سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر

سلسله احاديث صحيحه
सिलसिला अहादीस सहीहा
علاج کرنا اور تیماردار کرنا
रोग का इलाज और रोगी की देखभाल
1104. شہد میں شفا ہے
“ शहद में शिफ़ा है ”
حدیث نمبر: 1633
Save to word مکررات اعراب Hindi
-" صدق الله، وكذب بطن اخيك".-" صدق الله، وكذب بطن أخيك".
سیدنا ابوسعید رضی اللہ عنہ سے روایت ہے کہ ایک آدمی نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم کے پاس آیا اور کہا کہ میرے بھائی کو دست آ رہے ہیں۔ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: اسے شہد پلاؤ۔ اس نے اسے شہد پلایا اور آ کر کہا: میں نے اسے شہد پلایا، لیکن اس وجہ سے اسہال میں اضافہ ہوا ہے۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے تین دفعہ اسے یہی حکم دیا۔ وہ چوتھی دفعہ آ گیا، آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے پھر فرمایا: اسے شہد پلاؤ۔ اس نے کہا: میں نے اسے شہد پلایا، لیکن دست کی بیماری نے اضافہ ہی ہوا ہے۔ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: اللہ تعالی سچا ہے اور تیرے بھائی کا پیٹ جھٹلا رہا ہے (یعنی تیرے بھائی کا پیٹ شفا قبول کرنے کے لیے تیار ہی نہیں تھا)۔ اس نے جا کر پھر شہد پلایا، (اب کی بار) وہ شفایاب ہو گیا۔
हज़रत अबु सईद रज़ि अल्लाहु अन्ह से रिवायत है कि एक आदमी नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया और कहा कि मेरे भाई को दस्त आरहे हैं। रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “उसे शहद पिलाओ।” उस ने उसे शहद पिलाया और आकर कहा मैं ने उसे शहद पिलाया लेकिन दस्त और बढ़ गए हैं। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तीन दफ़ा उसे यही हुक्म दिया। वह चौथी दफ़ा आ गया, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फिर फ़रमाया ! “उसे शहद पिलाओ।” उस ने कहा मैं ने उसे शहद पिलाया लेकिन दस्त का रोग बढ़ता ही जा रहा। रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “अल्लाह तआला सच्चा है और तेरे भाई का पेट झूठा है (यानी तेरे भाई का पेट इलाज स्वीकार नहीं कर रहा)।” उस ने जा कर फिर शहद पिलाया (अब की बार) वह स्वस्थ हो गया।
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 243

قال الشيخ الألباني:
- " صدق الله، وكذب بطن أخيك ".
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‏‏‏‏أخرجه مسلم (7 / 26) عن أبي سعيد الخدري قال:
‏‏‏‏" جاء رجل إلى النبي صلى الله عليه وسلم فقال: إن أخي استطلق بطنه، فقال
‏‏‏‏رسول الله صلى الله عليه وسلم اسقه عسلا. فسقاه، ثم جاءه فقال: إني سقيته
‏‏‏‏عسلا فلم يزده إلا استطلاقا فقال له ثلاث مرات، ثم جاءه الرابعة فقال: اسقه
‏‏‏‏عسلا، فقال: لقد سقيته فلم يزده إلا استطلاقا، فقال رسول الله صلى الله عليه
‏‏‏‏وسلم (فذكره) فسقاه فبرأ ".
‏‏‏‏وأخرجه البخاري (10 / 115 / 137 - 138) بشيء من الاختصار واستدركه الحاكم
‏‏‏‏(4 / 402) على الشيخين وأقره الذهبي! !
‏‏‏‏قال ابن القيم في " الزاد " (3 / 97 - 98) بعد أن ذكر كثيرا من فوائد العسل:
‏‏‏‏" فهذا الذي وصف له النبي صلى الله عليه وسلم العسل كان استطلاق بطنه عن تخمة
‏‏‏‏أصابته عن امتلاء فأمر بشرب العسل، لدفع الفضول المجتمعة في نواحي المعدة
‏‏‏‏والأمعاء، فإن العسل فيه جلاء ودفع للفضول، وكان قد أصاب المعدة أخلاط
‏‏‏‏لزجة تمنع استقرار الغذاء فيه للزوجتها، فإن المعدة لها خمل كخمل المنشفة،
‏‏‏‏فإذا علقت بها الأخلاط اللزجة أفسدتها وأفسدت الغذاء، فدواؤها بما يجلوها من
‏‏‏‏تلك الاخلاط، والعسل من أحسن ما عولج به هذا الداء، لاسيما إن مزج بالماء
‏‏‏‏الحار. وفي تكرار سقيه العسل معنى طبي بديع، وهو أن الدواء يجب أن يكون له
‏‏‏‏مقدار وكمية بحسب حال الداء، إن قصر عنه لم يزله بالكلية، وإن جاوزه أوهن
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‏‏‏‏القوى فأحدث ضررا آخر، فلما أمره أن يسقيه العسل، سقاه مقدارا لا يفي بمقاومة
‏‏‏‏الداء، ولا يبلغ الغرض، فلما أخبره علم أن الذي سقاه لا يبلغ مقدار الحاجة،
‏‏‏‏فلما تكرر ترداده إلى النبي صلى الله عليه وسلم أكد عليه المعاودة ليصل إلى
‏‏‏‏المقدار المقاوم للداء، فلما تكررت الشربات بحسب مادة الداء برىء بإذن الله.
‏‏‏‏واعتبار مقادير الأدوية وكيفياتها، ومقدار قوة المرض والمريض من أكبر
‏‏‏‏قواعد الطب. وقوله صلى الله عليه وسلم : " صدق الله وكذب بطن أخيك " إشارة
‏‏‏‏إلى تحقيق نفع هذا الدواء، وأن بقاء الداء ليس لقصور الدواء في نفسه، ولكن
‏‏‏‏لكذب البطن وكثرة المادة الفاسدة فيه، فأمره بتكرار الدواء لكثرة المادة.
‏‏‏‏وليس طبه صلى الله عليه وسلم كطب الأطباء، فإن طب النبي صلى الله عليه وسلم
‏‏‏‏متيقن قطعي إلهي، صادر عن الوحي ومشكاة النبوة وكمال العقل، وطب غيره
‏‏‏‏أكثره حدس وظنون وتجارب. ولا ينكر عدم انتفاع كثير من المرضى بطب النبوة،
‏‏‏‏فإنه إنما ينتفع به من تلقاه بالقبول واعتقاد الشفاء به، وكمال التلقي له
‏‏‏‏بالإيمان والإذعان. فهذا القرآن الذي هو شفاء لما في الصدور، إن لم يتلق هذا
‏‏‏‏التلقي لم يحصل به شفاء الصدور من أدوائه، بل لا يزيد المنافقين إلا رجسا إلى
‏‏‏‏رجسهم ومرضا إلى مرضهم، وأين يقع طب الأبدان منه، فطب النبوة لا يناسب إلا
‏‏‏‏الأبدان الطيبة كما أن شفاء القرآن لا يناسب إلا الأرواح الطيبة والقلوب الحية
‏‏‏‏فإعراض الناس عن طب النبوة كإعراضهم عن الاستشفاء بالقرآن الذي هو الشفاء
‏‏‏‏النافع وليس ذلك لقصور في الدواء، ولكن لخبث الطبيعة، وفساد المحل، وعدم
‏‏‏‏قبوله، وبالله التوفيق ". ¤


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