-" إذا دخل احدكم على اخيه المسلم، فاطعمه من طعامه، فلياكل ولا يساله عنه وإن سقاه من شرابه، فليشرب من شرابه ولا يساله عنه".-" إذا دخل أحدكم على أخيه المسلم، فأطعمه من طعامه، فليأكل ولا يسأله عنه وإن سقاه من شرابه، فليشرب من شرابه ولا يسأله عنه".
سیدنا ابوہریرہ رضی اللہ عنہ سے مروی ہے، وہ کہتے ہیں کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ”جب کوئی آدمی اپنے مسلمان بھائی کے پاس جائے اور وہ اسے کھانا کھلائے تو وہ کھانا کھا لے اور اس کے بارے میں مت پوچھے، اسی طرح اگر وہ کوئی مشروب پیش کرے تو وہ پی لے اور اس کے بارے میں نہ پوچھے۔“
हज़रत अबु हुरैरा रज़ि अल्लाहु अन्ह से रिवायत है, वह कहते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “जब कोई आदमी अपने मुसलमान भाई के पास जाए और वह उसे खाना खिलाए तो वह खाना खा ले और उस के बारे में न पूछे, इसी तरह यदि वह कोई शर्बत पिलाए तो वह पी ले और उस के बारे में न पूछे।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 627
قال الشيخ الألباني: - " إذا دخل أحدكم على أخيه المسلم، فأطعمه من طعامه، فليأكل ولا يسأله عنه وإن سقاه من شرابه، فليشرب من شرابه ولا يسأله عنه ". _____________________ أخرجه الحاكم (4 / 126) وأحمد (2 / 399) والخطيب (3 / 87 - 88) والديلمي في " مسند الفردوس " (1 / 1 / 113 - مختصره) من طريق مسلم بن خالد عن زيد بن أسلم عن سمي عن أبي صالح عن أبي هريرة قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: فذكره وقال الحاكم: " صحيح الإسناد، وله شاهد صحيح على شرط مسلم حدثناه ... ". ثم ساقه من طريق ابن عجلان عن سعيد عن أبي هريرة رواية قال: فذكره. ووافقه الذهبي. وقوله: " إنه على شرط مسلم " فيه تساهل لأنه إنما روى لابن عجلان متابعة، فالحديث بمجموع الطريقين صحيح. وقوله " رواية " هو بمعنى مرفوعا كما هو مقرر في علم المصطلح. فلا ينبغي أن يعل الإسناد الأول بهذا، بل هذا شاهد قوي له، كما ذكر الحاكم. والله أعلم. ¤