سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4035 :ترقیم البانی
سلسله احاديث صحيحه کل احادیث 4103 :حدیث نمبر

سلسله احاديث صحيحه
सिलसिला अहादीस सहीहा
علم سنت اور حدیث نبوی
सुन्नतों की जानकारी और नबवी हदीसें
267. مختلف امارتوں، فتنوں اور تفرقہ بازیوں کے ادوار کو کیسے گزارا جائے؟ حدیث کی رہنمائی
“ विभिन्न शसकों ، फ़ितनों और समुदायों को कैसे संभालें ? ”
حدیث نمبر: 390
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-" قال حذيفة بن اليمان رضي الله عنه: كان الناس يسالون رسول الله صلى الله عليه وسلم عن الخير، وكنت اساله عن الشر مخافة ان يدركني، فقلت: يا رسول الله! إنا كنا في جاهلية وشر، فجاءنا الله بهذا الخير [فنحن فيه]، [ وجاء بك]، فهل بعد هذا الخير من شر [كما كان قبله؟]. [قال:" يا حذيفة تعلم كتاب الله واتبع ما فيه، (ثلاث مرات)". قال: قلت: يا رسول الله! ابعد هذا الشر من خير؟]. قال:" نعم. [قلت: فما العصمة منه؟ قال:" السيف"]. قلت: وهل بعد ذلك الشر من خير؟ (وفي طريق: قلت: وهل بعد السيف بقية؟) قال:" نعم، وفيه (وفي طريق: تكون إمارة (وفي لفظ: جماعة) على اقذاء، وهدنة على) دخن".-" قال حذيفة بن اليمان رضي الله عنه: كان الناس يسألون رسول الله صلى الله عليه وسلم عن الخير، وكنت أسأله عن الشر مخافة أن يدركني، فقلت: يا رسول الله! إنا كنا في جاهلية وشر، فجاءنا الله بهذا الخير [فنحن فيه]، [ وجاء بك]، فهل بعد هذا الخير من شر [كما كان قبله؟]. [قال:" يا حذيفة تعلم كتاب الله واتبع ما فيه، (ثلاث مرات)". قال: قلت: يا رسول الله! أبعد هذا الشر من خير؟]. قال:" نعم. [قلت: فما العصمة منه؟ قال:" السيف"]. قلت: وهل بعد ذلك الشر من خير؟ (وفي طريق: قلت: وهل بعد السيف بقية؟) قال:" نعم، وفيه (وفي طريق: تكون إمارة (وفي لفظ: جماعة) على أقذاء، وهدنة على) دخن".
سیدنا حذیفہ رضی اللہ عنہ کہتے ہیں: لوگ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم سے خیر کے بارے میں سوال کرتے تھے اور میں شر کے بارے میں دریافت کرتا تھا تاکہ اس میں مبتلا نہ ہو جاؤں۔ (ایک دن) میں نے کہا: اے اللہ کے رسول! ہم جاہلیت اور شر کا زمانہ گزار رہے تھے، اللہ تعالیٰ نے اسلام کو، جسے ہم نے قبول کیا، اور آپ کو ہماری طرف بھیجا۔ (اب سوال یہ ہے کہ) کیا اس خیر کے بعد پھر شر (کا غلبہ ہو گا) جیسا کہ پہلے تھا؟ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے تین دفعہ فرمایا: حذیفہ! اللہ کی کتاب پڑھ اور اس کے احکام پر عمل کر۔ میں نے کہا: اے اللہ کے رسول! کیا اس شر کے بعد پھر خیر ہو گی؟ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ہاں۔ میں نے کہا: اس سے بچنے کا کیا طریقہ ہو گا؟ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: تلوار۔ میں نے کہا: کیا اس شر کے بعد پھر خیر ہو گی؟ اور ایک روایت میں ہے کہ کیا تلوار کے بعد خیر کا کوئی حصہ باقی رہے گا؟ (یعنی لڑائی کے بعد اسلام باقی رہے گا؟) آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ہاں۔ اور ایک روایت میں ہے کہ امارت (اور جماعت) تو قائم رہے گی، لیکن معمولی چون و چرا اور دلوں میں نفرتیں اور کینے ہوں گے اور ظاہری صلح، لیکن بباطن لڑائی ہو گی۔ میں نے کہا: کینے کا کیا مطلب ہے؟ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: میرے بعد ایک قوم یا مختلف حکمران ہوں گے جو میری سنت پر عمل نہیں کریں گے اور میری سیرت کے علاوہ کوئی اور سیرت اختیار کریں گے، تو ان کے بعض امور کو اچھا سمجھے گا اور بعض کو برا اور ان میں ایسے لوگ بھی منظر عام پر آئیں گے جو انسانوں کے روپ میں ہوں گے، لیکن ان کے دل شیطانی ہوں گے۔ ایک روایت میں ہے: میں نے کہا: ظاہری صلح بباطن لڑائی اور دلوں میں کینہ، ان چیزوں کا کیا مطلب ہے؟ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: لوگوں کے دل (ان خصائل حمیدہ) کی طرف نہیں لوٹیں گے، جن سے وہ پہلے متصف ہوں گے۔ میں نے کہا: کیا اس خیر کے بعد بھی شر ہو گا؟ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: ہاں، اندھا دھند فتنہ ہو گا، اور (اس میں ایسے لوگ ہوں گے کہ گویا کہ) وہ جہنم کے دروازوں پر کھڑے داعی ہیں، جو آدمی ان کی بات مانے گا وہ اس کو جہنم میں پھینک دیں گے۔ میں نے کہا: اے اللہ کے رسول! ایسے لوگوں کی صفات بیان کیجئے۔ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: وہ ہماری نسل کے ہوں گے اور ہماری طرح باتیں کریں گے۔ میں نے کہا: اے اللہ کے رسول! اگر ایسا زمانہ مجھے پا لے تو میرے لیے کیا حکم ہے؟ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: مسلمانوں کی جماعت اور ان کے حکمران کو لازم پکڑے رکھنا، امیر کی بات سننا اور ماننا۔ اگرچہ تیری پٹائی کر دی جائے اور تیرا مال لوٹ لیا جائے پھر بھی ان کی بات سننا اور اطاعت کرنا۔ میں نے کہا: اگر سرے سے مسلمانوں کی جماعت ہو نہ حکمران (تو پھر میں کیا کروں؟) آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: تمام فرقوں سے کنارہ کش ہو جانا، اگرچہ کسی درخت کے تنے کے ساتھ چمٹنا پڑے، یہاں تک کہ تجھے موت پا لے اور تو اسی حالت میں ہو۔ ایک روایت میں ہے: حذیفہ! کسی درخت کے تنے کے ساتھ چمٹ کر مرنا ان (حکمرانوں) کی اطاعت کرنے سے بہتر ہو گا۔ اور ایک روایت میں ہے: اگر ان دنوں میں تجھے اللہ کی زمیں میں کوئی خلیفہ مل جائے تو اس کو لازم پکڑنا، اگرچہ وہ تیری پٹائی کرے اور تیرا مال چھین لے اور اگر تجھے کوئی خلیفہ نظر نہ آئے تو کسی (گوشئہ) زمین میں بھاگ جانا، حتی کہ تجھے موت آ جائے اور تو کسی درخت کے تنے کے ساتھ چمٹا ہوا ہو۔ میں نے کہا: پھر کیا ہو گا؟ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: پھر دجال ظاہر ہو گا۔ میں نے کہا: وہ کون سی علامت لے کر آئے گا؟ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: نہر یا پانی اور آگ کے ساتھ آئے گا، جو اس کی نہر میں داخل ہوا اس کا اجر ضائع اور گناہ ثابت ہو جائے گا اور جو اس کی آگ میں داخل ہوا اس کا اجر ثابت ہو جائے گا اور اس کا جرم مٹ جائے گا۔ میں نے کہا: اے اللہ کے رسول! دجال کے بعد کیا ہو گا؟ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: عیسی بن مریم۔ میں نے کہا: پھر کیا ہو گا؟ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا: اگر اس وقت تیری گھوڑی کا بچہ پیدا ہوا تو وہ ابھی تک اس قابل نہیں ہو گا کہ تو اس پر سواری کر سکے کہ قیامت قائم ہو جائے گی۔
