سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر

سلسله احاديث صحيحه
सिलसिला अहादीस सहीहा
ایمان توحید، دین اور تقدیر کا بیان
तौहीद पर ईमान, दीन और तक़दीर
73. مختلف آداب اسلامی
“ इस्लाम के विभिन्न नियम ”
حدیث نمبر: 132
Save to word مکررات اعراب Hindi
-" امرنا باربع، ونهانا عن خمس: 1 - إذا رقدت فاغلق بابك، 2 - واوك سقاءك، 3 - وخمر إناءك، 4 - واطف مصباحك، فإن الشيطان لا يفتح بابا، ولا يحل وكاء، ولا يكشف غطاء، وإن الفارة الفويسقة تحرق على اهل البيت بيتهم. 1 - ولا تاكل بشمالك، 2 - ولا تشرب بشمالك، 3 - ولا تمش في نعل واحدة، 4 - ولا تشتمل الصماء، 5 - ولا تحتب في الإزار مفضيا".-" أمرنا بأربع، ونهانا عن خمس: 1 - إذا رقدت فأغلق بابك، 2 - وأوك سقاءك، 3 - وخمر إناءك، 4 - وأطف مصباحك، فإن الشيطان لا يفتح بابا، ولا يحل وكاء، ولا يكشف غطاء، وإن الفأرة الفويسقة تحرق على أهل البيت بيتهم. 1 - ولا تأكل بشمالك، 2 - ولا تشرب بشمالك، 3 - ولا تمش في نعل واحدة، 4 - ولا تشتمل الصماء، 5 - ولا تحتب في الإزار مفضيا".
سیدنا جابر رضی اللہ عنہ کہتے ہیں: رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے ہمیں چار چیزوں کا حکم دیا اور پانچ چیزوں سے منع کیا: (جن پانچ چیزوں کی اجازت دی وہ یہ ہیں): (۱) سوتے وقت دروازہ بند کرنا، (۲) مشکیزے کا منہ باندھنا، (۳) برتن ڈھانکنا اور (۴) (سوتے وقت) چراغ بجھا دینا، کیونکہ شیطان (بند کیا ہوا) دروازہ نہیں کھولتا، مشکیزے کا منہ نہیں کھولتا، برتن سے اس کا ڈھکن نہیں اتارتا اور یہ فاسق جانور چوہیا (جلتے چراغ کی وجہ سے) گھر کو گھر والوں سمیت جلا دیتی ہے۔ (جن پانچ چیزوں سے منع کیا وہ یہ ہیں): (۱) بائیں ہاتھ سے نہیں کھانا، (۲) بائیں ہاتھ سے نہیں پینا، (۳) ایک جوتے میں نہیں چلنا، (۴) چادر کو پہلے دائیں ہاتھ اور بائیں مونڈے پر اور پھر بائیں ہاتھ اور دائیں مونڈے پر ڈال کر نہیں لپیٹنا (یا چادر کو ہر طرف س اس طرح نہیں لپیٹنا کہ ہاتھ بھی باہر نہ نکل سکیں) اور (۵) اس طرح حبوہ نہیں باندھنا کہ شرمگاہ نظر آ رہی ہو۔
हज़रत जाबिर रज़ि अल्लाहु अन्ह कहते हैं ! रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हमें चार चीज़ों का हुक्म दिया और पांच चीज़ों से मना किया ! (जिन चार चीज़ों की अनुमति दी वह ये हैं) ! (1) सोते समय दरवाज़ा बंद करना (2) पीने के घड़े का मुंह बंद करना (3) बर्तन ढाँकना (4) (सोते समय) दीपक बुझा देना, क्यूंकि शैतान (बंद किया हुआ) दरवाज़ा नहीं खोलता, पीने के घड़े का मुंह नहीं खोलता, बर्तन से उस का ढक्कन नहीं उठाता और ये जानवर चुहिया (जलते दीपक से) घर को घर वालों समेत जला देती है। (जिन पांच चीज़ों से मना किया वह ये हैं) ! (1) बाएँ हाथ से नहीं खाना (2) बाएँ हाथ से नहीं पीना (3) एक जूते में नहीं चलना (4) चादर को पहले दाएँ हाथ और बाएँ कंधे पर और फिर बाएँ हाथ और दाएँ कंधे पर डाल कर नहीं लपेटना (या चादर को हर तरफ़ इस तरह नहीं लपेटना कि हाथ भी बाहर न निकल सकें) (5) इस तरह लुंगी नहीं बाँधना कि गुप्ता अंग नज़र आ रहा हो।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 2974

قال الشيخ الألباني:
- " أمرنا بأربع، ونهانا عن خمس: 1 - إذا رقدت فأغلق بابك، 2 - وأوك سقاءك، 3 - وخمر إناءك، 4 - وأطف مصباحك، فإن الشيطان لا يفتح بابا، ولا يحل وكاء، ولا يكشف غطاء، وإن الفأرة الفويسقة تحرق على أهل البيت بيتهم. 1 - ولا تأكل بشمالك، 2 - ولا تشرب بشمالك، 3 - ولا تمش في نعل واحدة، 4 - ولا تشتمل الصماء، 5 - ولا تحتب في الإزار مفضيا ".
