ज़कात, दान, सदक़ा और भेंट
602. “ सदक़ह की फ़ज़ीलत ”
603. “ रसूल अल्लाह ﷺ और आप की आल और आप के ग़ुलामों के लिए सदक़ह हलाल नहीं ”
604. “ जिन लोगों के ज़िम्मेदार हो उन पर ख़र्च करना अफ़ज़ल है ”
605. “ हज़रत अबू बक्र रज़ि अल्लाहु अन्ह का सदक़ह और दान की सराहना ”
606. “ पत्नी पर ख़र्च करना भी सदक़ह है ”
607. “ सदक़ह में अच्छी चीज़ दी जाए और सब से क़रीबी रिश्तेदार से देना शुरू किया जाए ”
608. “ ग़ैर मुस्लिम को भी सदक़ह दिया जा सकता है ”
609. “ सदक़ह फ़ित्र यानि फ़ित्रा ”
610. “ सदक़ह करने के लिए जल्दी करना और माल की थोड़ी मात्रा के माध्यम से भी आग से बचा जा सकता है ”
611. “ अधिक माल देना अच्छा है और सदक़ह देने वाला व्यक्ति लेने वाले से अच्छा है ”
612. “ सदक़ह करने से माल कम नहीं होता ”
613. “ विभिन्न प्रकार का सदक़ह ”
614. “ सदक़ह के अफ़ज़ल रूप ”
615. “ छुपा कर सदक़ह करना अल्लाह तआला के ग़ुस्से को मिटाता है ”
616. “ सदक़ह करने में देर नहीं करनी चाहिए ”
617. “ सदक़ह करने वालों के लिए जन्नत में सदक़ह का दरवाज़ा ”
618. “ रसूल अल्लाह ﷺ का ख़र्च करने का जोश ”
619. “ ख़र्च करने वालों के लिए फरिश्तों की दुआ और न करने वालों के लिए बद दुआ ”
620. “ हर माल से जोड़ा ( दो दो की मात्रा में ) सदक़ह देने की फ़ज़ीलत ”
621. “ भूके को खाना खिलाना ”
622. “ ईद अल-फ़ित्र और ईद अल-अज़हा के दिन सदक़ह करने का हुक्म ”
623. “ पानी मांगने वाले को पानी उपलब्ध कराना भी सदक़ह है ”
624. “ माता पिता की ओर से सदक़ह करना ، पानी अच्छा सदक़ह है ”
625. “ हर अंग पर सदक़ह है ”
626. “ क़र्ज़ देने का बदला और सवाब ”
627. “ माल को संभाल कर न रखा जाए वरना... ”
628. “ माल दौलत हलाकत का कारण है सिवाए यह कि... ”
629. “ दुसरे का माल कब स्वीकार किया जाए ”
630. “ पत्नी अपने पति की आज्ञा के बिना अपना माल ख़र्च नहीं कर सकती ”
631. “ लोगों से बेनियाज़ होने की कोशिश करनी चाहिए ”
632. “ हाथ केवल भलाई और अच्छाई के लिए आगे बढ़ाना चाहिए ”
633. “ दिलों को मिलाने के लिए कुछ लोगों को देना या न देना ”
634. “ इमारतें बनाने पर ख़र्च करने का कोई लाभ नहीं सिवाए इस के... ”
635. “ दान वापस लेने वाले की बुरी मिसाल ”
636. “ अल्लाह तआला की ओर से सहायता और सब्र करने का समर्थन कब मिलता है ”
637. “ ग़रीब और कंगाल लोगों की अल्लाह तआला के यहां एहमियत ”
638. “ ज़कात के बिना इस्लाम पूरा नहीं होता ”
639. “ जानवरों की ज़कात कहां लेनी चाहिए ”
640. “ घोड़े और ग़ुलाम पर ज़कात नहीं ”
641. “ जिस माल की ज़कात न दी जाए उस की निंदा ”
642. “ किस फ़सल में ज़कात होती है ? ”
643. “ फ़सलों की ज़कात के नियम ”
644. “ ज़कात लेने वाला ठीक मात्रा से अधिक नहीं ले सकता ”
645. “ ज़कात देने वालों का दुनिया का अंत और इस्लाम के आगे के हालत के बारे में ”
646. “ ऊंटों की ज़कात के नियम ”
647. “ ज़कात के सिवा ज़रूरत से अधिक माल पर हक़ है ”
648. “ मुशरिकों से उपहार लेना कैसा है ”
649. “ ग़ुलाम और लोंडी को मुक्त करने का सवाब ”
650. “ कौन सा ग़ुलाम मुक्त करना अफ़ज़ल है ”
651. “ विरासत में छोड़ना कैसा है ”
652. “ दौलत जान का बोझ भी है ”
653. “ ग़ुलाम के लाभ से अधिक लाभ देने वाली तस्बीह ”
654. “ लालच बुरी चीज़ है ”
655. “ कंजूस को कम से कम अपने आप पर ख़र्च करना चाहिए ”
656. “ फ़रअ का अर्थ और उस का हुक्म ”
657. “ सदक़ह करने से सत्तर शैतानों के जबड़े टूट जाते हैं ”
658. “ अल्लाह तआला के नाम पर मांगना कैसा है ”
659. “ हर एहसान का बदला दिया जाए चाहे दुआ ही दी जाए ”
660. “ यदि भूके को खाना खिलाने के बाद मौत आजाए तो ... ”
661. “ ज़रूरत से अधिक पानी और घास हो तो फिर भी न देने वाले का अंत ”
662. “ क्या ओक़िया का मालिक नहीं मांग सकता है और कितने माल का मालिक नहीं मांग सकता ”
663. “ मांगने के बजाए कोई न कोई काम करलेना चाहिए ”
