-" إنه لم يكن نبي قبلي إلا كان حقا عليه ان يدل امته على خير ما يعلمه لهم، وينذرهم شر ما يعلمه لهم، وإن امتكم هذه جعل عافيتها في اولها، وسيصيب آخرها بلاء وامور تنكرونها، وتجيء فتنة، فيرقق بعضها بعضا، وتجيء الفتنة فيقول المؤمن: هذه مهلكتي، ثم تنكشف، وتجيء الفتنة فيقول المؤمن: هذه هذه، فمن احب ان يزحزح عن النار ويدخل الجنة، فلتاته منيته وهو يؤمن بالله واليوم الآخر، وليات إلى الناس الذي يحب ان يؤتى إليه، ومن بايع إماما فاعطاه صفقة يده، وثمرة قلبه، فليطعه إن استطاع، فإن جاء آخر ينازعه فاضربوا عنق الآخر".-" إنه لم يكن نبي قبلي إلا كان حقا عليه أن يدل أمته على خير ما يعلمه لهم، وينذرهم شر ما يعلمه لهم، وإن أمتكم هذه جعل عافيتها في أولها، وسيصيب آخرها بلاء وأمور تنكرونها، وتجيء فتنة، فيرقق بعضها بعضا، وتجيء الفتنة فيقول المؤمن: هذه مهلكتي، ثم تنكشف، وتجيء الفتنة فيقول المؤمن: هذه هذه، فمن أحب أن يزحزح عن النار ويدخل الجنة، فلتأته منيته وهو يؤمن بالله واليوم الآخر، وليأت إلى الناس الذي يحب أن يؤتى إليه، ومن بايع إماما فأعطاه صفقة يده، وثمرة قلبه، فليطعه إن استطاع، فإن جاء آخر ينازعه فاضربوا عنق الآخر".
سیدنا عبدالرحمن بن عبدرب کعبہ کہتے ہیں: میں مسجد الحرام میں داخل ہوا، وہاں کعبہ کے سائے میں سیدنا عبداللہ بن عمرو بن عاص رضی اللہ عنہ بیٹھے ہوئے تھے اور ان کے ارد گرد لوگ جمع تھے، میں ان کے پاس آیا اور وہاں بیٹھ گیا۔ انہوں نے کہا: ہم رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے ساتھ ایک سفر میں تھے، ایک مقام پر پڑاؤ ڈالا، کوئی اپنے خیمے کو درست کرنے لگ گیا، کوئی تیر اندازی میں مقابلہ کر رہا تھا اور کوئی جانوروں میں مصروف تھا، اچانک رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کی طرف سے اعلان کرنے والے نے (لوگوں کو اکٹھا کرنے کے لیے) یہ آواز دی: «الصلاة جامعة» ۔ سو ہم رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس جمع ہو گئے، آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ”مجھ سے پہلے ہر نبی پر حق تھا کہ اپنی امت کو ہر اس خیر و بھلائی کی تعلیم دے، جس کا اسے علم تھا اور اس کو ہر اس شر سے متنبہ کر دے، جس کا اس کو علم تھا، (میں یہی فریضہ ادا کرتے ہوئے کہوں گا کہ) تمہاری اس امت کے ابتدائی دور میں (سلامتی و) عافیت ہے، لیکن بعد والے دور میں (فرزندان امت) آزمائشوں اور ناپسندیدہ امور میں مبتلا ہو جائیں گے، فتنے نمودار ہوں گے اور (ہر بعد والا) فتنہ (اپنی شدت کی وجہ سے پہلے والے) فتنے کی سختی کو کم کر دے گا۔ ایک فتنہ ابھرے گا، اسے دیکھ کر مومن کہے گا: یہ میری ہلاکت گاہ ہو گی، لیکن وہ چھٹ جائے گا۔ دوسرا فتنہ ظاہر ہو گا، مومن اسے دیکھ کر کہے گا: یہ ہے (میری ہلاکت گاہ)، یہ ہے۔ (خلاصہ یہ ہے کہ) جو یہ چاہتا ہو گا کہ اسے جہنم سے بچا لیا جائے اور جنت میں داخل کر دیا جائے، اس کی موت اس حال میں آئے کہ وہ اللہ تعالیٰ اور یوم آخرت پر ایمان رکھتا ہو اور لوگوں سے وہی معاملہ کرتا ہو، جو ان سے اپنے لیے پسند کرتا ہے۔ جس نے کسی امام کی بیعت کی، اس کی اطاعت کو اپنے اوپر لازم قرار دیا اور اس سے پکا عہد کیا اور دل سے اس سے محبت کی، تو وہ حسب استطاعت اس کی اطاعت کرے۔ اگر کوئی دوسرا (خلیفہ) اس سے اختلاف شروع کر کے (بغاوت شروع کر دے) تو اس دوسرے کا سر قلم کر دو۔“ میں (عبدالرحمن) ان کے قریب ہوا اور کہا: میں تجھے اللہ تعالیٰ کی قسم دیتا ہوں! کیا تو نے یہ حدیث رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم سے سنی ہے؟ انہوں نے اپنے ہاتھوں کو اپنے کانوں اور دل کے ساتھ لگایا اور کہا: میرے کانوں نے سنا اور میرے دل نے یاد کیا۔ میں نے کہا: یہ آپ کے چچا زاد سیدنا معاویہ رضی اللہ عنہ ہیں، وہ ہمیں حکم دیتے ہیں کہ ہم لوگ اپنا مال باطل طریقے سے کھائیں اور اپنے آپ کو قتل کریں، جبکہ اللہ تعالیٰ فرماتے ہیں: ”اے ایمان والو! اپنے آپس کے مال ناجائز طریقے سے مت کھاؤ، مگر یہ کہ تمہاری آپس کی رضامندی سے خرید و فروخت ہو اور اپنے آپ کو قتل نہ کرو، یقینا اللہ تعالیٰ تم پر نہایت مہربان ہے۔“(سورہ نسا: ۲۹) یہ سن کر وہ (عبداللہ بن عمرو بن عاص رضی اللہ عنہ) خاموش ہو گئے اور پھر کہا: اگر وہ اللہ تعالیٰ کی اطاعت کرے تو اس کی اطاعت کر اور اللہ کی نافرمانی کی صورت میں اس کی نافرمانی کر۔
हज़रत अब्दुर्रहमान बिन अब्द रब्ब कअबा कहते हैं कि मैं मस्जिद अल-हराम में गया, वहां काअबा की छाया में हज़रत अब्दुल्लाह बिन अमरो बिन आस रज़ि अल्लाहु अन्ह बैठे हुए थे और उनके आस पास लोग जमा थे, मैं उनके पास आया और वहां बैठ गया। उन्हों ने कहा कि हम रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ एक यात्रा में थे, एक जगह पर पड़ाव डाला, कोई अपने तम्बू को ठीक करने लग गया, कोई तीर अंदाज़ी में मुक़ाब्ला कर रहा था और कोई जानवरों को देखने लगा, अचानक रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ़ से एलान करने वाले ने (लोगों को इकट्ठा करने के लिए) ये आवाज़ दी ! अस्सलातु जामिआ « الصلاة جامعة » । तो हम रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास जमा होगए, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “मुझ से पहले हर नबी पर ज़िम्मेदारी थी कि अपनी उम्मत को हर उस अच्छाई और भलाई की शिक्षा दे, जिस का उसे ज्ञान था और उसको हर उस बुराई से हुशियार करदे, जिसकि उसको जानकारी थी, मैं कहता हूँ तुम्हारी इस उम्मत के पहले समय में सुरक्षा और सुविधा है, लेकिन बाद वाले समय में (उम्मत के लोग) परीक्षाओं और पसंद न आने वाले मुद्दों में पड़ जाएंगे, फ़ितने पैदा होंगे और हर बाद वाला फ़ितना पहले वाले फ़ितने से अधिक गंभीर होगा। एक फ़ितना उभरेगा, उसे देख कर मोमिन कहेगा ! यह मेरी हलाकत की जगह होगी, लेकिन वह छट जाएगा। दूसरा फ़ितना उभरेगा, मोमिन उसे देख कर कहेगा कि यह है (मेरी हलाकत की जगह)। यानि यह कि जो यह चाहता होगा कि उसे जहन्नम से बचा लिया जाए और जन्नत में भेज दिया जाए, उसकी मौत इस हाल में आए कि वह अल्लाह तआला और आख़िरत के दिन पर ईमान रखता हो और लोगों से वही मामला करता हो, जो उनसे अपने लिए पसंद करता है। जिस ने किसी इमाम की बैअत की, उसकी आज्ञाकारी को अपने उपर ज़रूरी ठहराया और उस से पक्का वादा किया और दिल से उस से मुहब्बत की, तो वह अपनी क्षमता के अनुसार उस की आज्ञा का पालन करे। यदि कोई दूसरा (ख़लीफ़ा) उस से मतभेद शुरू करके (बग़ावत शुरू करदे) तो उस दूसरे का सर काट दे।” मैं (अब्दुर्रहमान) उनके क़रीब हुआ और कहा कि मैं तुझे अल्लाह तआला की क़सम देता हूँ, क्या तू ने ये हदीस रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुनी है ? उन्हों ने अपने हाथों को अपने कानों और दिल के साथ लगाया और कहा कि मेरे कानों ने सुना और मेरे दिल ने याद किया। मैं ने कहा कि यह आप के चचेरे हज़रत मुआव्या रज़ि अल्लाहु अन्ह हैं, वह हमें हुक्म देते हैं कि हम लोग अपना माल झूठे तरीक़े से खाएँ और अपने आप को क़त्ल करें, जबकि अल्लाह तआला कहता है ! « يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَأْكُلُوا أَمْوَالَكُم بَيْنَكُم