“ हज्ज के वाजिब होने और उसकी फ़ज़ीलत के बारे में ” |
1 |
769 |
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“ अल्लाह तआला ने ( सूरत अल-हज्ज में ) कहा कि " लोग अपने लाभ प्राप्त करने के लिए, दूर-दूर से, पैदल और दुबले ऊंटों पर आपके पास आएंगे " |
1 |
770 |
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“ सवारी पर सवार होकर हज्ज पर जाना सुन्नत है ” |
1 |
771 |
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“ हज्ज मबरूर की फ़ज़ीलत ” |
2 |
772 سے 773 |
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“ यमन वाले एहराम कहाँ से बाँधें ? ” |
1 |
774 |
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“ ज़ुल-हुलैफ़ा के मैदान में नमाज़ पढ़ना ” |
1 |
775 |
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“ रसूल अल्लाह ﷺ शजरा के रस्ते से हज्ज के लिए गए थे ” |
1 |
776 |
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“ रसूल अल्लाह ﷺ ने कहा कि अक़ीक़ नामक घाटी एक मुबारक घाटी है ” |
2 |
777 سے 778 |
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“ यदि कपड़ों पर ख़ुश्बू लगी हो तो एहराम पहनने से पहले उन्हें तीन बार धोना चाहिए ” |
1 |
779 |
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“ एहराम बाँधते समय ख़ुश्बू कैसे लगाएं ? और जब वह एहराम पहनना चाहे, तो उसे क्या पहनना चाहिए ? ” |
1 |
780 |
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“ जिसने बालों को जमाकर एहराम बँधा ” |
1 |
781 |
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“ मस्जिद ज़ुल-हुलैफ़ा के पास ( एहराम बँधाकर ) लब्बेक पुकारना सुन्नत है ” |
1 |
782 |
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“ हज्ज में ( अकेले ) या किसी के साथ सवारी करना ” |
1 |
783 |
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“ महरम को किस तरह के कपड़े पहनने चाहिए ? ” |
1 |
784 |
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“ तल्बिया यानि लब्बेक कैसे कहते हैं ? ” |
1 |
785 |
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“ लब्बेक कहने से पहले सवारी करते समय तहमीद और तस्बीह और तकबीर कहना मसनून है ” |
1 |
786 |
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“ क़िबले की ओर मुंह करके एहराम बाँधना मसनून है ” |
1 |
787 |
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“ घाटी में उतरते समय तलबिया कहना ” |
1 |
788 |
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“ जिस ने नबी करीम ﷺ के समय में नबी करीम ﷺ की तरह एहराम बाँधा ” |
1 |
789 |
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“ अल्लाह तआला ने फ़रमाया ( सूरह अल-बक़रह में ) " हज्ज के कुछ महीने हैं " |
1 |
790 |
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“ हज्ज तमत्तअ, क़िरान और मुफ़रद के बारे में और जिसके पास क़ुर्बानी का जानवर नहीं है, उसके लिए हज्ज रद्द करना और उमराह करना ठीक है ” |
7 |
791 سے 797 |
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“ रसूल अल्लाह के समय में हज्ज तमत्तअ किया गया था ” |
1 |
798 |
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“ मक्का में किस जगह से प्रवेश करना सुन्नत है ? ” |
1 |
799 |
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“ मक्का और उसकी इमारतों की फ़ज़ीलत ” |
2 |
800 سے 801 |
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“ मक्का के घरों में विरासत और घरों को बेचना और ख़रीदना ठीक है और मस्जिद अल-हराम में लोगों का बराबर का अधिकार है ” |
1 |
802 |
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“ यह साबित है कि नबी ﷺ मक्का में उतरे थे ” |
1 |
803 |
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“ कअबा गिरा दिया जाएगा ” |
1 |
804 |
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“ अल्लाह तआला ने फ़रमाया ( सूरह अल-माइदाह में ) " अल्लाह ने कअबा ( यानि ) पवित्र घर को लोगों के लिए एक केंद्र बनाया और पवित्र महीने को भी ” |
2 |
805 سے 806 |
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“ कअबा को तोड़ने पर रोक ” |
1 |
807 |
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“ हजर अस्वद के बारे में क्या बताया गया है ? ” |
1 |
808 |
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“ जो हज्ज के दौरान काअबे के अंदर नहीं गया ” |
1 |
809 |
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“ जिस ने काबा के चारों ओर तकबीर कही ” |
1 |
810 |
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“ तवाफ़ में रमल की शरुआत कैसे हुई ? ” |
1 |
811 |
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“ मक्का में आने के बाद पहले तवाफ़ में हजर अस्वद को चूमना और तीन चक्करों में रमल करना मसनून है ” |
1 |
812 |
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“ हज्ज और उमरा दोनों में रमल करना ” |
2 |
813 سے 814 |
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“ हजर अस्वद को लाठी से चूमना ” |
1 |
815 |
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“ हजर अस्वद को चूमना मसनून है ” |
1 |
816 |
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“ अपने घर जाने से पहले मक्का आने पर कअबा का तवाफ़ करना ” |
2 |
817 سے 818 |
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“ तवाफ़ में बोलना ठीक है ” |
1 |
819 |
