-" إن هذه الوبرة من غنائمكم، وإنه ليس لي فيها إلا نصيبي معكم، إلا الخمس والخمس مردود عليكم، فادوا الخيط والمخيط واكبر من ذلك واصغر ولا تغلوا، فإن الغلول نار وعار على اصحابه فى الدنيا والآخرة. وجاهدوا الناس في الله تبارك وتعالى القريب والبعيد، ولا تبالوا في الله لومة لائم واقيموا حدود الله في الحضر والسفر وجاهدوا في سبيل الله، فإن الجهاد باب من ابواب الجنة عظيمة، ينجي الله تبارك وتعالى به من الغم والهم".-" إن هذه الوبرة من غنائمكم، وإنه ليس لي فيها إلا نصيبي معكم، إلا الخمس والخمس مردود عليكم، فأدوا الخيط والمخيط وأكبر من ذلك وأصغر ولا تغلوا، فإن الغلول نار وعار على أصحابه فى الدنيا والآخرة. وجاهدوا الناس في الله تبارك وتعالى القريب والبعيد، ولا تبالوا في الله لومة لائم وأقيموا حدود الله في الحضر والسفر وجاهدوا في سبيل الله، فإن الجهاد باب من أبواب الجنة عظيمة، ينجي الله تبارك وتعالى به من الغم والهم".
مقدام بن معدی کرب کندی بیان کرتے ہیں کہ وہ سیدنا عبادہ بن صامت، سیدنا ابودردا اور سیدنا حارث بن معاویہ کندی رضی اللہ عنہم کے پاس بیٹھا تھا، یہ لوگ رسول اﷲ صلی اللہ علیہ وسلم کی احادیث کا مذاکرہ کر رہے تھے۔ ابودردا نے عبادہ سے کہا: رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے وہ کلمات جو انہوں نے فلاں فلاں غزوہ میں پانچویں حصے کے بارے میں کہے تھے۔ عبادہ نے کہا: رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے انہیں نماز پڑھائی، آپ کے سامنے مال غنیمت کا ایک اونٹ تھا، سلام پھیرنے کے بعد کھڑے ہوئے، دو انگلیوں کے پوروں میں اونٹ کے جسم کے بال پکڑے اور فرمایا: ”یہ بھی تمھاری غنیمت کا حصہ ہیں، مجھے صرف میرا حصہ ملے گا، جو کہ پانچواں حصہ ہے اور وہ بھی تم میں تقسیم کر دیا جائے گا۔ لہٰذا سوئی دھاگہ اور اس سے چھوٹی بڑی چیزیں سب واپس کر دو اور خیانت نہ کرو، کیونکہ خیانت دنیا و آخرت میں خائن کے لیے عار و شنار اور عیب و رسوائی کا باعث ہو گی۔ اللہ کے لیے لوگوں سے جہاد کرنا، سفر قریب کا ہو یا بعید کا، اللہ کے بارے میں کسی ملامت کرنے والے کی ملامت کی پرواہ نہ کرنا، اللہ کی حدیں، حضر میں ہو یا سفر میں، قائم کرنا اور اللہ کے راستے میں جہاد کرنا، (یاد رہے کہ) جہاد جنت کے عظیم دروازوں میں سے ایک دروازہ ہے۔ اللہ تعالیٰ اس کے ذریعے ہر قسم کے غم و الم اور پریشانی و پشیمانی میں سے نجات دلاتا ہے۔“
मिक़्दाम बिन माअदि करिब किन्दी कहते हैं कि वह हज़रत उबादा बिन सामित, हज़रत अबु दरदा और हज़रत हारिस बिन मुआव्या किन्दी रज़ि अल्लाह अन्हुम के पास बेठा था, यह लोग रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अहादीस की चर्चा कररहे थे। अबु दरदा ने उबादा से कहा रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वह शब्द जो उन्हों ने फ़ुलां फ़ुलां ग़ज़्वह में पांचवीं भाग के बारे में कहे थे। उबादा ने कहा रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें नमाज़ पढ़ाई, आप के सामने माले ग़नीमत का एक