بِالْبَاطِلِ إِلَّا أَن تَكُونَ تِجَارَةً عَن تَرَاضٍ مِّنكُمْ ۚ وَلَا تَقْتُلُوا أَنفُسَكُمْ ۚ إِنَّ اللَّـهَ كَانَ بِكُمْ رَحِيمًا » “ऐ ईमान वालो ! अपने आपस के माल नाजाइज़ तरीक़े से मत खाओ, मगर ये कि तुम्हारी आपस की सहमति से ख़रीदा और बेचा जाए और अपने आप को क़त्ल न करो, बेशक अल्लाह तआला तुम पर बेहद महरबान है।” (सूरत अन-निसा: 29) यह सुनकर वह (अब्दुल्लाह बिन अमरो बिन आस रज़ि अल्लाहु अन्ह) ख़ामोश होगए और फिर कहा, यदि वह अल्लाह तआला की आज्ञाकारी करे तो उसकी आज्ञाकारी कर और यदि वह अल्लाह की आज्ञाकारी न करे तो उसकी आज्ञाकारी न कर।
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 241
قال الشيخ الألباني: - " إنه لم يكن نبي قبلي إلا كان حقا عليه أن يدل أمته على خير ما يعلمه لهم، وينذرهم شر ما يعلمه لهم، وإن أمتكم هذه جعل عافيتها في أولها، وسيصيب آخرها بلاء وأمور تنكرونها، وتجيء فتنة، فيرقق بعضها بعضا، وتجيء الفتنة فيقول المؤمن: هذه مهلكتي، ثم تنكشف، وتجيء الفتنة فيقول المؤمن: هذه هذه ، فمن أحب أن يزحزح عن النار ويدخل الجنة، فلتأته منيته وهو يؤمن بالله واليوم الآخر، وليأت إلى الناس الذي يحب أن يؤتى إليه، ومن بايع إماما فأعطاه صفقة يده، وثمرة قلبه، فليطعه إن استطاع، فإن جاء آخر ينازعه فاضربوا عنق الآخر ". _____________________ أخرجه مسلم (6 / 18) والسياق له والنسائي (2 / 185) وابن ماجه (2 / 466 - 467) وأحمد (2 / 191) من طرق عن الأعمش عن زيد بن وهب عن عبد الرحمن بن عبد رب الكعبة قال: دخلت المسجد، فإذا عبد الله بن عمرو بن العاص جالس في ظل الكعبة، والناس مجتمعون عليه، فأتيتهم فجلست إليه، فقال: " كنا مع رسول الله صلى الله عليه وسلم في سفر، فنزلنا منزلا، فمنا من يصلح خباءه، ومنا من ينتضل، ومنا من هو في جشره، إذ نادى منادي رسول الله صلى الله عليه وسلم: الصلاة جامعة، فاجتمعنا إلى رسول الله صلى الله عليه وسلم فقال: " فذكره. وزاد في آخره: " فدنوت منه، فقلت له: أنشدك الله آنت سمعت هذا من رسول الله صلى الله عليه وسلم ؟ فأهوى إلى أذنيه وقلبه بيديه، وقال: سمعته أذناي، ووعاه قلبي، فقلت له: هذا ابن عمك معاوية يأمرنا أن نأكل أموالنا بيننا بالباطل، ونقتل أنفسنا، والله يقول: (يا أيها الذين آمنوا لا تأكلوا أموالكم بينكم بالباطل إلا أن تكون تجارة عن تراض منكم، ولا تقتلوا أنفسكم إن الله كان بكم رحيما) قال: فسكت ساعة ثم قال: أطعه في طاعة الله، واعصه في معصية الله ". وليس عند غير مسلم قوله: " فقلت له هذا ابن عمك ... " الخ. ثم أخرجه أحمد من طريق الشعبي عن عبد الرحمن بن عبد رب الكعبة به، وكذا رواه مسلم في رواية ولم يسوقا لفظ الحديث، وإنما أحالا فيه على حديث الأعمش. __________جزء : 1 /صفحہ : 485__________ غريب الحديث 1 - (فيرقق بعضها بعضا) . أي يجعل بعضها بعضا رقيقا، أي: خفيفا لعظم ما بعده، فالثاني يجعل الأول رقيقا. 2 - (صفقة يده) أي: معاهدته له والتزام طاعته، وهي المرة من التصفيق باليدين، وذلك عند البيعة بالخلافة. 3 - (ثمرة قلبه) أي خالص عهده أو محبته بقلبه. 4 - (فاضربوا عنق الآخر) . قال النووي: " معناه: ادفعوا الثاني فإنه خارج على الإمام، فإن لم يندفع إلا بحرب، وقاتل، فقاتلوه. فإن دعت المقاتلة إلى قتله، جاز قتله، ولا ضمان فيه لأنه ظالم متعد في قتاله ". وفي الحديث فوائد كثيرة، من أهمها أن النبي يجب عليه أن يدعو أمته إلى الخير ويدلهم عليه، وينذرهم شر ما يعلمه لهم، ففيه رد صريح على ما ذكر في بعض كتب الكلام أن النبي من أوحي إليه، ولم يؤمر بالتبليغ! ¤