-" هي رخصة ـ يعني الفطر في السفر ـ من الله، فمن اخذ بها فحسن، ومن احب ان يصوم، فلا جناح عليه".-" هي رخصة ـ يعني الفطر في السفر ـ من الله، فمن أخذ بها فحسن، ومن أحب أن يصوم، فلا جناح عليه".
سیدنا حمزہ بن عمرو اسلمی رضی اللہ عنہ کہتے ہیں: اے اللہ کے رسول! میں سفر میں روزہ رکھنے کی طاقت رکھتا ہوں، (اگر میں ایسے کروں تو) کیا مجھ پر کوئی گناہ ہو گا؟ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے جواباً فرمایا: ”یہ اللہ تعالیٰ کی طرف سے رخصت ہے، جو اس کو قبول کرے گا، سو اچھی بات ہو گی اور جو روزہ رکھنا چاہے، اس پر کوئی گناہ نہیں۔“
हज़रत हमज़ह बिन अमरो अस्लमी रज़ि अल्लाहु अन्ह कहते हैं ! ऐ अल्लाह के रसूल, मैं यात्रा में रोज़ा रखने की शक्ति रखता हूँ, (अगर मैं ऐसा करूँ तो) क्या मुझ पर कोई पाप होगा ? रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जवाब में फ़रमाया ! “यह अल्लाह तआला की ओर से छूट है, जो उस को स्वीकार करेगा, तो अच्छी बात होगी और जो रोज़ा रखना चाहे, उस पर कोई पाप नहीं।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 192
قال الشيخ الألباني: - " هي رخصة ـ يعني الفطر في السفر ـ من الله، فمن أخذ بها فحسن، ومن أحب أن يصوم، فلا جناح عليه ". _____________________ رواه مسلم (3 / 145) والنسائي (1 / 317) والبيهقي (4 / 243) من طريق أبي مراوح عن حمزة بن عمرو الأسلمي رضي الله عنه أنه قال: " يا رسول الله! أجد بي قوة على الصيام في السفر، فهل علي جناح؟ فقال رسول الله صلى الله عليه وسلم ... " فذكره. قال مجد الدين بن تيمية في " المنتقى ": " وهو قوي الدلالة على فضيلة الفطر ". قلت: ووجه الدلالة قوله في الصائم " فلا جناح عليه "، أي: لا إثم عليه، فإنه يشعر بمرجوحية الصيام كما هو ظاهر، لاسيما مع مقابلته بقوله في الفطر " فحسن "، لكن هذا الظاهر غير مراد عندي، والله أعلم، وذلك لأن رفع الجناح في نص ما عن أمر ما، لا يدل إلا على أنه يجوز فعله وأنه لا حرج على فاعله، وأما هل هذا الفعل مما يثاب عليه فاعله أو لا، فشيء آخر لا يمكن أخذه من النص ذاته بل من نصوص أخرى خارجة عنه، وهذا شيء معروف عند من تتبع الأمور التي ورد رفع الجناح عن فاعلها وهي على قسمين: أ - قسم منها يراد بها رفع الحرج فقط مع استواء الفعل والترك، وهذا هو الغالب، ومن أمثلته قوله صلى الله عليه وسلم : " خمس من الدواب ليس على المحرم في قتلهن جناح: الغراب، والحدأة، والفأرة والعقرب، والكلب العقور ". ¤