مختصر صحيح بخاري کل احادیث 2230 :حدیث نمبر

مختصر صحيح بخاري
تیمم کا بیان
तयम्मुम के बारे में
4. پاک مٹی مسلمان کا وضو (وہ پانی جس سے وضو کیا جاتا) ہے اور اسے پانی سے کفایت کرتی ہے۔
“ पवित्र मिट्टी एक मुसलमान का वुज़ू है और पानी का बदल है ”
حدیث نمبر: 227
Save to word مکررات اعراب Hindi
سیدنا عمران بن حصین رضی اللہ عنہ کہتے ہیں کہ ہم ایک سفر میں نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم کے ہمراہ تھے اور ہم رات کو چلے، یہاں تک کہ جب اخیر رات (ہوئی تو اس وقت) میں ہم مقیم ہوئے اور سب سو گئے اور مسافر کے نزدیک اس سے زیادہ کوئی نیند میٹھی نہیں ہوتی۔ پھر ہمیں آفتاب کی گرمی نے بیدار کیا، پس سب سے پہلے جو جاگا فلاں شخص تھا، پھر فلاں شخص، پھر سیدنا عمر بن خطاب رضی اللہ عنہ چوتھے جاگنے والے ہوئے اور نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم جب سوتے تھے تو ان کو کوئی بیدار نہ کرتا تھا یہاں تک کہ آپ خود بیدار ہو جائیں کیونکہ ہم نہیں جانتے کہ آپ کے لیے آپ کے خواب میں کیا ہو رہا ہے مگر جب سیدنا عمر رضی اللہ عنہ بیدار ہوئے اور انھوں نے وہ حالت دیکھی جو لوگوں پر طاری تھی اور وہ سخت مزاج کے آدمی تھے تو انھوں نے تکبیر کہی اور تکبیر کے ساتھ اپنی آواز بلند کی اور برابر تکبیر کہتے رہے کہ تکبیر کے ساتھ اپنی آواز بلند کرتے رہے، یہاں تک کہ ان کی آواز کے سبب سے نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم بیدار ہوئے۔ پس جب آپ بیدار ہوئے تو جو مصیبت لوگوں پر پڑی تھی اس کی شکایت آپ صلی اللہ علیہ وسلم سے کی۔ تو آپ نے فرمایا: کچھ نقصان نہیں یا (یہ فرمایا کہ) کچھ نقصان نہ کرے گا، چلو (اس لیے کہ یہ عمداً نہیں تھا)۔ پھر چلے اور تھوڑی دور جا کر اتر پڑے اور وضو کا پانی منگوایا، پھر وضو کیا اور نماز کی اذان کہی گئی اور آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے لوگوں کو نماز پڑھائی تو جب آپ نماز سے فارغ ہوئے تو یکایک ایک ایسے شخص پر آپ کی نظر پڑی جو گوشہ میں بیٹھا ہوا تھا، لوگوں کے ساتھ اس نے نماز نہ پڑھی تھی، تو آپ نے فرمایا: اے فلاں! تجھے لوگوں کے ساتھ نماز پڑھنے سے کس چیز نے روکا؟ تو اس نے کہا کہ جنابت ہو گئی تھی اور پانی نہ تھا آپ نے فرمایا: تو لازم پکڑ مٹی کو (تیمم کر) وہ تجھے کافی ہے۔ پھر نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم چلے تو لوگوں نے آپ صلی اللہ علیہ وسلم سے پیاس کی شکایت کی، تو آپ صلی اللہ علیہ وسلم پھر اتر پڑے اور ایک شخص کو بلایا اور سیدنا علی بن ابی طالب رضی اللہ عنہ کو بلایا اور فرمایا کہ دونوں جاؤ اور پانی تلاش کرو۔ پس دونوں چلے تو ایک عورت ملی جو پانی کی دو مشکوں کے درمیان اپنے اونٹ پر بیٹھی جا رہی تھی۔ تو ان دونوں نے اس سے پوچھا کہ پانی کہاں ہے؟ اس نے کہا میں کل اسی وقت پانی پر تھی اور ہمارے مرد پیچھے رہ گئے ہیں۔ ان دونوں نے اس سے کہا خیر اب تو چل۔ وہ بولی کہاں؟ انھوں نے کہا کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس۔ اس نے کہا وہی شخص جسے بےدین کہا جاتا ہے؟ انھوں نے کہا ہاں! وہیں جن کو (تم یہ خیال کرتی ہو)، تو چل تو سہی۔ پس وہ دونوں اسے رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس لائے اور آپ صلی اللہ علیہ وسلم سے ساری کیفیت بیان کی۔ سیدنا عمران رضی اللہ عنہ کہتے ہیں کہ پھر لوگوں نے اسے اس کے اونٹ سے اتارا اور نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم نے ایک ظرف (یعنی برتن) منگوایا اور دونوں مشکوں کے منہ کھول کر اس میں سے کچھ پانی اس برتن میں نکالا۔ (اس کے بعد) ان کے اوپر والے منہ کو بند کر دیا اور نچلے منہ کو کھول دیا اور لوگوں میں آواز دے دی گئی کہ پانی پیو اور (اپنے جانوروں کو بھی) پلا لو۔ جس نے چاہا خود پیا اور جس نے چاہا پلایا اور اخیر میں یہ ہوا کہ جس شخص کو جنابت ہو گئی تھی اس کو ایک برتن پانی کا دیا اور آپ نے فرمایا: جا اور اس کو اپنے اوپر ڈال لے۔ اور وہ عورت کھڑی ہوئی یہ سب کچھ دیکھ رہی تھی کہ اس کے پانی کے ساتھ کیا کیا جا رہا ہے اور اللہ کی قسم (جب پانی لینا) اس کے مشکوں سے موقوف کیا گیا تو یہ حال تھا کہ ہمارے خیال میں وہ اب اس وقت سے بھی زیادہ بھری ہوئی تھیں، جب آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے اس سے پانی لینا شروع کیا تھا۔ پھر نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: کچھ اس کے لیے جمع کر دو۔ تو لوگوں نے اس کے لیے عجوہ کھجور، آٹا اور ستو وغیرہ جمع کر دیے جہاں تک کہ ایک اچھی مقدار کا کھانا اس کے لیے جمع کر دیا اور اس کو ایک کپڑے میں باندھ دیا اور اس عورت کو اس کے اونٹ پر سوار کر دیا اور کپڑا اس کے سامنے رکھ دیا۔ پھر آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے اس سے فرمایا: تم جانتی ہو کہ ہم نے تمہارے پانی میں سے کچھ کم نہیں کیا، لیکن اللہ ہی نے ہمیں پلایا۔ پھر وہ عورت اپنے گھر والوں کے پاس آئی چونکہ وہ راہ میں روک لی گئی تھی۔ انھوں نے کہا کہ تجھے کس نے روک لیا تھا؟ تو اس نے کہا (کہ عجیب بات ہوئی) مجھے دو آدمی ملے اور وہ مجھے اس شخص کے پاس لے گئے، جسے بےدین کہا جاتا ہے اور اس نے ایسا ایسا کام کیا۔ پس قسم اللہ کی! یقیناً وہ شخص اس کے اور اس کے درمیان میں سب سے بڑا جادوگر ہے اور اس نے اپنی دو انگلیوں یعنی انگشت شہادت اور بیچ کی انگلی سے اشارہ کیا پھر ان کو آسمان کی طرف اٹھایا مراد اس کی آسمان و زمین تھی یا وہ سچ مچ اللہ کا رسول ہے۔ پس مسلمان اس کے بعد، اس کے آس پاس کے مشرکوں سے لڑتے رہے اور جس آبادی (بستی) میں وہ عورت رہتی تھی۔ تو اس نے ایک دن اپنی قوم سے کہا کہ میں سمجھتی ہوں کہ بیشک یہ لوگ عمداً تمہیں چھوڑ دیتے ہیں، پس کیا تمہیں اسلام میں کچھ (رغبت) ہے؟ تو انھوں نے اس کی بات مان لی اور اسلام میں داخل ہو گئے۔
हज़रत इमरान बिन हुसैन रज़ि अल्लाहु अन्ह कहते हैं कि हम एक यात्रा में नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ थे और हम रात को चले, यहाँ तक कि जब रात का अंतिम समय आया तो हम एक जगह ठहरगए और सब सोगए और एक यात्री के लिए इससे मीठी कोई नींद नहीं होती। फिर हमें सूर्य की गर्मी ने जगा दिया, बस सबसे पहले जो जागा फ़ुलाँ व्यक्ति था, फिर फ़ुलाँ व्यक्ति, फिर हज़रत उमर बिन ख़त्ताब रज़ि अल्लाहु अन्ह चौथे जागने वाले थे और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब सोते थे तो उनको कोई जगाता नहीं था यहाँ तक कि आप ख़ुद जाग जाएं क्योंकि हम नहीं जानते कि आपके लिए आपके सपने में क्या हो रहा है मगर जब हज़रत उमर रज़ि अल्लाहु अन्ह जागे और उन्होंने वह हालत देखी जो लोगों पर तारी थी और वो सख़्त मिज़ाज के आदमी थे तो उन्हों ने तकबीर कही और तकबीर के साथ अपनी आवाज़ ऊँची की और बराबर तकबीर कहते रहे कि तकबीर के साथ अपनी आवाज़ ऊँची करते रहे, यहाँ तक कि उनकी आवाज़ से नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जाग गए। बस जब आप जागे तो जो मुसीबत लोगों पर पड़ी थी उसकी शिकायत आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से की। तो आपने फ़रमाया ! “कुछ नुक़सान नहीं” या (यह कहा कि) “कुछ नुक़सान न करेगा, चलो (इसलिए कि यह जानबूझकर नहीं था)।” फिर चले और थोड़ी दूर जाकर उतर पड़े और वुज़ू का पानी मंगवाया, फिर वुज़ू किया और नमाज़ की अज़ान कही गई और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने लोगों को नमाज़ पढ़ाई तो जब आप नमाज़ पढ़चुके तो अचानक एक ऐसे व्यक्ति पर आपकी नज़र पड़ी जो कोने में बेठा हुआ था, लोगों के साथ उसने नमाज़ न पढ़ी थी, तो आपने फ़रमाया ! “ऐ फ़ुलाँ, तुझे लोगों के साथ नमाज़ पढ़ने से किस चीज़ ने रोका ?” तो उसने कहा कि अपवित्रता होगया था और पानी न था आपने फ़रमाया ! “तू ज़रूर पकड़ मिट्टी को (तयम्मुम कर) वह तुझे काफ़ी है।” फिर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम चले तो लोगों ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से प्यास लगने की शिकायत की, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फिर उतर पड़े और एक व्यक्ति को बुलाया और हज़रत अली बिन अबु तालिब रज़ि अल्लाहु अन्ह को बुलाया और फ़रमाया ! “दोनों जाओ और पानी तलाश करो” बस दोनों चले तो एक महिला मिली जो पानी की दो मश्कों के बीच अपने ऊंट पर बैठी हुई जारही थी। तो उन दोनों ने उस से पूछा कि पानी कहाँ है ? उसने कहा कि मैं कल इसी समय पानी पर थी और हमारे पुरुष पीछे रहगए हैं। उन दोनों ने उस से कहा कि अब तू चल। वह बोली कहाँ ? उन्हों ने कहा कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास। उसने कहा वही व्यक्ति जिसे नास्तिक कहा जाता है ? उन्हों ने कहा हाँ, वहीं जिनको (तुम यह समझती हो) तू चल तो सही। बस वह दोनों उसे रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास लाए और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को सारी हालत बताई। हज़रत इमरान रज़ि अल्लाहु अन्ह कहते हैं कि फिर लोगों ने उसे उसके ऊंट से उतारा और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक बरतन मंगवाया और दोनों मश्कों के मुंह खोलकर उसमें से कुछ पानी उस बर्तन में निकाला। इसके बाद उनके उपर वाले मुंह को बंद करदिया और निचले मुंह को खोल दिया और लोगों में आवाज़ लगादी गई कि पानी पियो और (अपने जानवरों को भी) पिला लो। जिसने चाहा ख़ुद पिया और जिसने चाहा पिलाया और अंत में यह हुआ कि जिस व्यक्ति को अपवित्रता होगई थी उसको एक बर्तन पानी का दिया और आपने फ़रमाया ! “जा और इसको अपने उपर डालले।” और वह महिला खड़ी हुई यह सब कुछ देख रही थी कि उसके पानी के साथ क्या किया जा रहा है और अल्लाह की क़सम (जब पानी लेना) उसके मश्कों से रोका गया तो यह हाल था कि हमारे ख़्याल में वह पहले से भी अधिक भरी हुई थीं, जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस से पानी लेना शुरू किया था। फिर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “कुछ उसके लिए जमा करदो।” तो लोगों ने उसके लिए अजवह खजूर, आटा और सत्तू आदि जमा करदिए, एक अच्छी मात्रा का खाना उसके लिए जमा करदिया और उसको एक कपड़े में बाँध दिया और उस महिला को उसके ऊंट पर सवार करदिया और कपड़ा उसके सामने रख दिया। फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस से कहा कि “तुम जानती हो कि हमने तुम्हारे पानी में से कुछ कम नहीं किया, लेकिन अल्लाह ही ने हमें पिलाया।” फिर वह महिला अपने घर वालों के पास आ गई चूँकि वह रस्ते में रोकली गई थी। उन्हों ने कहा कि तुझे किसने रोक लिया था ? तो उसने कहा (कि अजीब बात हुई) मुझे दो आदमी मिले और वो मुझे उस व्यक्ति के पास लेगए, जिसे नास्तिक कहा जाता है और उसने ऐसा ऐसा काम किया। बस क़सम अल्लाह की, बेशक वह व्यक्ति सबसे बड़ा जादूगर है और उसने अपनी दो उंगलियों यानी शहादत की ऊँगली और बीच की ऊँगली से इशारा किया फिर उनको आसमान की ओर उठाया मुराद उसकी आसमान और ज़मीन थी या वह सच में अल्लाह का रसूल है। बस मुसलमान इसके बाद, उसके आसपास के मुशरिकों से लड़ते रहे और जिस बस्ती में वह महिला रहती थी। तो उसने एक दिन अपनी क़ौम से कहा कि मैं समझती हूँ कि बेशक यह लोग जानबूझकर तुम्हें छोड़ देते हैं, बस क्या तुम्हें इस्लाम में कुछ दिलचस्पी है ? तो उन्हों ने उसकी बात मानली और इस्लाम स्वीकार कर लिया।


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