سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر

سلسله احاديث صحيحه
सिलसिला अहादीस सहीहा
بیماری، نماز جنازہ، قبرستان
बीमारी, नमाज़ जनाज़ा और क़ब्रस्तान
1149. مومن اور کافر کی موتوں کے منظر، عالم برزخ میں مومنوں کی ارواح کا آپس میں تعارف
“ मोमिन और काफ़िर की मौत का दृश्य ، बरज़ख़ में मोमिनों की आत्माओं की आपस में बातचीत ”
حدیث نمبر: 1713
Save to word مکررات اعراب Hindi
-" إن المؤمن ينزل به الموت ويعاين ما يعاين، فود لو خرجت - يعني نفسه - والله يحب لقاءه، وإن المؤمن يصعد بروحه إلى السماء، فتاتيه ارواح المؤمنين فيستخبرونه عن معارفهم من اهل الارض، فإذا قال: تركت فلانا في الدنيا اعجبهم ذلك، وإذا قال: إن فلانا قد مات، قالوا: ما جيء به إلينا. وإن المؤمن يجلس في قبره فيسال: من ربه؟ فيقول: ربي الله. فيقال: من نبيك؟ فيقول: نبيي محمد صلى الله عليه وسلم. قال: فما دينك؟ قال: ديني الإسلام. فيفتح له باب في قبره فيقول او يقال: انظر إلى مجلسك. ثم يرى القبر، فكانما كانت رقدة. فإذا كان عدوا لله نزل به الموت وعاين ما عاين، فإنه لا يحب ان تخرج روحه ابدا، والله يبغض لقاءه، فإذا جلس في قبره او اجلس، فيقال له: من ربك؟ فيقول: لا ادري! فيقال: لا دريت. فيفتح له باب من جهنم، ثم يضرب ضربة تسمع كل دابة إلا الثقلين، ثم يقال له: نم كما ينام المنهوش - فقلت لابي هريرة: ما المنهوش؟ قال: الذي ينهشه الدواب والحيات - ثم يضيق عليه قبره".-" إن المؤمن ينزل به الموت ويعاين ما يعاين، فود لو خرجت - يعني نفسه - والله يحب لقاءه، وإن المؤمن يصعد بروحه إلى السماء، فتأتيه أرواح المؤمنين فيستخبرونه عن معارفهم من أهل الأرض، فإذا قال: تركت فلانا في الدنيا أعجبهم ذلك، وإذا قال: إن فلانا قد مات، قالوا: ما جيء به إلينا. وإن المؤمن يجلس في قبره فيسأل: من ربه؟ فيقول: ربي الله. فيقال: من نبيك؟ فيقول: نبيي محمد صلى الله عليه وسلم. قال: فما دينك؟ قال: ديني الإسلام. فيفتح له باب في قبره فيقول أو يقال: انظر إلى مجلسك. ثم يرى القبر، فكأنما كانت رقدة. فإذا كان عدوا لله نزل به الموت وعاين ما عاين، فإنه لا يحب أن تخرج روحه أبدا، والله يبغض لقاءه، فإذا جلس في قبره أو أجلس، فيقال له: من ربك؟ فيقول: لا أدري! فيقال: لا دريت. فيفتح له باب من جهنم، ثم يضرب ضربة تسمع كل دابة إلا الثقلين، ثم يقال له: نم كما ينام المنهوش - فقلت لأبي هريرة: ما المنهوش؟ قال: الذي ينهشه الدواب والحيات - ثم يضيق عليه قبره".
