سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر

سلسله احاديث صحيحه
सिलसिला अहादीस सहीहा
ایمان توحید، دین اور تقدیر کا بیان
तौहीद पर ईमान, दीन और तक़दीर
166. ہر آدمی کو زمانہ تخلیق پر راضی ہو کر اعمال صالحہ کرنے چاہییں، کون سی تفریق قابل مذمت ہے؟
“ हर इन्सान को समय पर सहमत होना चाहिए और नेक कर्म करना चाहिए ، कौन सा भेदभाव निंदनीय है ”
حدیث نمبر: 265
Save to word مکررات اعراب Hindi
-" والله لقد بعث الله النبي صلى الله عليه وسلم على اشد حال بعث عليها فيه نبي من الانبياء في فترة وجاهلية، ما يرون ان دينا افضل من عبادة الاوثان، فجاء بفرقان فرق به بين الحق والباطل وفرق بين الوالد وولده حتى إن كان الرجل ليرى والده وولده او اخاه كافرا، وقد فتح الله قفل قلبه للإيمان، يعلم انه إن هلك دخل النار، فلا تقر عينه وهو يعلم ان حبيبه في النار، وإنها للتي قال الله عز وجل: * (الذين يقولون ربنا هب لنا من ازواجنا وذرياتنا قرة اعين) *".-" والله لقد بعث الله النبي صلى الله عليه وسلم على أشد حال بعث عليها فيه نبي من الأنبياء في فترة وجاهلية، ما يرون أن دينا أفضل من عبادة الأوثان، فجاء بفرقان فرق به بين الحق والباطل وفرق بين الوالد وولده حتى إن كان الرجل ليرى والده وولده أو أخاه كافرا، وقد فتح الله قفل قلبه للإيمان، يعلم أنه إن هلك دخل النار، فلا تقر عينه وهو يعلم أن حبيبه في النار، وإنها للتي قال الله عز وجل: * (الذين يقولون ربنا هب لنا من أزواجنا وذرياتنا قرة أعين) *".
عبد الرحمن بن جبیر بن نفیر اپنے باپ سے روایت کرتے ہیں، وہ کہتے ہیں: ایک دن ہم سیدنا مقداد بن اسود رضی اللہ عنہ کے پاس بیٹھے ہوئے تھے، اتنے میں وہاں سے ایک آدمی کا گزر ہوا۔ اس نے سیدنا مقداد کو دیکھ کر کہا: ان دو آنکھوں کے لئے خوشخبری ہے، جنہوں نے رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کا دیدار کیا، ہم چاہتے ہیں کہ جو کچھ آپ نے دیکھا، ہم بھی دیکھتے اور جہاں جہاں آپ حاضر ہوئے، ہم بھی وہاں پہنچتے (یعنی رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کی صحبت اختیار کی ہوتی)۔ سیدنا مقداد غصہ میں آ گئے . مجھے بڑا تعجب ہوا کہ اس آدمی نے خیر و بھلائی والی بات ہی کی ہے، (یہ غصہ کیوں ہو رہے ہیں)؟ اتنے میں وہ اس آدمی کی طرف متوجہ ہوئے اور کہا: کون سی چیز بندے کو اس بات پر اکساتی ہے کہ وہ ایسے مشہد کی تمنا کرے، جہاں سے اللہ تعالیٰ نے اسے غائب رکھا ہو، کیونکہ وہ نہیں جانتا کہ اگر وہ اس وقت ہوتا تو کس حالت میں ہوتا؟ (ذرا غور کرو) ایسے لوگ بھی تو رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس موجود تھے، جنہیں اللہ تعالیٰ نے نتھنوں کے بل جہنم میں گرا دیا، انہوں نے آپ کی دعوت قبول کی نہ آپ کی تصدیق کی۔ کیا تم اس نعمت پر اللہ تعالیٰ کا شکر ادا نہیں کرتے کہ جب اس نے تمہیں پیدا کیا تو تم اپنے رب کو پہنچانتے تھے، نبی کی تعلم کی تصدیق کرتے تھے اور دوسروے لوگوں کی تکالایف تمہیں کفایت کر گئیں؟ (یعنی تم مسلمان گھرانے میں پیدا ہوئے اور تم سے پہلے والے لوگوں نے ابتلا و آزمائش میں پڑ کر تمہارے لئے دین کو محفوظ اور غالب کر دیا)۔ جب اللہ تعالی نے اپنے نبی صلی اللہ علیہ وسلم کو مبعوث فرمایا، تو اہل حق کے لئے حالات اتنے سنگین تھے، کہ ماضی کے فتروں اور جاہلیتوں میں تشریف لانے والے انبیائے کرام میں ان کی مثال نہیں ملتی، مخالف لوگ یہ سمجھتے تھے کہ بتوں کی عبادت افضل دین ہے۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم فرقان مجید لے کر آئے، جس نے حق و باطل میں امتیاز کیا اور والد اور اولاد میں ایسی تفریق ڈال دی، کہ آدمی اپنے والد، اپنے بیٹے یا اپنے بھائی کو کافر سمجھنے لگا، اللہ تعالیٰ نے ان کے دلوں پر لگے ہوئے تالے کھول دئیے۔ وہ جانتا تھا کہ اگر وہ ایسے ہی ہلاک ہو گیا تو وہ جہنم میں داخل ہو جائے گا اور اسے اس طرح سکون کیسے ملے گا کہ اس کا محبوب جہنم میں ہو اور یہی چیز ہے جس کے بارے میں اللہ تعالیٰ نے فرمایا: اور یہ دعا کرتے ہیں کہ اے ہمارے پروردگار! تو ہمیں ہماری بیویوں اور اولاد سے آنکھوں کی ٹھنڈک عطا فرما۔ (سورہ الفرقان: ۷۴)