हज़रत हुज़ैफ़ा रज़ि अल्लाहु अन्ह कहते हैं कि लोग रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अच्छाई के बारे में पूछा करते थे और में बुराई के बारे में पूछा करता था ताकि उस में न पड़ जाऊँ। (एक दिन) मैं ने कहा ऐ अल्लाह के रसूल, हम जाहिलियत और बुराई का समय गुज़ार रहे थे, अल्लाह तआला ने इस्लाम को जिसे हम ने स्वीकार किया और आप को हमारी तरफ़ भेजा। (अब सवाल ये है कि) क्या इस अच्छाई के बाद फिर बुराई होगी जैसा कि पहले था ? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तीन दफ़ा फ़रमाया ! “हुज़ैफ़ा, अल्लाह की किताब पढ़ और उस की आज्ञाकारी कर।” मैं ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल क्या इस बुराई के बाद फिर अच्छाई होगी ? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “हाँ” मैं ने कहा इस से बचने का क्या उपाय होगा ? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “तलवार” मैं ने कहा क्या इस बुराई के बाद फिर अच्छाई होगी ? और एक रिवायत में है कि क्या तलवार के बाद कुछ अच्छाई बाक़ी रह जाएगी ? (यानी लड़ाई के बाद इस्लाम बाक़ी रहेगा ?) आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “हाँ” और एक रिवायत में है कि “शासन (और गुट) तो रहेगा लेकिन मामूली चूंचरा और दिलों में नफ़रतें और कीने होंगे और बाहर से मेल मिलाप लेकिन अंदर से लड़ाई होगी।” मैं ने कहा कीने का क्या मतलब है ? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “मेरे बाद एक क़ौम या कुछ ऐसे शासक होंगे जो मेरी सुन्नत पर अमल नहीं करेंगे और मेरे चरित्र के सिवा कोई और चरित्र अपना लेंगे, तो उनके कुछ मामलों को अच्छा समझा जाएगा और कुछ को बुरा और उनमें ऐसे लोग भी निकल आएंगे जो इन्सानों के रूप में होंगे लेकिन उनके दिल शैतान के होंगे।” एक रिवायत में है कि मैं ने कहा बाहर से मेल मिलाप अंदर से लड़ाई और दिलों में बैर इन चीज़ों का क्या मतलब है ? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “लोगों के दिल (उन अच्छे गुणों) की तरफ़ नहीं लौटेंगे जिन को वे पहले से जानते होंगे।” मैं ने कहा क्या इस अच्छाई के बाद भी बुराई होगी ? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “हाँ, अंधा धुंध फ़ितना होगा और (उस में ऐसे लोग होंगे कि) वे जहन्नम के दरवाज़ों की ओर बुलाने वाले होंगे, जो आदमी उन की बात मानेगा वे उसको जहन्नम में फेंक देंगे।” मैं ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल ऐसे लोगों की निशानियां बताइये। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “वे हमारी पीढ़ी के होंगे और हमारी तरह बातें करेंगे।” मैं ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल अगर मेरे होते हुए ऐसा समय आ जाए तो मेरे लिए क्या हुक्म है ? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “मुसलमानों के गुट और उनके शासक को ज़रूर पकड़े रखना, शासक की बात सुनना और मानना। चाहे तेरी पिटाई करदी जाए और तेरा माल लूट लिया जाए फिर भी उनकी बात सुनना और आज्ञाकारी करना।” मैं ने कहा अगर मुसलमानों के गुट और शासक ही न हों (तो फिर मैं क्या करूँ ?) आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “सारे समुदायों से दूर हो जाना चाहे किसी पेड़ के तने के साथ चिम्टना पड़े यहाँ तक कि तुझे मौत आ जाए और तू उसी हालत में हो।” एक रिवायत में है कि “हुज़ैफ़ा किसी पेड़ के तने के साथ चिमट कर मरना उन (शासकों) की आज्ञाकारी करने से अच्छा होगा।” और एक रिवायत में है कि “अगर उन दिनों में तुझे अल्लाह की ज़मीन पे कोई ख़लीफ़ह मिल जाए तो उस का साथ ज़रूर पकड़ना चाहे वह तेरी पिटाई करे और तेरा माल छीन ले और अगर तुझे कोई ख़लीफ़ह नज़र न आए तो ज़मीन के किसी भी कोने में भाग जाना, यहां तक कि तुझे मौत आ जाए और तू किसी पेड़ के तने के साथ चिमटा हुआ हो।” मैं ने कहा फिर क्या होगा ? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “फिर दज्जाल आ जाएगा।” मैं ने कहा वह कौन सी निशानी लेकर आएगा ? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “नहर या पानी और आग के साथ आएगा, जो उसकी नहर में जाएगा उसके नेक कर्म बर्बाद हो जाएंगे और पाप बन जाएंगे और जो उसकी आग में जाएगा उसका सवाब पक्का हो जाएगा और उसके पाप मिट जाएंगे।” मैं ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल दज्जाल के बाद क्या होगा ? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “ईसा बिन मरयम” मैं ने कहा फिर क्या होगा ? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ! “यदि उस समय तेरी घोड़ी का बच्चा पैदा हुआ तो इस से पहले कि वह इतना बड़ा हो जाए कि तू उस पर सवारी कर सके, क़यामत आ जाएगी।”
سلسله احاديث صحيحه ترقیم البانی: 2739

قال الشيخ الألباني:
- " قال حذيفة بن اليمان رضي الله عنه: كان الناس يسألون رسول الله صلى الله عليه وسلم عن الخير، وكنت أسأله عن الشر مخافة أن يدركني، فقلت: يا رسول الله! إنا كنا في جاهلية وشر، فجاءنا الله بهذا الخير [فنحن فيه] ، [ وجاء بك] ، فهل بعد هذا الخير من شر [كما كان قبله؟] . [قال: " يا حذيفة تعلم كتاب الله واتبع ما فيه، (ثلاث مرات) ". قال: قلت: يا رسول الله! أبعد هذا الشر من خير؟] . قال: " نعم. [قلت: فما العصمة منه؟ قال: " السيف "] . قلت: وهل بعد ذلك الشر من خير؟ (وفي طريق: قلت: وهل بعد السيف بقية؟) قال: " نعم، وفيه (وفي طريق: تكون إمارة (وفي لفظ: جماعة) على أقذاء، وهدنة على) دخن ".
‏‏‏‏_____________________
‏‏‏‏
‏‏‏‏قلت: وما دخنه؟ قال: " قوم (
‏‏‏‏وفي طريق أخرى: يكون بعدي أئمة [يستنون بغير سنتي و] ، يهدون بغير هديي،
‏‏‏‏تعرف منهم وتنكر، [وسيقوم فيهم رجال قلوبهم قلوب الشياطين، في جثمان إنس]
‏‏‏‏". (وفي أخرى: الهدنة على دخن ما هي؟ قال: " لا ترجع قلوب أقوام على الذي
‏‏‏‏كانت عليه ") . قلت: فهل بعد ذلك الخير من شر؟ قال: " نعم، [فتنة عمياء
‏‏‏‏صماء، عليها] دعاة على أبواب جهنم، من أجابهم إليها قذفوه فيها ". قلت: يا
‏‏‏‏رسول الله! صفهم لنا. قال: " هم من جلدتنا، ويتكلمون بألسنتنا ". قلت: [
‏‏‏‏يا رسول الله!] فما تأمرني إن أدركني ذلك؟ قال: " تلتزم جماعة المسلمين
‏‏‏‏وإمامهم، [تسمع وتطيع الأمير وإن ضرب ظهرك وأخذ مالك، فاسمع وأطع] ".
‏‏‏‏قلت: فإن لم يكن لهم جماعة ولا إمام؟ قال: " فاعتزل تلك الفرق كلها، ولو
‏‏‏‏أن تعض بأصل شجرة، حتى يدركك الموت وأنت على ذلك ". (وفي طريق) : " فإن
‏‏‏‏تمت يا حذيفة وأنت عاض على جذل خير لك من أن تتبع أحدا منهم ".
