-" إن نبي الله ايوب صلى الله عليه وسلم لبث به بلاؤه ثمان عشرة سنة فرفضه القريب والبعيد إلا رجلين من إخوانه كانا يغدوان إليه ويروحان، فقال احدهما لصاحبه ذات يوم: تعلم والله لقد اذنب ايوب ذنبا ما اذنبه احد من العالمين فقال له صاحبه: وما ذاك؟ قال: منذ ثمان عشرة سنة لم يرحمه الله فيكشف ما به فلما راحا إلى ايوب لم يصبر الرجل حتى ذكر ذلك له، فقال ايوب: لا ادري ما تقولان غير ان الله تعالى يعلم اني كنت امر بالرجلين يتنازعان، فيذكران الله فارجع إلى بيتي فاكفر عنهما كراهية ان يذكر الله إلا في حق، قال: وكان يخرج إلى حاجته فإذا قضى حاجته امسكته امراته بيده حتى يبلغ، فلما كان ذات يوم ابطا عليها واوحي إلى ايوب ان * (اركض برجلك هذا مغتسل بارد وشراب) * فاستبطاته فتلقته تنظر وقد اقبل عليها قد اذهب الله ما به من البلاء وهو احسن ما كان فلما راته قالت: اي بارك الله فيك هل رايت نبي الله هذا المبتلى، والله على ذلك ما رايت اشبه منك إذ كان صحيحا، فقال: فإني انا هو، وكان له اندران (اي بيدران): اندر للقمح واندر للشعير، فبعث الله سحابتين، فلما كانت إحداهما على اندر القمح افرغت فيه الذهب حتى فاض وافرغت الاخرى في اندر الشعير الورق حتى فاض".-" إن نبي الله أيوب صلى الله عليه وسلم لبث به بلاؤه ثمان عشرة سنة فرفضه القريب والبعيد إلا رجلين من إخوانه كانا يغدوان إليه ويروحان، فقال أحدهما لصاحبه ذات يوم: تعلم والله لقد أذنب أيوب ذنبا ما أذنبه أحد من العالمين فقال له صاحبه: وما ذاك؟ قال: منذ ثمان عشرة سنة لم يرحمه الله فيكشف ما به فلما راحا إلى أيوب لم يصبر الرجل حتى ذكر ذلك له، فقال أيوب: لا أدري ما تقولان غير أن الله تعالى يعلم أني كنت أمر بالرجلين يتنازعان، فيذكران الله فأرجع إلى بيتي فأكفر عنهما كراهية أن يذكر الله إلا في حق، قال: وكان يخرج إلى حاجته فإذا قضى حاجته أمسكته امرأته بيده حتى يبلغ، فلما كان ذات يوم أبطأ عليها وأوحي إلى أيوب أن * (اركض برجلك هذا مغتسل بارد وشراب) * فاستبطأته فتلقته تنظر وقد أقبل عليها قد أذهب الله ما به من البلاء وهو أحسن ما كان فلما رأته قالت: أي بارك الله فيك هل رأيت نبي الله هذا المبتلى، والله على ذلك ما رأيت أشبه منك إذ كان صحيحا، فقال: فإني أنا هو، وكان له أندران (أي بيدران): أندر للقمح وأندر للشعير، فبعث الله سحابتين، فلما كانت إحداهما على أندر القمح أفرغت فيه الذهب حتى فاض وأفرغت الأخرى في أندر الشعير الورق حتى فاض".
