-" إن بني إسرائيل لما طال الامد وقست قلوبهم اخترعوا كتابا من عند انفسهم، استهوته قلوبهم واستحلته السنتهم، وكان الحق يحول بينهم وبين كثير من شهواتهم، حتى نبذوا كتاب الله وراء ظهورهم كانهم لا يعلمون، فقالوا: (الاصل: فقال) اعرضوا هذا الكتاب على بني إسرائيل، فإن تابعوكم عليه، فاتركوهم، وإن خالفوكم فاقتلوهم. قال: لا، بل ابعثوا إلى فلان - رجل من علمائهم - فإن تابعكم فلن يختلف عليكم بعده احد. فارسلوا إليه فدعوه، فاخذ ورقة فكتب فيها كتاب الله، ثم ادخلها في قرن، ثم علقها في عنقه، ثم لبس عليها الثياب، ثم اتاهم، فعرضوا عليه الكتاب فقالوا: تؤمن بهذا؟ فاشار إلى صدره - يعني الكتاب الذي في القرن - فقال: آمنت بهذا، ومالي لا اؤمن بهذا؟ فخلوا سبيله. قال: وكان له اصحاب يغشونه فلما حضرته الوفاة اتوه، فلما نزعوا ثيابه وجدوا القرن في جوفه الكتاب، فقالوا: الا ترون إلى قوله: آمنت بهذا، ومالي لا اؤمن بهذا، فإنما عنى بـ (هذا) هذا الكتاب الذي في القرن قال: فاختلف بنو إسرائيل على بضع وسبعين فرقة، خير مللهم اصحاب ابي القرن".-" إن بني إسرائيل لما طال الأمد وقست قلوبهم اخترعوا كتابا من عند أنفسهم، استهوته قلوبهم واستحلته ألسنتهم، وكان الحق يحول بينهم وبين كثير من شهواتهم، حتى نبذوا كتاب الله وراء ظهورهم كأنهم لا يعلمون، فقالوا: (الأصل: فقال) اعرضوا هذا الكتاب على بني إسرائيل، فإن تابعوكم عليه، فاتركوهم، وإن خالفوكم فاقتلوهم. قال: لا، بل ابعثوا إلى فلان - رجل من علمائهم - فإن تابعكم فلن يختلف عليكم بعده أحد. فأرسلوا إليه فدعوه، فأخذ ورقة فكتب فيها كتاب الله، ثم أدخلها في قرن، ثم علقها في عنقه، ثم لبس عليها الثياب، ثم أتاهم، فعرضوا عليه الكتاب فقالوا: تؤمن بهذا؟ فأشار إلى صدره - يعني الكتاب الذي في القرن - فقال: آمنت بهذا، ومالي لا أؤمن بهذا؟ فخلوا سبيله. قال: وكان له أصحاب يغشونه فلما حضرته الوفاة أتوه، فلما نزعوا ثيابه وجدوا القرن في جوفه الكتاب، فقالوا: ألا ترون إلى قوله: آمنت بهذا، ومالي لا أؤمن بهذا، فإنما عنى بـ (هذا) هذا الكتاب الذي في القرن قال: فاختلف بنو إسرائيل على بضع وسبعين فرقة، خير مللهم أصحاب أبي القرن".
ربیع بن عمیلہ کہتے ہیں: سیدنا عبدللہ بن مسعود رضی اللہ عنہ نے ہمیں اتنی بہترین حدیث بیان کی، کہ ہم نے اسے قرآن مجید اور نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم کی روایات کے بعد حسین پایا، وہ روایت کرتے ہیں کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ”جب بنو اسرائیل کی مدت دراز ہوئی اور ان کے دل سخت ہو گئے تو انہوں نے خود ایک ایسی کتاب ترتیب دی، جو ان کے دلوں کو پسند اور زبانوں کو میٹھی لگتی تھی اور اس وقت حق بھی وہی ہوتا تھا جو ان کی شہوات کے اردگرد منڈلاتا تھا۔ انہوں نے اللہ تعالیٰ کی کتاب کو اپنی پیٹھوں کے پیچھے پھینک دیا، اسے لگتا تھا کہ یہ لوگ کچھ بھی نہیں جانتے۔ پھر (ایک وقت ایسابھی آیاکہ) انہوں نے کہا کہ یہ (خودساختہ) کتاب بنو اسرائیل پر پیش کرو، اگر وہ تمہاری پیروی کرنے لگیں تو انہیں کچھ نہ کہو اور اگر مخالفت کریں تو ان کو قتل کر دو۔ لیکن اس نے کہا: نہیں، بلکہ یوں کرو کہ فلاں عالم کے پاس پیغام بھیجو، اگر اس نے تمہاری پیروی کی تو اس کے بعد کوئی بھی اختلاف نہیں کرے گا۔ انہوں نے اس کی طرف کسی کو بھیج کر اسے بلایا۔ اس نے ایک ورق لیا، اس میں اللہ تعالیٰ کی کتاب لکھی، پھر اسے ایک سینگ میں ڈال کر اپنی گردن میں لٹکا لیا اور اس کے اوپر کپڑے زیب تن کر لیے اور ان کے پاس پہنچ گیا۔ انہوں نے اس پر (اپنی من گھڑت) کتاب پیش کی اور کہا: کیا تو اس پر ایمان لاتا ہے؟ اس نے جواباً اپنے سینے کی طرف یعنی سینگ کے اندر موجودہ کتاب کی طرف اشارہ کرتے ہوئے کہا: میں اس پر ایمان لاتا ہوں، بھلا اس پر ایمان کیوں نہ لاؤں۔ (اس کا مقصد سینگ میں پنہاں کتاب تھی، نہ کہ ان کی خود ساختہ کتاب، لیکن یہ لوگ اس کی بات سمجھ نہیں پا رہے تھے) بہرحال انہوں نے اس کو چھوڑ دیا۔ اس کے کچھ ساتھی تھے، جو اس کی مجلس میں بیٹھتے تھے، جب وہ فوت ہو گیا تو وہ آئے اور اس کے کپڑے اتارے، وہاں انہیں ایک سینگ نظر آیا جس کے اندر کتاب تھی۔ اب (وہ اصل حقیقت سمجھے اور) کہا: جب اس بندے نے یہ کہا تھا کہ ”میں اس کتاب پر ایمان لایا ہوں اور بھلا اس پر ایمان کیوں نہ لاؤں“ تو اس کی مراد سینگ میں موجود کتاب (جو کہ حق ہے) تھی۔ سو بنو اسرائیل تہتر چوہتر فرقوں میں بٹ گئے، ان میں سب سے بہتر فرقے والے وہ لوگ ہیں جو اس سینگ والے کے ساتھی اور پیروکار تھے۔“
रुबेअ बिन उमेला कहते हैं कि हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ि अल्लाहु अन्ह ने हमें इतनी अच्छी हदीस सुनाई कि हम ने उसे क़ुरान मजीद और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की रिवायतों के बाद अच्छा पाया, वह रिवायत करते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “जब बनी इसराईल का लम्बा समय गुज़र गया और उनके दिल सख़्त होगए तो उन्होंने ख़ुद एक ऐसी किताब लिखी, जो उनके दिलों को पसंद और ज़बानों को मीठी लगती थी और उस समय सच्च भी वही होता था जो उनकी वासनाओं के आसपास घूमता रहता था। उन्हों ने अल्लाह तआला की किताब को अपनी पीठों के पीछे फेंक दिया, उन्हें लगता था कि ये लोग कुछ भी नहीं जानते। फिर (एक समय ऐसा भी आया कि) उन्हों ने कहा कि यह (हमारी लिखी हुई) किताब बनि इसराईल के सामने रखो, यदि वे तुम्हारी पैरवी करने लगें तो उन्हें कुछ न कहो और यदि विरोध करें तो उनको क़त्ल करदो। लेकिन उसने कहा कि नहीं, बल्कि ऐसा करो कि फ़लां विद्वान के पास संदेश भेजो, यदि उसने तुम्हारी पैरवी की तो उसके बाद कोई भी विरोध नहीं करेगा। उन्हों ने उसकी ओर किसी को भेजकर उसे बुलाया। उसने एक काग़ज़ लिया, उसमें अल्लाह तआला की किताब लिखी, फिर उसे एक सींग में डालकर अपनी गर्दन में लटका लिया और उसके उपर कपड़े पहनकर और उनके पास पहुंच गया। उन्हों ने उसके सामने (अपनी मनघड़त) किताब रखी और कहा, क्या तू इस पर ईमान लाता है ? उसने जवाब में अपने सिने की ओर यानी सींग के अंदर मौजूदा किताब की ओर इशारा करते हुए कहा, मैं इस पर ईमान लाता हूँ, भला उस पर ईमान क्यों न लाऊँ। (उसका मतलब सींग में छिपी किताब थी, न कि उनकी किताब, लेकिन ये लोग उसकी बात समझे नहीं) बहरहाल उन्हों ने उसको छोड़ दिया। उसके कुछ साथी थे, जो उसके साथ बैठते थे, जब वह मर गया तो वे आए और उसके कपड़े उतारे, वहां उन्हें एक सींग नज़र आया जिस के अंदर किताब थी। अब (वह सच्चाई को समझे और) कहा कि जब उस बंदे ने यह कहा था कि “मैं इस किताब पर ईमान लाया हूँ और भला इस पर ईमान क्यों न लाऊँ” तो उस की मुराद सींग में मौजूद किताब थी (जो कि सच्च है)। तो बनी इसराईल तिहत्तर चौहत्तर समुदायों में बंट गए, उनमें सबसे अच्छे वे लोग हैं जो उस सींग वाले के साथी और पैरवी करने वाले थे।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 2694
