اللٰهم عالم الغيب والشهادة، فاطر السموات والارض، رب كل شيء ومليكه، اشهد ان لا إلٰه إلا انت، اعوذ بك من شر نفسي، وشر الشيطان وشركه وان اقترف على نفسي سوءا او اجره إلى مسلم اللَٰهُمَّ عَالِمَ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ، فَاطِرَ السَّمَوَاتِ وَالْأَرْضِ، رَبَّ كُلِّ شَيْءٍ وَمَلِيكَهُ، أَشْهَدُ أَنْ لَا إِلٰهَ إِلَّا أَنْتَ، أَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّ نَفْسِي، وَشَرِّ الشَّيْطَانِ وَشِرْكِهِ وَأَنْ أَقْتَرِفَ عَلَى نَفْسِي سُوءًا أَوْ أَجُرَّهُ إِلَى مُسْلِمٍ
”اے اللہ! اے غائب و حاضر کو جاننے والے، اے آسمانوں اور زمین کو نئے سرے سے بنانے والے، اے ہر چیز کے رب اور مالک، میں گواہی دیتا ہوں کہ تیرے علاوہ کوئی سچا معبود نہیں، میں اپنے نفس کے شر، شیطان کے شر اور اس کے شرک سے تیری پناہ میں آتا ہوں، اور اس بات سے تیری پناہ میں آتا ہوں کہ میں اپنے نفس پر برائی کا ارتکاب کروں یا کسی مسلمان کی طرف اسے کھینچ کر لاؤں۔“[صحيح، سنن ترمذي:3392] نیز دیکھئے [سنن ابي داؤد:5067]
“ऐ अल्लाह ! ऐ छुपे हुए और जो दिखाई दे रहा है सब को जानने वाले, ऐ आसमानों और ज़मीन को नए सिरे से बनाने वाले, ऐ हर चीज़ के रब और मालिक, मैं गवाही देता हूँ कि तेरे सिवा कोई सच्चा ईश्वर नहीं, मैं अपनी जान की बुराई, शैतान की बुराई और उस के शिर्क से तेरी शरण में आता हूँ, और इस बात से तेरी शरण में आता हूँ कि मैं अपनी जान पर बुराई का बोझ डालूं या उसे किसी मुसलमान की ओर खीँच कर लाऊँ ।” [सहीह, सुनन त्रिमीज़ी: 3392] और देखिए [सुनन अबी दाऊद: 5067]