”اے اللہ! ہم تیری ہی عبادت کرتے ہیں، اور تیرے لئے ہی نماز پڑھتے اور سجدہ کرتے ہیں، تیری طرف ہی ہم دوڑتے ہیں اور جلدی کرتے ہیں، تیری رحمت کی امید کرتے ہیں اور تیرے عذاب سے ڈرتے ہیں، یقیناً تیرا عذاب کافروں کو ملنے والا ہے، اے اللہ! بے شک ہم تجھ سے مدد طلب کرتے ہیں اور بخشش مانگتے ہیں، تیری اچھی تعریف کرتے ہیں، تیرا کفر نہیں کرتے، ہم تجھ پر ایمان لاتے ہیں اور تیرے لئے کبھی جھکتے ہیں، اور جو تجھ سے کفر کرتا ہے ہم اس سے علیحدہ ہوتے ہیں۔“[حسن بغير هذا لسياق، السنن الكبري للبيهقي: 211/2 و فى متنه تقديم و تاخير]
“ऐ अल्लाह ! हम तेरी ही पूजा करते हैं, और तेरे लिए ही नमाज़ पढ़ते और सज्दा करते हैं, तेरी तरफ़ ही हम दौड़ते हैं और जल्दी करते हैं, तेरी दया की आशा करते हैं और तेरी सज़ा से डरते हैं, बेशक तेरी सज़ा तेरा इन्कार करने वालों (काफ़िरों) को मिलने वाला है, ऐ अल्लाह ! बे शक हम तुझ से सहायता की मांग करते हैं और क्षमा चाहते हैं, तेरी अच्छी ताअरीफ़ करते हैं, तेरा इन्कार (कुफ़्र) नहीं करते, हम तुझ पर ईमान लाते हैं और तेरे लिए कभी झुकते हैं, और जो तुझ से इन्कार (कुफ़्र) करता है हम उस से अलग हो जाते हैं ।” [حسن بغير هذا لسياق, अलसुनन अलकिब्री लिलबहीक़ी: 211/2 و فى متنه تقديم و تاخير]