अब्दुर्रहमान बिन जुबैर बिन नुफ़ेर अपने पिता से रिवायत करते हैं, वह कहते हैं कि एक दिन हम हज़रत मिक़दाद बिन असवद रज़ि अल्लाहु अन्ह के पास बैठे हुए थे, इतने में वहां से एक आदमी का गुज़र हुआ। उस ने हज़रत मिक़दाद को देख कर कहा कि इन दो आंखों के लिए अच्छी ख़बर है, जिन्हों ने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का दर्शन किया, हम चाहते हैं कि जो कुछ आप ने देखा, हम भी देखते और जहां जहां आप मौजूद हुए, हम भी वहां पहुंचते (यानी रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का साथ पाते)। हज़रत मिक़दाद ग़ुस्से में आगए। मुझे बड़ी हैरत हुई कि इस आदमी ने अच्छाई और भलाई वाली बात ही की है, (ये ग़ुस्सा क्यों हो रहे हैं) ? इतने में उन्हों ने उस आदमी की तरफ़ ध्यान किया और कहा कि कौन सी चीज़ बंदे को इस बात पर उकसाती है कि वह उस जगह की इच्छा करे, जहां से अल्लाह तआला ने उसे ग़ायब रखा हो, क्यूंकि वह नहीं जानता कि अगर वह उस समय होता तो किस हालत में होता ? (ज़रा ग़ौर करो) ऐसे लोग भी तो रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास मौजूद थे, जिन्हें अल्लाह तआला ने नथनों के बल जहन्नम में गिरा दिया, उन्हों ने आप की न दावत स्वीकार की न आप को रसूल माना। क्या तुम इस नेमत पर अल्लाह तआला का शुक्र नहीं करते कि जब उसने तुम्हें पैदा किया तो तुम अपने रब्ब को पहचानते थे, नबी के ज्ञान और शिक्षा को सच मानते थे और दुसरे लोगों की तकलीफें तुम को काफ़ी हो गईं ? (यानी तुम मुसलमान परिवार में पैदा हुए और तुम से पहले वाले लोगों ने परीक्षण में पड़ कर तुम्हारे लिए दीन को सुरक्षित कर दिया) । जब अल्लाह तआला ने अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को भेजा, तो हक़ वालों के लिए हालात इतने गंभीर थे, कि पिछले जाहिलियत के ज़माने में आने वाले नबियों अलैहिस्सलाम में उनकी मिसाल नहीं मिलती, विरोधी यह समझते थे कि मूर्तियों की पूजा अफ़ज़ल दीन है। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़ुरक़ान मजीद ले कर आए, जिस ने सच्च और झूठ में अंतर किया और पिता और औलाद में ऐसा अंतर किया कि आदमी अपने पिता, अपने बेटे या अपने भाई को काफ़िर समझने लगा, अल्लाह तआला ने उनके दिलों पर लगे हुए ताले खोल दिए। वह जानता था कि अगर वह ऐसे ही हलाक हो गया तो वह जहन्नम में जाए गा और उसे इस तरह सुकून कैसे मिलेगा कि उसका महबूब जहन्नम में हो और यही चीज़ है जिस के बारे में अल्लाह तआला ने फ़रमाया ! « وَالَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَا هَبْ لَنَا مِنْ أَزْوَاجِنَا وَذُرِّيَّاتِنَا قُرَّةَ أَعْيُنٍ » “और ये दुआ करते हैं कि ऐ हमारे परवरदिगार ! तू हमें हमारी बीवियों और औलाद से आंखों की ठंडक दे।” (सूरत अल-फ़ुरक़ान: 74)
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 2823

قال الشيخ الألباني:
- " والله لقد بعث الله النبي صلى الله عليه وسلم على أشد حال بعث عليها فيه نبي من الأنبياء في فترة وجاهلية، ما يرون أن دينا أفضل من عبادة الأوثان، فجاء بفرقان فرق به بين الحق والباطل وفرق بين الوالد وولده حتى إن كان الرجل ليرى والده وولده أو أخاه كافرا، وقد فتح الله قفل قلبه للإيمان، يعلم أنه إن هلك دخل النار، فلا تقر عينه وهو يعلم أن حبيبه في النار، وإنها للتي قال الله عز وجل: * (الذين يقولون ربنا هب لنا من أزواجنا وذرياتنا قرة أعين ) * ".
