-" سبحان الله! لا من الله استحيوا، ولا من رسول الله استتروا. قاله في فئة عراة".-" سبحان الله! لا من الله استحيوا، ولا من رسول الله استتروا. قاله في فئة عراة".
سلیمان بن زیاد حضرمی نے کہا: مجھے سیدنا عبداللہ بن حارث بن جز زبیدی رضی اللہ عنہ نے بیان کیا کہ وہ اور اس کا ایک ساتھی ایمن سے گزرے، کیا دیکھتے ہیں کہ قریشیوں کے ایک گروہ نے اپنی چادریں اتار دیں اور انہیں بٹ کر برہنہ حالت میں پٹا کھیلنے لگے۔ عبداللہ رضی اللہ عنہ کہتے ہیں کہ جب ہم ان کے پاس سے گزرے تو وہ کہنے لگے کہ یہ ایک مذہب کے پیشوا لوگ ہیں، ان کو نظر انداز کر دو۔ اتنے میں رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم آ گئے، جب انہوں نے آپ صلی اللہ علیہ وسلم کو دیکھا تو وہ منتشر ہو گئے۔ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم غصے کی حالت میں لوٹے اور حجرے میں داخل ہوئے، میں حجرے کے پیچھے کھڑا تھا، میں نے آپ صلی اللہ علیہ وسلم کو حجرے میں فرماتے سنا: ”سبحان اللہ! (یہ لوگ) نہ اللہ تعالیٰ سے اور نہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم سے پردہ کیا۔“ سیدہ ام ایمن رضی اللہ عنہا آپ صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس تھیں، وہ کہنے لگیں: اے اللہ کے رسول! ان کے لیے بخشش طلب کیجئیے۔ سیدنا عبداللہ رضی اللہ عنہ کہتے ہیں: کسی دشواری کی وجہ سے آپ نے ان کے لیے بخشش طلب نہ کی۔
सुलेमान बिन ज़ियाद हज़रमी ने कहा कि मुझे हज़रत अब्दुल्लाह बिन हरिस बिन जज़अ ज़ुबैदी रज़ि अल्लाहु अन्ह ने बताया कि वह और उस का एक साथी एमन से गुज़रे, क्या देखते हैं कि क़ुरैश के एक दल ने अपनी चादरें उतार दीं औरउन्हें बट कर नंगी हालत में पटा खेलने लगे। अब्दुल्लाह रज़ि अल्लाहु अन्ह कहते हैं कि जब हम उन के पास से गुज़रे तो वह कहने लगे कि यह एक धर्म के नेता लोग हैं, इन को टाल जाया करो। इतने में रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आ गए, जब उन्हों ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखा तो वह बिखर गए। रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ग़ुस्से की हालत में लौटे और हुजरे में गए, मैं हुजरे के पीछे खड़ा था, मैं ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को हुजरे में कहते हुए सुना ! “سبحان اللہ” (इन लोगों) ने अल्लाह तआला से और न रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पर्दा किया।” हज़रत उम्म ऐमन रज़ि अल्लाहु अन्हा आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास थीं, वह कहने लगीं कि ऐ अल्लाह के रसूल, इन के लिये क्षमा की मांग कीजिए। हज़रत अब्दुल्लाह रज़ि अल्लाहु अन्ह कहते हैं कि किसी मुश्किल के कारण आप ने उन के लिये क्षमा की मांग न की।
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 2991