سیدنا ابوہریرہ رضی اللہ عنہ بیان کرتے ہیں کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: جب مومن پر عالم نزع طاری ہوتا ہے تو وہ مختلف حقائق کا مشاہدہ کر کے یہ پسند کرتا ہے کہ اس کی روح نکل جائے (تاکہ وہ اللہ تعالیٰ سے ملاقات کر سکے) اور اللہ تعالیٰ بھی اس کی ملاقات کو پسند کرتے ہیں۔ مومن کی روح آسمان کی طرف بلند ہوتی ہے اور (فوت شدگان) مومنوں کی ارواح کے پاس پہنچ جاتی ہے۔ وہ اس سے اپنے جاننے پہچاننے والوں کے بارے میں دریافت کرتی ہیں۔ جب وہ روح جواب دیتی ہے کہ فلاں تو ابھی تک دنیا میں ہی تھا (یعنی ابھی تک فوت نہیں ہوا تھا) تو وہ خوش ہوتی ہیں اور جب وہ جواب دیتی ہے کہ (جس آدمی کے بارے میں تم پوچھ رہی ہو) وہ تو مر چکا ہے، تو وہ کہتی ہیں: اسے ہمارے پاس نہیں لایا گیا (اس کا مطلب یہ ہوا کہ اسے جہنم میں لے جایا گیا ہے)۔ مومن کو قبر میں بٹھا دیا جاتا ہے اور اس سے سوال کیا جاتا ہے کہ تیرا رب کون ہے؟ وہ جواب دیتا ہے: میرا رب اللہ ہے۔ پھر کہا جاتا ہے کہ تیرا نبی کون ہے؟ وہ جواب دیتا ہے: میرے نبی محمد ( صلی اللہ علیہ وسلم ) ہیں۔ پھر سوال کیا جاتا ہے کہ تیرا دین کیا ہے؟ وہ جواب دیتا ہے: میرا دین اسلام ہے۔ (ان سوالات و جوابات کے بعد) اس کی قبر میں ایک دروازہ کھولا جاتا ہے اور اسے کہا جاتا ہے کہ اپنے ٹھکانے کی طرف دیکھ۔ وہ اپنی قبر کی طرف دیکھتا ہے، پھر گویا کہ نیند طاری ہو جاتی ہے۔ جب اللہ کے دشمن پر عالم نزع طاری ہوتا ہے اور وہ مختلف حقائق کا مشاہدہ کرتا ہے تو وہ نہیں چاہتا کہ اس کی روح نکلے (تاکہ وہ اللہ تعالیٰ کی ملاقات سے بچ جائے) اور اللہ تعالیٰ بھی اس کی ملاقات کو ناپسند کرتا ہے۔ جب اسے قبر میں بٹھا دیا جاتا ہے تو پوچھا جاتا ہے کہ تیرا رب کون ہے؟ وہ جواب دیتا ہے: میں تو نہیں جانتا۔ اسے کہا جاتا ہے: تو نے جانا ہی نہیں۔ پھر (اس کی قبر میں) جہنم سے دروازہ کھولا جاتا ہے اور اسے ایسی ضرب لگائی جاتی ہے کہ جن و انس کے علاوہ ہر چوپایہ اس کو سنتا ہے۔ پھر اسے کہا جاتا ہے کہ «منهوش» کی نیند سو جا۔ میں نے سیدنا ابوہریرہ ضی اللہ عنہ سے پوچھا: «منهوش» سے کیا مراد ہے؟ انہوں نے کہا: «منهوش» سے مراد وہ آدمی ہے جسے کیڑے مکوڑے اور سانپ ڈستے اور نوچتے رہتے ہیں۔ پھر اس پر اس کی قبر تنگ کردی جاتی ہے۔
हज़रत अबु हुरैरा रज़ि अल्लाहु अन्ह कहते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “जब मोमिन नज़अ की हालत (यानि जब साँस उखड़ जाता है) में होता है तो वह बहुत सी सच्ची बातों पर ध्यान करके यह पसंद करता है कि उस की आत्मा निकल जाए (ताकि वह अल्लाह तआला से मिले) और अल्लाह तआला भी उस से मिलना पसंद करता है। मोमिन की आत्मा आसमान की ओरजाती है और (मर चुके) मोमिनों की आत्माओं के पास पहुंच जाती है। वह उस से अपने जानने पहचानने वालों के बारे में पूछती हैं। जब वह आत्मा जवाब देती है कि फ़ुलां तो अभी तक दुनिया में ही था (यानी अभी तक मरा नहीं) तो वे ख़ुश होती हैं और जब वह जवाब देती है कि (जिस आदमी के बारे में तुम पूछ रही हो) वह तो मर चूका है तो वे कहती हैं कि उसे हमारे पास नहीं लाया गया (इस का मतलब यह हुआ कि उसे जहन्नम में ले जाया गया है।) मोमिन को क़ब्र में बिठा दिया जाता है और उस से सवाल क्या जाता है कि तेरा रब्ब कौन है ? वह जवाब देता है ! मेरा रब्ब अल्लाह है। फिर कहा जाता