- (يا ايها الناس! إن هذه الامة تبتلى في قبورها، فإذا الإنسان دفن فتفرق عنه اصحابه؛ جاءه ملك في يده مطراق فاقعده، قال: ما تقول في هذا الرجل؟ فإن كان مؤمنا؛ قال: اشهد ان لا إله إلا الله وان محمدا عبده ورسوله، فيقول: صدقت، ثم يفتح له باب إلى النار فيقول: هذا كان منزلك لو كفرت بربك؛ فاما إذ آمنت؛ فهذا منزلك؛ فيفتح له باب إلى الجنة، فيريد ان ينهض إليه، فيقول له: اسكن! ويفسح له في قبره.- (يا أيُّها النّاسُ! إن هذه الأمَّةَ تُبتلى في قبورها، فإذا الإنسان دُفنَ فتفرَّق عنه أصحابُه؛ جاءه ملكٌ في يدهِ مِطراقٍ فأقعدَه، قال: ما تقولُ في هذا الرجلِ؟ فإن كان مؤمناً؛ قال: أشهد أن لا إله إلا الله وأن محمداً عبده ورسوله، فيقولُ: صدقْتَ، ثم يُفتحُ له بابٌ إلى النار فيقول: هذا كان منزلَكَ لو كفرْتَ بربك؛ فأمّا إذ آمنتَ؛ فهذا منزلُكَ؛ فيُفتحُ له باب إلى الجنَّة، فيريدُ أن ينهض إليه، فيقول له: اسكنْ! ويُفسحُ له في قبره.
سیدنا ابوسعید خدری رضی اللہ عنہ کہتے ہیں: میں رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے ساتھ ایک جنازے میں حاضر ہوا، آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ”لوگوں! اس امت (انسانیت) کو قبروں میں آزمایا جاتا ہے، جب کسی شخص کو دفن کر دیا جاتا ہے اور اس کے ساتھی واپس چلے جاتے ہیں تو ایک فرشتہ اس کے پاس آتا ہے، اس کے ہاتھ میں کوٹنے چھیدنے کا آلہ ہوتا ہے، وہ اس شخص کو بٹھا کر پوچھتا ہے: اس آدمی کے بارے میں تیرا کیا خیال ہے؟ اگر وہ مومن ہو تو جواب دیتا ہے کہ میں گواہی دیتا ہوں کہ اللہ ہی معبود برحق ہے اور محمد ( صلی اللہ علیہ وسلم ) اس کے بندے اور رسول ہیں۔ وہ کہتا ہے: تو نے سچ کہا:۔ پھر جہنم کی طرف سے ایک دروازہ کھول دیا جاتا ہے، وہ کہتا ہے کہ دیکھ اگر تو اپنے رب کے ساتھ کفر کرتا تو یہ تیرا ٹھکانہ ہوتا۔ اب جبکہ تو ایمان لایا ہے، تیری منزل یہ ہے، اس کے لئے جنت کا دروازہ کھول دیا جاتا ہے۔ اب وہ شخص (جنت میں داخل ہونے کے لیے) اٹھنے کا ارادہ کرتا ہے، لیکن فرشتہ کہتا ہے: ٹھیر جا! پھر اس کی قبر کو وسیع کر دیتا ہے۔ اگر دفن کیا جانے والا کافر یا منافق ہو تو فرشتہ پوچھتا ہے کہ تو اس آدمی کے بارے میں کیا کہتا ہے؟ وہ جواب دیتا ہے کہ میں تو نہیں جانتا، میں نے لوگوں کو جو کچھ کہتے سنا، اسی طرح کہا تو تھا (لیکن اب میرے ذہن میں کوئی جواب نہیں ہے)۔ فرشتہ کہتا ہے: نہ تو نے سوجھ بوجھ حاصل کی، نہ تو نے پڑھا اور نہ تو نے ہدایت پائی۔ پھر جنت کی طرف سے ایک دروازہ کھول دیا جاتا ہے، وہ کہتا ہے کہ یہ تیری منزل ہوتی بشرطیکہ تو اپنے رب پر ایمان لاتا، اب جبکہ تو کافر ہے، اللہ تعالیٰ نے تجھے اس کے بدلے یہ ٹھکانہ دیا ہے، اتنے میں جہنم کی طرف سے دروازہ کھول دیتا ہے اور اس کے سر پر وہ آلہ (اس زور سے) مارتا ہے کہ جن و انس کے علاوہ ہر کوئی اس کی آواز سنتا ہے۔ یہ حدیث سن کر بعض لوگوں نے کہا: اے اللہ کے رسول! جو شخص بھی فرشتے کے ہاتھ میں وہ آلہ دیکھے گا وہ (دہشت کی وجہ سے) بے شعور سا ہو کر رہ جائے گا؟ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے جواباً یہ آیت تلاوت فرمائی: «يُثَبِّتُ اللَّـهُ الَّذِينَ آمَنُوا بِالْقَوْلِ الثَّابِتِ»(سورہ ابراھیم: ۲۷) اللہ تعالیٰ ایمان والوں کو پکی بات کے ساتھ ثابت قدم رکھتا ہے۔“
हज़रत अबु सईद ख़ुदरी रज़ि अल्लाहु अन्ह कहते हैं कि मैं एक जनाज़े में रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ था, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “लोगों, इन्सानों की क़ब्रों में परीक्षा ली जाती है, जब किसी व्यक्ति को दफ़न कर दिया जाता है और उसके साथी वापस चले जाते हैं तो एक फ़रिश्ता उसके पास आता है, उसके हाथ में कूटने छेदने का उपकरण होता है, वह उस व्यक्ति को बिठा कर पूछता है इस आदमी के बारे में तेरा क्या ख़्याल है ? यदि वह मोमिन हो तो जवाब देता है ! « أَشْهَدُ أَنْ لَا إِلَهَ إِلَّا اللهُ وَأَشْهَدُ أَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهُ وَرَسُولُهُ » “मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह ही ईश्वर है और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) उसके बंदे और रसूल हैं।” वह केहता कि है तू ने सच कहा फिर जहन्नम की ओर से एक दरवाज़ा खोल दिया जाता है, वह केहता है कि देख यदि तू अपने रब्ब के साथ कुफ़्र करता तो यह तेरा ठिकाना होता। अब जबकि तू ईमान लाया है, तेरा ठिकाना यह है, उसके लिए जन्नत का दरवाज़ा खोल दिया जाता है। अब वह व्यक्ति (जन्नत में जाने के लिये) उठने का इरादा करता है लेकिन फ़रिश्ता केहता है कि ठहर जा फिर उसकी क़ब्र को चौड़ा करदेता है। यदि दफ़न किया जाने वाला काफ़िर या मुनाफ़िक़ हो तो फ़रिश्ता पूछता है कि तू इस आदमी के बारे में क्या कहता है ? वह जवाब देता है कि मैं तो नहीं जानता, मैं ने लोगों को कुछ कहते हुए सुना तो था (लेकिन अब मेरे पास कोई जवाब नहीं है)। फ़रिश्ता कहता है, न तू ने समझदारी से काम लिया, न तू ने पढ़ा और न तू ने हिदायत पाई फिर जन्नत की ओर से एक दरवाज़ा खोल दिया जाता है, वह कहता है कि यह तेरा ठिकाना होता शर्त यह है कि तू अपने रब्ब पर ईमान लाता, अब जबकि तू काफ़िर है तो अल्लाह तआला ने तुझे इस के बदले यह ठिकाना दिया है, इतने में जहन्नम की ओर से दरवाज़ा खोल देता है और उसके सिर पर वह उपकरण (इस ज़ोर से) मारता है कि जिन्नों और इन्सानों के सिवा हर कोई उस की आवाज़ सुनता है। यह हदीस सुनकर कुछ लोगों ने कहा ऐ अल्लाह के रसूल, जो व्यक्ति भी फ़रिश्ते के हाथ में वह उपकरण देखे गा वह (डर के कारण) बेहोश हो जाएगा ? रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जवाब में यह आयत पढ़ कर सुनाई ! « يُثَبِّتُ اللَّـهُ الَّذِينَ آمَنُوا بِالْقَوْلِ الثَّابِتِ » “अल्लाह तआला ईमान वालों के पक्की बात के साथ पक्के क़दम रखता है।” (सूरत इब्राहीम: 27)
