ اللَٰهِ
عبداللہ بن بسر رضی اللہ عنہ سے مروی ہے کہ ایک آدمی نے کہا: اے اللہ کے رسول! مجھ پر اسلام کے احکامات بہت زیادہ ہو چکے ہیں، آپ مجھے کسی ایسے عمل کے بارے میں بتائیے جس پر میں مضبوطی سے (مستقل مزاجی کے ساتھ) عمل کر سکوں۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: تمہاری زبان ہمیشہ اللہ کے ذکر سے تر رہے۔ [اسناده حسن، سنن ترمذي:3375، ابن ماجه:3793]
حدیث نمبر: 5
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من قرا حرفا من كتاب اللٰه فله به حسنة، والحسنة بعشر امثالها، لا اقول {الم} حرف، ولكن الف حرف ولام حرف وميم حرفمَنْ قَرَأَ حَرْفًا مِنْ كِتَابِ اللَٰهِ فَلَهُ بِهِ حَسَنَةٌ، وَالحَسَنَةُ بِعَشْرِ أَمْثَالِهَا، لَا أَقُولُ {الم} حَرْفٌ، وَلَكِنْ أَلِفٌ حَرْفٌ وَلَامٌ حَرْفٌ وَمِيمٌ حَرْفٌ
آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: جس شخص نے کتاب اللہ سے ایک حرف پڑھا، اس کے لئے اس کے بدلے میں ایک نیکی ہے، اور ایک نیکی اپنے جیسی دس نیکیوں کے برابر ہے (یعنی دس گنا اجر ملے گا) میں نہیں کہتا کہ «الم» ایک حرف ہے لیکن الف ایک حرف ہے لام ایک حرف ہے اور میم ایک حرف ہے۔ [اسناده حسن، سنن ترمذي:2910]
حدیث نمبر: 6
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وعن عقبة بن عامر رضى اللٰہ عنه، قال: خرج رسول الله صلى الله عليه وسلم ونحن في الصفة، فقال: «ايكم يحب ان يغدو كل يوم إلى بطحان، او إلى العقيق، فياتي منه بناقتين كوماوين في غير إثم، ولا قطع رحم؟، فقلنا: يا رسول الله نحب ذلك، قال: افلا يغدو احدكم إلى المسجد فيعلم، او يقرا آيتين من كتاب الله عز وجل، خير له من ناقتين، وثلاث خير له من ثلاث، واربع خير له من اربع، ومن اعدادهن من الإبلوَعَنْ عُقْبَةَ بْنِ عَامِرٍ رَضِىَ اللّٰہُ عَنْهُ، قَالَ: خَرَجَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ وَنَحْنُ فِي الصُّفَّةِ، فَقَالَ: «أَيُّكُمْ يُحِبُّ أَنْ يَغْدُوَ كُلَّ يَوْمٍ إِلَى بُطْحَانَ، أَوْ إِلَى الْعَقِيقِ، فَيَأْتِيَ مِنْهُ بِنَاقَتَيْنِ كَوْمَاوَيْنِ فِي غَيْرِ إِثْمٍ، وَلَا قَطْعِ رَحِمٍ؟، فَقُلْنَا: يَا رَسُولَ اللهِ نُحِبُّ ذَلِكَ، قَالَ: أَفَلَا يَغْدُو أَحَدُكُمْ إِلَى الْمَسْجِدِ فَيَعْلَمُ، أَوْ يَقْرَأُ آيَتَيْنِ مِنْ كِتَابِ اللهِ عَزَّ وَجَلَّ، خَيْرٌ لَهُ مِنْ نَاقَتَيْنِ، وَثَلَاثٌ خَيْرٌ لَهُ مِنْ ثَلَاثٍ، وَأَرْبَعٌ خَيْرٌ لَهُ مِنْ أَرْبَعٍ، وَمِنْ أَعْدَادِهِنَّ مِنَ الْإِبِلِ
