-" إن عظم الجزاء مع عظم البلاء، وإن الله إذا احب قوما ابتلاهم، فمن رضي فله الرضا، ومن سخط فله السخط".-" إن عظم الجزاء مع عظم البلاء، وإن الله إذا أحب قوما ابتلاهم، فمن رضي فله الرضا، ومن سخط فله السخط".
سیدنا انس رضی اللہ عنہ سے روایت ہے، نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ”اجر و ثواب میں اضافہ آزمائش میں اضافے کے ساتھ ہے (یعنی آزمائش جتنی عظیم ہو گی، اس کا بدلہ بھی اسی قدر عظیم ہو گا) اور اللہ تعالیٰ جب کسی قوم کو پسند فرماتا ہے تو ان کو آزمائش سے دو چار کر دیتا ہے، پس جو اس میں صبر و رضا کا مظاہرہ کرتا ہے، اس کے لیے (اللہ کی) رضا ہے اور جو اس کی وجہ سے اللہ سے ناراضگی اور برہمی کا اظہار کرتا ہے، اس کے لیے (اللہ کی) ناراضی ہے۔“
हज़रत अनस रज़ि अल्लाहु अन्ह से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “परीक्षा जितनी बड़ी होती है तो बदला और सवाब भी उतना ही बड़ा होता है और अल्लाह तआला जब किसी क़ौम को पसंद करता है तो उन को परीक्षा में डाल देता है, बस जो इस में सब्र और ख़ुशी दिखाता है, उस के लिये (अल्लाह की) सहमति है और जो इस के कारण अल्लाह से नाराज़गी और ग़ुस्सा दिखाता है, उस के लिये (अल्लाह की) नाराज़गी है।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 146
قال الشيخ الألباني: - " إن عظم الجزاء مع عظم البلاء، وإن الله إذا أحب قوما ابتلاهم، فمن رضي فله الرضا، ومن سخط فله السخط ". _____________________ أخرجه الترمذي (2 / 64) وابن ماجه (4031) وأبو بكر البزاز بن نجيح في " الثاني من حديثه " (227 / 2) عن سعد بن سنان عن أنس عن النبي صلى الله عليه وسلم. وقال الترمذي: " حديث حسن غريب ". قلت: وسنده حسن، رجاله كلهم ثقات رجال الشيخين غير ابن سنان هذا وهو صدوق له أفراد كما في " التقريب ". وهذا الحديث يدل على أمر زائد على ما سبق وهو أن البلاء إنما يكون خيرا، وأن صاحبه يكون محبوبا عند الله تعالى، إذا صبر على بلاء الله تعالى، ورضي بقضاء الله عز وجل. ويشهد لذلك الحديث الآتي: " عجبت لأمر المؤمن، إن أمره كله خير، إن أصابه ما يحب حمد الله وكان له خير وإن أصابه ما يكره فصبر كان له خير، وليس كل أحد أمره كله خير إلا المؤمن ". ¤