سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر

سلسله احاديث صحيحه
सिलसिला अहादीस सहीहा
ابتدائے (مخلوقات)، انبیا و رسل، عجائبات خلائق
जगत निर्माण, नबी और रसूलों का ज़िक्र और चमत्कार
2514. سو افراد کے قاتل کی توبہ
“ एक सौ लोगों को क़त्ल करने वाले की तौबा ”
حدیث نمبر: 3869
Save to word مکررات اعراب Hindi
-" إن عبدا قتل تسعة وتسعين نفسا، ثم عرضت له التوبة، فسال عن اعلم اهل الارض، فدل على رجل (وفي رواية راهب)، فاتاه، فقال: إني قتلت تسعة وتسعين نفسا، فهل لي من توبة؟؟ قال: بعد قتل تسعة وتسعين نفسا؟! قال: فانتضى سيفه فقتله به، فاكمل به مائة، ثم عرضت له التوبة، فسال عن اعلم اهل الارض؟ فدل على رجل [عالم]، فاتاه فقال: إني قتلت مائة نفس فهل لي من توبة؟ فقال: ومن يحول بينك وبين التوبة؟! اخرج من القرية الخبيثة التي انت فيها إلى القرية الصالحة قرية كذا وكذا، [فإن بها اناسا يعبدون الله]، فاعبد ربك [ معهم] فيها، [ولا ترجع إلى ارضك فإنها ارض سوء]، قال: فخرج إلى القرية الصالحة، فعرض له اجله في [بعض] الطريق، [فناء بصدره نحوها]، قال: فاختصمت فيه ملائكة الرحمة وملائكة العذاب، قال: فقال إبليس: انا اولى به، إنه لم يعصني ساعة قط! قال: فقالت ملائكة الرحمة: إنه خرج تائبا [مقبلا بقلبه إلى الله، وقالت ملائكة العذاب: إنه لم يعمل خيرا قط]- فبعث الله عز وجل ملكا [في صورة آدمي] فاختصموا إليه - قال: فقال: انظروا اي القريتين كان اقرب إليه فالحقوه باهلها، [فاوحى الله إلى هذه ان تقربي، واوحى إلى هذه ان تباعدي]، [فقاسوه، فوجدوه ادنى إلى الارض التي اراد [بشبر]، فقبضته ملائكة الرحمة] [فغفر له]. قال الحسن: لما عرف الموت احتفز بنفسه (وفي رواية: ناء بصدره) فقرب الله عز وجل منه القرية الصالحة، وباعد منه القرية الخبيثة، فالحقوه باهل القرية الصالحة".-" إن عبدا قتل تسعة وتسعين نفسا، ثم عرضت له التوبة، فسأل عن أعلم أهل الأرض، فدل على رجل (وفي رواية راهب)، فأتاه، فقال: إني قتلت تسعة وتسعين نفسا، فهل لي من توبة؟؟ قال: بعد قتل تسعة وتسعين نفسا؟! قال: فانتضى سيفه فقتله به، فأكمل به مائة، ثم عرضت له التوبة، فسأل عن أعلم أهل الأرض؟ فدل على رجل [عالم]، فأتاه فقال: إني قتلت مائة نفس فهل لي من توبة؟ فقال: ومن يحول بينك وبين التوبة؟! اخرج من القرية الخبيثة التي أنت فيها إلى القرية الصالحة قرية كذا وكذا، [فإن بها أناسا يعبدون الله]، فاعبد ربك [ معهم] فيها، [ولا ترجع إلى أرضك فإنها أرض سوء]، قال: فخرج إلى القرية الصالحة، فعرض له أجله في [بعض] الطريق، [فناء بصدره نحوها]، قال: فاختصمت فيه ملائكة الرحمة وملائكة العذاب، قال: فقال إبليس: أنا أولى به، إنه لم يعصني ساعة قط! قال: فقالت ملائكة الرحمة: إنه خرج تائبا [مقبلا بقلبه إلى الله، وقالت ملائكة العذاب: إنه لم يعمل خيرا قط]- فبعث الله عز وجل ملكا [في صورة آدمي] فاختصموا إليه - قال: فقال: انظروا أي القريتين كان أقرب إليه فألحقوه بأهلها، [فأوحى الله إلى هذه أن تقربي، وأوحى إلى هذه أن تباعدي]، [فقاسوه، فوجدوه أدنى إلى الأرض التي أراد [بشبر]، فقبضته ملائكة الرحمة] [فغفر له]. قال الحسن: لما عرف الموت احتفز بنفسه (وفي رواية: ناء بصدره) فقرب الله عز وجل منه القرية الصالحة، وباعد منه القرية الخبيثة، فألحقوه بأهل القرية الصالحة".