سیدنا انس رضی اللہ عنہ بیان کرتے ہیں کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ”اللہ تعالیٰ کے نبی ایوب علیہ السلام اٹھارہ برس بیمار رہے۔ قریب و بعید کے تمام رشتہ دار بےرخی کر گئے، البتہ ان کے دو بھائی صبح و شام ان کے پاس آتے جاتے تھے۔ ایک دن ان میں سے ایک نے دوسرے سے کہا: آیا تو جانتا ہے، اللہ کی قسم! (میرا خیال یہ ہے کہ) ایوب نے کوئی ایسا گناہ کیا ہے، جو جہانوں میں سے کسی فرد نے نہیں کیا؟ اس کے ساتھی نے کہا: وہ کون سا؟ اس نے کہا: (دیکھو) اٹھارہ سال ہو چکے ہیں، اللہ تعالیٰ نے اس پر رحم نہیں کیا کہ اس کی بیماری دور کر دے۔ جب وہ بوقت شام ایوب کے پاس آئے تو ایک نے بے صبری میں وہ بات ذکر کر دی۔ ایوب علیہ السلام نے (ان کا الزام سن کر) کہا: جو کچھ تم کہہ رہے ہو، اس قسم کی کوئی بات میرے علم میں تو نہیں ہے، ہاں اتنا ضرور ہے کہ اللہ تعالیٰ جانتا ہے کہ دو آدمیوں کے پاس سے میرا گزر ہوتا تھا، وہ آپس میں جھگڑ رہے ہوتے تھے، وہ مجھے اللہ تعالیٰ ّ کا واسطہ دے دیتے اور میں اپنے گھر واپس چلا جاتا تھا اور اس وجہ سے ان دونوں کی طرف سے کفارہ ادا کر دیتا تھا کہ کہیں ایسا نہ ہو کہ انہوں نے مجھے ناحق انداز میں اللہ تعالیٰ کا واسطہ نہ دیا ہو۔ ایوب علیہ السلام قضائے حاجت کے لیے باہر جاتے تھے، جب وہ قضائے حاجت کر لیتے تو ان کی بیوی ان کو ہاتھ سے پکڑ کر سہارا دیتی تھی، حتیٰ کہ وہ اپنی جگہ پر پہنچ جاتے تھے۔ ایک دن وہ لیٹ ہو گئے اور ( ان کی بیوی ان کے انتظار میں رہی) اور اللہ تعالیٰ نے ان کی طرف وحی کی: ”اپنا پاؤں مارو، یہ نہانے کا ٹھنڈا اور پینے کا پانی ہے۔“(سورۂ ص: ۴۲) ادھر ان کی بیوی کو خیال آ رہا تھا کہ وہ دیر کر رہے ہیں۔ جب وہ واپس پلٹے تو اللہ تعالیٰ ان کی تمام بیماریاں دور کر چکے تھے اور وہ بہت حسین لگ رہے تھے۔ جب ان کی بیوی نے ان کو دیکھا تو (نہ پہچان سکی اور ان سے) پوچھا: اللہ تعالیٰ تجھ میں برکت پیدا کرے، کیا تو نے اللہ کے نبی، جو بیمار ہیں، کو دیکھا ہے؟ اللہ تعالیٰ اس بات پر گواہ ہیں کہ جب وہ نبی صحتمند تھے تو تجھ سے سب سے زیادہ مشابہت رکھتے تھے۔ انہوں نے کہا: میں وہی (ایوب) ہوں (اب اللہ تعالیٰ نے مجھے شفا دے دی ہے)۔ ایوب علیہ السلام کے دو کھلیان تھے، ایک گندم کا تھا اور ایک جو کا تھا۔ اﷲ تعالیٰ نے دو بدلیاں بھیجیں، ایک بدلی گندم والے کھلیان پر آ کر سونا برسنے لگی اور دوسری جو والے کھلیان پر آ کر چاندی برسنے لگی، (اس طرح اللہ تعالیٰ نے صحت بھی دے دی اور مال کثیر بھی عطا کر دیا)۔“
हज़रत अनस रज़ि अल्लाहु अन्ह कहते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “अल्लाह तआला के नबी अय्यूब अलैहिस्सलाम अट्ठारा बरस बीमार रहे। क़रीब और दूर के सारे रिश्तेदार मुँह फेर गए, लेकिन उनके दो भाई सुबह और शाम उनके पास आते जाते थे । एक दिन उन में से एक ने दूसरे से कहा, क्या तू जानता है, अल्लाह की क़सम, (मेरा ख़्याल यह है कि) अय्यूब ने कोई ऐसा पाप किया है, जो किसी व्यक्ति ने नहीं किया ? उसके साथी ने कहा, वह कौनसा ? उसने कहा, (देखो) अट्ठारा वर्ष होचुके हैं, अल्लाह तआला ने इस पर रहम नहीं किया कि इसका रोग दूर करदे। जब वे शाम के समय अय्यूब के पास आए तो एक ने जल्दी से वह बात बतादी। अय्यूब अलैहिस्सलाम ने (उनका आरोप सुनकर) कहा, जो कुछ तुम कह रहे हो, उस तरह की कोई बात मेरी जानकारी में तो नहीं है, हाँ इतना ज़रूर है कि अल्लाह तआला जानता है कि दो आदमियों के पास से मेरा गुज़र होता था, वह आपस में झगड़ रहे होते थे, वे मुझे अल्लाह तआला का वासता दे देते और मैं अपने घर वापस चला जाता था और इस