‏‏‏‏__________جزء : 6 /صفحہ : 540__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏(وفي أخرى)
‏‏‏‏: " فإن رأيت يومئذ لله عز وجل في الأرض خليفة، فالزمه وإن ضرب ظهرك وأخذ
‏‏‏‏مالك، فإن لم تر خليفة فاهرب [في الأرض] حتى يدركك الموت وأنت عاض على جذل
‏‏‏‏شجرة ". [قال: قلت: ثم ماذا؟ قال: " ثم يخرج الدجال ". قال: قلت: فبم
‏‏‏‏يجيء؟ قال: " بنهر - أو قال: ماء ونار - فمن دخل نهره حط أجره ووجب وزره،
‏‏‏‏ومن دخل ناره وجب أجره وحط وزره ". [قلت: يا رسول الله: فما بعد الدجال؟
‏‏‏‏قال: " عيسى ابن مريم "] . قال: قلت: ثم ماذا؟ قال: " لو أنتجت فرسا لم
‏‏‏‏تركب فلوها حتى تقوم الساعة "] ".
‏‏‏‏قلت: هذا حديث عظيم الشأن من أعلام نبوته صلى الله عليه وسلم ونصحه لأمته،
‏‏‏‏ما أحوج المسلمين إليه للخلاص من الفرقة والحزبية التي فرقت جمعهم، وشتت
‏‏‏‏شملهم، وأذهبت شوكتهم، فكان ذلك من أسباب تمكن العدو منهم، مصداق قوله
‏‏‏‏تبارك وتعالى: * (ولا تنازعوا فتفشلوا وتذهب ريحكم) *. وقد جاء مطولا
‏‏‏‏ومختصرا من طرق، جمعت هنا فوائدها، وضممت إليه زوائدها في أماكنها المناسبة
‏‏‏‏للسياق، وهو للإمام البخاري في " كتاب الفتن ".
‏‏‏‏__________جزء : 6 /صفحہ : 541__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏الأولى: عن الوليد بن مسلم
‏‏‏‏: حدثنا عبد الرحمن بن يزيد بن جابر: حدثني بسر بن عبيد الله الحضرمي أنه سمع
‏‏‏‏أبا إدريس الخولاني يقول: سمعت حذيفة بن اليمان يقول: فذكره. أخرجه
‏‏‏‏البخاري (3606 و 7084) ومسلم (6 / 20) وأبو عوانة (5 / 574 - 576)
‏‏‏‏والطبراني في " مسند الشاميين " (ص 109 / 1) والداني في " الفتن " (ق 4 / 1
‏‏‏‏) وابن ماجه ببعضه (2 / 475) . ولمسلم منه الزيادة السادسة والتاسعة.
‏‏‏‏ولأبي عوانة منه الزيادة الثانية والسادسة. الثانية: عن معاوية بن سلام:
‏‏‏‏حدثنا زيد بن سلام عن أبي سلام قال: قال حذيفة:.. فذكره مختصرا. أخرجه مسلم
‏‏‏‏، وفيه الزيادة الأولى وما في الطريق الأخرى، والزيادة السابعة والعاشرة.
‏‏‏‏وقد أعل بالانقطاع، وقد وصله الطبراني في " المعجم الأوسط " (1 / 162 / 2 /
‏‏‏‏3039) من طريق عمر بن راشد اليمامي عن يحيى بن أبي كثير عن زيد بن سلام عن
‏‏‏‏أبيه عن جده عن حذيفة بالزيادة التي في الطريق الأخرى والسابعة والعاشرة.
‏‏‏‏وذكره السيوطي في " الجامع الكبير " (4 / 361) أتم منه من رواية ابن عساكر.
