سیدنا اسامہ بن زید رضی اللہ عنہ کہتے ہیں کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم عرفہ سے چلے یہاں تک کہ جب گھاٹی میں پہنچے تو اترے اور پیشاب کیا پھر وضو کیا، مگر وضو پورا نہیں کیا۔ تو میں نے کہا کہ یا رسول اللہ! نماز (کا وقت قریب آ گیا)۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا کہ نماز تمہارے آگے ہے (یعنی مزدلفہ میں پڑھیں گے)۔“ پھر جب مزدلفہ آ گیا تو آپ صلی اللہ علیہ وسلم اترے اور پورا وضو کیا پھر نماز کی اقامت کہی گئی اور آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے مغرب کی نماز پڑھی (پڑھائی) اس کے بعد ہر شخص نے اپنے اونٹ کو اپنے مقام پر بٹھا دیا پھر عشاء کی نماز کی اقامت کہی گئی اور آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے (نماز) پڑھی (پڑھائی) اور دونوں کے درمیان میں کوئی (نفل) نماز نہیں پڑھی۔
हज़रत उसामा बिन ज़ैद रज़ि अल्लाहु अन्ह कहते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अरफ़ह से चले यहाँ तक कि जब घाटी में पहुंचे तो उतरे और पेशाब किया फिर वुज़ू किया, मगर वुज़ू पूरा नहीं किया। तो मैं ने कहा कि या रसूल अल्लाह, नमाज़ (का समय क़रीब आगया)। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “नमाज़ तुम्हारे आगे है (यानी मुज़्दलिफ़ह में पढ़ेंगे)।” फिर जब मुज़्दलिफ़ह आगया तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उतरे और पूरा वुज़ू किया फिर नमाज़ की इक़ामत कही गई और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मग़रिब की नमाज़ पढ़ी (पढ़ाई) इसके बाद हर व्यक्ति ने अपने ऊंट को अपनी जगह पर बिठा दिया फिर इशा की नमाज़ की इक़ामत कही गई और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने (नमाज़) पढ़ी (पढ़ाई) और दोनों के बीच में कोई (नफ़िल) नमाज़ नहीं पढ़ी।