سیدنا ابوسعید رضی اللہ عنہ کہتے ہیں: کیا میں تمہیں وہ حدیث بیان نہ کروں جو میں نے رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم سنی، میرے کانوں نے وہ حدیث سنی اور میرے دل نے اسے یاد کیا، رسول اﷲ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ایک آدمی نے ننانوے افراد قتل کر دیے، پھر اسے توبہ کا خیال آیا۔ اس نے روئے زمین کے سب سے بڑے عالم کی بابت لوگوں سے پوچھا؟ اسے ایک راہب (‏‏‏‏پادری) کا پتہ بتایا گیا۔ وہ اس کے پاس پہنچا اور پوچھا کہ وہ ننانوے آدمی قتل کر چکا ہے، کیا ایسے فرد کے لیے توبہ ہے؟ اس نے جواب دیا: کیا ننانوے افراد کے قتل کے بعد؟ (‏‏‏‏ایسے شخص کے لیے کوئی توبہ نہیں)۔ اس نے تلوار میان سے نکالی اور اسے قتل کر کے سو کی تعداد پوری کر لی۔ پھر اسے توبہ کا خیال آیا، اس نے لوگوں سے اہل زمین کے سب سے بڑے عالم کے بارے میں پوچھا۔ اس کے لیے ایک عالم کی نشاندہی کی گئی، وہ اس کے پاس گیا اور کہا میں سو افراد قتل کر چکا ہوں، کیا میرے لیے توبہ (‏‏‏‏کی کوئی گنجائش) ہے۔ اس نے کہا تیرے اور تیری توبہ کے درمیان کون حائل ہو سکتا ہے؟ لیکن تو اس طرح کر کہ اس خبیث بستی سے نکل کر فلاں فلاں کسی نیک بستی کی طرف چلا جا۔ کیونکہ وہاں کے لوگ اللہ تعالیٰ کی عبادت کرتے ہیں، تو بھی ان کے ساتھ اللہ تعالیٰ کی عبادت کرنا اور اپنے علاقے کی طرف مت لوٹنا کیونکہ یہ بری سر زمین ہے۔ وہ نیک بستی کی طرف چل پڑا، لیکن راستے میں اسے موت آ گئی، وہ اپنے سینے کے سہارے سرک کر پہلی زمین سے دور ہو کر (‏‏‏‏تھوڑا سا) دوسری طرف ہو گیا۔ (‏‏‏‏اسے لینے کے لیے) رحمت کے فرشتے اور عذاب کے فرشتے دونوں آ گئے اور ان کے مابین جھگڑا شروع ہو گیا۔ ابلیس نے کہا: میں اس کا زیادہ حقدار ہوں، اس نے کبھی بھی میری نافرمانی نہیں کی تھی۔ لیکن ملائکہ رحمت نے کہا: یہ تائب ہو کر آیا تھا اور دل کی پوری توجہ سے اللہ تعالیٰ کی طرف آنے والا تھا اور ملائکہ عذاب نے کہا: اس نے کبھی بھی کوئی نیک عمل نہیں کیا تھا۔ اللہ تعالیٰ نے ایک فرشتے کو ایک آدمی کی شکل میں بھیجا۔ انہوں نے اس کے سامنے یہ جھگڑا پیش کیا۔ اس نے کہا دیکھو کہ کون سی بستی اس کے قریب ہے، اسی بستی والوں سے اس کو ملا دیا جائے۔ ادھر اللہ تعالیٰ نے اس زمین کو (‏‏‏‏جہاں سے وہ آ رہا تھا) حکم دیا کہ تو دور ہو جا اور ارض صالحین (‏‏‏‏جس کی طرف وہ جا رہا تھا) حکم دیا کہ تو قریب ہو جا۔ جب انہوں نے اس کی پیمائش کی تو جس زمین کی طرف وہ جا رہا تھا، اسے (‏‏‏‏دوسری کی بہ نسبت) ایک بالشت زیادہ قریب پایا۔ پس رحمت کے فرشتے اسے لے گئے اور اسے بخش دیا گیا۔ حسن راوی کہتے ہیں: جب اسے موت کا علم ہوا تو وہ (‏‏‏‏ ‏‏‏‏نیک بستی کی طرف) سکڑ گیا، اور ایک روایت میں ہے کہ وہ اپنے سینے کے سہارے (‏‏‏‏نیک بستی کی طرف) سرک گیا۔ بہرحال اللہ تعالیٰ نے اسے قریۂ صالحہ کے قریب کر دیا اور قریۂ خبیثہ سے دور کر دیا، تو ان فرشتوں نے اسے نیک بستی والے لوگوں میں شامل کر دیا۔
हज़रत अबु सईद रज़ि अल्लाहु अन्ह कहते हैं कि क्या में तुम्हें वह हदीस न सुनादुँ जो मैं ने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सुनी, मेरे कानों ने वह हदीस सुनी और मेरे दिल ने उसे याद किया, रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “एक आदमी ने निन्यानवे लोग क़त्ल कर दिए, फिर उसे तौबा का ख़्याल आया। उसने ज़मीन पर महान विद्वान के बारे में लोगों से पूछा ? उसे एक पादरी का पता बताया गया। वह उसके पास पहुंचा और पूछा कि वह निन्यानवे आदमी क़त्ल कर चुका है, क्या ऐसे व्यक्ति के लिये तौबा है ? उसने जवाब दिया, क्या निन्यानवे लोगों के क़त्ल के बाद ? (ऐसे व्यक्ति के लिये कोई तौबा नहीं)। उसने तलवार म्यान से निकाली और उसे क़त्ल करके सौ की संख्या पूरी करली। फिर उसे तौबा का ख़्याल आया, उसने फिर लोगों से सबसे बड़े ज्ञानी के बारे में पूछा। उसे एक महान विद्वान के बारे में बताया गया, वह उस के पास गया और कहा मैं सौ क़त्ल कर चुका हूँ, क्या मेरे लिये तौबा (की कोई गुंजाईश) है। उसने कहा तेरे और तेरी तौबा के बीच कौन आड़े आ सकता है ? लेकिन तू इस तरह कर कि इस बुरी बस्ती से निकल कर फ़लां फ़लां नेक बस्ती की ओर चला जा। क्योंकि वहां के लोग अल्लाह तआला की इबादत करते हैं, तू भी उनके साथ अल्लाह तआला की इबादत करना और अपनी बस्ती की ओर मत लौटना क्योंकि यह बुरी बस्ती है। वह नेक बस्ती की ओर चल पड़ा, लेकिन रस्ते में उसे मौत आगई, वह अपने सिने के सहारे सरक कर पहली ज़मीन से दूर होकर (थोड़ा सा) दूसरी ओर होगया। (उसको लेने के लिये) रहमत के फ़रिश्ते और अज़ाब के फ़रिश्ते दोनों आगए और उनके बीच में झगड़ा शुरू होगया। इब्लीस यानि शैतान ने कहा, मैं इसका अधिक हक़दार हूँ, इसने कभी भी मेरी ना-फ़रमानी नहीं की थी। लेकिन रहमत के फ़रिश्तों ने कहा, यह तौबा करने आया था और पुरे दिल के साथ अल्लाह तआला की ओर आने वाला था और अज़ाब के फ़रिश्तों ने कहा, इसने कभी भी कोई नेक कर्म नहीं किया था। अल्लाह तआला ने एक फ़रिश्ते