سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر

سلسله احاديث صحيحه
सिलसिला अहादीस सहीहा
علم سنت اور حدیث نبوی
सुन्नतों की जानकारी और नबवी हदीसें
209. حدیث نبوی حجت ہے
“ रसूल अल्लाह ﷺ की हदीसें दलील होती हैं ”
حدیث نمبر: 316
Save to word مکررات اعراب Hindi
- (قد اختلفتم وانا بين اظهركم، وانتم بعدي اشد اختلافا).- (قدِ اختلفتُم وأنا بين أظهُركم، وأنتُم بعدِي أشدُ اختلافاً).
سیدنا حسین بن علی رضی اللہ عنہ سے روایت ہے، وہ بیان کرتے ہیں کہ نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم نے ابن صیاد کے لئے لفظ دخان چھپایا، پھر اس سے اس کے بارے میں سوال کیا۔ اس نے لفظ دخ کہہ کر جواب دیا۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ذلیل ہو جا، تو ہرگز اپنے درجے (اور حیثیت) سے آگے نہیں بڑھ سکے گا۔ جب وہ چلا گیا تو آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے پوچھا: اس نے کیا جواب دیا تھا؟ بعض نے کہا: اس نے لفظ دخ کہا:، جبکہ بعض نے کہا: کہ اس نے لفظ زخ کہا۔ نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: تم میری موجودگی میں اختلاف میں پڑ گئے ہو اور میرے بعد بہت زیادہ اختلاف کرنے والے ہو گے۔
हज़रत हुसैन बिन अली रज़ि अल्लाहु अन्ह से रिवायत है, वह कहते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इब्न सय्याद के लिए शब्द “दुख़ान” छुपाया, फिर उस से इस के बारे में सवाल किया। उस ने शब्द “दख़” कह कर जवाब दिया। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “ज़लील हो जा, तू हरगिज़ अपने दर्जे (और स्थिति) से आगे नहीं बढ़ सके गा।” जब वह चला गया तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा ! “उस ने क्या जवाब दिया था ?” कुछ ने कहा ! उस ने शब्द “दख़” कहा !, कुछ ने कहा ! कि उस ने शब्द “ज़ख़” कहा। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “तुम मेरे सामने ही मतभेद में पड़ गए हो और मेरे बाद बहुत ज़्यादा मतभेद करने वाले होगे।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 3256