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‏‏‏‏أخرجه أحمد (6 / 2 - 3) : حدثنا يعمر بن بشر حدثنا عبد الله - يعني ابن
‏‏‏‏المبارك -: أنبأنا صفوان بن عمرو: حدثني عبد الرحمن بن جبير بن نفير عن
‏‏‏‏أبيه قال: جلسنا إلى المقداد بن الأسود يوما، فمر به رجل فقال: طوبى
‏‏‏‏لهاتين العينين اللتين رأتا رسول الله صلى الله عليه وسلم ، والله إنا لوددنا
‏‏‏‏أن رأينا ما رأيت، وشهدنا ما شهدت، فاستغضب، فجعلت أعجب ما قال إلا خيرا،
‏‏‏‏ثم أقبل إليه فقال:
‏‏‏‏__________جزء : 6 /صفحہ : 779__________
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‏‏‏‏ما يحمل الرجل أن يتمنى محضرا غيبه الله عنه، لا يدري لو
‏‏‏‏شهده كيف كان يكون فيه؟! والله لقد حضر رسول الله صلى الله عليه وسلم أقوام
‏‏‏‏أكبهم الله على مناخرهم في جهنم، لم يجيبوه ولم يصدقوه، أولا تحمدون الله إذ
‏‏‏‏أخرجكم لا تعرفون إلا ربكم، مصدقين لما جاء به نبيكم، قد كفيتم البلاء بغيركم
‏‏‏‏؟ والله لقد بعث الله النبي صلى الله عليه وسلم .. إلخ. قلت: وهذا إسناد
‏‏‏‏صحيح رجاله ثقات رجال مسلم غير يعمر بن بشر، وهو المروزي، قال الخطيب في "
‏‏‏‏تاريخ بغداد " (14 / 357) : " من كبار أصحاب عبد الله بن المبارك، قال أحمد
‏‏‏‏: ما أرى كان به بأس. وقال علي بن المديني: ثقة. وقال أبو رجاء محمد بن
‏‏‏‏حمدويه: " من ثقات أهل مرو ومتقيهم ". وقال الدارقطني: ثقة ثقة ". وذكره
‏‏‏‏ابن حبان في " الثقات " (9 / 291) . قلت: كأن الهيثمي فاته ما ذكرناه من
‏‏‏‏النقول الموثقة ليعمر هذا، فقال في حديث آخر له (5 / 122) : " رواه أحمد عن
‏‏‏‏شيخه يعمر بن بشر، ويقال: مشايخ أحمد كلهم ثقات "! وقد تابعه بشر بن محمد
‏‏‏‏عند البخاري في " الأدب المفرد " (87) ، وحبان بن موسى عند ابن حبان (1684
‏‏‏‏- موارد) قالا: أنبأنا عبد الله به. وقال الحافظ ابن كثير في " تفسير سورة
‏‏‏‏الفرقان " بعد أن عزاه لأحمد بسنده: " وهذا إسناد صحيح، ولم يخرجوه ". (
‏‏‏‏تنبيه) : التفريق المذكور في هذا الحديث له أصل في " صحيح البخاري " (رقم
‏‏‏‏7281) من حديث جابر بن عبد الله قال:
‏‏‏‏__________جزء : 6 /صفحہ : 780__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏" جاءت الملائكة إلى النبي صلى الله
‏‏‏‏عليه وسلم وهو نائم، فقال بعضهم: إنه نائم، وقال بعضهم: إن العين نائمة
‏‏‏‏والقلب يقظان.. " الحديث، وفيه: " فمن أطاع محمدا صلى الله عليه وسلم فقد
‏‏‏‏أطاع الله، ومن عصى محمدا فقد عصى الله، ومحمد فرق بين الناس ". قلت: ففي
‏‏‏‏الحديث دليل صريح أن التفريق ليس مذموما لذاته، فتنفير بعض الناس من الدعوة
‏‏‏‏إلى الكتاب والسنة، والتحذير مما يخالفهما من محدثات الأمور، أو الزعم بأنه
‏‏‏‏ما جاء وقتها بعد! بدعوى أنها تنفر الناس وتفرقهم - جهل عظيم بدعوة الحق وما
‏‏‏‏يقترن بها من الخلاف والتعادي حولها كما هو مشاهد في كل زمان ومكان، سنة
‏‏‏‏الله في خلقه، ولن تجد لسنة الله تبديلا ولا تحويلا، * (ولو شاء ربك لجعل
‏‏‏‏الناس أمة واحدة ولا يزالون مختلفين إلا من رحم ربك) *.
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