इयास बिन सलमह अपने पिता हज़रत सलमह रज़ि अल्लाहु अन्ह से रिवायत करते हैं कि
(1) हम चौदह सौ लोग रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ हुदैबियह स्थान पर आए, वहां एक कुआं था, जिस से (पानी की कमी के कारण) पचास (50) बकरियां भी पानी नहीं पी सकती थीं , रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस कुएं के किनारे बैठगए, दुआ की या उस में थूका, पानी ज़ोर से निकल कर बहने लगा, तो हम ने पिया और पिलाया।
(2) फिर रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हमें बैअत के लिये पेड़ के तने के पास बुलाया, मैं ने सबसे पहले बैअत की, फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम लगातार बैअत लेते रहे, जब आधे लोग बैअत कर चुके तो आप ने मुझ से फ़रमाया ! “सलमह, बैअत करो।” मैं ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल !،मैं तो सबसे पहले बैअत करचूका हूँ। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “एक दफ़ा फिर करलो।”
(3) जब रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे बिना हथियार के देखा तो मुझे एक ढाल दी, फिर बैअत लेना शुरू करदिया, यहां तक कि सब लोगों से बैअत लेली। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझ से फ़रमाया ! “सलमह, क्या तुम बैअत नहीं करते ?” मैं ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल ! मैं सब से पहले और फिर बीच में (दो दफ़ा) बैअत करचूका हूँ। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “एक दफ़ा फिर करलो।” तो मैं ने तीसरी दफ़ा बैअत की।
(4) फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझ से फ़रमाया ! “सलमह, वह ढाल कहाँ है, जो मैं ने तुझे दी थी ?” मैं ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल, मुझे मेरे चचा मिले, उन के पास कोई हथियार नहीं था, इस लिये मैं ने उन को देदी। रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हंस पड़े और फ़रमाया ! “तुम तो उस आदमी की तरह हो जिस ने कहा कि ऐ अल्लाह, मुझे ऐसा महबूब देदे जो मुझे अपने आप से भी अधिक प्यारा हो।” (5) फिर मुशरिकों ने हमको सुलह के लिए पत्र लिखने शरू किये, यहाँ तक कि हम एक दूसरे के पास आनेजाने लग गए और सुलह होगई। मैं हज़रत तल्हा बिन उबेदुल्लाह रज़ि अल्लाहु अन्ह का आज्ञाकारी था, उनके घोड़े को पानी पिलाता, झाड़ू के द्वारा उसकी मिट्टी साफ़ करता और इनकी सेवा करता था। उन्ही का खाना खालेता था और जब अल्लाह और उसके रसूल की ओर हिजरत की तो अपने परिवार और माल दौलत को पीछे छोड़ आया था। जब हमारे और मक्का वालों के बीच सुलह होगई और हम एक दूसरे के पास आनेजाने लगे, तो मैं एक पेड़ के नीचे आया, उस के कांटे साफ़ किये और वहां लेटगया। मेरे पास मक्का के चार मुशरिक आए, उन्हों ने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बारे में अनुचित शब्द कहना शुरू करदिए, मुझे बहुत बुरा लगा, इस लिये मैं एक दूसरे पेड़ की ओर चला गया। उन्हों ने अपने हथियार लटका दिए और लेटगए, वे उसी हालत में थे कि निचली घाटी से यह आवाज़ सुनाई दी। महाजिरों, इब्न ज़ुनेम को क़त्ल करदिया गया। मैं ने अपनी तलवार निकाली और उन चारों की ओर दौड़कर गया, वे सौ रहे थे, मैं ने उन के हथियार छीन लिए और अपने हाथ में पकड़कर कहा कि उस ज़ात