है कि तेरा नबी कौन है ? वह जवाब देता है कि मेरे नबी मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) हैं। फिर सवाल क्या जाता है कि तेरा दीन क्या है ? वह जवाब देता है कि मेरा दीन इस्लाम है। (इन सवालात और जवाब के बाद) उस की क़ब्र में एक दरवाज़ा खोला जाता है और उस से कहा जाता है कि अपने ठिकाने की ओर देख। वह अपनी क़ब्र की ओर देखता है फिर जैसे कि नींद आने लगती है। जब अल्लाह के दुश्मन पर नज़अ की हालत होती (यानि जब साँस उखड़ जाता) है और वह बहुत सी सच्ची बातों पर ध्यान करता है तो वह नहीं चाहता कि उस की आत्मा निकले (ताकि वह अल्लाह तआला से न मिले) और अल्लाह तआला भी उस से मिलना पसंद नहीं करता है। जब इसे क़ब्र में बिठा दिया जाता है तो पूछा जाता है कि तेरा रब्ब कौन है ? वह जवाब देता है कि मैं तो नहीं जानता। उस से कहा जाता है कि तू ने जाना ही नहीं। फिर (उस की क़ब्र में) जहन्नम से दरवाज़ा खोला जाता है और उसे ऐसी चोट लगाई जाती है कि जिन्न और इन्सान के सिवा हर चोपाया उस को सुनता है। फिर उस से कहा जाता है कि “मनहूष” « مَنهُوش » की नींद सौजा।” मैं ने हज़रत अबु हुरैरा रज़ि अल्लाह अन्ह से पूछा कि “मनहूष” « مَنهُوش » से क्या मुराद है ? उन्हों ने कहा कि “मनहूष” « مَنهُوش » से मुराद वह आदमी है जिसे कीड़े मकोड़े और सांप डसते और नोचते रहते हैं। “फिर उस पर उस की क़ब्र तंग करदी जाती है।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 2628

قال الشيخ الألباني:
- " إن المؤمن ينزل به الموت ويعاين ما يعاين، فود لو خرجت - يعني نفسه - والله يحب لقاءه، وإن المؤمن يصعد بروحه إلى السماء، فتأتيه أرواح المؤمنين فيستخبرونه عن معارفهم من أهل الأرض، فإذا قال: تركت فلانا في الدنيا أعجبهم ذلك، وإذا قال: إن فلانا قد مات، قالوا: ما جيء به إلينا. وإن المؤمن يجلس في قبره فيسأل: من ربه؟ فيقول: ربي الله. فيقال: من نبيك؟ فيقول: نبيي محمد صلى الله عليه وسلم . قال: فما دينك؟ قال: ديني الإسلام. فيفتح له باب في قبره فيقول أو يقال: انظر إلى مجلسك. ثم يرى القبر، فكأنما كانت رقدة. فإذا كان عدوا لله نزل به الموت وعاين ما عاين، فإنه لا يحب أن تخرج روحه أبدا، والله يبغض لقاءه، فإذا جلس في قبره أو أجلس، فيقال له: من ربك ؟ فيقول: لا أدري! فيقال: لا دريت. فيفتح له باب من جهنم، ثم يضرب ضربة تسمع كل دابة إلا الثقلين، ثم يقال له: نم كما ينام المنهوش - فقلت لأبي هريرة: ما المنهوش؟ قال: الذي ينهشه الدواب والحيات - ثم يضيق عليه قبره ".
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‏‏‏‏أخرجه البزار في " مسنده " (ص 92 - زوائده) : حدثنا سعيد بن بحر القراطيسي
‏‏‏‏حدثنا الوليد بن القاسم حدثنا يزيد بن كيسان عن أبي حازم عن أبي هريرة -
‏‏‏‏أحسبه رفعه - قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم : ... فذكره. وقال
‏‏‏‏البزار: " لا نعلم رواه عن يزيد هكذا إلا الوليد ". قلت: وهو صدوق يخطىء
‏‏‏‏كما في " التقريب "، ومن فوقه من رجال الشيخين، وقال الهيثمي عقبه: " في "
‏‏‏‏الصحيح " بعضه، ورجاله ثقات، خلا شيخ البزار فإني لا أعرفه ". قال الحافظ
‏‏‏‏ابن حجر عقبه: " قلت: هو موثق، ولم يتفرد به ". قلت: له ترجمة في " تاريخ
‏‏‏‏بغداد " (9 / 93) وقال: " وكان ثقة، مات سنة ثلاث وخمسين يعني ومائتين
‏‏‏‏".
