-" إن الله عز وجل قال: إنا انزلنا المال لإقام الصلاة وإيتاء الزكاة ولو كان لابن آدم واد لاحب ان يكون إليه ثان ولو كان له واديان لاحب ان يكون إليهما ثالث، ولا يملا جوف ابن آدم إلا التراب، ثم يتوب الله على من تاب".-" إن الله عز وجل قال: إنا أنزلنا المال لإقام الصلاة وإيتاء الزكاة ولو كان لابن آدم واد لأحب أن يكون إليه ثان ولو كان له واديان لأحب أن يكون إليهما ثالث، ولا يملأ جوف ابن آدم إلا التراب، ثم يتوب الله على من تاب".
سیدنا ابو واقد لیثی رضی اللہ عنہ کہتے ہیں جب رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم پر وحی نازل ہوتی تو ہم آپ کے پاس آتے تھے ایک دن آپ نے ہمیں بیان کیا: ”بے شک اللہ تعالیٰ نے فرمایا: ہم نے تو نماز قائم کرنے اور زکوٰۃ ادا کرنے کے لیے مال نازل کیا ہے، اگر آدم کے بیٹے کے پاس ایک وادی ہو تو وہ پسند کرے گا کہ اس کی دو وادیاں ہوں اور اگر اس کے پاس دو ہوں تو وہ چاہے گا کہ اس کے پاس تیسری بھی ہو۔ بس مٹی ہی ہے جو آدم کے پیٹ کو بھر دیتی ہے اور جو اللہ تعالیٰ کی طرف توبہ کرتا ہے، وہ اس کی توبہ قبول کرتا ہے۔“
हज़रत अबु वाक़िद लेसी रज़ि अल्लाहु अन्ह कहते हैं, जब रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर वहि उतरा करती तो हम आप के पास आते थे। एक दिन आप ने हमें बताया ! “बेशक अल्लाह तआला ने फ़रमाया ! हम ने तो नमाज़ बराबर पढ़ने और ज़कात देने के लिए माल उतारा है अगर आदम के बेटे के पास एक घाटी हो तो वह पसंद करेगा कि उस के पास दो वादियां हों और अगर उस के पास दो वादियां हों तो वह चाहे गा कि उस के पास तीसरी भी हो। बस मिट्टी ही है जो आदम के पेट को भर देती है और जो अल्लाह तआला की ओर तौबा करता है, वह उस की तौबा स्वीकार करता है।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 1639
قال الشيخ الألباني: - " إن الله عز وجل قال: إنا أنزلنا المال لإقام الصلاة وإيتاء الزكاة ولو كان لابن آدم واد لأحب أن يكون إليه ثان ولو كان له واديان لأحب أن يكون إليهما ثالث، ولا يملأ جوف ابن آدم إلا التراب، ثم يتوب الله على من تاب ". _____________________ أخرجه أحمد (5 / 218 - 219) والطبراني في " الكبير " (3300 و 3301) من طريق هشام بن سعد عن زيد بن أسلم عن عطاء بن يسار عن أبي واقد الليثي قال: " كنا نأتي النبي صلى الله عليه وسلم إذا أنزل عليه، فيحدثنا، فقال لنا ذات يوم ... " فذكره. قلت: وهذا إسناد حسن، وهو على شرط مسلم، وفي هشام بن سعد كلام لا يضر، وقد تابعه محمد بن عبد الرحمن بن مجبر عن زيد بن أسلم به. أخرجه الطبراني ( 3302) . لكن ابن مجبر هذا متروك كما قال النسائي وغيره، فلا يفرح بمتابعته. وخالفهما ربيعة بن عثمان فقال: عن زيد بن أسلم عن أبي مراوح عن أبي واقد الليثي به. فذكر أبا مراوح بدل عطاء. أخرجه الطبراني (3303) وابن منده في " المعرفة " (2 / 264 / 1) . وربيعة هذا حاله كحال هشام، فإن كان كل منهما قد حفظ، فيكون لعطاء بن يسار في هذا الحديث شيخان، وكلاهما ثقة. والله أعلم. وللحديث شواهد كثيرة معروفة فهو حديث صحيح، فراجع " فتح الباري " (11 / 253 - 258 - طبع الخطيب) . ¤