-" كان إذا صلى همس، فقال: افطنتم لذلك؟ إني ذكرت نبيا من الانبياء اعطي جنودا من قومه، فقال: من يكافئ هؤلاء او من يقاتل هؤلاء؟ او كلمة شبهها، فاوحى الله إليه ان اختر لقومك إحدى ثلاث: ان اسلط عليهم عدوهم او الجوع او الموت، فاستشار قومه في ذلك؟ فقالوا: نكل ذلك إليك انت نبي الله، فقام فصلى وكانوا إذا فزعوا، فزعوا إلى الصلاة، فقال: يا رب اما الجوع او العدو، فلا ولكن الموت، فسلط عليهم الموت ثلاثة ايام، فمات منهم سبعون الفا، فهمسي الذي ترون اني اقول: اللهم بك اقاتل وبك اصاول ولا حول ولا قوة إلا بك".-" كان إذا صلى همس، فقال: أفطنتم لذلك؟ إني ذكرت نبيا من الأنبياء أعطي جنودا من قومه، فقال: من يكافئ هؤلاء أو من يقاتل هؤلاء؟ أو كلمة شبهها، فأوحى الله إليه أن اختر لقومك إحدى ثلاث: أن أسلط عليهم عدوهم أو الجوع أو الموت، فاستشار قومه في ذلك؟ فقالوا: نكل ذلك إليك أنت نبي الله، فقام فصلى وكانوا إذا فزعوا، فزعوا إلى الصلاة، فقال: يا رب أما الجوع أو العدو، فلا ولكن الموت، فسلط عليهم الموت ثلاثة أيام، فمات منهم سبعون ألفا، فهمسي الذي ترون أني أقول: اللهم بك أقاتل وبك أصاول ولا حول ولا قوة إلا بك".
سیدنا صہیب رضی اللہ عنہ کہتے ہیں: نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم جب نماز پڑھتے تو چپکے چپکے کچھ کلمات کہتے، (ایک دن ہم سے) پوچھا: ”تمہیں کوئی سمجھ آئی ہے؟ دراصل مجھے سابقہ انبیاء میں سے ایک نبی یاد آیا، جسے اس کی قوم میں سے کئی لشکر دیے گئے تھے، اس نبی نے کہا: کون ہے جو ان کے ہم پلہ ہو گا یا کون ہے جو ان کا مقابلہ کرے گا؟ یا اس قسم کی بات کی۔ اللہ تعالیٰ نے اس کی طرف وحی کی کہ اپنی قوم کے لیے ان تین چیزوں میں سے کسی ایک کاانتخاب کر، میں ان پر ان کا دشمن مسلط کر دوں یا بھوک کو یا موت کو؟ اس نے اپنی قوم سے مشورہ کیا۔ انہوں نے جواب دیا: آپ اللہ کے نبی ہیں، اس لیے ہم یہ معاملہ آپ کے سپرد کرتے ہیں۔ وہ کھڑے ہو کر نماز پڑھنے لگا۔ جب وہ گھبرا جاتے تو نماز کا سہارا لیتے تھے۔ اس نے کہا: اے میرے رب! نہ بھوک مسلط کر اور نہ دشمن، چلو موت سہی۔ اللہ تعالیٰ نے ان پر تین دنوں کے لیے موت کو مسلط کر دیا۔ ان میں سے ستر ہزار افراد مر گئے۔ اس لیے میں چپکے چپکے یہ کلمات کہتا ہوں، جیسا کہ تم نے سنا ہے: اے اللہ! میں تیری توفیق سے لڑتا ہوں، تیری توفیق سے کسی سے مقابلہ کرتا ہوں اور برائی سے بچنے کی طاقت اور نیکی کرنے کی قوت نہیں ہے مگر تیری ہی توفیق سے۔“
हज़रत सुहैब रज़ि अल्लाहु अन्ह कहते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब नमाज़ पढ़ते तो चुपके चुपके कुछ शब्द कहते, (एक दिन हम से) पूछा कि तुम्हें कोई समझ आई है ? असल में मुझे पिछले नबियों में से एक नबी याद आया, जिसे उसकी क़ौम में से कई फ़ौजी दस्ते दिए गए थे, उस नबी ने कहा कि कौन है जो इनके बराबर का होगा या कौन है जो इनका मुक़ाब्ला करेगा ? या इस तरह की बात की। अल्लाह तआला ने उसकी तरफ़ वही की, अपनी क़ौम के लिए इन तीन चीज़ों में से किसी एक को चुनले, मैं उन पर उनके दुश्मन को हावी करदूँ या भूक को या मौत को ? उसने अपनी क़ौम से मश्वरा किया। उन्हों ने जवाब दिया कि आप अल्लाह के नबी हैं, इस लिए हम यह मामला आप के हवाले करते हैं। वह खड़े होकर नमाज़ पढ़ने लगे। जब वह घबरा जाते तो नमाज़ का सहारा लेते थे। उसने कहा कि ऐ मेरे रब्ब, न भूक हावी कर और न दुश्मन, चलो मौत सही। अल्लाह तआला ने उन पर तीन दिनों के लिए मौत को लागू कर दिया। उनमें से सत्तर हज़ार लोग मर गए। इस लिए में चुपके चुपके ये शब्द केहता हूँ, जैसा कि तुम ने सुना है ! « اللَّهُمَّ بِكَ أُقَاتِلُ وَبِكَ أُصَاوِلُ وَلاَ حَوْلَ وَلاَ قُوَّةَ إِلاَّ بِكَ » “ऐ अल्लाह, मैं तेरी सहायता से लड़ता हूँ, तेरी सहायता से किसी से मुक़ाब्ला करता हूँ और बुराई से बचने की शक्ति और नेकी करने की शक्ति नहीं है मगर तेरी ही सहायता से।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 1061
قال الشيخ الألباني: - " كان إذا صلى همس، فقال: أفطنتم لذلك؟ إني ذكرت نبيا من الأنبياء أعطي جنودا من قومه، فقال: من يكافئ هؤلاء أو من يقاتل هؤلاء؟ أو كلمة شبهها، فأوحى الله إليه أن اختر لقومك إحدى ثلاث: أن أسلط عليهم عدوهم أو الجوع أو الموت، فاستشار قومه في ذلك؟ فقالوا: نكل ذلك إليك أنت نبي الله، فقام فصلى وكانوا إذا فزعوا، فزعوا إلى الصلاة، فقال: يا رب أما الجوع أو العدو، فلا ولكن الموت، فسلط عليهم الموت ثلاثة أيام، فمات منهم سبعون ألفا، فهمسي الذي ترون أني أقول: اللهم بك أقاتل وبك أصاول ولا حول ولا قوة إلا بك ". _____________________ أخرجه ابن نصر في " الصلاة " (35 / 2) : حدثنا إسحاق بن إبراهيم أنبأنا أبو أسامة حدثنا سليمان بن المغيرة عن ثابت البناني عن عبد الرحمن بن أبي ليلى عن صهيب قال: فذكره. قلت: وهذا إسناد صحيح على شرط الشيخين. وأخرجه الإمام أحمد (4 / 333، 6 / 16) من طريقين آخرين عن سليمان بن المغيرة به، ومن طريق حماد بن سلمة: حدثنا ثابت به نحوه وفيه أن الصلاة هي صلاة الفجر وأن الهمس كان بعدها وفي أيام حنين. وروى منه الدارمي (2 / 217) قوله: اللهم بك أحاول وبك أصاول وبك أقاتل ". وسندهما صحيح على شرط مسلم. ¤