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‏‏‏‏أخرجه بهذا التمام ابن حبان (1342 - موارد) : أخبرنا عبد الله بن أحمد بن
‏‏‏‏موسى - عبدان -: حدثنا محمد بن معمر حدثنا أبو عاصم عن ابن جريج عن أبي الزبير
‏‏‏‏عن جابر قال: فذكره مرفوعا.
‏‏‏‏__________جزء : 6 /صفحہ : 1172__________
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‏‏‏‏قلت: وهذا إسناد صحيح، رجاله كلهم ثقات
‏‏‏‏على شرط مسلم، وقد صرح ابن جريج وأبو الزبير بالتحديث كما يأتي، غير شيخ
‏‏‏‏ابن حبان: عبدان، وهو الأهوازي، وهو حافظ حجة، له ترجمة جيدة في " تذكرة
‏‏‏‏الحفاظ " و " السير " (14 / 168 - 172) . وأخرجه أبو عوانة في " صحيحه " (5
‏‏‏‏/ 508) وأحمد (3 / 297 - 298 و 322) وكذا مسلم (6 / 154) من طرق عن ابن
‏‏‏‏جريج: أخبرني أبو الزبير أنه سمع جابر بن عبد الله.. فذكر المناهي الخمس دون
‏‏‏‏النهي عن الشرب، وذكر مكانها: " ولا تضع إحدى رجليك على الأخرى إذا استلقيت
‏‏‏‏". وزاد أحمد: " قلت لأبي الزبير: أوضعه رجله على الركبة مستلقيا؟ قال:
‏‏‏‏نعم. قال: أما (الصماء) - فهي إحدى اللبستين -: تجعل داخلة إزارك وخارجته
‏‏‏‏على إحدى عاتقيك. قلت لأبي الزبير: فإنهم يقولون " لا يحتبي في إزار واحد
‏‏‏‏مفضيا؟ قال: كذلك سمعت جابرا يقول: لا يحتبي في إزار واحد. قال حجاج عن ابن
‏‏‏‏جريج: قال: عمر ولى (¬1) مفضيا ". ثم روى مسلم وأبو عوانة وغيرهما من طرق
‏‏‏‏أخرى عن أبي الزبير النواهي الأربع، وفي رواية لهما: " وأن يحتبي في ثوب
‏‏‏‏واحد كاشفا عن فرجه ". زاد أبو عوانة في رواية له:
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‏‏‏‏(¬1) كذا الأصل ولم أفهمه. ولعل الصواب " قال (عمرو) لي: "، وعمرو هو
‏‏‏‏ابن دينار. اهـ.
‏‏‏‏__________جزء : 6 /صفحہ : 1173__________
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‏‏‏‏" مفضيا إلى السماء ".