قال الشيخ الألباني: - " سبحان الله! لا من الله استحيوا، ولا من رسول الله استتروا. قاله في فئة عراة ". _____________________ أخرجه أحمد وابنه عبد الله (4 / 191) وأبو يعلى (3 / 109 - 110) والبزار (2 / 429 - 430) من طريقين عن سليمان بن زياد الحضرمي أن عبد الله بن الحارث بن جزء الزبيدي حدثه: أنه مر وصاحب له بـ (أيمن) وفئة من قريش قد حلوا أزرهم فجعلوها مخاريق يجتلدون بها وهم عراة، قال عبد الله: فلما مررنا بهم قالوا: إن هؤلاء قسيسون فدعوهم. ثم إن رسول الله صلى الله عليه وسلم خرج عليهم، فلما أبصروه تبددوا، فرجع رسول الله صلى الله عليه وسلم مغضبا حتى دخل ، وكنت وراء الحجرة فسمعته يقول: (فذكره) ، وأم أيمن عنده تقول: استغفر لهم يا رسول الله! قال عبد الله: فبلأي ما استغفر لهم. قلت: وهذا إسناد صحيح رجاله ثقات. وقال الهيثمي (8 / 27) : " رواه أحمد وأبو يعلى والبزار والطبراني، وأحد إسنادي الطبراني ثقات ". قلت: وفاته عزوه لعبد الله بن أحمد، وقلده المعلق على " مسند أبي يعلى "، والمعلق على " المقصد العلي " ( 3 / 50) مع أنهما عزواه لأحمد بنفس الجزء والصفحة، ولكنهما لم ينتبها لما في آخر الحديث: " قال عبد الله: وسمعته أنا من هارون ". قلت: وهارون هو شيخ أبيه أحمد فيه، وهو هارون بن معروف المروزي، ثقة من رجال الشيخين. __________جزء : 6 /صفحہ : 1243__________ غريب الحديث. 1 - قوله: (بأيمن) كذا في " المسند " و " جامع المسانيد " (7 / 409 - 410) و " أطراف المسند " (2 / 699) وفي " مسند أبي يعلى ": " بأم أيمن "! وفي " البزار " " بناس "! وهما محرفان - والله أعلم - من الأول، والثلاثة سقطوا من " مجمع الزوائد " و " المعجم الكبير " الذي فيه مسند (عبد الله بن الحارث) لم يطبع بعد لنستعين به على التحقيق. و (أيمن) هو ابن (أم أيمن) ، له ذكر في الصحابة. 2 - (مخاريق) جمع (مخراق) : ثوب يلف، ويضرب به الصبيان بعضهم بعضا. 3 - (قسيسون) . قلت: هو جمع (قسيس) ، وهو العالم العابد من رؤوس النصارى، كما في " المفردات " للراغب الأصبهاني وغيره. فكأنهم يعنون أنهم متعبدون متشددون، كما يسمي اليهود وأذنابهم المتمسكين بدينهم من المسلمين بـ (المتطرفين) ! * (تشابهت قلوبهم) *! 4 - (فبلأي) كذا في " المسند ". وفي " أبي يعلى ": " فبأبي "، وكذا عزاه إليه الهيثمي ، لكن وقع فيه (فتابي) ، وهو خطأ مطبعي ظاهر، والصواب ما في " المسند "، فقد أورده ابن الأثير (لأي) ، وقال: " أي بعد مشقة وجهد وإبطاء ". يعني أن النبي صلى الله عليه وسلم مع ذلك ما استغفر لهم. (تنبيه على وهم نبيه) : لما ساق الحافظ ابن حجر في " أطرافه " الطرف الأول من رواية أحمد، أتبعه __________جزء : 6 /صفحہ : 1244__________ بطرفه الآخر: ".. ولا من رسوله استتروا "، مشيرا بذلك إلى انتهاء روايته إلى هنا لما يأتي، وقال عقبه: " حدثنا هارون.. عنه به. ورواه أبو يعلى عن هارون به، وزاد: وأم أيمن عنده.. ما استغفر له ". كذا قال! ولم يتنبه لكون هذه الزيادة عند أحمد أيضا - والسياق الذي سقته هو له -، فالظاهر أنه التبس عليه سياقه بسياق البزار فهو الذي ليس عنده الزيادة المذكورة. ونحو ذلك ما وقع للدكتور المعلق عليه، فقال تعليقا على قول الحافظ " وزاد ": " وهذه الزيادة وردت أيضا في رواية هارون "! أراد أن يقول: " ... أحمد "، فقال: " هارون "! ¤