اللٰهم ما اصبح (شام کے وقت «امسٰى کہے) «بي من نعمة او باحد من خلقك فمنك وحدك، لا شريك لك، فلك الحمد، ولك الشكر اللَٰهُمَّ مَا أَصْبَحَ (شام کے وقت «أمسٰى کہے) «بِي مِنْ نِعْمَةٍ أَوْ بِأَحَدٍ مِنْ خَلْقِكَ فَمِنْكَ وَحْدَكَ، لَا شَرِيكَ لَكَ، فَلَكَ الْحَمْدُ، وَلَكَ الشُّكْرُ
”اے اللہ! مجھ پر یا تیری مخلوق میں سے کسی پر صبح کے وقت جو بھی نعمت اتری تو وہ صرف تیری طرف سے ہی ہے، تو اکیلا ہے، تیرا کوئی شریک نہیں، تیرے لئے ہی تمام تعریفات اور تیرے لئے ہی شکر ہے۔“ جس بھی شخص نے یہ کلمات صبح کے وقت کہے اس نے دن کا شکریہ ادا کر دیا اور جس نے شام کے وقت یہ کلمات کہے اس نے رات کا شکریہ ادا کیا۔ [اسناده ضعيف، سنن ابي داؤد:5073 عمل اليوم و الليلة لابن السني 42، تحقيق الشيخ حليم الهلالي]
“ऐ अल्लाह ! मुझ पर या तेरे प्राणियों में से किसी पर सुबह के समय जो भी नेमत उतरी तो वह केवल तेरी तरफ़ से ही है, तू अकेला है, तेरा कोई साझी नहीं, तेरे लिए ही सारी ताअरीफ़ें और तेरे लिए ही शुक्र है ।” जिस भी व्यक्ति ने ये शब्द सुबह के समय कहे उस ने दिन का शुक्रिया कर दिया और जिस ने शाम के समय ये शब्द कहे उस ने रात का शुक्रिया कर दिया । [असनादा ज़ईफ़, सुनन अबी दाऊद: 5073 अमल अलयोम वल्लेलाह लिअब्न अलसीनि 42, तहक़ीक़ अलशैख़ हलीम अल्हिलाली]