की क़सम जिस ने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चहरे को माननीय बनाया, तुम में से जो भी सिर उठाए गा मैं उसे मारूंगा फिर मैं उन्हें धकेल कर रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास ले आया। (6) मेरा चचा आमिर अबलात से मिकरज़ नाम के आदमी को एक कमज़ोर घोड़े पर सवार करके रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास लाया, वे सब सत्तर मुशरिक थे। रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनकी ओर देखा और फ़रमाया ! “इनको छोड़दो, बुराई और बुरे काम की शुरुआत अभी इनसे हुई और अंत भी इन्ही पर होगा।” रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनको क्षमा करदिया, उस समय अल्लाह तआला ने यह आयत उतारी ! “वही है जिसने उनके हाथ तुमसे और तुम्हारे हाथ उनसे मक्के की घाटी में रोक दिए इसके पश्चात कि वह तुम्हें उनपर हावी कर चुका था। अल्लाह उसे देख रहा था जो कुछ तुम कर रहे थे।” (सूरत अलफ़तेह: 24)
(6) फिर हम मदीना कि ओर पलटे, एक जगह पड़ाव डाला, हमारे और बनि लिहयान, जो कि मुशरिक थे, के बीच एक पहाड़ था । रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस रात को उस पहाड़ पर चढ़ने वाले के लिये क्षमा की दुआ की, यानि कि वह नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा कराम के सामने था। हज़रत सलमह रज़ि अल्लाहु अन्ह ने कहा कि मैं उस रात को पहाड़ पर दो या तीन दफ़ा चढ़ा। (9) फिर हम मदीने पहुंचे, रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी सवारी अपने ग़ुलाम रबाह के साथ भेजी, मैं भी उस के साथ हज़रत तल्हा रज़ि अल्लाहु अन्ह के घोड़े पर निकला, मैं ने घोड़े को टहोका लगाते लगाते पसीना पसीना करदिया। जब सुबह हुई तो पता चला कि अब्दुर्रहमान फज़ारी ने धोका किया, उसने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चरवाहे को क़त्ल करदिया और सवारियों को हाँककर लेगया। मैं ने कहा कि रबाह, यह घोड़ा हज़रत तल्हा बिन उबेदुल्लाह के पास पहुंचा दो और रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह संदेश दो कि मुशरिक उनके पशुओं को लूटकर लेगए हैं। मैं ख़ुद एक टीले पर खड़ा होगया, मदीने की ओर ध्यान किया और (लोगों को इकट्टा करने के लिये) तीन दफ़ा कहा ! या सबाहा। फिर मैं उन लोगों के पछे निकल पड़ा, मैं उन्हें तीर मारता और उत्साहित कविता पढ़ते हुए केहता कि मैं अकवअ का बेटा हूँ आज कमीनों (की हलाकत) का दिन है, मैं एक आदमी को पा लेता और उसके थैले में इस ज़ोर से तीर मारता कि उसके कंधे तक पहुंच जाता। फिर मैं केहता कि यह लो और मैं अकवअ का बेटा हूँ आज कमीनों (की हलाकत) का दिन है। अल्लाह की क़सम, मैं उन पर तीर फेंकता रहा, उनको हैरान करता रहा, यदि कोई घुड़सवार मेरी ओर पलटता तो मैं किसी पेड़ के तने के पास बैठ जाता और तीर मारकर उसे हैरान और परेशान करदेता। (चलते चलते) पहाड़ तंग होगया और वे इसकी तंग जगह में चले गए। मैं पहाड़ पर चढ़ गया और पत्थरों को धकेलना शुरू करदिया। मैं उन का पीछा करता रहा, यहां तक कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सारी सवारियों को अपने पीछे छोड़ गया, फिर भी मैं उनका पीछा करता रहा और उनको तीर मारता रहा, यहाँ तक कि उन्हों ने अपने आप को हल्का करने के लिये (और सामान घटाने) के