‏‏‏‏__________جزء : 6 /صفحہ : 263__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏وقال السيوطي في " شرح الصدور " (ص 38) : " سنده صحيح "! وللشطر الأول
‏‏‏‏منه شاهد موقوف من طريق ثور بن يزيد عن أبي رهم السمعي عن أبي أيوب الأنصاري
‏‏‏‏قال: " إذا قبضت نفس العبد تلقاه أهل الرحمة من عباد الله كما يلقون البشير في
‏‏‏‏الدنيا، فيقبلون عليه ليسألوه، فيقول بعضهم لبعض: أنظروا أخاكم حتى يستريح
‏‏‏‏فإنه كان في كرب، فيقبلون عليه فيسألونه: ما فعل فلان؟ ما فعلت فلانة؟ هل
‏‏‏‏تزوجت؟ فإذا سألوا عن الرجل قد مات قبله قال لهم: إنه قد هلك، فيقولون: إنا
‏‏‏‏لله وإنا إليه راجعون، ذهب به إلى أمه الهاوية، فبئست الأم وبئست المربية،
‏‏‏‏قال: فيعرض عليهم أعمالهم، فإذا رأوا حسنا فرحوا واستبشروا، وقالوا: هذه
‏‏‏‏نعمتك على عبدك فأتمها، وإن رأوا سوءا قالوا: اللهم راجع بعبدك ". أخرجه
‏‏‏‏عبد الله بن المبارك في " الزهد " (443) . قلت: ورجاله ثقات لكنه منقطع بين
‏‏‏‏ثور بن يزيد وأبي رهم. وقد وصله ورفعه سلام الطويل فقال: عن ثور عن خالد
‏‏‏‏بن معدان يعني: عن أبي رهم رفعه. أخرجه ابن صاعد في زوائد " الزهد " (444)
‏‏‏‏، لكن سلام هذا متروك، لكن ذكره ابن القيم في " الروح " (ص 20) من طريق
‏‏‏‏معاوية بن يحيى عن عبد الله بن سلمة أن أبا رهم السمعي حدثه أن أبا أيوب
‏‏‏‏الأنصاري حدثه أن رسول الله صلى الله عليه وسلم قال: ... فذكره دون تخريج،
‏‏‏‏وقد عزاه في " شرح الصدور " لابن أبي الدنيا والطبراني في " الأوسط "، وسكت
‏‏‏‏عنه، ومعاوية بن يحيى ضعيف. ثم ذكر السيوطي من رواية آدم بن أبي إياس في "
‏‏‏‏تفسيره ": حدثنا المبارك بن فضالة عن الحسن مرفوعا:
‏‏‏‏__________جزء : 6 /صفحہ : 264__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏" إذا مات العبد تلقى
‏‏‏‏روحه أرواح المؤمنين فيقولون له: ما فعل فلان؟ ما فعل فلان؟ فإذا قال: مات
‏‏‏‏قبلي، قالوا: ذهب به إلى أمه الهاوية، فبئست الأم وبئست المربية ". قلت:
‏‏‏‏وهذا مرسل ضعيف الإسناد. ثم ذكر آثارا كثيرة بمعناه. وبالجملة فالحديث صحيح
‏‏‏‏كما قال السيوطي بهذه الشواهد والله أعلم. ثم رأيت القرطبي قال في " التذكرة
‏‏‏‏" (ق 40 / 2 - 41 / 1) بعد أن ذكر أثر ابن المبارك المتقدم عن أبي أيوب
‏‏‏‏وغيره من الآثار: " وهذه الأخبار وإن كانت موقوفة فمثلها لا يقال من جهة
‏‏‏‏الرأي، وقد خرج النسائي بسنده عن أبي هريرة ... الحديث، وفيه: " فيأتون به
‏‏‏‏أرواح المؤمنين فلهم أشد فرحا به من أحدكم بغائبه، يقدم عليه فيسألونه: ماذا
‏‏‏‏فعل فلان؟ ماذا فعل فلان؟ فيقولون: دعوه فإنه كان في غم الدنيا.... "
‏‏‏‏الحديث ". قلت: وقد سبق تخريجه برقم (1309) وسيعاد بتوسع برقم (2758) .
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