-" يفتح ياجوج وماجوج، يخرجون على الناس كما قال الله عز وجل: * (من كل حدب ينسلون) * فيغشون الارض وينحاز المسلمون عنهم إلى مدائنهم وحصونم، ويضمون إليهم مواشيهم، ويشربون مياه الارض، حتى ان بعضهم ليمر بالنهر فيشربون ما فيه حتى يتركوه يبسا، حتى إن من بعدهم ليمر بذلك النهر فيقول: قد كان هاهنا ماء مرة! حتى إذا لم يبق من الناس إلا احد في حصن او مدينة قال قائلهم: هؤلاء اهل الارض قد فرغنا منهم، بقي اهل السماء! قال: ثم يهز احدهم حربته، ثم يرمي بها إلى السماء، فترجع مختضبة دما للبلاء والفتنة. فبينا هم على ذلك إذا بعث الله دودا في اعناقهم كنغف الجراد الذي يخرج في اعناقهم، فيصبحون موتى لا يسمع لهم حس. فيقول المسلمون: الا رجل يشري نفسه فينظر ما فعل هذا العدو، قال: فيتجرد رجل منهم لذلك محتسبا لنفسه قد اظنها على انه مقتول، فينزل، فيجدهم موتى، بعضهم على بعض، فينادي: يا معشر المسلمين: الا ابشروا، إن الله قد كفاكم عدوكم فيخرجون من مدائنهم وحصونهم، ويسرحون مواشيهم، فما يكون لها رعي إلا لحومهم، فتشكر عنه كاحسن ما تشكر عن شيء من النبات اصابته قط".-" يفتح يأجوج ومأجوج، يخرجون على الناس كما قال الله عز وجل: * (من كل حدب ينسلون) * فيغشون الأرض وينحاز المسلمون عنهم إلى مدائنهم وحصونم، ويضمون إليهم مواشيهم، ويشربون مياه الأرض، حتى أن بعضهم ليمر بالنهر فيشربون ما فيه حتى يتركوه يبسا، حتى إن من بعدهم ليمر بذلك النهر فيقول: قد كان هاهنا ماء مرة! حتى إذا لم يبق من الناس إلا أحد في حصن أو مدينة قال قائلهم: هؤلاء أهل الأرض قد فرغنا منهم، بقي أهل السماء! قال: ثم يهز أحدهم حربته، ثم يرمي بها إلى السماء، فترجع مختضبة دما للبلاء والفتنة. فبينا هم على ذلك إذا بعث الله دودا في أعناقهم كنغف الجراد الذي يخرج في أعناقهم، فيصبحون موتى لا يسمع لهم حس. فيقول المسلمون: ألا رجل يشري نفسه فينظر ما فعل هذا العدو، قال: فيتجرد رجل منهم لذلك محتسبا لنفسه قد أظنها على أنه مقتول، فينزل، فيجدهم موتى، بعضهم على بعض، فينادي: يا معشر المسلمين: ألا أبشروا، إن الله قد كفاكم عدوكم فيخرجون من مدائنهم وحصونهم، ويسرحون مواشيهم، فما يكون لها رعي إلا لحومهم، فتشكر عنه كأحسن ما تشكر عن شيء من النبات أصابته قط".