कारण उन दोनों की ओर से कफ़्फ़ारह दे देता था कि कहीं ऐसा न हो कि उन्हों ने मुझे अच्छे ढंग से अल्लाह का वास्ता न दिया हो। अय्यूब अलैहिस्सलाम मल करने के लिये बाहर जाते थे, जब वह मल करने कर लेते तो उनकी पत्नी उनको हाथ से पकड़ कर सहारा देती थी, यहां तक कि वह अपनी जगह पर पहुंच जाते थे। एक दिन उनको देर हो गई और (उन की पत्नी उनके इंतिज़ार में रही) और अल्लाह तआला ने उनकी ओर वहि की, “अपना पांव मारो, यह नहाने का ठंडा और पीने का पानी है।” (सूरत स’आद: 42) इधर उनकी पत्नी को ख़्याल आरहा था कि वह देर कर रहे हैं। जब वह वापस पलटे तो अल्लाह तआला उनके सारे रोग दूर कर चुका था और वह बहुत सुंदर लगरहे थे। जब उनकी पत्नी ने उनको देखा तो (न पहचान सकी और उनसे) पूछा, अल्लाह तआला तुझ में बरकत पैदा करे, क्या तू ने अल्लाह के नबी को देखा है, जो बीमार हैं ? अल्लाह तआला इस बात पर गवाह है कि जब वह नबी स्वस्थ थे तो तेरे जैसे दिखाई देते थे। उन्हों ने कहा, मैं वही (अय्यूब) हूँ (अब अल्लाह तआला ने मुझे शिफ़ाअ देदी है)। अय्यूब अलैहिस्सलाम के दो खल्यान थे, एक गंदुम का था और एक जौ का था। अल्लाह तआला ने दो बदलियां भेजीं, एक बादल गंदुम वाले खल्यान पर आकर सोना बरसाने लगा और दूसरा जौ वाले खल्यान पर आकर चांदी बरसाने लगा, (इस तरह अल्लाह तआला ने स्वस्थ भी कर दिया और माल भी अधिक कर दिया)।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 17
قال الشيخ الألباني: - " إن نبي الله أيوب صلى الله عليه وسلم لبث به بلاؤه ثمان عشرة سنة فرفضه القريب والبعيد إلا رجلين من إخوانه كانا يغدوان إليه ويروحان، فقال أحدهما لصاحبه ذات يوم: تعلم والله لقد أذنب أيوب ذنبا ما أذنبه أحد من العالمين فقال له صاحبه: وما ذاك؟ قال: منذ ثمان عشرة سنة لم يرحمه الله فيكشف ما به فلما راحا إلى أيوب لم يصبر الرجل حتى ذكر ذلك له، فقال أيوب: لا أدري ما تقولان غير أن الله تعالى يعلم أني كنت أمر بالرجلين يتنازعان، فيذكران الله فأرجع إلى بيتي فأكفر عنهما كراهية أن يذكر الله إلا في حق، قال: وكان يخرج إلى حاجته فإذا قضى حاجته أمسكته امرأته بيده حتى يبلغ، فلما كان ذات يوم أبطأ عليها وأوحي إلى أيوب أن * (اركض برجلك هذا مغتسل بارد وشراب) * فاستبطأته فتلقته تنظر وقد أقبل عليها قد أذهب الله ما به من البلاء وهو أحسن ما كان فلما رأته قالت: أي بارك الله فيك هل رأيت نبي الله هذا المبتلى، والله على ذلك ما رأيت أشبه منك إذ كان صحيحا، فقال: فإني أنا هو، وكان له أندران (أي بيدران) : أندر للقمح وأندر للشعير، فبعث الله سحابتين، فلما كانت إحداهما على أندر القمح أفرغت فيه الذهب حتى فاض وأفرغت الأخرى في أندر الشعير الورق حتى فاض ". _____________________ رواه أبو يعلى في " مسنده " (176 / 1 - 177 / 1) وأبو نعيم في " الحلية " (3 / 374 - 375) من طريقين عن سعيد بن أبي مريم حدثنا نافع بن يزيد أخبرني عقيل عن ابن شهاب عن أنس بن مالك مرفوعا وقال: " غريب من حديث الزهري لم يروه عنه إلا عقيل ورواته متفق على عدالتهم تفرد به نافع ". قلت: وهو ثقة كما قال، أخرج له مسلم وبقية رجاله رجال الشيخين. فالحديث صحيح. __________جزء : 1 /صفحہ : 54__________ وقد صححه الضياء المقدسي فأخرجه في " المختارة " (220 / 2 - 221 / 2) من هذا الوجه. ورواه ابن حبان في " صحيحه " (2091) عن ابن وهيب أنبأنا نافع بن يزيد. وهذا الحديث مما يدل على بطلان الحديث الذي في " الجامع الصغير " بلفظ: " أبى الله أن يجعل للبلاء سلطانا على عبده المؤمن ". وسيأتي تحقيق الكلام عليه في " الأحاديث الضعيفة " إن شاء الله تعالى. ¤