लिये तीस चादरें और तीस भाले फेंक दिए। वे जो चीज़ फेंकते थे में उस पर निशानी वाले पत्थर रखदेता ताकि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और आपके सहाबा उसे पहचान लें। चलते चलते वह एक तंग घाटी में जा पहुंचे, वहां उनके पास बदर फ़ज़ारी का एक बेटा भी आ पहुंचा। उन्हों ने दोपहर का खाना खाना शुरू किया और मैं पहाड़ या टीले की चोटी पर बैठ गया। फ़ज़ारी ने पूछा कि यह कौन है, जो मुझे नज़र आरहा है ? उन्हों ने कहा कि हमें इस से बड़ी तकलीफ़ हुई है, अल्लाह की क़सम, यह सुबह से हमारा पीछा कर रहा है और हम पर तीर भी बरसाता है, यहां तक कि इसने हम से हर चीज़ छीनली है। उसने कहा कि तुम में से चार लोग इसकी ओर जाएं। तो वे पहाड़ पर चढ़ते हुए मेरी ओर आए। जब उन से बात करना संभव हुआ तो मैं ने कहा कि क्या तुम मुझे जानते हो ? उन्हों ने कहा कि नहीं, तू कौन है ? मैं ने कहा कि मैं सलमा बिन अकवाअ हूँ, उस ज़ात की क़सम जिस ने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चहरे को आदरणीय बनाया ? मैं तुम में से जिसको चाहूं पा लूंगा और तुम में से कोई मुझे नहीं पा सकता। उन में से एक ने कहा कि मेरा भी यही गुमान था। (9) वे वापस चले गए, मैं अपनी जगह पर ठहरा रहा, यहां तक कि मुझे रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के घुड़सवार नज़र आए, वे पेड़ों के बीच से चढ़े आरहे थे, उन में पहला अख़रम असदी था, उस के पीछे अबू क़तादह अन्सारी और उसके पीछे मिक़दाद बिन अस्वद किन्दी थे। मैं ने अख़रम के घोड़े की लगाम पकड़ ली। वे सारे पीठ फेरकर भाग गए। मैं ने कहा कि अख़रम, रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा कराम के मिलने तक एहतियात करना, कहीं यह आड़े न आजाएं। उस ने कहा कि सलमह यदि तुम अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखते हो और जानते हो कि जन्नत और जहन्नम सच्च हैं, तो कोई एहतियात मेरे और मेरी शहादत के बीच आड़े नहीं आ सकती। मैं ने उनको जाने दिया, उन का और अब्दुर्रहमान का मुक़ाब्ला हुआ, उन्हों ने उसके घोड़े की कूचें काट दीं और अब्दुर्रहमान ने अख़रम को भाला मारकर शहीद करदिया और उसके घोड़े पर बैठ गया। इतने में रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के घुड़सवार अबु क़तादा रज़ि अल्लाहु अन्ह अब्दुर्रहमान पर झपटे और उसको भाला मारकर हलाक करदिया। उस ज़ात की क़सम जिस ने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चहरे को आदरणीय बनाया, मैं उनके पीछे भागता रहा (और इतना आगे निकल गया कि) सहाबा कराम और उन की धुल मिट्टी नज़रों से ओझल होगई। जब यह मुशरिक लोग सूर्य के डूबने से पहले एक घाटी में पहुंचे, वहां पानी था जिसे “ज़ुक़रद” कहते थे, यह प्यासे थे, उन्हों ने पानी पीना चाहा, जब पीछे पलटकर देखा तो मैं उन के पीछे दौड़ता हुआ आरहा था, वह डर के कारण स वहां से निकल गए और पानी की एक बून्द भी न पी। उन्हों ने पहाड़ी रस्ते में भागना शुरू करदिया, मैं भी दौड़ता गया और उन के एक आदमी के मोंढे में तीर मारा और कहा कि यह ले और मैं अकवअ का बेटा हूँ आज कमीनों (की हलाकत) का दिन है उसने कहा कि तुझे तेरी मां गुम पाए, तू सुबह वाला अकवअ है ? मैं ने कहा कि ऐसा ही है, ऐ अपनी जान के दुश्मन, मैं सुबह वाला ही अकवअ हूँ। उन्हों ने उस रस्ते पर दो