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“ न तो नंगे होकर काअबे का तवाफ़ करना चाहिए और न ही किसी मुशरिक को हज्ज करना चाहिए ” |
1 |
820 |
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“ एक व्यक्ति जिसने पहला तवाफ़ यानी तवाफ़ क़दूम किया, फिर कअबा के पास नहीं गया और दोबारा तवाफ़ नहीं किया यहां तक की अराफ़ात पहुंच गया ” |
1 |
821 |
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“ हाजियों को पानी पिलाना ” |
3 |
822 سے 824 |
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“ सफ़ा और मरवा के बीच सई करना वाजिब है ” |
1 |
825 |
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“ सफ़ा और मरवा के बीच सई करने के बारे में क्या कहा गया है ? ” |
1 |
826 |
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“ जिस महिला को माहवारी हो उसको कअबे का तवाफ़ छोड़कर हज्ज के सभी काम करना चाहिए ” |
1 |
827 |
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“ 8 ज़ुल-हिज्जा के दिन ज़ुहर की नमाज़ कहाँ पढ़ी जाए ? ” |
1 |
828 |
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“ क्या अरफ़ात के दिन ( 9 ज़ुल-हिज्जा ) को रोज़ा रखना ज़रूरी है या नहीं ? ” |
1 |
829 |
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“ अरफ़ात के दिन ( निमरा से ठहरने की जगह ) दोपहर में जाना ” |
1 |
830 |
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“ अरफ़ात में ठहरने के लिए जल्दी जाना चाहिए ” |
1 |
830 |
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“ अरफ़ात में ठहरना चाहिए न कि मुज़्दलिफ़ह में ” |
1 |
831 |
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“ अरफ़ात से रवाना होने के बारे में ” |
1 |
832 |
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“ अराफ़ात से लौटने पर, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का सुकून से चलने का हुक्म देना और चाबुक से इशारा करना ” |
1 |
833 |
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“ महिलाओं और बच्चों को रात में मुज़्दलिफ़ा में रहने और नमाज़ पढ़ने और चांद डूबने के बाद जाने की अनुमति ” |
2 |
834 سے 835 |
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“ मुज़्दलिफ़ा में फ़ज्र की नमाज़ किस समय पढ़ी जानी चाहिए ? ” |
1 |
836 |
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“ मुज़्दलिफ़ा से किस समय रवाना होना चाहिए ? ” |
1 |
837 |
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“ क़ुर्बानी के जानवर ( ऊंट आदि ) की सवारी ठीक है ” |
1 |
838 |
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“ क़ुर्बानी का जानवर साथ ले जाने वाला ” |
1 |
839 |
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“ ज़ुल-हुलैफ़ा पहुंच कर क़ुर्बानी के गले में माला पहनाना और एक छोटा सा घाव लगाकर जानवर का ख़ून निकलना फिर एहराम बांधना ” |
1 |
840 |
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“ जानवर के गले में अपने हाथ से माला पहनाना ” |
1 |
841 |
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“ क़ुर्बानी की बकरियों को माला पहनाना मसनून है ” |
1 |
842 |
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“ रुई की बनी हुई माला के बारे में ” |
1 |
843 |
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“ क़ुर्बानी के जानवरों को पहनाए गए कम्बलों और उनकी खालों को दान करदेना ” |
1 |
844 |
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“ बिना उनकी अनुमति के अपनी महिलाओं की ओर से कुर्बानी करना ठीक है ” |
1 |
845 |
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“ मिना में उस जगह पर क़ुर्बानी करना जहाँ रसूल अल्लाह ﷺ ने की थी, अफ़ज़ल है ” |
1 |
846 |
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“ ऊंट का पैर बांधकर नहर ( क़ुर्बानी ) करना ” |
1 |
847 |
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“ मांस या खाल जैसी कोई भी चीज़ क़साई को मज़दूरी के रूप में न दे ” |
1 |
848 |
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“ क़ुर्बानी के जानवर में से क्या खाना चाहिए और दान में क्या देना चाहिए ” |
1 |
849 |
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“ एहराम खोलते समय बाल मुंडवा लें या कटवा लें ” |
4 |
850 سے 853 |
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“ शैतान को कंकरियां मरना यानि रमी करना ज़रूरी है ” |
1 |
854 |
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“ घाटी के तल से कंकरियां मारना ” |
1 |
855 |
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“ सारे शैतानों को सात सात कंकरियां मरना ” |
1 |
856 |
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“ दोनों शैतानों की रमी करते समय क़िब्ले की और मुंह करके चिकनी नरम ज़मीन पर खड़ा होना चाहिए ” |
1 |
857 |
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“ तवाफ़ विदाअ का बयान ” |
2 |
858 سے 859 |
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“ यदि किसी महिला को तवाफ़ अफ़ज़ा के बाद माहवारी शरू होजाए ” |
1 |
860 |
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“ मुहस्सब में उतरने का बयान ” |
1 |
861 |
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“ ज़ी-तवा में मक्का में प्रवेश करने से पहले जो मक्का से सटा हुआ है और मक्का से मदीना लौटते समय पथरीले मैदान ( बतहा ) में ठहरना जो कि ज़ुल-हुलैफ़ा में है ” |
1 |
862 |
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