قال الشيخ الألباني: - " إن بني إسرائيل لما طال الأمد وقست قلوبهم اخترعوا كتابا من عند أنفسهم، استهوته قلوبهم واستحلته ألسنتهم، وكان الحق يحول بينهم وبين كثير من شهواتهم، حتى نبذوا كتاب الله وراء ظهورهم كأنهم لا يعلمون، فقالوا: (الأصل : فقال) اعرضوا هذا الكتاب على بني إسرائيل، فإن تابعوكم عليه، فاتركوهم، وإن خالفوكم فاقتلوهم. قال: لا، بل ابعثوا إلى فلان - رجل من علمائهم - فإن تابعكم فلن يختلف عليكم بعده أحد. فأرسلوا إليه فدعوه، فأخذ ورقة فكتب فيها كتاب الله، ثم أدخلها في قرن، ثم علقها في عنقه، ثم لبس عليها الثياب، ثم أتاهم، فعرضوا عليه الكتاب فقالوا: تؤمن بهذا؟ فأشار إلى صدره - يعني الكتاب الذي في القرن - فقال: آمنت بهذا، ومالي لا أؤمن بهذا؟ فخلوا سبيله. قال: وكان له أصحاب يغشونه فلما حضرته الوفاة أتوه، فلما نزعوا ثيابه وجدوا القرن في جوفه الكتاب، فقالوا: ألا ترون إلى قوله: آمنت بهذا، ومالي لا أؤمن بهذا، فإنما عنى بـ (هذا) هذا الكتاب الذي في القرن قال: فاختلف بنو إسرائيل على بضع وسبعين فرقة، خير مللهم أصحاب أبي القرن ". _____________________ أخرجه البيهقي في " شعب الإيمان " (2 / 439 / 1 - 2) : أخبرنا أبو محمد بن يوسف الأصبهاني حدثنا أبو سعيد ابن الأعرابي حدثنا سعدان بن نصر: حدثنا أبو معاوية عن الأعمش عن عمارة عن ربيع بن عميلة قال: حدثنا عبد الله، ما سمعنا __________جزء : 6 /صفحہ : 436__________ حديثا هو أحسن منه إلا كتاب الله عز وجل، ورواية عن النبي صلى الله عليه وسلم قال: فذكره. قلت: وهذا إسناد صحيح رجاله كلهم ثقات، أبو محمد اسمه عبد الله بن يوسف المعروف بـ (بالأصبهاني) ، وكان من ثقات المحدثين الرحالة، مات سنة (409) كما في " الشذرات ". وأبو سعيد ابن الأعرابي حافظ ثقة مشهور، ترجمه الحافظ الذهبي في " التذكرة "، وله مصنفات منها " المعجم " ، منه نسخة خطية في المكتبة الظاهرية، ولعل هذا الحديث فيه، فليراجع فإنه الآن بعيد عن متناول يدي، لأنهم جمعوه إلى كتب أخرى للتصوير. وسعدان بن نصر ، ثقة مترجم في " الجرح والتعديل " و " تاريخ بغداد ". ومن فوقه كلهم ثقات من رجال مسلم، وعمارة هو ابن عمير التيمي. فالسند صحيح بلا ريب، ولكن عندي وقفة في رفعه، لأنه ليس صريحا فيه، ولكنه على كل حال في حكم المرفوع. والله أعلم. وله شاهد مختصر جدا من رواية أبي موسى الأشعري قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم : " إن بني إسرائيل كتبوا كتابا فاتبعوه، وتركوا التوراة ". أخرجه الطبراني في " المعجم الأوسط " (2 / 39 / 1 - 2 / 5678) : حدثنا محمد بن عثمان بن أبي شيبة قال: حدثنا جندل بن والق قال: حدثنا عبيد الله بن عمرو عن عبد الملك بن عمير عن أبي بردة عن أبيه.. وقال: " لم يروه عن عبد الملك بن عمير إلا عبيد الله بن عمرو، تفرد به جندل بن والق ". قلت: في " التقريب ": __________جزء : 6 /صفحہ : 437__________ " صدوق يغلط ويصحف ". قلت: فالإسناد حسن إن سلم ممن دونه أو توبع، فقد قال الهيثمي في " المجمع " (1 / 150) : " رواه الطبراني في " الأوسط "، وفيه محمد بن عثمان بن أبي شيبة، وهو ثقة، وقد ضعفه غير واحد " . وقال في مكان آخر (1 / 192) : " رواه الطبراني في " الكبير "، ورجاله ثقات ". ولينظر هل قوله: " الكبير " صواب أم سبق قلم أو خطأ من الناسخ، فإن المجلد الذي فيه مسند أبي موسى من " المعجم الكبير " لم يطبع بعد. وفي معنى حديث أبي موسى آثار عن بعض الصحابة. رواها ابن عبد البر في " جامع بيان العلم " (1 / 64 - 65) . ¤