शिकार के मसलों के बारे में
1. “ अगर बिना एहराम वाला शिकार करके किसी एहराम वाले को देदे, तो एहराम वाले के लिए उसे खाना ठीक होगा ”
2. “ एहराम वाले को शिकार करने में बिना एहराम वाले की मदद नहीं करनी चाहिए ”
3. “ एहराम वाले को शिकार की ओर इशारा नहीं करना चाहिए, ताकि बिना एहराम वाला उसे शिकार कर सके ”
4. “ जब कोई किसी एहराम वाले व्यक्ति को जीवित जंगली गधा भेंट करे तो उसे स्वीकार नहीं करना चाहिए ”
5. “ एहराम वाला व्यक्ति किन जानवरों को मार सकता है ? ”
6. “ मक्का में जंग करना जायज़ नहीं है ”
7. “ एहराम की हालत में पिछने लगवाना जायज़ है ”
8. “ एहराम में निकाह करना ”
9. “ एहराम में ग़ुस्ल करना ( ठीक है ) ”
10. “ बिना एहराम के हरम और मक्का में प्रवेश करना ”
11. “ मृतक की ओर से हज्ज करना और नज़र पूरी करना और महिला की ओर से पुरुष का हज्ज करना ”
12. “ बच्चों का हज्ज करना भी ठीक है ”
13. “ महिलाओं का हज्ज ”
14. “ कोई काअबा तक चलने की मन्नत माने ”

مختصر صحيح بخاري کل احادیث 2230 :حدیث نمبر
مختصر صحيح بخاري
شکار کی جزا کا بیان
शिकार के मसलों के बारे में
میت کی طرف سے حج اور نذر کا ادا کرنا اور مرد کا عورت کی طرف سے حج کرنا۔
“ मृतक की ओर से हज्ज करना और नज़र पूरी करना और महिला की ओर से पुरुष का हज्ज करना ”
حدیث نمبر: 896
Save to word مکررات اعراب
سیدنا ابن عباس رضی اللہ عنہما سے روایت ہے کہ قبیلہ جہینہ کی ایک عورت نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس آئی اور اس نے عرض کی کہ میری ماں نے یہ نذر مانی تھی کہ وہ حج کرے گی مگر حج نہ کرنے پائی تھی کہ مر گئی، لہٰذا کیا میں اس کی طرف سے حج کر لوں؟ تو آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ہاں تم اس کی طرف سے حج کر لو، بتاؤ! اگر تمہاری ماں پر کچھ قرض ہوتا تو کیا تم اسے ادا کرتی کہ نہیں؟ پس اللہ تعالیٰ کا قرض ادا کرو کیونکہ اللہ تعالیٰ اس بات کا سب سے زیادہ حقدار ہے کہ اس کا قرض ادا کیا جائے۔

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