سیدنا ابوسعید خدری رضی اللہ عنہ بیان کرتے ہیں کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ”یاجوج ماجوج کھول دیے جائیں گے اور وہ لوگوں پر نکل پڑیں گے، جیسا کہ اللہ تعالیٰ نے فرمایا: ”وہ ہر بلندی سے دوڑتے ہوئے آئیں گے۔“(سورہ انبیاء: ۹۶) وہ زمین میں پھیل جائیں گے، مسلمان ان سے بچنے کے لیے اپنے شہروں اور قلعوں میں سمٹ جائیں گے اور اپنے مویشی اپنے ساتھ لے جائیں گے۔ یاجوج ماجوج زمین کا پانی پی جائیں گے، (اور اتنا پانی پئیں گے کہ) ان کے بعض افراد ایک نہر کے پاس سے گزریں گے اور وہ اس کا سارا پانی پی جائیں گے اور نہر خشک ہو جائے گی۔ جب ان کے بعد والوں کی وہاں سے گزر ہو گا تو وہ کہیں گے کہ کسی دور میں یہاں پانی ہوتا تھا۔ جب قلعوں یا شہروں میں پناہ گزین لوگوں کے علاوہ کوئی اور انسان نہیں بچے گا (جو انہیں نظر آ سکے) تو وہ کہیں گے: یہ تھے اہل زمین، (ان کا قصہ تو تمام ہو چکا) ہم ان سے فارغ ہو گئے ہیں، اب اہل آسمان باقی ہیں۔ (ان پر غلبہ پانے کی سوچنی چاہیئے) سو ان کا ایک فرد نیزے کو قدرے زور سے حرکت دے گا اور آسمان کی طرف پھینکے گا، وہ خون آلود لوٹے گا، یہ ان کے لیے ابتلاء و آزمائش اور فتنہ و فساد کا سبب بنے گا۔ اسی حالت پر ہوں گے اچانک اللہ تعالیٰ ان کی گردنوں میں ٹڈی کی طرح کا کیڑا پیدا کر دیں گے، جس کی وجہ سے وہ سب کے سب مر جائیں اور ان کی طرف سے کوئی آہٹ سنائی نہیں دے گی۔ مسلمان کہیں گے: کیا کوئی آدمی ایسا ہے جو اپنے حق میں خطرہ مول لے کر دیکھے کہ دشمن کیا کر رہے ہیں؟ ایک آدمی اجر و ثواب کی نیت سے باہر نکلے گا، اس کو اپنے بارے میں یہی گمان ہو گا کہ وہ قتل کر دیا جائے گا۔ وہ (اپنے قلعے یا شہر سے) نیچے اترے گا اور انہیں مرا ہوا پائے گا، ان کے لاشے ایک دوسرے پر پڑے ہوں گے۔ وہ پکارے گا: مسلمانوں کی جماعت! ذرا غور سے! خوش ہو جاؤ، اللہ تعالیٰ نے تمہیں دشمنوں سے کفایت کیا ہے۔ وہ اپنے قلعوں اور شہروں سے نکلیں گے، اپنے مویشیوں کو چرائیں گے، ان کے گوشت کے علاوہ ان کا کوئی اور چارہ نہیں ہو گا، وہ گوشت کھا کر اتنے موٹے تازے ہو جائیں گے، جتنا کہ وہ بہترین چارہ کھا کر ہوتے تھے۔“
हज़रत अबु सईद ख़ुदरी रज़ि अल्लाहु अन्ह कहते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “याजूज माजूज खोल दिए जाएंगे और वे लोगों पर निकल पड़ेंगे, जैसा कि अल्लाह तआला ने फ़रमाया ! « حَتَّىٰ إِذَا فُتِحَتْ يَأْجُوجُ وَمَأْجُوجُ وَهُم مِّن كُلِّ حَدَبٍ يَنسِلُونَ » “यहाँ तक कि वह समय आजाए जब याजूज और माजूज खोल दिए जाएँगे। और वे हर ऊँची जगह से निकल पड़ेंगे।” (सूरत अल-अंबिया: 96) वे ज़मीन में फैल जाएंगे, मुसलमान उनसे बचने के लिए अपने शहरों और क़िलों में सिमट जाएंगे और अपने जानवर अपने साथ ले जाएंगे। याजूज माजूज ज़मीन का पानी पी जाएंगे, (और इतना पानी पिएंगे कि) उनके कुछ लोग एक नहर के पास से गुज़रेंगे और वे उसका सारा पानी पी जाएंगे और नहर सूख जाएगी। जब उनके बाद वालों का वहां से गुज़र होगा तो वे कहेंगे कि किसी समय में यहाँ पानी होता था। जब क़िलों या शरण लेने वाले लोगों के सिवा कोई और इन्सान नहीं बचेगा (जो उन्हें नज़र