-" اتدرون ما هذان الكتابان؟ فقلنا: لا يا رسول الله، إلا ان تخبرنا، فقال للذي في يده اليمنى: هذا كتاب من رب العالمين، فيه اسماء اهل الجنة واسماء آبائهم وقبائلهم، ثم اجمل على آخرهم، فلا يزاد فيهم ولا ينقص منهم ابدا، ثم قال للذي في شماله: هذا كتاب من رب العالمين، فيه اسماء اهل النار واسماء آبائهم وقبائلهم، ثم اجمل على آخرهم، فلا يزداد فيهم ولا ينقص منهم، فقال اصحابه: ففيم العمل يا رسول الله إن كان امر قد فرغ منه؟ فقال: سددوا وقاربوا، فإن صاحب الجنة يختم له بعمل اهل الجنة وإن عمل اي عمل وإن صاحب النار يختم له بعمل اهل النار وإن عمل اي عمل. ثم قال رسول الله صلى الله عليه وسلم بيديه فنبذهما، ثم قال: فرغ ربكم من العباد فريق في الجنة وفريق في السعير".-" أتدرون ما هذان الكتابان؟ فقلنا: لا يا رسول الله، إلا أن تخبرنا، فقال للذي في يده اليمنى: هذا كتاب من رب العالمين، فيه أسماء أهل الجنة وأسماء آبائهم وقبائلهم، ثم أجمل على آخرهم، فلا يزاد فيهم ولا ينقص منهم أبدا، ثم قال للذي في شماله: هذا كتاب من رب العالمين، فيه أسماء أهل النار وأسماء آبائهم وقبائلهم، ثم أجمل على آخرهم، فلا يزداد فيهم ولا ينقص منهم، فقال أصحابه: ففيم العمل يا رسول الله إن كان أمر قد فرغ منه؟ فقال: سددوا وقاربوا، فإن صاحب الجنة يختم له بعمل أهل الجنة وإن عمل أي عمل وإن صاحب النار يختم له بعمل أهل النار وإن عمل أي عمل. ثم قال رسول الله صلى الله عليه وسلم بيديه فنبذهما، ثم قال: فرغ ربكم من العباد فريق في الجنة وفريق في السعير".
سیدنا عبداللہ بن عمرو رضی اللہ عنہ بیان کرتے ہیں کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم ہمارے پاس تشریف لائے اور آپ کے ہاتھ میں دو کتابیں تھیں۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ”کیا تم لوگ جانتے ہو کہ یہ کتابیں کون سی ہیں؟ ہم نے کہا: نہیں، اے اللہ کے رسول! ہاں اگر آپ بتا دیں تو . . .۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے دائیں ہاتھ میں پکڑی ہوئی کتاب کے بارے میں فرمایا: ”یہ کتاب رب العالمین کی طرف سے ہے، اس میں جنت والوں کے نام، ان کے آباء کے نام اور ان کے قبائل کے نام ہیں، پھر آخر تک ان کا اجمالاً ذکر کیا گیا، اب اس میں نہ زیادتی کی جا سکتی ہے اور نہ کمی۔“ پھر بائیں ہاتھ میں پکڑے ہوئی کتاب کی بابت فرمایا: ”یہ کتاب بھی رب العالمین کی طرف سے ہے، اس میں جہنمیوں کے نام، ان کے آباء کے نام اور ان کے قبیلوں کے نام ہیں، پھر آخر تک ان کا اجمالاً ذکر کر دیا گیا، اب اس میں کوئی کمی بیشی نہیں ہو سکتی۔“ صحابہ رضی اللہ عنہم نے عرض کی: اے اللہ کے رسول! اگر اس معاملے سے فارغ ہوا جا چکا ہے، تو عمل کا کیا مقصد ہے؟ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ”راہ صواب پر چلتے رہو اور اعتدال اختیار کرو، بلاشبہ جنتی آدمی کا اختتام جنت میں لے جانے والے اعمال پر ہو گا، وہ پہلے جونسا بھی عمل کرتا رہے اور جہنمی آدمی کی زندگی کا اختتام دوزخ میں لے جانے والے اعمال پر ہو گا، وہ پہلے جونسا بھی عمل کرتا رہے۔“ پھر رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے ان دو کتابوں کو پھینک دیا اور فرمایا: ”تمہارا رب اپنے بندوں سے فارغ ہو چکا ہے، ایک فریق جنت میں جائے گا اور دوسرا جہنم میں۔“
