-" عقر دار المؤمنين بالشام".-" عقر دار المؤمنين بالشام".
سیدنا سلمہ بن نفیل کندی رضی اللہ عنہ کہتے ہیں: میں رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس بیٹھا ہوا تھا، ایک آدمی نے کہا: اے اللہ کے رسول! لوگوں نے گھوڑوں کو بےقیمت کر دیا ہے، اسلحہ ترک کر دیا ہے اور یہ کہنا شروع کر دیا ہے: اب کوئی جہاد نہیں رہا، اب لڑائی ختم ہو چکی ہے۔ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم اپنے چہرے کے ساتھ متوجہ ہوئے اور فرمایا: ”یہ لوگ خلاف حقیقت بات کر رہے ہیں۔ اب، بالکل ابھی قتال شروع ہوا ہے، میری امت کا ایک گروہ ہمیشہ حق پر لڑتا رہے گا، اللہ تعالیٰ ان کے لیے لوگوں کے دلوں کو ٹیڑھا کرتا رہے گا اور ان سے اپنے بندوں کو (مال غنیمت کی صورت میں) رزق مہیا کرتا رہے گا، حتیٰ کہ اللہ تعالیٰ کا وعدہ آ پہنچے گا۔ (یاد رکھو کہ) روز قیامت تک گھوڑے کی پیشانی میں خیر معلق رہے گی۔ میری طرف یہ وحی کی جا رہی ہے: میں فوت ہونے والا ہوں، ٹھہرنے والا نہیں ہوں، تم لوگ گروہوں کی صورت میں میر ے پیچھے چلو گے اور تم ایک دوسرے کا خون کرو گے۔ (یاد رکھنا کہ) شام مومنوں کے گھروں کی اصل ہے۔“
हज़रत सलमह बिन नुफ़ैल किन्दी रज़ि अल्लाहु अन्ह कहते हैं कि मैं रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास बेठा हुआ था। एक आदमी ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल, लोगों ने घोड़ों को बेकार कर दिया है, हथियार छोड़ दिए हैं और यह कहना शुरू कर दिया है कि अब कोई जिहाद नहीं रहा, अब लड़ाई ख़त्म हो चुकी है। रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, “ये लोग सच्च के ख़िलाफ़ बोल रहे हैं। अब, बिलकुल अभी जंग शुरू हुई है। मेरी उम्मत का एक गुट सदा सच्चाई पर लड़ता रहेगा। अल्लाह तआला उन के लिये लोगों के दिलों को टेढ़ा करता रहेगा और उन से अपने बन्दों को (माल ग़नीमत के रूप में) रिज़्क़ देता रहेगा, यहां तक कि अल्लाह तआला का वादा आपहुंचे गा। (याद रखो कि) क़यामत के दिन तक घोड़े के माथे से भलाई जुड़ी रहेगी। मेरी ओर यह वहि की जा रही है कि मैं मरने वाला हूँ, ठहरने वाला नहीं हूँ, तुम लोग समूहों के रूप में मेरे पीछे चलोगे और तुम एक दूसरे का ख़ून करोगे। (याद रखना कि) शाम मोमिनों के घरों की असल है।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 1935
قال الشيخ الألباني: - " عقر دار المؤمنين بالشام ". _____________________ أخرجه النسائي (2 / 217 - 218) وابن حبان (1617) وأحمد (4 / 104) وابن سعد في " الطبقات " (7 / 427 - 428) والبغوي في " مختصر المعجم " (9 / 130 / 1) والحربي في " غريب الحديث " (5 / 174 / 1) والطبراني في " الكبير " (6357 و 6358 و 6359) من طريق عن الوليد بن عبد الرحمن الجرشي عن جبير بن نفير عن سلمة بن نفيل الكندي قال: " كنت جالسا عند رسول الله صلى الله عليه وسلم، فقال رجل: يا رسول الله أذال الناس الخيل ووضعوا السلاح وقالوا : لا جهاد، قد وضعت الحرب أوزارها، فأقبل رسول الله صلى الله عليه وسلم بوجهه وقال: كذبوا، الآن الآن جاء القتال، ولا يزال من أمتي أمة يقاتلون على الحق، ويزيغ الله لهم قلوب أقوام ويرزقهم منهم حتى تقوم الساعة وحتى يأتي وعد الله، والخيل معقود في نواصيها الخير إلى يوم القيامة، وهو يوحي إلي: أني مقبوض غير ملبث، وأنتم تتبعوني أفنادا، يضرب بعضكم رقاب بعض وعقر ... " الحديث. قلت: وهذا إسناد صحيح على شرط مسلم. ورواه البزار في " مسنده " (1689) دون قوله: " يضرب بعضكم ... " إلخ. وزاد بعد قوله: " ... يوم القيامة ". " وأهلها معانون عليها ". وقال: " لا نعلم رواه بهذا اللفظ إلا سلمة بن نفيل وهذا أحسن إسناد يروى في ذلك، ورجاله شاميون مشهورون إلا إبراهيم بن سليمان الأفطس ". قلت: وهو ثبت كما قال دحيم. ورواه عنه الطبراني أيضا (6358) . (أذال) أي أهان. وقيل: أراد أنهم وضعوا أداة الحرب عنها وأرسلوها. كما في " النهاية ". __________جزء : 4 /صفحہ : 571__________ (يزيغ) أي يميل، في " النهاية ": " في حديث الدعاء: " لا تزغ قلبي " أي لا تمله عن الإيمان. يقال: زاغ عن الطريق يزيغ إذا عدل عنه ". ¤