-" ما ظن نبي الله لو لقي الله عز وجل وهذه عنده؟ يعني ستة دنانير او سبعة".-" ما ظن نبي الله لو لقي الله عز وجل وهذه عنده؟ يعني ستة دنانير أو سبعة".
سیدنا ابوامامہ بن سہل رضی اللہ عنہ کہتے ہیں: ایک دن میں اور عروہ بن زبیر، سیدہ عائشہ رضی اللہ عنہا کے پاس گئے۔ انہوں نے کہا: اگر تم رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کو اس روز دیکھتے، جس دن آپ بیمار ہوئے اور میرے پاس آپ کے چھ دینار تھے۔ موسی راوی کا بیان ہے کہ چھ یا سات دینار تھے۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے مجھے ان کو خرچ کر دینے کا حکم صادر فرمایا، لیکن میں آپ صلی اللہ علیہ وسلم کی تکلیف کی وجہ سے (آپ کی خدمت میں) مصروف تھی، حتیٰ کہ اللہ تعالیٰ نے آپ صلی اللہ علیہ وسلم کو شفاء دے دی۔ پھر آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے مجھ سے ان کے بارے میں دریافت کیا اور فرمایا: ”ان چھ یا سات دیناروں کا کیا بنا؟“ میں نے کہا: بخدا! آپ کی تکلیف نے اتنا مشغول کر دیا کہ میں ان کو خرچ نہ کر سکی۔ پھر آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے وہ دینار منگوائے اور اپنی ہتھیلی پر رکھے اور فرمایا: ”اللہ کے نبی کا (اپنے رب کے بارے میں) کیا گمان ہو گا، اگر وہ اس کو اس حال میں ملے کہ یہ اس کے پاس ہوں۔“ یعنی یہ چھ یا ساتھ دینار۔
हज़रत अबु उमामह बिन सहल रज़ि अल्लाहु अन्ह कहते हैं कि एक दिन मैं और उरवह बिन ज़ुबैर, हज़रत आयशा रज़ि अल्लाहु अन्हा के पास गए। उन्हों ने कहा, अगर तुम रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को उस दिन देखते, जिस दिन आप बीमार हुए और मेरे पास आप के छे दीनार थे। मूसा रावी का कहना है कि छे या सात दीनार थे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे उनको ख़र्च कर देने का हुक्म किया, लेकिन मैं आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तकलीफ़ के कारण आप की सेवा में लगी हुई थी, यहां तक कि अल्लाह तआला ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को शिफ़ा देदी। फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझ से उनके बारे में पूछा और फ़रमाया ! “उन छे या सात दीनारों का क्या बना ?” मैं ने कहा अल्लाह की क़सम आप की तकलीफ़ के कारण आप की सेवा में ऐसे लगी कि मैं उनको ख़र्च न कर सकी। फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वे दीनार मंगवाए और अपनी हथेली पर रखे और फ़रमाया ! “अल्लाह के नबी का (अपने रब्ब के बारे में) क्या गुमान होगा, यदि वह उस से इस हाल में मिले कि ये उस के पास हों।” यानी ये छे या साथ दीनार।
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 1014
قال الشيخ الألباني: - " ما ظن نبي الله لو لقي الله عز وجل وهذه عنده؟ يعني ستة دنانير أو سبعة ". _____________________ أخرجه أحمد (6 / 104) عن موسى بن جبير عن أبي أمامة بن سهل قال: " دخلت أنا وعروة بن الزبير يوما على عائشة، فقالت: لو رأيتما نبي الله صلى الله عليه وسلم ذات يوم، في مرض مرضه، قالت: وكان له عندي ستة دنانير - قال موسى : أو سبعة - قالت: فأمرني نبي الله صلى الله عليه وسلم أن أفرقها، قالت: فشغلني وجع نبي الله صلى الله عليه وسلم حتى عافاه الله، قالت: ثم سألني عنها ؟ فقال: ما فعلت الستة - قال: أو السبعة -؟ قلت: لا والله، لقد كان شغلني وجعك، قالت: فدعا بها، ثم صفها في كفه، فقال ... فذكره. (انظر الاستدراك رقم 12 / 4) . قلت: وهذا إسناد حسن، رجاله ثقات رجال الشيخين غير موسى هذا، وقد ذكره ابن حبان في " الثقات " وقال: " كان يخطىء ويخالف ". قلت: وقد روى عنه جماعة من الثقات، ولم يذكر فيه ابن أبي حاتم (4 / 1 / 139) جرحا ولا تعديلا، وقال الحافظ في " التقريب ": " مستور ". قلت: فمثله حسن الحديث عندي إذا لم يخالف. ولاسيما وقد تابعه محمد ابن عمرو عن أبي سلمة عن عائشة به نحوه. أخرجه أحمد (6 / 182) وابن سعد في " الطبقات " (2 / 238) . وله عدة طرق أخرى وشواهد، فالحديث صحيح. (انظر الاستدراك رقم 12 / 19) . ¤