को एक आदमी के रूप में भेजा। उन्हों ने उसके सामने यह झगड़ा रखा। उसने कहा देखो कि कौन सी बस्ती इस के क़रीब है, उसी बस्ती वालों से इसको मिला दिया जाए। इधर अल्लाह तआला ने उस ज़मीन को (जहां से वह आरहा था) हुक्म दिया कि तू दूर होजा और नेक लोगों की बस्ती (जिस की ओर वह जारहा था) हुक्म दिया कि तू क़रीब होजा। जब उन्हों ने उसकी माप तोल की तो जिस बस्ती की ओर वह जारहा था, उसे (दूसरी की तुलना में) एक बालिश्त अधिक क़रीब पाया। बस रहमत के फ़रिश्ते उसे लेगए और उसे क्षमा कर दिया गय।” हसन रावी कहते हैं, जब उसे मौत का पता चला तो वह (नेक बस्ती की ओर) सिकुड़ गया, और एक रिवायत में है कि वह अपने सिने के सहारे (नेक बस्ती की ओर) सरक गया। बहरहाल अल्लाह तआला ने उसे नेक बस्ती के क़रीब कर दिया और बुरी बस्ती से दूर कर दिया, तो उन फ़रिश्तों ने उसे नेक बस्ती के लोगों में से एक मान लिया।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 2640

قال الشيخ الألباني:
- " إن عبدا قتل تسعة وتسعين نفسا، ثم عرضت له التوبة، فسأل عن أعلم أهل الأرض ، فدل على رجل (وفي رواية راهب) ، فأتاه، فقال: إني قتلت تسعة وتسعين نفسا، فهل لي من توبة؟؟ قال: بعد قتل تسعة وتسعين نفسا؟! قال: فانتضى سيفه فقتله به، فأكمل به مائة، ثم عرضت له التوبة، فسأل عن أعلم أهل الأرض؟ فدل على رجل [عالم] ، فأتاه فقال: إني قتلت مائة نفس فهل لي من توبة؟ فقال : ومن يحول بينك وبين التوبة؟! اخرج من القرية الخبيثة التي أنت فيها إلى القرية الصالحة قرية كذا وكذا، [فإن بها أناسا يعبدون الله] ، فاعبد ربك [ معهم] فيها، [ولا ترجع إلى أرضك فإنها أرض سوء] ، قال: فخرج إلى القرية الصالحة، فعرض له أجله في [بعض] الطريق، [فناء بصدره نحوها] ، قال: فاختصمت فيه ملائكة الرحمة وملائكة العذاب، قال: فقال إبليس: أنا أولى به، إنه لم يعصني ساعة قط! قال: فقالت ملائكة الرحمة: إنه خرج تائبا [مقبلا بقلبه إلى الله، وقالت ملائكة العذاب: إنه لم يعمل خيرا قط]- فبعث الله عز وجل ملكا [في صورة آدمي] فاختصموا إليه - قال: فقال: انظروا أي القريتين كان أقرب إليه فألحقوه بأهلها، [فأوحى الله إلى هذه أن تقربي، وأوحى إلى هذه أن تباعدي] ، [فقاسوه، فوجدوه أدنى إلى الأرض التي أراد [بشبر] ، فقبضته ملائكة الرحمة] [فغفر له] . قال الحسن: لما عرف الموت احتفز بنفسه ( وفي رواية: ناء بصدره) فقرب الله عز وجل منه القرية الصالحة، وباعد منه القرية الخبيثة، فألحقوه بأهل القرية الصالحة ".
