क़सम उठाना, नज़र मानना और कफ़्फ़ारा
986. “ काएनात के मामलों में केवल अल्लाह तआला की इच्छा काम करती ”
987. “ केवल अल्लाह तआला की क़सम उठानी चाहिए ”
988. “ क़सम देने वाले की क़सम पूरी न करना ”
989. “ अल्लाह तआला के सिवा किसी और की क़सम उठाना मना है ”
990. “ अमानत की क़सम उठाना मना है ”
991. “ झूठी क़सम का नुक़सान झूठी क़सम के माध्यम से दुनिया का लाभ उठाना चतुराई नहीं बोझ है ”
992. “ क़सम तोड़ने और नज़र पूरी न करने का कफ़्फ़ारह ”
993. “ मानी हुई बुरी नज़र को छोड़ देना और उस का कफ़्फ़ारह ”
994. “ किस तरह की नज़र मानी जाए ”
995. “ नज़र में कोई जगह तय करना और उसकी शर्त ”
996. “ नज़र के प्रकार और मकरूह नज़र ”
997. “ तकलीफ़ में डालने वाली बेकार की नज़र से बचना चाहिए ”

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सिलसिला अहादीस सहीहा
الايمان والنذور والكفارات
قسموں، نذروں اور کفارات کا بیان
क़सम उठाना, नज़र मानना और कफ़्फ़ारा
خواہ مخواہ کی مشقت والی نذر سے اجتناب کرنا چاہیئے
“ तकलीफ़ में डालने वाली बेकार की नज़र से बचना चाहिए ”
حدیث نمبر: 1425
Save to word مکررات اعراب Hindi
-" مروها فلتركب ولتختمر [ولتحج]، [ولتهد هديا]".-" مروها فلتركب ولتختمر [ولتحج]، [ولتهد هديا]".
سیدنا عقبہ بن عامر جہنی رضی اللہ عنہ کہتے ہیں: میری بہن نے نذر مانی یہ کہ وہ ننگے پاؤں اور ننگے سر چل کر کعبہ کی طرف جائے گی۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم اس کے پاس آئے اور فرمایا: اس کو کیا ہے؟ لوگوں نے کہا: اس نے نذر مانی ہے کہ یہ کعبہ کی طرف ننگے پاؤں اور ننگے سر چل کر جائے گی۔ آپ نے فرمایا: اس کو حکم دو کہ سوار ہو جائے، چادر اوڑھے، حج کرے اور ایک قربانی ذبح کر دے۔

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