“ काएनात के मामलों में केवल अल्लाह तआला की इच्छा काम करती ” |
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1409 |
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“ केवल अल्लाह तआला की क़सम उठानी चाहिए ” |
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1410 |
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“ क़सम देने वाले की क़सम पूरी न करना ” |
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1411 |
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“ अल्लाह तआला के सिवा किसी और की क़सम उठाना मना है ” |
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1412 سے 1415 |
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“ अमानत की क़सम उठाना मना है ” |
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1416 |
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“ झूठी क़सम का नुक़सान झूठी क़सम के माध्यम से दुनिया का लाभ उठाना चतुराई नहीं बोझ है ” |
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1417 سے 1418 |
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“ क़सम तोड़ने और नज़र पूरी न करने का कफ़्फ़ारह ” |
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1419 |
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“ मानी हुई बुरी नज़र को छोड़ देना और उस का कफ़्फ़ारह ” |
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1420 |
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“ किस तरह की नज़र मानी जाए ” |
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1421 سے 1422 |
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“ नज़र में कोई जगह तय करना और उसकी शर्त ” |
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1423 |
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“ नज़र के प्रकार और मकरूह नज़र ” |
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1424 |
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“ तकलीफ़ में डालने वाली बेकार की नज़र से बचना चाहिए ” |
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1425 |
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