عقبہ بن عامر رضی اللہ عنہ سے مروی ہے انہوں نے کہا کہ ہم سفر میں تھے، رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم باہر آئے اور فرمایا: تم میں سے کون ہے جسے یہ بات پسند ہو کہ بطاحان یا عقیق (دو وادیوں کے نام) کی طرف صبح سویرے جائے اور بڑے بڑے کوہانوں والی دو اونٹنیاں بغیر گناہ کئے اور بغیر قطع رحمی کئے لے آئے۔ ہم نے کہا: اے اللہ کے رسول! ہم سب یہ بات پسند کرتے ہیں۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: کیا تم میں سے کوئی شخص ایسا نہیں جو صبح سویرے مسجد کی طرف آئے اور اللہ عزوجل کی کتاب کی دو آیات سیکھے یا پڑھے یہ اس کے لئے دو اونٹنیوں سے بہتر ہے اور تین آیات تین اونٹنیوں سے بہتر ہیں اور چار آیات چار انٹنیوں سے بہتر ہیں، اور جتنی آیات ہوں گی اتنی ہی انٹنیوں سے بہتر ہیں۔ [صحيح مسلم:803]
حدیث نمبر: 7
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من قعد مقعدا لم يذكر اللٰه فيه كانت عليه من اللٰه ترة، ومن اضطجع مضجعا، لا يذكر اللٰه فيه كانت عليه من اللٰه ترةمَنْ قَعَدَ مَقْعَدًا لَمْ يَذْكُرِ اللَٰهَ فِيهِ كَانَتْ عَلَيْهِ مِنَ اللَٰهِ تِرَةٌ، وَمَنْ اضْطَجَعَ مَضْجَعًا، لَا يَذْكُرُ اللَٰهَ فِيهِ كَانَتْ عَلَيْهِ مِنَ اللَٰهِ تِرَةٌ
جو شخص کسی جگہ بیٹھا اور وہاں اس نے اللہ کا ذکر نہیں کیا تو وہ جگہ اللہ کی طرف سے اس کے لئے باعث نقصان (گھبراہٹ و پریشانی) ہو گی اور جو شخص کسی جگہ لیٹا جہاں اس نے اللہ کا ذکر نہیں کیا تو وہ جگہ اس کے لئے اللہ کی طرف سے باعث نقصا ن (گھبراہٹ و پریشانی) ہو گی۔ [ حسن، سنن ابي داؤد:4856 وعنده: لايذكر السنن الكبريٰ للنسائي:237/1]
حدیث نمبر: 8
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ما جلس قوم مجلسا لم يذكروا اللٰه فيه، ولم يصلوا على نبيهم، إلا كان عليهم ترة، فإن شاء عذبهم وإن شاء غفر لهممَا جَلَسَ قَوْمٌ مَجْلِسًا لَمْ يَذْكُرُوا اللَٰهَ فِيهِ، وَلَمْ يُصَلُّوا عَلَى نَبِيِّهِمْ، إِلَّا كَانَ عَلَيْهِمْ تِرَةً، فَإِنْ شَاءَ عَذَّبَهُمْ وَإِنْ شَاءَ غَفَرَ لَهُمْ
جو قوم کسی مجلس میں بیٹھی اور وہاں پر اللہ کا ذکر نہیں کیا، نہ ہی اپنے نبی پر درود بھیجا تو وہ مجلس ان کے لئے باعث نقصان ہو گی، پھر اگر اللہ چاہے تو انہیں عذاب (سزا) دے اور اگر چاہے تو انہیں معاف فرما دے۔ [ضعيف، سنن ترمذي:3380] «و الحديث حسن دون قوله: فَإِنْ شَاءَ عَذَّبَهُمْ وَإِنْ شَاءَ غَفَرَله» [انظر الحديث السابق 11]
حدیث نمبر: 9
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ما من قوم يقومون من مجلس لا يذكرون اللٰه فيه، إلا قاموا عن مثل جيفة حمار وكان لهم حسرةمَا مِنْ قَوْمٍ يَقُومُونَ مِنْ مَجْلِسٍ لَا يَذْكُرُونَ اللَٰهَ فِيهِ، إِلَّا قَامُوا عَنْ مِثْلِ جِيفَةِ حِمَارٍ وَكَانَ لَهُمْ حَسْرَةً
جو قوم کسی ایسی مجلس سے اٹھتی ہے جس میں انھوں نے اللہ کا ذکر نہیں کیا ہوتا تو گدھے کی سڑی ہوئی لاش جیسی چیز سے اٹھتی ہے اور یہ مجلس ان کے لئے باعث حسرت ہو گی۔ [اسناده صحيح، ابوداؤد:4855، مسند احمد:224/2]

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