الٰھم اهدني في من هديت، وعافني في من عافيت، وتولني في من توليت، وبارك لي فيما اعطيت، وقني شر ما قضيت، فانك تقضي ولا يقضى عليك، وإنه لا يذل من واليت، ولا يعز من عاديت، تباركت ربنا وتعاليت الّٰھُمَّ اهْدِنِي فِي مَنْ هَدَيْتَ، وَعَافِنِي فِي مَنْ عَافَيْتَ، وَتَوَلَّنِي فِي مَنْ تَوَلَّيْتَ، وَبَارِكْ لِي فِيمَا أَعْطَيْتَ، وَقِنِي شَرَّ مَا قَضَيْتَ، فَاِنَّكَ تَقْضِي وَلَا يُقْضَى عَلَيْكَ، وَإِنَّهُ لَا يَذِلُّ مَنْ وَالَيْتَ، وَلَا يَعِزُّ مَنْ عَادَيْتَ، تَبَارَكْتَ رَبَّنَا وَتَعَالَيْتَ
”اے اللہ! مجھے ان لوگوں میں ہدایت دے دے جنہیں تو نے ہدایت دی ہے، اور ان لوگوں میں عافیت دے دے جنہیں تو نے عافیت دی ہے، اور لوگوں میں میرا والی بن جن کا تو والی بنا ہے، جو فیصلہ تو نے کیا ہے اس کے شر سے مجھے بچا، کیونکہ تو فیصلہ کرتا ہے اور تیرے خلاف کوئی فیصلہ نہیں کر سکتا، جس کا تو نگہبان بن جائے وہ ذلیل نہیں ہو سکتا، اور جس سے تو دشمنی رکھے وہ معزز نہیں ہو سکتا، تو بابرکت ہے اے ہمارے رب، اور بلند ہے۔“[صحيح، سنن ابي داؤد: 1425، سنن ترمذي: 4640، صحيح ابن خزيمه: 1095، سنن نسائي: 1746]
“ऐ अल्लाह ! मुझे भी उन मार्गदर्शन पाने वाले लोगों में से करदे जिन का तू ने मार्गदर्शन किया है, और मुझे भी उन भलाई पाने वाले लोगों में से करदे जिन्हें तू ने भलाई दी है, और जिन लोगों का तू दोस्त बना है उन ही लोगों के साथ मेरा दोस्त भी बन जा और जो कुछ तू ने मुझे दिया है उस में मेरे लिए बरकत डाल दे, जो फ़ैसला तू ने किया है उस की बुराई से मुझे बचा, क्यूंकि तू ही फ़ैसला करता है और तेरे विरुद्ध कोई फ़ैसला नहीं कर सकता, जिस का तू रक्षक बन जाए वह रुसवा नहीं हो सकता, और जिस से तू दुश्मनी रखे वह सम्मान पाने वाला नहीं हो सकता, तू बरकत वाला है ऐ हमारे रब, और सबसे महान है ।” [सहीह, सुनन अबी दाऊद: 1425, सुनन त्रिमीज़ी: 4640, सहीह इब्न खुज़ैमाह: 1095, सुनन निसाई: 1746]