سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر

سلسله احاديث صحيحه
सिलसिला अहादीस सहीहा
جنت اور جہنم
जन्नत और जहन्नम
2641. کافر کی جہنم سے آزاد ہونے کی امید کرنا
“ काफ़िरों की जहन्नम से मुक्त होने की आशा ”
حدیث نمبر: 4022
Save to word مکررات اعراب Hindi
-" يقول الله لاهون اهل النار عذابا يوم القيامة: يا ابن آدم! كيف وجدت مضجعك؟ فيقول: شر مضجع، فيقال له: لو كانت لك الدنيا وما فيها اكنت مفتديا بها؟ فيقول: نعم، فيقول: كذبت قد اردت منك اهون من هذا، وانت في صلب" وفي رواية: ظهر" آدم ان لا تشرك بي شيئا ولا ادخلك النار، فابيت إلا الشرك، فيؤمر به إلى النار".-" يقول الله لأهون أهل النار عذابا يوم القيامة: يا ابن آدم! كيف وجدت مضجعك؟ فيقول: شر مضجع، فيقال له: لو كانت لك الدنيا وما فيها أكنت مفتديا بها؟ فيقول: نعم، فيقول: كذبت قد أردت منك أهون من هذا، وأنت في صلب" وفي رواية: ظهر" آدم أن لا تشرك بي شيئا ولا أدخلك النار، فأبيت إلا الشرك، فيؤمر به إلى النار".
سیدنا انس رضی اللہ عنہ سے روایت ہے کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ‏‏‏‏قیامت والے دن اللہ تعالیٰ آگ کے سب سے ہلکے عذاب میں مبتلا آدمی سے پوچھے گا: ابن آدم! کیسی منزل ہے؟ وہ کہے گا: بدترین منزل ہے۔ اسے کہا جائے گا: اگر تیری ملکیت میں دنیا و مافیہا ہوتا تو کیا تو (‏‏‏‏ اس عذاب سے چھٹکارا حاصل کرنے کے لیے) اس فدیے میں دے دیتا؟ وہ کہے گا: جی ہاں۔ اللہ تعالیٰ کہے گا: تو جھوٹا ہے، جب تو اپنے باپ آدم کی پیٹھ میں تھا، تو میں نے تجھ سے اس سے آسان چیز کا مطالبہ کیا تھا کہ میرے ساتھ کسی کو شریک نہ ٹھہرانا، میں تجھے آگ میں داخل ہونے سے بچا لوں گا۔ لیکن تو نے اس بات کا انکار کر دیا تھا اور میرے ساتھ شرک کیا تھا۔ پھر اسے جہنم کی طرف لے جانے کا حکم دے دیا جائے گا۔
हज़रत अनस रज़ि अल्लाहु अन्ह से रिवायत है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “क़यामत वाले दिन अल्लाह तआला आग के सबसे हल्के अज़ाब वाले आदमी से पूछेगा कि आदम की औलाद, कैसा ठिकाना है ? वह कहेगा कि सबसे बुरा ठिकाना है। उस से कहा जाएगा, यदि तू दुनिया और जो कुछ उस में है उसका मालिक होता तो क्या तू (इस अज़ाब से छुटकारा पाने के लिये) उसे जुर्माने के तोर पर दे देता ? वह कहेगा कि जी हाँ। अल्लाह तआला कहेगा कि तू झूठा है, जब तू अपने पिता आदम की पीठ में था, तो में ने तुझ से इस से आसान चीज़ मांगी थी कि मेरे साथ किसी को शरीक (भागीदार) न ठहराना, मैं तुझे आग में जाने से बचा लूंगा। लेकिन तू ने इस बात का इन्कार कर दिया था और मेरे साथ शिर्क किया था। फिर उसे जहन्नम की ओर ले जाने का हुक्म दे दिया जाएगा।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 172