‏‏‏‏وأخرجه أحمد (3 / 362) من طريق حماد: أنبأنا أبو الزبير به، فذكر الحديث
‏‏‏‏بتمامه بأوامره ونواهيه، مع اختصار بعض الخصال، وزاد: " وأن نكف فواشينا
‏‏‏‏حتى تذهب فحمة العشاء ". وتابعه الليث بن سعد عن أبي الزبير بالشطر الأول من
‏‏‏‏الحديث دون النواهي ودون الكف. أخرجه مسلم (6 / 105) وغيره. وهو مخرج في
‏‏‏‏" الإرواء " (39) ورواه عطاء بن أبي رباح عن جابر عند الشيخين، وقد سقت
‏‏‏‏لفظه وخرجته هناك. بقي شيء واحد، وهو أنني في كل الطرق المتقدمة ومن
‏‏‏‏المصادر المختلفة، لم أجد الخصلة الثانية من النواهي الخمس: " ولا تشرب
‏‏‏‏بشمالك "، فأخشى أن تكون وهما من بعض الرواة، دخل عليه حديث في حديث كما يقع
‏‏‏‏ذلك من بعضهم أحيانا، فإن هذه الخصلة ثابتة في أحاديث أخرى منها حديث ابن عمر
‏‏‏‏بلفظ: " لا يأكلن أحد منكم بشماله، ولا يشربن بها، فإن الشيطان يأكل بشماله
‏‏‏‏، ويشرب بها ". وهو مخرج فيما تقدم مع غيره مما هو بمعناه (1236) . (
‏‏‏‏تنبيه على أمور) : الأول: وقعت الجملة الأخيرة من النواهي في " الموارد "
‏‏‏‏هكذا: " ولا تحتب والإزار مفضي ". وفي " الإحسان " (4 / 89 / 1273 /
‏‏‏‏المؤسسة) :
‏‏‏‏__________جزء : 6 /صفحہ : 1174__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏" ولا تحتب في الدار مفضيا ". وزاد تحريفا في الطبعة الأخرى (
‏‏‏‏رقم 1270) : " ولا تخبب في الدار مفضيا "!! وشرحه الجاهل في التعليق عليه
‏‏‏‏بقوله: " الخبب ضرب من العدو. النهاية 2 / 3 "! فأقول: نعم هذا هو معنى "
‏‏‏‏الخبب "، ولكن ما علاقته بهذه الفقرة هنا، وما معناها؟! أهكذا يكون ضبط
‏‏‏‏النص من القائم على " مركز الخدمات والأبحاث العامة "؟! أم الأمر كما قال صلى
‏‏‏‏الله عليه وسلم: " من تشبع بما لم يعط فهو كلابس ثوبي زور "؟! الثاني: لقد
‏‏‏‏أطال المعلق على طبعة المؤسسة من " الإحسان " في تخريج الحديث، وعزاه لجمع من
‏‏‏‏المؤلفين منهم مسلم دون أن ينبه على الفرق بين رواية ابن حبان، ورواية مسلم
‏‏‏‏وغيره التي ليس فيها جملة: " ولا تشرب بشمالك "، ولا لفظة " الإفضاء "،
‏‏‏‏فضلا عن قوله في أول الحديث: " أمرنا رسول الله صلى الله عليه وسلم بأربع،
‏‏‏‏ونهانا عن خمس "، فأوهم القراء أن الحديث عند مسلم والآخرين بهذا التمام،
‏‏‏‏أفهكذا يكون التحقيق؟! الثالث: تفسير أبي الزبير للفظ " الصماء " بأن يجعل
‏‏‏‏داخلة إزاره وخارجته على عاتقه. أقول: لعل هذا يرجح تفسير الفقهاء لـ "
‏‏‏‏الصماء "، وهو قولهم: أن يتغطى بثوب واحد ليس عليه غيره، ثم يرفعه من أحد
‏‏‏‏جانبيه فيضعه على منكبه فتنكشف عورته، وذلك لأن راوي الحديث أدرى بمرويه من
‏‏‏‏غيره، ولاسيما إذا كان تابعيا كأبي الزبير، لأنه في هذه الحالة يغلب على
‏‏‏‏الظن أنه تلقاه من صحابي الحديث، وهو جابر رضي الله عنه. والله سبحانه
‏‏‏‏وتعالى أعلم.
‏‏‏‏__________جزء : 6 /صفحہ : 1175__________
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