घोड़े छोड़ दिए। मैं उन दोनों को रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास ले आया । (10) मुझे आमिर मिले, उनके पास एक मशक में पानी मिला थोड़ा सा दूध था और एक में पानी। मैं ने वुज़ू किया और पानी पिया, फिर मैं रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया, उस समय आप उस पानी पर थे, जिस से मैं ने दुश्मनों को भगा दिया था। मैं ने देखा कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वे तमाम ऊंट और भाले चादरों जैसी सारी दूसरी चीज़ें, जो मैं ने मुशरिकों से छीनी थीं, अपने क़ब्ज़े में लेली थीं। हज़रत बिलाल रज़ि अल्लाहु अन्ह ने छीना हुआ एक ऊंट ज़िबह भी किया और उसकी कलेजी और कोहान का मांस आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिये भुना। मैं ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल, मुझे जानेदें, मैं सौ पुरुषों को चुनता हूँ, फिर हम सब मुशरिकों के पीछे चलते हैं, उन का जो भेदी मिलेगा उसे क़त्ल करदेंगे। रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हंस पड़े, यहां तक की आप के दाँत आग की रौशनी में नज़र आने लगे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “सलमह !, क्या तुम ऐसा कर लोगे ?” मैं ने कहा कि जी हाँ, उस ज़ात की क़सम जिस ने आप को इज़्ज़त दी। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “ग़तफ़ान में उनकी मेज़बानी की जाएगी ।” बाद में एक आदमी ग़तफ़ान से आया और उसने कहा कि फ़लां आदमी ने उनके लिये ऊंट ज़िबह किये थे, जब वह खाल उतार चुके तो उन्हें उठती हुई मिट्टी और धूल नज़र आई। वे कहने लगे ! (हमारा पीछा करने वाले लोग) हम तक पहुंच गए हैं, तो वे भाग गए। (11) जब सुबह हुई तो रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “आज का सबसे अछा घुड़सवार अबु क़तादा और सबसे अछा पियादा सलमह है।” फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे दो भाग दिए, एक घुड़सवार का भाग और एक पियादे का, आप ने दोनों भाग मेरे लिये इकट्टा करदिये, फिर आप ने मुझे अपनी “अज़बाअ” ऊँटनी पर बिठाया और वापस मदीने की ओर चल पड़े। (12) हम चल रहे थे, एक अन्सारी, जो दौड़ में किसी को आगे बढ़ने नहीं देता था, उस ने यह कहना शुरू करदिया कि क्या कोई मदीने तक दौड़ में मुक़ाब्ला करने वाला है ? क्या कोई मुक़ाब्ला करने वाला है ? उस ने बारबार ललकारा। जब मैं ने उसकी बात सुनी तो कहा कि क्या तू माननीय व्यक्ति की इज़्ज़त नहीं करता है, क्या तू किसी माननीय व्यक्ति का रोब स्वीकार नहीं करता ? उसने कहा कि नहीं, मगर यह कि वह अल्लाह का रसूल हो। मैं ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल, मेरे मां पिता आप पर क़ुरबान हों, मुझे जाने दीजिये, मैं उस आदमी से मुक़ाब्ला करना चाहता हूँ। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “जो तेरी मर्ज़ी है।” मैं ने कहा कि मैं तेरी ओर आरहा हूँ, मैं ने अपनी टांगों को मरोड़ा, छलांग लगाई और दौड़ पड़ा, भागते भागते एक दो टीलों को पार करगया, फिर उसके पीछे दौड़ पड़ा, एक दो टीलों तक दौड़ता रहा, फिर तेज़ हुआ और उसको जा मिला, मैं ने उसकी पीठ पर अपना हाथ मारा और कहा कि अल्लाह की क़सम, तू हार गया है। उस ने कहा कि अभी तक मुझे आशा है। फिर मैं मदीने तक उससे आगे निकल गया। (13) अल्लाह