قال الشيخ الألباني:
- " يقول الله لأهون أهل النار عذابا يوم القيامة: يا ابن آدم! كيف وجدت مضجعك؟ فيقول: شر مضجع، فيقال له: لو كانت لك الدنيا وما فيها أكنت مفتديا بها؟ فيقول: نعم، فيقول: كذبت قد أردت منك أهون من هذا، وأنت في صلب " وفي رواية: ظهر " آدم أن لا تشرك بي شيئا ولا أدخلك النار، فأبيت إلا الشرك ، فيؤمر به إلى النار ".
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‏‏‏‏رواه البخاري (2 / 333 و 4 / 239، 242) ومسلم (8 / 134، 135) وأحمد
‏‏‏‏(3 / 127، 129) وكذا أبو عوانة وابن حبان في صحيحيهما كما في " الجامع
‏‏‏‏الكبير " (3 / 95 / 1) من طريق أبي عمران الجوني - والسياق له عند مسلم
‏‏‏‏وقتادة، كلاهما عن أنس عن النبي صلى الله عليه وسلم .
‏‏‏‏وله طريق ثالث: عن ثابت عن أنس به نحوه.
‏‏‏‏عزاه الحافظ في " الفتح " (6 / 349) لمسلم والنسائي، ولم أره عند مسلم،
‏‏‏‏وأما النسائي، فالظاهر أنه يعني " السنن الكبرى " له والله أعلم.
‏‏‏‏قوله: (فيقول: كذبت) قال النووي:
‏‏‏‏" معناه لو رددناك إلى الدنيا لما افتديت لأنك سئلت أيسر من ذلك، فأبيت فيكون
‏‏‏‏من معنى قوله تعالى: (ولو ردوا لعادوا لما نهوا عنه، وإنهم لكاذبون) ،
‏‏‏‏وبهذا
‏‏‏‏__________جزء : 1 /صفحہ : 332__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏يجتمع معنى هذا الحديث مع قوله تعالى: (لو أن لهم ما في الأرض جميعا
‏‏‏‏ومثله معه لافتدوا به) .
‏‏‏‏قوله: (قد أردت منك) أي أحببت منك، والإرادة في الشرع تطلق ويراد بها ما
‏‏‏‏يعم الخير والشر والهدى والضلال كما في قوله تعالى (ومن يرد الله أن يهديه
‏‏‏‏يشرح صدره للإسلام، ومن يرد أن يضله يجعل صدره ضيقا حرجا كأنما يصعد في
‏‏‏‏السماء) . وهذه الإرادة لا تتخلف. وتطلق أحيانا ويراد بها ما يرادف الحب
‏‏‏‏والرضا، كما في قوله تعالى (يريد الله بكم اليسر، ولا يريد بكم العسر) ،
‏‏‏‏وهذا المعنى هو المراد من قوله تعالى في هذا الحديث (أردت منك) أي أحببت
‏‏‏‏والإرادة بهذا المعنى قد تتخلف، لأن الله تبارك وتعالى لا يجبر أحدا على
‏‏‏‏طاعته وإن كان خلقهم من أجلها (فمن شاء فليؤمن، ومن شاء فليكفر) ، وعليه
‏‏‏‏فقد يريد الله تبارك وتعالى من عبده ما لا يحبه منه. ويحب منه ما لا يريده،
‏‏‏‏وهذه الإرادة يسميها ابن القيم رحمه الله تعالى بالإرادة الكونية أخذا من قوله
‏‏‏‏تعالى (إنما أمره إذا أراد شيئا أن يقول له: كن فيكون) ، ويسمى الإرادة
‏‏‏‏الأخرى المرادفة للرضا بالإرادة الشرعية، وهذا التقسيم، من فهمه انحلت له
‏‏‏‏كثير من مشكلات مسألة القضاء والقدر، ونجا من فتنة القول بالجبر أو الاعتزال
‏‏‏‏وتفصيل ذلك في الكتاب الجليل " شفاء
‏‏‏‏__________جزء : 1 /صفحہ : 333__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏العليل في القضاء والقدر والحكمة
‏‏‏‏والتعليل " لابن القيم رحمه الله تعالى.
‏‏‏‏قوله (وأنت في صلب آدم) .
‏‏‏‏قال القاضي عياض:
‏‏‏‏" يشير بذلك إلى قوله تعالى (وإذ أخذ ربك من بني آدم من ظهورهم ذرياتهم)
‏‏‏‏الآية، فهذا الميثاق الذي أخذ عليهم في صلب آدم، فمن وفى به بعد وجوده في
‏‏‏‏الدنيا فهو مؤمن، ومن لم يوف به فهو كافر، فمراد الحديث: اردت منك حين أخذت
‏‏‏‏الميثاق، فأبيت إذ أخرجتك إلى الدنيا إلا الشرك ". ذكره في " الفتح ". ¤


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