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अमरो रज़ि अल्लाहु अन्ह कहते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हमारे पास आए और आप के हाथ में दो किताबें थीं। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “क्या तुम लोग जानते हो कि ये किताबें कौन सी हैं ? हम ने कहा कि नहीं, ऐ अल्लाह के रसूल, हाँ यदि आप बतादें तो... आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दाएँ हाथ में पकड़ी हुई किताब के बारे में फ़रमाया ! “यह किताब रब्ब अलआलमीन की ओर से है, इसमें जन्नत वालों के नाम, उनके पूर्वजों के नाम और उनके क़बीलों के नाम हैं, फिर अंत तक उन के बारे में बताया। अब इसमें कुछ भी घटाया या बढ़ाया नहीं जा सकता।” फिर बाएँ हाथ में पकड़ी हुई किताब के बारे में फ़रमाया ! “यह किताब भी रब्ब अलआलमीन की ओर से है, इसमें जहन्नमियों के नाम, उनके पूर्वजों के नाम और उनके क़बीलों के नाम हैं, फिर अंत तक उनके बारे में बताया, अब इसमें कुछ भी घटाया या बढ़ाया नहीं जा सकता।” सहाबा रज़ि अल्लाहु अन्हुम ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल, यदि यह सब कुछ लिखा जा चूका है, तो कर्मों का क्या लाभ है ? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “सच्चे रस्ते पर चलते रहो और बीच का रस्ता अपना लो, बेशक जन्नती आदमी का अंत जन्नत में लेजाने वाले कर्मों पर होगा, वे पहले जो भी कर्म करता रहे और जहन्नमी आदमी के जीवन का अंत जहन्नम में लेजाने वाले कर्मों पर होगा, वह पहले जो भी कर्म करता रहे।” फिर रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन दो किताबों को फेंक दिया और फ़रमाया ! “तुम्हारा रब्ब अपने बंदों से मुक्त है, एक दल जन्नत में जाएगा और दूसरा जहन्नम में ।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 848
قال الشيخ الألباني: - " أتدرون ما هذان الكتابان؟ فقلنا: لا يا رسول الله، إلا أن تخبرنا، فقال للذي في يده اليمنى: هذا كتاب من رب العالمين، فيه أسماء أهل الجنة وأسماء آبائهم وقبائلهم، ثم أجمل على آخرهم، فلا يزاد فيهم ولا ينقص منهم أبدا، ثم قال للذي في شماله: هذا كتاب من رب العالمين، فيه أسماء أهل النار وأسماء آبائهم وقبائلهم، ثم أجمل على آخرهم، فلا يزداد فيهم ولا ينقص منهم، فقال أصحابه: ففيم العمل يا رسول الله إن كان أمر قد فرغ منه؟ فقال: سددوا وقاربوا، فإن صاحب الجنة يختم له بعمل أهل الجنة وإن عمل أي عمل وإن صاحب النار يختم له بعمل أهل النار وإن عمل أي عمل. ثم قال رسول الله صلى الله عليه وسلم بيديه فنبذهما، ثم قال: فرغ ربكم من العباد فريق في الجنة وفريق في السعير ". _____________________ أخرجه الترمذي (3 / 199 ـ 200) وأحمد (2 / 167) وابن أبي عاصم في " السنة " (348) وأبو نعيم في " الحلية " (5 / 168 ـ 169) من طرق عن أبي قبيل المعافري عن شفي الأصبحي عن عبد الله بن عمرو قال: " خرج علينا رسول الله صلى الله عليه وسلم وفي يده كتابان، فقال " فذكره، وقال الترمذي: " حديث حسن صحيح غريب، وأبو قبيل اسمه حيي بن هانىء ". قلت: وهو حسن الحديث، وثقه أحمد وجماعة، وقال ابن حبان في " الثقات ": " يخطىء ". وفي " التقريب ": " صدوق يهم ". وشفي ـ وهو ابن ماتع ـ ثقة، فالإسناد حسن. " تنبيه " عزى العلامة الشنقيطي هذا الحديث في " زاد المسلم فيما اتفق عليه البخاري ومسلم " لرواية مسلم وهو وهم محض لا أدري كيف وقع له ذلك ووقع في " الفتح الكبير " معزوا لـ (حم، ق، ن) ، وأظن أن (ق) محرف من (ت) . والله أعلم. وأما في " الجامع الكبير " (1 / 14 / 2) فعزاه لـ (حم، ت) فقط، وعزاه في " تحفة الأحوذي " للنسائي ولعله يعني " الكبرى " له، فإني لم أره في " سننه الصغرى ". ¤