क़सम उठाना, नज़र मानना और कफ़्फ़ारा
986. “ काएनात के मामलों में केवल अल्लाह तआला की इच्छा काम करती ”
987. “ केवल अल्लाह तआला की क़सम उठानी चाहिए ”
988. “ क़सम देने वाले की क़सम पूरी न करना ”
989. “ अल्लाह तआला के सिवा किसी और की क़सम उठाना मना है ”
990. “ अमानत की क़सम उठाना मना है ”
991. “ झूठी क़सम का नुक़सान झूठी क़सम के माध्यम से दुनिया का लाभ उठाना चतुराई नहीं बोझ है ”
992. “ क़सम तोड़ने और नज़र पूरी न करने का कफ़्फ़ारह ”
993. “ मानी हुई बुरी नज़र को छोड़ देना और उस का कफ़्फ़ारह ”
994. “ किस तरह की नज़र मानी जाए ”
995. “ नज़र में कोई जगह तय करना और उसकी शर्त ”
996. “ नज़र के प्रकार और मकरूह नज़र ”
997. “ तकलीफ़ में डालने वाली बेकार की नज़र से बचना चाहिए ”

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सिलसिला अहादीस सहीहा
الايمان والنذور والكفارات
قسموں، نذروں اور کفارات کا بیان
क़सम उठाना, नज़र मानना और कफ़्फ़ारा
قسم توڑنے اور نذر پوری نہ کرنے کا کفارہ
“ क़सम तोड़ने और नज़र पूरी न करने का कफ़्फ़ारह ”
حدیث نمبر: 1419
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-" إنما النذر يمين كفارتها كفارة يمين".-" إنما النذر يمين كفارتها كفارة يمين".
سیدنا عقبہ بن عامر رضی اللہ عنہ سے روایت ہے، وہ بیان کرتے ہیں: میں نے رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کو فرماتے ہوئے سنا: نذر قسم ہی ہے، اور اس کا کفارہ قسم کا کفارہ ہے۔

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