اللٰهم عالم الغيب والشهادة، فاطر السموات، والارض، رب كل شيء والملائكة اشهد ان لا إلٰه إلا انت، اعوذ بك من شر انفسى، ومن شر الشيطان، وشركه، وان اقترف سوءا على انفسى او اجره إلى مسلم اللَٰهُمَّ عَالِمَ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ، فَاطِرَ السَّمَوَاتِ، وَالْأَرْضِ، رَبَّ كُلِّ شَيْءٍ وَالْمَلَائِكَةُ اَشْهَدُ اَنَ لَّا إِلٰهَ إِلَّا أَنْتَ، اَعُوْذُ بِكَ مِنْ شَرِّ أَنْفُسِىْ، وَمِنْ شَرِّ الشَّيْطَانِ، وَشِرْكِهِ، وَأَنْ اَقْتَرِفَ سُوْءًا عَلَى أَنْفُسِىْ أَوْ اَجُرَّهُ إِلَى مُسْلِمٍ
”اے اللہ! غیب اور حاضر کو جاننے والے، آسمانوں اور زمین کو نئے سرے سے پیدا کرنے والے، ہر چیز کے رب اور مالک میں گواہی دیتا ہوں کہ تیرے علاوہ کوئی سچا معبود نہیں، میں اپنے نفس کے شر اور شیطان کے شر اور اس کے شرک سے تیری پناہ میں آتا ہوں اور اس بات سے تیری پناہ میں آتا ہوں کہ میں اپنے نفس پر برائی کا ارتکاب کروں یا اسے کسی مسلمان کی طرف کھینچ لاؤں۔“[اسناده ضعيف، سنن ابي داؤد: 5083]
“ऐ अल्लाह ! छुपे हुए और सामने वाले को जानने वाले, आसमानों और ज़मीन को नए सिरे से पैदा करने वाले, हर चीज़ के रब और मालिक मैं गवाही देता हूँ कि तेरे सिवा कोई सच्चा ईश्वर नहीं, मैं अपनी जान की बुराई और शैतान की बुराई और उस के शिर्क से तेरी शरण में आता हूँ और इस बात से तेरी शरण में आता हूँ कि मैं अपनी जान पर बुराई का बोझ डालूं या उसे किसी मुसलमान की ओर खीँच लाऊँ ।” [असनादा ज़ईफ़, सुनन अबी दाऊद: 5083]