की क़सम हम केवल तीन रातें ठहरे थे, अंत में हम ख़ैबर की ओर निकल पड़े, मेरे चचा आमिर ने यह उत्साहित कविता पढ़ना शुरू करदी, अल्लाह की क़सम यदि अल्लाह न होता तो हम हिदायत न पाते, न सदक़ह करते और न नमाज़ पढ़ते और हम तेरे फ़ज़ल से धनी नहीं हो सकते यदि दुश्मनों से टककर होजाए तो हमें पक्के क़दम रखना और हम पर सुकून और आराम देना। रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा ! “यह कौन है ?”, उन्हों ने कहा कि मैं आमिर हूँ। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “तेरा रब्ब तुझे क्षमा करदे।” उन्हों ने कहा कि जब भी रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने विशेष किसी इन्सान के लिये क्षमा की मांग की तो वह शहीद हुआ। हज़रत उमर बिन ख़त्ताब रज़ि अल्लाहु अन्ह ने जबकि वह ऊंट पर थे, पुकारा कि ऐ अल्लाह के नबी, आप ने हमें आमिर से लाभ क्यों न उठाने दिया (यानि हमें दुआ में शरीक क्यों न किया) ? (14) जब हम ख़ैबर में पहुंचे तो उन का बादशाह मरहब अपनी तलवार को लहराते हुए निकला और कहने लगा कि ख़ैबर जानता है कि मैं मरहब हूँ हथियार बंद, सूरमा और मंझा हुआ हूँ जब लड़ाइयां भड़क उठती हैं तो मैं ही होता हूँ उस के मुक़ाबले के लिये मेरे चचा आमिर रज़ि अल्लाहु अन्ह निकले और कहा कि ख़ैबर अच्छी तरह जानता है कि मैं आमिर हूँ। बिल्कुल तैयार हूँ, निडर बहादुर हूँ, जान की बाज़ी लगाने वाला हूँ, तलवार से मुक़ाबला शुरू हुआ, मरहब की तलवार हज़रत आमिर रज़ि अल्लाहु अन्ह की ढाल पर लगी, आमिर झुके और उनकी अपनी तलवार से उसके बाज़ू की रग कट गई और इसी में उनकी शहादत थी। (15) सलमह ने कहा कि मैं निकला और अस्हाब रसूल को कहते सुना, आमिर का कर्म बेकार हो गया, उसने आत्महत्या करली है। मैं रोता हुआ रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया और कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल, क्या आमिर का कर्म बेकार हो गया है ? रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा ! “कौन ऐसी बात कर रहा है।” मैं ने कहा कि आप के सहाबा। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “जिस ने भी यह बात कही, उसने सच्च नहीं कहा, आमिर को तो दो बदले मिलेंगे।” फिर आप ने मुझे हज़रत अली रज़ि अल्लाहु अन्ह को बुलाने के लिये उनकी ओर भेजा, वह उस समय आंख दुखने के रोगी थे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “मैं ऐसे आदमी को झंडा दूँगा जो अल्लाह और उसके रसूल से मुहब्बत करता है और अल्लाह और रसूल उस से मुहब्बत करते हैं।” मैं अली रज़ि अल्लाहु अन्ह के पास आया और आंख में तकलीफ़ होने के बावजूद मैं उन्हें रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास ले आया। आप ने उन की आंखों में अपना थूक लगाया, वह स्वस्थ होगए, फिर उन्हें झंडा दिया। अब की बार मरहब निकला और कहा कि ख़ैबर जानता है कि मैं मरहब हूँ हथियार-बंद हूँ, सूरमा हूँ और मंझा हुआ हूँ जब लड़ाइयां भड़क उठती हैं तो मैं होता हूँ, हज़रत अली रज़ि अल्लाहु अन्ह ने कहा कि मैं वह हूँ जिस का नाम मां ने हैदर रखा, जंगलों का शेर हूँ, भयंकर दखाई देता हूँ, मैं इन्हें साअ के बदले भाले की नाप पूरी कर दूँगा। हज़रत अली रज़ि अल्लाहु अन्ह ने मरहब के सिर पर चोट मारी और उनके हाथों (ख़ैबर) पर विजय प्राप्त की।