“मैं ने अपना चेहरा एक तरफ़ हो कर उस जाति की ओर ध्यान कर लिया जिस ने आसमानों और ज़मीन को नए सिरे से पैदा किया, और मैं मुशरिकों में से नहीं हूँ, बे शक मेरी नमाज़, मेरी क़ुरबानी, मेरा ज़िंदा रहना और मेरा मरना अल्लाह रब अलआलमीन के लिए है, जिस का कोई साझी नहीं, मुझे इसी बात का आदेश दिया गया है और मैं आज्ञाकारी और आदेश का पालन करने वालों में से हूँ, ऐ अल्लाह ! तू ही बादशाह है तेरे सिवा कोई सच्चा ईश्वर नहीं, तू मेरा रब है और मैं तेरा बंदा, मैं ने अपनी जान पर अत्याचार किया, मैं अपने पापों को स्वीकार करता हूँ, मेरे सारे पाप क्षमा कर दे । क्यूंकि तेरे सिवा कोई भी पापों को क्षमा नहीं कर सकता, सबसे अच्छे स्वभाव के लिए मेरा मार्गदर्शन कर (हिदायत दे), तेरे सिवा सबसे अच्छे स्वभाव का मार्गदर्शन कोई नहीं कर सकता । मुझ से बुरा स्वभाव हटा दे, तेरे सिवा मुझ से बुरा स्वभाव कोई दूर नहीं कर सकता, मैं तेरे सामने हूँ, आज्ञाकारी हूँ, और भलाई सारी की सारी तेरे हाथ में है, जबकि बुराई तेरी तरफ़ से नहीं, मैं तेरी सहायता से खड़ा हूँ और तेरी ओर ध्यान है, तू बरकत वाला है, महान है मैं तुझ से क्षमा की मांग करता हूँ और तेरी तरफ़ ही लौटता हूँ ।” [सहीह मुस्लिम: 771]