-" لو تدومون على ما تكونون عندي في الخلاء لصافحتكم الملائكة حتى تظلكم باجنحتها عيانا، ولكن ساعة وساعة".-" لو تدومون على ما تكونون عندي في الخلاء لصافحتكم الملائكة حتى تظلكم بأجنحتها عيانا، ولكن ساعة وساعة".
سیدنا انس رضی اللہ عنہ کہتے ہیں کہ آپ صلی اللہ علیہ وسلم کے صحابہ نے کہا: اے اللہ کے رسول! جب ہم آپ کے پاس ہوتے ہیں تو ہمیں اپنے آپ میں پسندیدہ صفات نظر آتی ہیں، لیکن جب ہم اپنے اہل و عیال کی طرف لوٹتے ہیں اور ان میں مل جل کر رہتے ہیں تو خود کو گنہگار سمجھتے ہیں۔ نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ”اگر تم اپنی خلوتوں میں اسی حالت پر قائم رہو جس پر میرے ہاں ہوتے ہو تو فرشتے تم سے مصافحہ کریں گے اور اپنے پروں سے تم پر اس طرح سایہ کریں گے کہ ہر کوئی دیکھ سکے گا۔ (دراصل حالات بدلتے رہتے ہیں) کبھی یہ اور کبھی وہ۔“
हज़रत अनस रज़ि अल्लाहु अन्ह कहते हैं कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सहाबा ने कहा, ऐ अल्लाह के रसूल जब हम आप के पास होते हैं तो हमें अपने आप में पसंदीदा विशेषताएँ नज़र आती हैं, लेकिन जब हम अपने परिवार और रिश्तेदारों की ओर लौटते हैं और उन में मिल जुल कर रहते हैं तो ख़ुद को पापी समझते हैं। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “यदि तुम अपने अकेलेपन में इसी हालत पर रहो जिस पर मेरे हाँ होते हो तो फ़रिश्ते तुम से हाथ मिलाया करेंगे और अपने परों से तुम पर इस तरह छाया करेंगे कि हर कोई देख सके गा। (असल में हालात बदलते रहते हैं) कभी यह और कभी वह।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 1965
قال الشيخ الألباني: - " لو تدومون على ما تكونون عندي في الخلاء لصافحتكم الملائكة حتى تظلكم بأجنحتها عيانا، ولكن ساعة وساعة ". _____________________ أخرجه أبو يعلى (2 / 786) : حدثنا محمد حدثنا عبد الرزاق أنبأنا معمر عن قتادة عن أنس: قال أصحاب النبي صلى الله عليه وسلم : يا رسول الله إنا إذا كنا عندك رأينا في أنفسنا ما نحب، وإذا رجعنا إلى أهلينا فخالطناهم أنكرنا أنفسنا، فقال النبي صلى الله عليه وسلم ... فذكره. قلت: وهذا إسناد صحيح، رجاله ثقات رجال الشيخين غير محمد هذا، وهو ابن مهدي الأيلي، قال ابن أبي حاتم (4 / 1 / 106) : " روى عن أبي داود الطيالسي ، روى عنه أبو زرعة رحمه الله ". قلت: وشيوخ أبي زرعة ثقات، فالإسناد صحيح. ثم رأيت ابن حبان قد أخرجه ( 2493) من طريق أبي قديد عبيد الله بن فضالة حدثنا عبد الرزاق به. وهذه متابعة قوية لابن مهدي هذا، فإن ابن فضالة ثقة ثبت كما في " التقريب ". وللحديث شاهد من رواية حنظلة الأسيدي مضى برقم (1948) . ¤