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‏‏‏‏أخرجه أحمد (3 / 20 و 72) من طريق همام بن يحيى: حدثنا قتادة عن أبي الصديق
‏‏‏‏الناجي عن أبي سعيد الخدري قال: لا أحدثكم إلا ما سمعت من رسول الله صلى
‏‏‏‏الله عليه وسلم، سمعته أذناي ووعاه قلبي، فذكره بتمامه إلا الجملة التي بين
‏‏‏‏الشرطتين - فقد قال همام: فحدثني حميد الطويل عن بكر بن عبد الله المزني عن
‏‏‏‏أبي رافع - فذكرها - ثم رجع إلى حديث قتادة قال: فقال: انظروا ... قلت:
‏‏‏‏وهذا إسناد صحيح على شرط الشيخين، وقد أخرجه البخاري (6 / 373 - فتح) ومسلم
‏‏‏‏(8 / 104) والبيهقي في " شعب الإيمان " (2 / 352 / 1) من حديث ابن أبي عدي
‏‏‏‏عن شعبة عن قتادة به مختصرا، وفيه زيادة: " فأوحى الله ... "، وزيادة: "
‏‏‏‏فناء بصدره نحوها ". وأخرجه مسلم، والبيهقي أيضا (2 / 352 / 1) من طريق
‏‏‏‏معاذ بن هشام: حدثني أبي عن قتادة ... به أتم منه، وفيه سائر الزيادات، إلا
‏‏‏‏زيادة " بشبر "، فهي عنده من طريق العنبري عن شعبة، ومن طريق ابن أبي عدي
‏‏‏‏عنه. وقد يستغرب ذكر إبليس في هذه القصة، ولكن لا غرابة في ذلك بعد ثبوت
‏‏‏‏__________جزء : 6 /صفحہ : 291__________
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‏‏‏‏إسنادها، لاسيما وقد جاء ذكره فيها من حديث عبد الله بن مسعود موقوفا، لكن
‏‏‏‏وقع فيه أنه هو الذي اختصم مع ملك الرحمة، ولذلك خرجته في الكتاب الآخر برقم
‏‏‏‏(5254) ثم إن زيادة الإيحاء إلى الأرض يبدو أنها مدرجة لقول قتادة عن الحسن
‏‏‏‏في آخر الحديث: لما عرف الموت ... إلخ، فانظر " الفتح " و " التعليق الرغيب "
‏‏‏‏. وقد جاء الحديث عن جمع آخر من " الصحابة " مطولا ومختصرا، خرجها الهيثمي (
‏‏‏‏10 / 211 - 213) منها عن معاوية بن أبي سفيان، وفي حديثه أن العالم قال: "
‏‏‏‏لئن قلت لك: إن الله عز وجل لا يتوب على من تاب لقد كذبت ". وفيه في آخره:
‏‏‏‏" فغفر الله له ". أخرجه أبو يعلى (4 / 1775 - 1776) والطبراني (19 / 369
‏‏‏‏/ 367) و " مسند الشاميين " (1 / 349) من طريقين عن عبد الرحمن بن يزيد بن
‏‏‏‏جابر قال: حدثني [عبيدة] بن أبي المهاجر - أو أبو عبد رب، الوليد شك - قال
‏‏‏‏سمعت معاوية بن أبي سفيان ... فذكره. قلت: رجاله ثقات، لكن عبيدة بن أبي
‏‏‏‏المهاجر لم يوثقه غير ابن حبان، ولا يعرف إلا بهذه الرواية - وأما (أبو عبد
‏‏‏‏رب) فهو الدمشقي الزاهد، وهو صدوق كما قال الذهبي، وانظر " تيسير الانتفاع
‏‏‏‏" - والشك المذكور إنما هو في رواية أبي ليلى، دون الطبراني، ولعل الراجح
‏‏‏‏أنه من حديث (أبي عبد رب) ، فإنه المحفوظ عن الوليد بن مسلم في حديثين آخرين
‏‏‏‏تقدم أحدهما برقم (1734) وقد رواهما عنه ابن ماجه وابن حبان من طريق الوليد
‏‏‏‏به. وساقهما أحمد (4 / 94) سياقا واحدا من طريق عبد الله بن المبارك:
‏‏‏‏أنبأنا عبد الرحمن بن يزيد به. فالسند جيد كما قال المنذري (4 / 78) .
‏‏‏‏ومنها عن عبد الله بن عمرو، وفيه تسمية القرية الأولى " نصرة "، والأخرى
‏‏‏‏__________جزء : 6 /صفحہ : 292__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏"
‏‏‏‏كفرة ". أخرجه الطبراني بإسناد لا بأس به، كما في " الترغيب "، ورجاله رجال
‏‏‏‏الصحيح كما في " المجمع "، وسكت عنه الحافظ.
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