سیدہ اسماء بنت ابوبکر صدیق رضی اللہ عنہا سے مروی، نماز کسوف کے بارے میں حدیث گزر چکی ہے۔ (دیکھئیے حدیث: کتاب: علم کا بیان۔۔۔ باب: جس شخص نے ہاتھ یا سر کے اشارے سے فتویٰ کا جواب دیا۔۔۔)۔ اس روایت میں کہتی ہیں کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ”اس وقت جنت میرے قریب ہو گئی تھی حتیٰ کہ اگر میں اس پر جرات کرتا تو اس کے خوشوں میں سے کوئی خوشہ تمہارے پاس لے آتا اور دوزخ بھی میرے قریب ہو گئی تھی یہاں تک کہ میں کہنے لگا کہ اے میرے پروردگار! کیا میں ان لوگوں کے ہمراہ (رکھا جاؤں گا؟) پس یکایک ایک عورت پر میری نظر پڑی۔“ مجھے خیال ہے کہ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ”اس کو ایک بلی پنجہ مار رہی تھی، میں نے کہا اس کو کیا ہوا؟ تو لوگوں نے کہا کہ اس نے بلی کو باندھ رکھا تھا یہاں تک کہ وہ بھوک سے مر گئی۔ یہ (عورت) نہ اس کو کھلاتی تھی اور نہ اس کو چھوڑتی تھی کہ وہ زمین کے کیڑے مکوڑے (جیسے چوہے وغیرہ کھا لیتی)(نافع کو شک ہے کہ خشیش یا خشاش الارض کہا)۔
हज़रत असमा बिन्त अबु बक्र सिद्दीक़ रज़ि अल्लाहु अन्हा से रिवायत कि ग्रहण की नमाज़ के बारे में हदीस गुज़र चुकी है। (देखिए हदीस: 76, किताब: ज्ञान के बारे में ... बॉब, वह व्यक्ति जिसने हाथ या सिर के इशारे से फ़तवे का जवाब दिया ...) । इस रिवायत में कहती हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “उस समय जन्नत मेरे क़रीब होगई थी यहां तक कि यदि मैं हिम्मत करता तो उसके (फलों के) गुच्छों में से कोई गुच्छ तुम्हारे पास लेआता और जहन्नम भी मेरे क़रीब होगई थी यहाँ तक कि मैं कहने लगा कि ऐ मेरे परवरदिगार, क्या मैं इन लोगों के साथ (रखा जाऊँगा ?) बस अचानक एक महिला पर मेरी नज़र पड़ी।” मुझे ख़्याल है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “उसको एक बिल्ली पंजा मार रही थी, मैं ने कहा इसको क्या हुआ ? तो लोगों ने कहा कि इसने बिल्ली को बाँध रखा था यहाँ तक कि वह भूक से मर गई। यह न उसको खिलाती थी और न उसको छोड़ती थी कि वह ज़मीन के कीड़े मकोड़े खालेती। (नाफ़अ को शक है कि ख़शीश या ख़शाश अल-अर्द कहा)।