قال الشيخ الألباني:
- (قدِ اختلفتُم وأنا بين أظهُركم، وأنتُم بعدِي أشدُ اختلافاً) .
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‏‏‏‏أخرجه عبد الرزاق في"المصنف " (11 /389/20818) ، ومن طريقه:
‏‏‏‏الطبراني في "المعجم الكبير" (3/146) عن معمر عن الزهري عن سنان بن أبي سنان أنه سمع حسين بن علي يحدث:
‏‏‏‏أن النبي - صلى الله عليه وسلم -خبأ لابن صياد (دخاناً) ، فسأله عما خبأ له؟ فقال: دخ. فقال:
‏‏‏‏"اخسأ؟ فلن تعدو قدرك ".
‏‏‏‏فلما ولى قال النبي - صلى الله عليه وسلم -:
‏‏‏‏"ماقال؟ ".
‏‏‏‏فقال بعضهم:
‏‏‏‏دخ. وقال بعضهم:
‏‏‏‏بل قال: زخ (¬1)
‏‏‏‏. فقال النبي - صلى الله عليه وسلم -: ... فذكره.
‏‏‏‏قلت: وهذا إسناد صحيح.
‏‏‏‏¬
‏‏‏‏__________
‏‏‏‏(¬1) الأصل (ريح) ! وقال المعلق عليه: في "الكنز"من "طب ": "ذخ ". قلت: وهو قريب مما أثبته أخذاً من روايتي الطبراني. والله أعلم.
‏‏‏‏__________جزء : 7 /صفحہ : 771__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏ثم رواه الطبراني (2909) من طريق عبد الله بن صالح: حدثني الليث:
‏‏‏‏حدثني عُقيل [عن] ابن شهاب به. وقال الهيثمي (8/5) :
‏‏‏‏"رواه الطبراني بإسنادين، ورجال أحدهما رجال الصحيح".
‏‏‏‏وكأنه يعني الأول، والثاني كذلك عندي لولا أن عبد الله بن صالح فيه
‏‏‏‏ضعف من قبل حفظه، ولكنه ممن يستشهد به، فيزداد الحديث به قوة على قوة. واعلم أن أحاديث ابن صياد وسؤال النبي - صلى الله عليه وسلم - إياه عن (الدخان) وعجزه عن الجواب كثيرة، وبعضها في "الصحيح " و"السنن "، فانظر: "المشكاة" (5494) ، و"صحيح سنن أبي داود" (الملاحم) ، وليس هذا فيها، وإنما خرجته هنا لأمرين: الأول: لما فيه من الزيادة عليها من سؤاله - صلى الله عليه وسلم - أصحابه عما قال ابن صياد، ورده - صلى الله عليه وسلم - عليهم بقوله: "قد اختلفتم ... ".
‏‏‏‏والآخر: أنني أردت أن أذكر به أولئك الغافلين الذين ينسبون إلى الدين ما ليس منه، فيقولون: إن النبي - صلى الله عليه وسلم - قال: "اختلاف أمتي رحمة " أو: "اختلاف أصحابي لكم رحمة"، وغير ذلك مما بينت وضعه في محله، ولهذا فهم يقرون الاختلاف الشديد بين المذاهب ويتخذونه ديناً، خلافاً للكتاب والسنة كما بينه العلماء- رحمهم الله تعالى-، ويغلو بعض أولئك فيزعم أن لكل قول من تلك الأقوال المتناقضة دليلاً من السنة؛ كخروج الدم مثلاً، فيتخيلون أن النبي - صلى الله عليه وسلم - سئل مرة عنه، فأجاب بأنه ينقض الوضوء، وسئل مرة أخرى فأجاب بأنه لا ينقض! ونحو ذلك من التخيلات التي لا أصل لها في السنة، وينشدون بهذه المناسبة قول (بُوصيريِّهم) في مدح النبي - صلى الله عليه وسلم -:
‏‏‏‏وكُلُّهمِ مِن رسُولِ اللهِ مُلتمِس...................
‏‏‏‏__________جزء : 7 /صفحہ : 772__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏وغير ذلك من الأقوال التي لم يقلها عالم من قبل.
‏‏‏‏فلعل في أولئك الغافلين من يتنبه من غفلته، ويعود إلى رشده حين يرون النبي - صلى الله عليه وسلم -لا يرضى من الصحابة- رضي الله عنهم- اختلافهم في تحديد ما قاال ابن صياد؛ هل هو (الدُّخ) أو (الزخ) ؟ مع أن مثل هذا الاختلاف ليس له علاقة بالدين مطلقاً كما هو ظاهر، لعلهم حين يتنبهون لهذا يتبين لهم أنه - صلى الله عليه وسلم - لا يرضى منهم الاختلاف في الدين ولا يقره من باب أولى.
‏‏‏‏فالحق أن الخلاف- وهو الذي يسميه ابن تيمية- رحمه الله- اختلاف تضاد-
‏‏‏‏إنما هو نقمة وليس برحمة.
‏‏‏‏وحسب المسلم البصير في دينه أن يعتذر عن المختلفين بعذر معقول، ويعتقد بأنهم جميعاً مأجورون على التفصيل الوارد في الحديث. أما أن يقر الاختلاف نفسه ويدافع عنه، بدعوى الدفاع عن الأئمة، كما يعلن ذلك بعضهم في بعض الإذاعات الإسلامية، فذلك من التدليس على الناس، والخلط بين الحق والباطل. نسأل الله السلامة في ديننا وعقولنا. ¤


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