ऊंट था सलाम फेरने के बाद खड़े हुए दो उंगलियों के पोरों में ऊंट के शरीर के बाल पकड़े और फ़रमाया ! “यह भी तुम्हारे माले ग़नीमत का भाग हैं, मुझे केवल मेरा भाग मिले गा जो कि पांचवां भाग है और वह भी तुम में बांट दिया जाएगा। इस लिए सुई धागा और इस से छोटी बड़ी चीज़ें सब वापस कर दो और ख़यानत न करो क्यूंकि ख़यानत दुनिया और आख़िरत में ख़यानत करने वाले के लिये शर्म की बात और बुराई और रुस्वाई का कारण होगी। अल्लाह के लिये लोगों से जिहाद करना, यात्रा पास की हो या दूर की अल्लाह के बारे में किसी मलामत करने वाले की मलामत की परवाह न करना, अल्लाह की हदें घर पर हो या यात्रा में लागु करना और अल्लाह के रस्ते में जिहाद करना (याद रहे कि) जिहाद जन्नत के महान दरवाज़ों में से एक दरवाज़ा है। अल्लाह तआला इस के माध्यम से हर प्रकार के ग़म और दुख और परेशानी और अफ़सोस से मुक्ति दिलाता है।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 1972
قال الشيخ الألباني: - " إن هذه الوبرة من غنائمكم، وإنه ليس لي فيها إلا نصيبي معكم، إلا الخمس والخمس مردود عليكم، فأدوا الخيط والمخيط وأكبر من ذلك وأصغر ولا تغلوا، فإن الغلول نار وعار على أصحابه فى الدنيا والآخرة. وجاهدوا الناس في الله تبارك وتعالى القريب والبعيد، ولا تبالوا في الله لومة لائم وأقيموا حدود الله في الحضر والسفر وجاهدوا في سبيل الله، فإن الجهاد باب من أبواب الجنة عظيمة، ينجي الله تبارك وتعالى به من الغم والهم ". _____________________ أخرجه أحمد (5 / 314 و 316 و 326) من طرق عن إسماعيل بن عياش عن أبي بكر بن عبد الله بن أبي مريم عن أبي سلام الأعرج عن المقدام بن معدي كرب الكندي. أنه جلس مع عبادة بن الصامت وأبي الدرداء والحارث بن معاوية الكندي، فتذاكروا حديث رسول الله صلى الله عليه وسلم فقال أبو الدرداء لعبادة: يا عبادة! كلمات رسول الله صلى الله عليه وسلم في غزوة كذا وكذا في شأن الأخماس. فقال عبادة : إن رسول الله صلى الله عليه وسلم صلى بهم في غزوة إلى بعير من المقسم، فلما سلم قام رسول الله صلى الله عليه وسلم فتناول وبرة بين أنملتيه فقال: " إن هذه من غنائمكم ... " الحديث. وهذا إسناد ضعيف، قال الهيثمي (5 / 338) : " رواه أحمد وفيه أبو بكر بن أبي مريم، وهو ضعيف ". __________جزء : 4 /صفحہ : 620__________ قلت: لكن أخرجه أحمد أيضا (5 / 326) : حدثنا يحيى بن عثمان حدثنا إسماعيل بن عياش عن سعيد بن يوسف عن يحيى بن أبي كثير عن أبي سلام نحو ذلك. هكذا ساقه عقب الإسناد الأول. وهذه متابعة قوية لابن أبي مريم عن أبي سلام! إلا أن يحيى بن أبي كثير مدلس، بل إنه لم يسمع من أبي سلام، واسمه منصور، كما قال العجلي. ثم الراوي عنه سعيد بن يوسف ضعيف كما في " التقريب " وغيره. ورواه مكحول عن أبي سلام عن أبي أمامة الباهلي عن عبادة بن الصامت بنحوه. وله عن عبادة طرق أخرى وشاهد من حديث ابن عمرو يأتي عقب هذا، فالحديث بذلك حسن على أقل الدرجات . بل هو صحيح، وقد تقدم لفظه من الطريق المشار إليها برقم (1942) . ¤