-" رمضان تفتح فيه ابواب السماء (وفي رواية: الجنة)، وتغلق فيه ابواب النيران، ويصفد فيه كل شيطان مريد، وينادي مناد (وفي رواية: ملك) كل ليلة: يا طالب الخير هلم، ويا طالب الشر امسك".-" رمضان تفتح فيه أبواب السماء (وفي رواية: الجنة)، وتغلق فيه أبواب النيران، ويصفد فيه كل شيطان مريد، وينادي مناد (وفي رواية: ملك) كل ليلة: يا طالب الخير هلم، ويا طالب الشر أمسك".
عرفجہ سے روایت ہے، وہ کہتے ہیں: میں ایک گھر میں تھا، وہاں عتبہ بن فرقد بھی تھے، میں نے ایک حدیث بیان کرنا چاہی، لیکن وہاں ایک صحابی رسول تشریف فرما تھے، ایسے لگتا تھا کہ وہ حدیث بیان کرنے میں مجھ سے زیادہ حقدار ہیں، پس انہوں نے بیان کیا کہ نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ”رمضان میں آسمان (اور ایک روایت کے مطابق) جنت کے دروازے کھول دیے جاتے ہیں اور آگ کے دروازے بند کر دیے جاتے ہیں، ہر سرکش (اور شریر و خبیث) شیطان کو جکڑ دیا جاتا ہے، اور اعلان کرنے والا فرشتہ ہر رات کو اعلان کرتا ہے: اے خیر و بھلائی کو چاہنے والے! آ جا اور اے برائی کے طلبگار! رک جا۔“
अरफ़जह से रिवायत है, वह कहते हैं ! मैं एक घर में था, वहां उत्बह बिन फ़रक़द भी थे, मैं ने एक हदीस बयान करना चाही, लेकिन वहां एक सहाबी मौजूद थे, ऐसे लगता था कि वह हदीस कहने में मुझ से ज़्यादा हक़दार हैं, बस उन्हों ने कहा कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “रमज़ान में आसमान (और एक रिवायत के अनुसार) जन्नत के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं और आग के दरवाज़े बंद कर दिए जाते हैं, हर शरीर और ख़बीस शैतान को जकड़ दिया जाता है, और एलान करने वाला फ़रिश्ता हर रात को एलान करता है ! ऐ अच्छाई और भलाई को चाहने वाले ! आजा और ऐ बुराई को चाहने वाले ! रुक जा।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 1868
قال الشيخ الألباني: - " رمضان تفتح فيه أبواب السماء (وفي رواية: الجنة) ، وتغلق فيه أبواب النيران، ويصفد فيه كل شيطان مريد، وينادي مناد (وفي رواية: ملك) كل ليلة: يا طالب الخير هلم، ويا طالب الشر أمسك ". _____________________ أخرجه النسائي (1 / 300) وأحمد (4 / 311 - 312 و 5 / 411) من طرق عن عطاء ابن السائب عن عرفجة قال: " كنت في بيت فيه عتبة بن فرقد، فأردت أن أحدث بحديث، وكان رجل من أصحاب النبي صلى الله عليه وسلم كأنه أولى بالحديث مني، فحدث الرجل عن النبي صلى الله عليه وسلم قال: في رمضان " فذكره. قلت: وهذا إسناد جيد، فإن عطاء بن السائب وإن كان قد اختلط فإن من رواته عن شعبة، وهو قد روى عنه قبل الاختلاط، ومثله سفيان الثوري، وقد رواه عنه أيضا عند النسائي، لكن جعله من مسند عتبة بن فرقد، وقال النسائي: إنه خطأ. وعرفجة هو ابن عبد الله الثقفي، وقد روى عنه منصور بن المعتمر أيضا وغيره، وذكره ابن حبان في " الثقات "، وقال العجلي: " كوفي تابعي ثقة ". والحديث أورده السيوطي من رواية أحمد والبيهقي في " الشعب " بلفظ: " رمضان شهر مبارك ، تفتح فيه.... ". فالظاهر أن هذا لفظ البيهقي، فإن من ذكرنا ليس عندهما " شهر مبارك ". وقد رويت هذه الزيادة من طريق أخرى عن أحمد (2 / 425) والنسائي وغيرهما من طريق أبي قلابة عن أبي هريرة مرفوعا، ورجاله ثقات، لكنه منقطع كما بينه الحافظ المنذري (2 / 69) . وله عنده (2 / 67) شاهد من حديث سلمان رضي الله عنه. رواه ابن خزيمة بسند ضعيف، وآخر (2 / 69) من حديث عبادة بن الصامت، رواه الطبراني بسند فيه من لا يعرف. ¤