-" إذا اتى احدكم خادمه بطعام قد ولى حره ومشقته ومؤنته فليجلسه معه: فإن ابى فليناوله اكلة في يده".-" إذا أتى أحدكم خادمه بطعام قد ولى حره ومشقته ومؤنته فليجلسه معه: فإن أبى فليناوله أكلة في يده".
سیدنا ابوہریرہ رضی اللہ عنہ سے روایت ہے، رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ”جب تم میں سے کسی کے لیے اس کا خادم کھانا لائے، چونکہ وہی کھانے کی حرارت اور محنت و مشقت برداشت کرتا ہے، اس لیے (مالک کو) چاہئے کہ وہ اسے اپنے ساتھ بٹھا لے، اگر وہ ایسا کرنے سے انکار کرے تو اسے اس کے ہاتھ میں کھانا تھما دے۔“
हज़रत अबु हुरैरा रज़ि अल्लाहु अन्ह से रिवायत है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “जब तुम में से किसी के लिये उस का सेवक खाना लाए, चूँकि वही खाने की गर्मी और मेहनत और मुश्किलें बर्दाश्त करता है, इस लिये (मालिक को) चाहिए कि वह उसे अपने साथ बिठा ले, यदि वह ऐसा करने से इन्कार करे तो उस के हाथ में खाना थमा दे।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 1285
قال الشيخ الألباني: - " إذا أتى أحدكم خادمه بطعام قد ولى حره ومشقته ومؤنته فليجلسه معه: فإن أبى فليناوله أكلة في يده ". _____________________ أخرجه البخاري (6 / 214) والدارمي (2 / 107) وأحمد (2 / 283 و 409 و 430 ) عن محمد بن زياد عن أبي هريرة مرفوعا. واللفظ لأحمد. وله عنه طرق كثيرة متواترة بألفاظ متقاربة مثل: " إذا أصلح خادم " و " إذا جاء أحدكم خادمه " و " إذا جاء أحدكم الصانع " و " إذا جاء خادم أحدكم " و " إذا صنع خادم أحدكم " و " إذا صنع لأحدكم " و " إذا كفى أحدكم " و " إذا كفى الخادم " و " المملوك أخوك فإذا صنع ". ويأتي بعضها برقم (1297) . ¤