اللٰهم اكتب لي بها عندك اجرا، وضع عني بها وزرا، واجعلها لي عندك ذخرا، وتقبلها مني كما تقبلتها من عبدك داود اللّٰهُمَّ اكْتُبْ لِي بِهَا عِنْدَكَ أَجْرًا، وَضَعْ عَنِّي بِهَا وِزْرًا، وَاجْعَلْهَا لِي عِنْدَكَ ذُخْرًا، وَتَقَبَّلْهَا مِنِّي كَمَا تَقَبَّلْتَهَا مِنْ عَبْدِكَ دَاوُدَ
”اے اللہ! میرے لئے اس سجدے کے بدلے اپنے ہاں اجر لکھ دے اور اس کے بدلے سے (میرے گناہوں کا) بوجھ ختم کر دے، اور اپنے پاس اسے ذخیرہ بنا، اور مجھ سے اسی طرح قبول فرما جس طرح تو نے اپنے بندے داؤد سے قبول فرمایا تھا۔“[حسن، سنن ترمذي:579، 3424، المستدرك للحاكم:219/1ح799]
“ऐ अल्लाह ! मेरे लिए इस सज्दे के बदले अपने पास सवाब लिख दे और इस के बदले से (मेरे पापों का) बोझ ख़त्म कर दे, और अपने पास इसे भंडार बना, और मुझ से इसी तरह स्वीकार कर जिस तरह तू ने अपने बंदे दाऊद अलैहिस्सलाम से स्वीकार किया था ।” [हसन, सुनन त्रिमीज़ी: 579, 3424, अलमुस्तदरक लिल्हकीम: 219/1ح799]