‏‏‏‏الثالثة: عن سبيع - ويقال: خالد - بن خالد اليشكري عن حذيفة به. أخرجه أبو
‏‏‏‏عوانة (5 / 476) وأبو داود (4244 - 4247) والنسائي في " الكبرى " (5 /
‏‏‏‏17 / 8032) والطيالسي في " مسنده " (442 و 443)
‏‏‏‏__________جزء : 6 /صفحہ : 542__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏وعبد الرزاق في " المصنف "
‏‏‏‏(11 / 341 / 20711) وابن أبي شيبة (15 / 8 / 18960 و 18961 و 18980)
‏‏‏‏وأحمد (5 / 386 - 387 و 403 و 404 و 406) والحاكم (4 / 432 - 433) من طرق
‏‏‏‏عنه لكن بعضهم سماه خالد بن خالد اليشكري، وهو ثقة، وثقه ابن حبان والعجلي
‏‏‏‏، وروى عنه جمع من الثقات، فقول الحافظ فيه: " مقبول " غير مقبول، ولذلك
‏‏‏‏لما قال الحاكم عقب الحديث: " صحيح الإسناد "، وافقه الذهبي. وأما قول
‏‏‏‏الشيخ الكشميري في " التصريح بما تواتر في نزول المسيح " بعد أن عزاه (ص 210)
‏‏‏‏لابن أبي شيبة وابن عساكر: " وبعض ألفاظه يتحد مع ما عند البخاري، فهو قوي
‏‏‏‏إن شاء الله تعالى ". فمما لا وزن له عند العارفين بطرق التصحيح والتضعيف،
‏‏‏‏لأن اتحاد بعض ألفاظه بما عند البخاري لا يستلزم تقوية الحديث برمته، بل قد
‏‏‏‏يكون العكس في كثير من الأحيان، وهو المعروف عندهم بالحديث الشاذ أو المنكر،
‏‏‏‏ويأتي الإشارة إلى لفظة منها قريبا، وقد خرجت في " الضعيفة " نماذج كثيرة من
‏‏‏‏ذلك، يمكن لمن يريد التحقيق أن يتطلبها في المجلدات المطبوعة منها، وفي
‏‏‏‏المجلد الثاني عشر منها نماذج أخرى كثيرة برقم (5513 و 5514 و 5527 و 5542
‏‏‏‏و5543 و 5544 و 5547 و 5552 و 5553 و 5554) . ومثله قول الشيخ عبد الله
‏‏‏‏الغماري في " عقيدة أهل الإسلام في نزول عيسى عليه السلام " (ص 102) ونقله
‏‏‏‏الشيخ أبو غدة في تعليقه على " التصريح ": " وهو حديث صحيح "! أقول: لا
‏‏‏‏قيمة لهذا أيضا لأنه مجرد دعوى يستطيعها كل أحد مهما كان جاهلا بهذا العلم
‏‏‏‏الشريف، وقد رأيت الغماري هذا واسع الخطو في تصحيح ما لا
‏‏‏‏__________جزء : 6 /صفحہ : 543__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏يصح من الحديث في
‏‏‏‏كتابه الذي سماه: " الكنز الثمين "، وقد تعقبته في كثير من أحاديثه، وبينت
‏‏‏‏ضعفها ووضع بعضها في المجلد المشار إليه من " الضعيفة " برقم (5532 و 5533
‏‏‏‏و5534 و 5535 و 5536 و 5537 و 5538 و 5539) ، وفي غيره أمثلة أخرى. والله
‏‏‏‏المستعان. وقد بينت لك آنفا أن إسناد الحديث صحيح لمجيئه من طرق صحيحة عن
‏‏‏‏سبيع، ولأن هذا ثقة، ولأن أبا عوانة صححه أيضا بإخراجه إياه في " صحيحه "،
‏‏‏‏وهو " المستخرج على صحيح مسلم "، وتصحيح الحاكم أيضا والذهبي، وإنما رددت
‏‏‏‏قول الحافظ فيه: " مقبول " لأنه يعني عند المتابعة، وإلا فهو لين الحديث
‏‏‏‏عنده، كما نص عليه في مقدمة " التقريب ". وكأنه لم يستقر على ذلك، فقد
‏‏‏‏رأيته في " فتح الباري " (13 / 35 - 36) ذكر جملا من هذه الطريق لم ترد في
‏‏‏‏غيرها، فدل ذلك على أن سبيعا هذا ليس لين الحديث عنده، لأن القاعدة عنده أن
‏‏‏‏لا يسكت على ضعيف. والله أعلم. قلت: وفي هذه الطريق الزيادات الأخرى
‏‏‏‏والروايات المشار إليها بقولي: " وفي طريق.. " مما لم يذكر في الطرق المتقدمة
‏‏‏‏، موزعة على مخرجيها، وفيها أيضا الزيادة الثلاثة. وفي بعض الطرق رواية
‏‏‏‏مستنكرة بلفظ: " خليفة الله في الأرض " تقدم الكلام عليها تحت حديث صخر بن بدر
‏‏‏‏عن سبيع برقم (1791) . الرابعة: عن حميد بن هلال عن عبد الرحمن بن قرط عن
‏‏‏‏حذيفة مختصرا. أخرجه النسائي في " الكبرى " (5 / 18 / 8033) وابن ماجه (2
‏‏‏‏/ 476) والحاكم (4 / 432) عن أبي عامر صالح بن رستم عن حميد بن هلال عن عبد
‏‏‏‏الرحمن بن قرط عن حذيفة. وقال الحاكم: " صحيح الإسناد ". ووافقه الذهبي!
