357- وبه: انه قال: نهى رسول الله صلى الله عليه وسلم عن لبستين وعن بيعتين: عن الملامسة والمنابذة، وعن ان يحتبي الرجل فى ثوب واحد ليس على فرجه منه شيء، وعن ان يشتمل الرجل بالثوب الواحد على احد شقيه.357- وبه: أنه قال: نهى رسول الله صلى الله عليه وسلم عن لبستين وعن بيعتين: عن الملامسة والمنابذة، وعن أن يحتبي الرجل فى ثوب واحد ليس على فرجه منه شيء، وعن أن يشتمل الرجل بالثوب الواحد على أحد شقيه.
اور اسی سند کے ساتھ (سیدنا ابوہریرہ رضی اللہ عنہ سے) روایت ہے کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے دو پہناووں اور دو سودوں سے منع فرمایا ہے: دو سودے تو ملامسہ اور منابذہ ہیں اور (دو پہناووں سے مراد یہ ہے کہ) کوئی آدمی ایک کپڑے میں گھٹنے کھڑے کر کے اس طرح بیٹھے کہ اس کی شرمگاہ پر کوئی کپڑا نہ ہو اور کوئی شخص ایک کپڑے میں اس طرح اشتمال کرے کہ اس کا ایک کندھا ننگا ہو۔
इसी सनद के साथ (हज़रत अबु हुरैरा रज़ि अल्लाहु अन्ह से) रिवायत है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दो पहनावों और दो सौदों से मना किया है ! दो सौदे तो मुलामसह और मुनाबज़ह हैं (मुलामसह यह है कि आदमी कपड़े को हाथ से छुए और उसे उलट पुलट कर देखे बिना सौदा करले और मुनाबज़ह यह है कि दोनों आदमी कपड़ा एक दुसरे की तरफ़ फेंक दें और एक दुसरे का कपड़ा देखे बिना सौदा तय करलें।) और दो पहनावों से मुराद ये है कि कोई आदमी एक कपड़े में घुटने खड़े कर के इस तरह बैठे कि उस के गुप्त अंग पर कोई कपड़ा न हो और कोई व्यक्ति एक कपड़े को इस तरह लपेटे कि उस का एक कंधा नंगा हो।
تخریج الحدیث: «357- الموطأ (رواية يحييٰي بن يحييٰي 917/2 ح 1769، ك 48 ب 8 ح 17) التمهيد 34/18، الاستذكار: 1701، وأخرجه البخاري (5821) من حديث مالك به، ورواه مسلم (1511) من حديث ابي الزناد به مختصرا جدا.»