664. “ क्षमा स्वीकार कर लेनी चाहिए ”
665. “ इन्सान को दौलत नहीं अपनी हक़ीक़त देखनी चाहिए ”

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سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر
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सिलसिला अहादीस सहीहा
الزكاة والسخاء والصدقة والهبة
زکوۃ، سخاوت، صدقہ، ہبہ
ज़कात, दान, सदक़ा और भेंट
تالیف قلبی کی خاطر بعض لوگوں کو بعض پر ترجیج دینا
“ दिलों को मिलाने के लिए कुछ लोगों को देना या न देना ”
حدیث نمبر: 950
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ـ (اما بعد: فو الله! إني لاعطي الرجل و [ادع الرجل]، والذي ادع احب إلي من الذي اعطي، ولكن اعطي اقواما لما ارى في قلوبهم من الجزع والهلع، واكل اقواما إلى ما جعل الله في قلوبهم من الغنى والخير، منهم: عمرو بن تغلب).ـ (أمّا بعدُ: فو الله! إنِّي لأعْطي الرجُلَ و [أدعُ الرجلَ]، والذي أدعُ أَحَبُّ إليَّ من الذي أعطي، ولكنْ أُعْطي أقواماً لِما أرى في قلوبهم من الجَزَع والهلَعِ، وأَكِلُ أقواماً إلى ما جَعَل اللهُ في قلوبهم من الغنَى والخير، منهم: عمرو بنُ تغْلب).
سیدنا عمرو بن تغلب رضی اللہ عنہ سے مروی ہے کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس کچھ مال یا قیدی لائے گئے۔ آپ نے ان کو تقسیم کیا اور کچھ لوگوں کو دیا اور کچھ کو نہ دیا۔ جب آپ کو یہ بات پہنچی کہ جن لوگوں کو آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے نہیں دیا انہوں نے ناراضی کا اظہار کیا ہے تو آپ نے اللہ تعالیٰ کی حمد و ثنا بیان کی اور فرمایا: اما بعد، اللہ کی قسم! میں کسی کو دیتا ہوں اور کسی کو نہیں دیتا۔ وہ لوگ جن کو میں چھوڑ دیتا ہوں (اور کوئی مال وغیرہ نہیں دیتا) وہ مجھے ان سے زیادہ محبوب ہیں جن کو میں دیتا ہوں (یاد رکھو) ان کو صرف اس لیے دیتا ہوں کہ میں ان کے دلوں میں گھبراہٹ اور سخت بےچینی دیکھتا ہوں اور دوسرے لوگوں کو میں اس تونگری اور بھلائی کے سپرد کر دیتا ہوں جو اللہ تعالیٰ نے ان کے دلوں میں رکھی ہے۔ ان ہی لوگوں میں سے عمرو بن تغلب ہے۔ عمرو بن تغلب کہتے ہیں: اللہ کی قسم! مجھے رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کی اس بات کے مقابلے میں سرخ اونٹ لینا بھی پسند نہیں ہیں۔
حدیث نمبر: 951
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- (إني اعطي قريشا اتالفهم؛ لانهم حديث عهد بجاهلية).- (إنّي أُعطِي قُريشاً أتألّفهم؛ لأنهم حديثُ عهدٍ بجاهليةٍ).
سیدنا انس رضی اللہ عنہ بیان کرتے ہیں کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: میں قریش کی تالیف قلبی کے لیے انہیں دیتا ہوں، کیونکہ انہوں نے حال ہی میں جاہلیت کو ترک کیا ہے۔
حدیث نمبر: 952
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- (إني اعطي قوما؛ اخاف ظلعهم وجزعهم، واكل اقواما إلى ما جعل الله في قلوبهم من [الغنى و] الخير؛ [منهم عمرو بن تغلب]).- (إنّي أُعطِي قوماً؛ أخافُ ظَلَعَهُم وجَزَعهُم، وأَكِلُ أقواماً إلى ما جعل الله في قلوبهم من [الغنى و] الخير؛ [منهم عمرو بن تغلب]).
سیدنا عمرو بن تغلب رضی اللہ عنہ کہتے ہیں: رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے بعض لوگوں کو مال دیا اور بعضوں کو ترک کر دیا، جب ان لوگوں نے ناراضگی کا اظہار کیا تو آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: میں بعض لوگوں کو دیتا ہوں کیونکہ مجھے ان کی بے تابی اور بے صبری کا ڈر ہوتا ہے اور دوسرے لوگوں کو میں اس تونگری اور بھلائی کے سپرد کر دیتا ہوں جو اللہ تعالیٰ نے ان کے دلوں میں رکھی ہے۔ ان ہی لوگوں میں سے عمرو بن تغلب بھی ہے۔ سیدنا عمرو بن تغلب رضی اللہ عنہ کہتے ہیں: اللہ کی قسم! مجھے رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کی اس بات کے مقابلے میں سرخ اونٹ لینا بھی پسند نہیں ہیں۔

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