‏‏‏‏__________جزء : 6 /صفحہ : 544__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏وهو من أوهامهما، فإن عبد الرحمن بن قرط مجهول كما في " التقريب "، وأشار
‏‏‏‏إلى ذلك الذهبي نفسه بقوله في " الميزان ": " تفرد عنه حميد بن هلال ".
‏‏‏‏وصالح بن رستم صدوق كثير الخطأ، وأخرج له مسلم متابعة، وقد خالفه في إسناده
‏‏‏‏من الثقات سليمان بن المغيرة فقال: عن حميد بن هلال عن نصر بن عاصم الليثي قال
‏‏‏‏: أتينا اليشكري.. الحديث. فجعل نصر بن عاصم مكان عبد الرحمن بن قرط، وهو
‏‏‏‏الصواب. أخرجه أبو داود وأحمد وغيرهما، وهو الطريق التي قبلها. الخامسة:
‏‏‏‏عن يزيد بن عبد الرحمن أبي خالد الدالاني عن عبد الملك بن ميسرة عن زيد بن وهب
‏‏‏‏عن حذيفة مختصرا، وفيه: " هدنة على دخن، وجماعة على أقذاء فيها ".
‏‏‏‏والزيادة الثامنة، وقوله: " ولأن تموت يا حذيفة عاضا على جذع خير من أن
‏‏‏‏تستجيب إلى أحد منهم ". أخرجه الطبراني في " الأوسط " (1 / 202 / 2 / 3674)
‏‏‏‏وقال: " لم يروه عن عبد الملك بن ميسرة إلا أبو خالد الدالاني ". قلت: وهو
‏‏‏‏صدوق يخطىء كثيرا، وكان يدلس كما في " التقريب "، فمن الممكن أن يكون أخطأ
‏‏‏‏في إسناده، وأما المتن فلا، لموافقته بعض ما في الطريق الثالثة. غريب
‏‏‏‏الحديث: 1 - " السيف " أي تحصل العصمة باستعمال السيف. قال قتادة: المراد
‏‏‏‏بهذه الطائفة هم الذين ارتدوا بعد وفاة النبي صلى الله عليه وسلم في زمن خلافة
‏‏‏‏الصديق رضي الله عنه. ذكره
‏‏‏‏__________جزء : 6 /صفحہ : 545__________
‏‏‏‏
‏‏‏‏في " المرقاة " (5 / 143) وقتادة أحد رواة حديث
‏‏‏‏سبيع عند عبد الرزاق وغيره. 2 - " بقية " أي من الشر أو الخير، يعني هل يبقى
‏‏‏‏الإسلام بعد محاربتنا إياهم؟ 3 - " أقذاء " قال ابن الأثير: جمع قذى و (
‏‏‏‏القذى) جمع قذاة، وهو ما يقع في العين والماء والشراب من تراب أو تبن أو
‏‏‏‏وسخ أو غير ذلك. أراد اجتماعهم يكون على فساد في قلوبهم، فشبه بقذى العين
‏‏‏‏والماء والشراب. 4 - " دخن " أي على ضغائن. قاله قتادة، وقد جاءت مفسرة في
‏‏‏‏غير طريقه بلفظ: " لا ترجع قلوب أقوام على الذي كانت عليه " كما ذكرته في
‏‏‏‏المتن. 5 - " جذل " بكسر الجيم وسكون المعجمة بعدها لام، عود ينصب لتحتك به
‏‏‏‏الإبل. كذا في " الفتح " (13 / 36) . 6 - " فلوها " قال ابن الأثير: الفلو
‏‏‏‏: المهر الصغير. فائدة هامة: قال الحافظ ابن حجر عن الطبري: " وفي الحديث
‏‏‏‏أنه متى لم يكن للناس إمام ف


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