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 3394
قال الشيخ الألباني: - (يا أيُّها النّاسُ! إن هذه الأمَّةَ تُبتلى في قبورها، فإذا الإنسان دُفنَ فتفرَّق عنه أصحابُه؛ جاءه ملكٌ في يدهِ مِطراقٍ فأقعدَه، قال: ما تقولُ في هذا الرجلِ؟ فإن كان مؤمناً؛ قال: أشهد أن لا إله إلا الله وأن محمداً عبده ورسوله، فيقولُ: صدقْتَ، ثم يُفتحُ له بابٌ إلى النار فيقول: هذا كان منزلَكَ لو كفرْتَ بربك؛ فأمّا إذ آمنتَ؛ فهذا منزلُكَ؛ فيُفتحُ له باب إلى الجنَّة، فيريدُ أن ينهض إليه، فيقول له: اسكنْ! ويُفسحُ له في قبره. _____________________ وإن كان كافراً أو منافقاً؛ يقول له: ما تقولُ في هذا الرَّجلِ؟ فيقول: لا أدْري، سمعتُ النّاس يقولون شَيئاً، فيقول: لا دريْتَ ولا تليْتَ ولا اهتديْتَ! ثم يُفتحُ له بابٌ إلى الجنّة، فيقول: هذا منزلُك لو آمنْتَ بربِّك، فأما إذ كفرتَ به، فإنّ الله عزّ وجلّ أبدَلك به هذا، ويُفتحُ له باب إلى النّارِ، ثم يقمعهُ قَمْعة بالمطراقِ، يسمعُها خَلْقُ اللهِ كلّهم غيرَ الثّقلينِ. فقال بعضُ القومِ: يا رسولَ الله! ما أحد ٌيقوم عليه مَلَكٌ في يدهِ مطراقٌ إلا هَبِلَ عند ذلك؟! فقالَ رسول الله- صلى الله عليه وسلم -: (يثبتُ الله الذين آمنوا بالقول الثابت)) . أخرجه الإمام أحمد (3/3- 4) : ثنا أبو عامر: ثنا عبَّاد بن راشد عن داود بن أبي هند عن أبي نضرة عن أبي سعيد الخدري قال: شهدت مع رسول الله - صلى الله عليه وسلم - جنازة، فقال رسول الله- صلى الله عليه وسلم -: ... فذكره. وكذلك أخرجه ابن جرير في "التفسير" (13/143) ، وابن أبي عاصم في "السنة " (2/417-418/865) ، والبزار (1/412-413) من طريقين آخرين عن أبي عامر عبد الملك بن عمرو به. قلت: وهذا إسناد صحيح كما قال المنذري (4/183/10) ، وعزاه لأحمد. وقال الهيثمي (3/38) : "رواه أحمد والبزار، ورجاله رجال (الصحيح) ". قلت: وفي عباد بن راشد كلام يسير لا يضر. وقد أشار لذلك ابن كثير بقوله في "تفسيره " عقب رواية أحمد (2/533) : "وهذا إسناد لا بأس به؛ فإن عباد بن راشد التميمي روى له البخاري مقروناً، ولكن ضعفه بعضهم ". وقال الذهبي في "المغني ": " صد وق ". وكذا قال الحافظ في "التقريب "، وزاد: "وله أوهام ". __________جزء : 7 /صفحہ : 1170__________ ومن الغريب أنهما لم يشيرا إلى أنه مقرون عند البخاري، وقد صرح بذلك أصلهما "تهذيب الكمال " للحافظ المزي، بل صرح به الحافظ نفسه في "مقدمة الفتح "، بل أفاد أن له حديثاً واحداً في "الصحيح "؛ فقال بعد ذكر أقوال الأئمة فيه (ص 412) : "قلت: له في "الصحيح " حديث واحد في "تفسير سورة البقرة" بمتابعة يونس له عن الحسن البصري عن معقل بن يسار". قلت: وقوله في آخر الحديث: فقال بعض القوم ... لعلها عائشة، فقد روى البزار (1/410/868) عنها قالت: قلت: يا رسول الله! أتبتلى هذه الأمة في قبورها، فكيف وأنا امرأة ضعيفة؟! قال: (يثبت الله الذين آمنوا بالقول الثابت في الحياة الدنيا وفي الآخرة) . ******* ¤