आसके) तो वे कहेंगे कि यह थे ज़मीन पर रहने वाले, हम इन से छुटकारा पाचुके हैं, अब आसमान वाले बाक़ी हैं। तो उनका एक व्यक्ति भाले को बहुत ज़ोर से हरकत देगा और आसमान की ओर फेंकेगा, वह ख़ून से भरा हुआ लौटेगा, यह उन के लिये परीक्षाएं और फ़ितनों का कारण बनेगा। उसी हालत पर होंगे अचानक अल्लाह तआला उनकी गर्दनों में टिड्डी की तरह का कीड़ा पैदा कर देगा, जिसके कारण वे सब के सब मर जाएंगे और उनकी ओर से कोई आहट सुनाई नहीं देगी। मुसलमान कहेंगे, क्या कोई आदमी है जो अपनी जान जोखिम में डालकर देखे कि दुश्मन क्या कर रहे हैं ? एक आदमी बदला और सवाब की नियत से बाहर निकले गा, उसको अपने बारे में यही गुमान होगा कि वह क़त्ल कर दिया जाएगा। वह (अपने क़िले या शहर से) नीचे उतरेगा और उन्हें मरा हुआ पाएगा, उनकी लाशें एक दूसरे पर पड़ी होंगी। वह पुकारे गा कि ए मुसलमानों ज़रा ख़ुश हो जाओ, अल्लाह तआला ने तुम्हें दुश्मनों से बचा लिया है। वे अपने क़िलों और शहरों से निकलेंगे, अपने पशुओं को चराएंगे, उनके मांस के सिवा उनका कोई और चारा नहीं होगा, वे मांस खाकर इतने मोटे ताज़े हो जाएंगे, जितना कि वे बेहतरीन चारा खाकर होते थे।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 1793
قال الشيخ الألباني: - " يفتح يأجوج ومأجوج، يخرجون على الناس كما قال الله عز وجل: * (من كل حدب ينسلون) * فيغشون الأرض وينحاز المسلمون عنهم إلى مدائنهم وحصونم، ويضمون إليهم مواشيهم، ويشربون مياه الأرض، حتى أن بعضهم ليمر بالنهر فيشربون ما فيه حتى يتركوه يبسا، حتى إن من بعدهم ليمر بذلك النهر فيقول: قد كان هاهنا ماء مرة! حتى إذا لم يبق من الناس إلا أحد في حصن أو مدينة قال قائلهم: هؤلاء أهل الأرض قد فرغنا منهم، بقي أهل السماء! قال: ثم يهز أحدهم حربته، ثم يرمي بها إلى السماء، فترجع مختضبة دما للبلاء والفتنة. فبينا هم على ذلك إذا بعث الله دودا في أعناقهم كنغف الجراد الذي يخرج في أعناقهم، فيصبحون موتى لا يسمع لهم حس. فيقول المسلمون: ألا رجل يشري نفسه فينظر ما فعل هذا العدو، قال: فيتجرد رجل منهم لذلك محتسبا لنفسه قد أظنها على أنه مقتول، فينزل، فيجدهم موتى، بعضهم على بعض، فينادي: يا معشر المسلمين: ألا أبشروا، إن الله قد كفاكم عدوكم فيخرجون من مدائنهم وحصونهم، ويسرحون مواشيهم، فما يكون لها رعي إلا لحومهم، فتشكر عنه كأحسن ما تشكر عن شيء من النبات أصابته قط ". _____________________ أخرجه ابن ماجة (4079) وابن حبان (1909) والحاكم (2 / 245 و 4 / 489 - 490) وأحمد (3 / 77) من طريق محمد بن إسحاق قال: حدثني عاصم بن عمر بن قتادة الأنصاري ثم الظفري عن محمود بن لبيد: أخبرني عبد الأشهل عن أبي سعيد الخدري قال: سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول: فذكره. وقال الحاكم : " صحيح على شرط مسلم ". ووافقه الذهبي. قلت: وهو من أوهامها أو تساهلهما، فإن ابن إسحاق إنما أخرج له مسلم في المتابعات ولم يحتج به، وفي حفظه ضعف، فالحسن حسن فقط. __________جزء : 4 /صفحہ : 402__________ لكن له شاهد من حديث أبي هريرة بإسناد صحيح عنه وقد مضى تخريجه برقم (1735) ، فهو به صحيح. ¤