वुज़ू करने के बारे में
1. “ वुज़ू की फ़ज़ीलत ( अच्छाइयां ) ”
2. “ वुज़ू का हुक्म ”
3. “ वुज़ू करने का तरीक़ा ”
4. “ तकलीफ़ में पूरा वुज़ू करने की फ़ज़ीलत ( अच्छाई ) ”
5. “ वुज़ू के साथ मस्जिद में बैठने की फ़ज़ीलत ( अच्छाई ) ”
6. “ वुज़ू में नाक में पानी डालना और झाड़ना चाहिए ”
7. “ मर्दों और औरतों का एक साथ मिलकर वुज़ू करना ”
8. “ समुद्र के पानी स वुज़ू करना ”
9. “ आग पर पकी हुई चीज़ खाने से वुज़ू नहीं टूटता है ”
10. “ मज़ी ! गुप्त अंग से सफ़ेद पानी निकल जाने से वुज़ू ज़रूरी हो जाता है ”
11. “ गुप्त अंग को छूने से वुज़ू टूट जाता है ”
12. “ सत्तू आदि पिने के बाद केवल कुल्ला करना काफ़ी होता है ”
13. “ तयम्मुम के बारे में ”

موطا امام مالك رواية ابن القاسم کل احادیث 657 :حدیث نمبر
موطا امام مالك رواية ابن القاسم
मुवत्ता इमाम मलिक रवायात इब्न अल-क़ासिम
وضو کا بیان
वुज़ू करने के बारे में
شرمگاہ چھونے سے وضو ضروری ہے
“ गुप्त अंग को छूने से वुज़ू टूट जाता है ”
حدیث نمبر: 67
Save to word مکررات اعراب Hindi
304- مالك عن عبد الله بن ابى بكر بن محمد بن عمرو ابن حزم انه سمع عروة بن الزبير يقول: دخلت على مروان بن الحكم فذكرنا ما يكون منه الوضوء، فقال مروان: من مس الذكر الوضوء، فقال عروة: ما علمت ذلك، فقال مروان: اخبرتني بسرة ابنة صفوان انها سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول: ”إذا مس احدكم ذكره فليتوضا.“304- مالك عن عبد الله بن أبى بكر بن محمد بن عمرو ابن حزم انه سمع عروة بن الزبير يقول: دخلت على مروان بن الحكم فذكرنا ما يكون منه الوضوء، فقال مروان: من مس الذكر الوضوء، فقال عروة: ما علمت ذلك، فقال مروان: أخبرتني بسرة ابنة صفوان أنها سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول: ”إذا مس أحدكم ذكره فليتوضأ.“
عروہ بن الزبیر (رحمہ اللہ) سے روایت ہے کہ میں مروان بن الحکم (الاموی) کے پاس گیا تو ہم نے مذاکرہ کیا کہ کس چیز سے وضو (لازم) ہوتا ہے، تو مروان نے کہا: ذکر (آلہ تناسل) کو چھونے سے وضو (ضروری) ہے۔ عروہ نے کہا: مجھے اس کا علم نہیں ہے، تو مروان نے کہا: مجھے بسرہ بنت صفوان (رضی اللہ عنہا) نے بتایا کہ انہوں نے رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کو فرماتے ہوئے سنا: جب تم میں سے کوئی اپنے ذَکر کو چھوئے تو وضو کرے۔

تخریج الحدیث: «304- الموطأ (رواية يحييٰي بن يحييٰي 42/1 ح 88، ك 2 ب 15 ح 58) التمهيد 183/17، الاستذكار: 78، و أخرجه أبوداود (181) من حديث مالك، و النسائي (100/1 ح 163) من حديث عبدالرحمٰن بن القاسم عن مالك به وسنده حسن وقواه ابن الملقن فى تحفة المحتاج (151/1 ح 25) وللحديث شواهد كثيرة وزاد فى الأصل هاهنا بعده: ”وسلم“!»

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